विष्णु नागर का व्यंग्य: 75 साल के इतिहास में पहली बार कोई प्रधानमंत्री आया है, जो 'विकास' करना जानता है!
जहां तक इन प्रधानमंत्री की योग्यता का सवाल है तो दुनिया में इनसे ज्यादा पढ़ा लिखा इनसान तो कोई आज तक पैदा नहीं हुआ! वह अकेले ऐसे इनसान हैं, जो एंटायर पोलिटिकल साइंस में एम ए हैं!
राजनीति का थोड़ा-बहुत शर्म और शराफत से नाता बचा हुआ था, भारतीय हिन्दू पार्टी का बहुत धन्यवाद कि उसने इसकी भी अंत्येष्टि कर दी। हमेशा-हमेशा के लिए उसे निबटा दिया। अच्छा किया, जो बोझ ढोया नहीं जाए, उसे उतार फेंकने में ही 'नैतिकता' है। और भाहिपा ही देश की एकमात्र पार्टी है, जो 'नैतिक मूल्यों' का गाना गाती ही रहती है! इस मामले में विश्व की कोई पार्टी उसका मुकाबला नहीं कर सकती। वह भारत छोड़ सकती है मगर अपनी 'नैतिकता' नहीं छोड़ सकती! और देखना आप एक दिन वह भारत छोड़कर चली जाएगी! 'नैतिकता' जहां होगी, वहां वह आवास करेगी! इस देश में वह भजन करने के लिए बैठी नहीं रहेगी!
आप ग़लत मत समझना। भारतीय हिन्दू पार्टी-जिसे आजकल भाजपा कहा जाता है- उसके लिए चुनाव जीतने से बड़ी कोई 'नैतिकता' नहीं! वह सतर्क रहती है कि अपनी 'नैतिकता' के प्रदर्शन का एक भी अवसर कहीं वह गलती से भी गंवा न बैठे! इसी कारण वह किसी राज्य में चुनाव हार जाती है तो भी परेशान नहीं होती। फौरन 'नैतिकता' का दामन पकड़ कर वहां भी किसी तरह सरकार बना लेती है। इतने अधिक ऊंचे नैतिक मानदंडों वाली पार्टी को एक न एक दिन विदेश जाने पर मजबूर होना ही पड़ेगा! अमेरिका में ही इतने ऊंचे मानदंड चल सकते हैं। उन्हें हर चीज टाप की चाहिए। हमारे पास टाप की 'नैतिक' हिन्दू पार्टी निर्यात के लिए उपलब्ध है। फौरन आर्डर दें और ले जाएं! ये भी सुखी, भारतीय जनता भी सुखी!
नैतिकता की इतनी अधिक परवाह होने के कारण ही दिल्ली नगर निगम में जैसे ही आम आदमी पार्टी को बहुमत मिला, उसने दावा करना शुरू कर दिया कि जीतने दो, उसे! देखना, महापौर तो हम अपना बना लेंगे! तुम्हारे पास बहुमत है, होगा। तुम्हें बहुमत जनता ने दिया है, दिया होगा! हमारे पास उससे भी बड़ी चीज़ है, बहुमत को अल्पमत में बदलने का 'नैतिक बल' ! फिर ये हिमाचल भी नहीं छोड़ेंगे। वहां कांग्रेस को बहुमत मिला है मगर अपने 'उच्च नैतिक मानदंडों' का अनुसरण करते हुए ये वहां भी एक दिन अपनी सरकार बना लेंगे! राजस्थान और छत्तीसगढ़ में वैसे देर काफी हो चुकी है मगर कहा जाता है न, देर आयद, दुरुस्त आयद! और यह जरूरी भी है, क्योंकि भारत की आजादी के 75 साल के इतिहास में पहली बार कोई पार्टी और कोई प्रधानमंत्री आया है, जो 'विकास' करना जानता है! बाकी तो सभी प्रधानमंत्री अनपढ़-अज्ञानी थे! उन्हें कुछ आता-जाता नहीं था! विकास किस चिड़िया का नाम है, जानते नहीं थे!
जहां तक इन प्रधानमंत्री की योग्यता का सवाल है तो दुनिया में इनसे ज्यादा पढ़ा लिखा इनसान तो कोई आज तक पैदा नहीं हुआ! वह अकेले ऐसे इनसान हैं, जो एंटायर पोलिटिकल साइंस में एम ए हैं! इतना योग्य प्रधानमंत्री किसी भी राज्य को 'विकास' से क्या केवल इसलिए वंचित होने देगा कि वहां के लोग इस बार डबल इंजिन की सरकार बनाना नहीं चाहते थे?
भाहिपा 'नैतिकता' का विकास आज कल हर राज्य, हर जिले, हर पंचायत, हर मोहल्ले के हर घर, हर आदमी में कर रही है। इसके लिए भाहिपा ने शर्म और शराफत का फटा हुआ चोला छोड़ कर आदिम अवस्था में रहना पसंद किया है। पारदर्शिता पसंद की है। आदिम अवस्था से अधिक पारदर्शी और नैतिक अवस्था क्या हो सकती है? भाहिपा केवल चंदा लेने में अपारदर्शी है, बाकी सबमें अत्यंत पारदर्शी, बेहद आदिम! किस को जेल भेजना है। किसी को सजा होने पर भी जेल नहीं जाने देना है, किसको, कब पैरोल दिलाना है, किसको ईडी-सीबीआई के चक्कर में फंसाना है। सब फिक्स है! फंडा साफ़ है! किस सेठ को कितना और क्या सरकारी माल बेचना है, किसे अंधाधुंध कर्ज दिलाना है, किसका कर्ज माफ करना है, किसके काम में बीस अड़ंगे अड़ाना है। सबमें पूरी पारदर्शिता है, 'नैतिक' स्पष्टता है!
इस तरह भारतीय हिन्दू पार्टी ने भारतीय राजनीति की राह दूसरों के लिए भी बहुत आसान कर दी है। आज इनके 'अच्छे दिन' चल रहे हैं, कल दूसरों के 'अच्छे दिन' भी आएंगे, तो वे भी इतने ही 'नैतिक' हो जाएंगे बल्कि इनसे अधिक 'नैतिक' होने से उन्हें कौन रोक सकेगा? आज ये कह रहे हैं, जीते कोई भी पार्टी, सरकार हमीं बनाएंगे। कल इनके बुरे दिन आएंगे तो वे भी यही कहेंगे- करेंगे। बहुमत इन्हें मिलेगा, सरकार वे बनाएंगे! वे भी अपने सेठों को बचाखुचा सरकारी माल बेचेंगे। अपनी सरकार बेच देंगे। जो भी राजनीति में आता है, उसे बेचना आता है। दूसरों के खून में भी व्यापार होता है। जनता आज इनकी 'नैतिकता' को स्वीकार करती है, कल उनकी नैतिकता को भी सिर माथे रखेगी! महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू का स्वप्न अब इसी तरह साकार होगा ? भगत सिंह और बाबासाहेब का भारत इसी तरह आगे बनेगा?
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