वेंटिलेंटरों की खरीदारी में भी खेल! केंद्र सरकार और पीएम केयर्स के दावों में नहीं कोई तालमेल
सरकार/पीएम केयर्स ने जिन वेंटिलेटर का आदेश दिया है, बाजार में वह 1.5 से 2 लाख रुपये प्रति वेंटिलेटर की दर से उपलब्ध है। लेकिन जून में पीएम केयर्स ने जो दावा किया है, उस हिसाब से इसने बाजार दर से लगभग दोगुना- 4 लाख रुपये प्रति वेंटिलेंटर के हिसाब से भुगतान किया है।
केंद्र सरकार कोरोना से पीड़ित लोगों के उपचार के लिए कितनी ’मुस्तैद’ रही है, इसका एक नमूना।
देश में वेंटिलेंटरों की भारी कमी के मद्देनजर सरकार ने 24 मार्च, 2020 को सभी तरह के वेंटिलेटरों के निर्यात पर रोक लगा दी। यही नहीं, एक सप्ताह बाद इसने 31 मार्च को बीईएल-स्कैनरे के 30,000 और एग्वा के 10,000 वेंटिलेटरों के लिए ऑर्डर भी कर दिए। तीन माह बाद 23 जून को प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि पीएम केयर्स से 50,000 वेंटिलेटरों के लिए 2,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। ये वही बीईएल-स्कैनरे वाले 30,000 और एग्वा वाले 10,000 वेंटिलेटर थे। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि मार्च में जो जानकारी दी गई और पीएम केयर्स को लेकर जो जानकारी दी गई है, क्या वे समान हैं।
सवाल ये हैं कि क्या ‘निजी’ पीएम केयर्स से जिन 50,000 वेंटिलेटर की बात कही जा रही है, उनमें से 40,000 वेंटिलेटर का भुगतान केंद्र सरकार ने अपने आदेश के तहत किया है? और अगर हां, तो क्या पीएम केयर्स ने शेष बचे 10,000 वेंटिलेटर के लिए 2,000 करोड़ का भुगतान किया है? या फिर, पीएम केयर्स ने 40,000 वेंटिलेटर के भुगतान की राशि केंद्र सरकार को दे दी है? पर, ये बातें साफ नहीं हो रही हैं। ध्यान रहे कि पीएम केयर्स को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के दायरे से बाहर रखा गया है। भले ही इसके फंड का प्रबंधन प्रधानमंत्री कार्यालय के आईएएस अफसर कर रहे हों, सरकार इसे ‘निजी’ बताती है। इसका ऑडिट एक चार्टर्ड एकाउंटेंट (संभवतः भाजपा के पूर्व कोषाध्यक्ष पीयूष गोयल) करेंगे, न कि यह काम देश के नियंत्रक और महालेखाकार (सीएजी) के जिम्मे होगा।
सरकार/पीएम केयर्स ने जिन वेंटिलेटर का आदेश दिया है, बाजार में वह 1.5 से 2 लाख रुपये प्रति वेंटिलेटर की दर से उपलब्ध है। हम नहीं जानते कि केंद्र सरकार ने मार्च में 40,000 वेंटिलेंटर के लिए किए आदेश के तहत कितना भुगतान किया है। लेकिन जून में पीएम केयर्स ने जो दावा किया है, उस हिसाब से इसने बाजार दर से लगभग दोगुना- 4 लाख रुपये प्रति वेंटिलेंटर के हिसाब से भुगतान किया है।
पीएम केयर्स ने 23 जून को यह भी दावा किया कि 2,923 वेंटिलेंटर बनाए गए हैं और सिर्फ 1,340 की डिलीवरी हुई है। लेकिन एक आरटीआई आवेदन के जवाब में बेल-स्कैनरे ने मुझे बताया कि उसने 15 जून तक 4,000 पीएम केयर्स वेंटिलेटर बना लिए थे। ऐसे में, पीएम केयर्स ने 2,923 का आंकड़ा कहां से क्यों दिया? वैसे, किसी भी तरह यह तो साफ है कि जून अंत तक 50,000 वेंटिलेटर नहीं आ पाए थे। न ही केंद्र सरकार ने जिन 40,000 वेंटिलेटर के आदेश दिए थे, वे आ पाए थे। वस्तुतः, मार्च और जून के बीच सिर्फ 6 प्रतिशत वेंटिलेटरों का निर्माण हो पाया था।
लेकिन जुलाई के अंतिम सप्ताह में एक तरह से, विस्मयकारी बात हुई। ये वेंटिलेटर तो नहीं ही मिले थे, सरकार ने ’भारत में निर्मित’ वेंटिलेटरों के निर्यात पर लगा प्रतिबंध अचानक हटा लिया। सरकार/पीएम केयर्स ने जिन वेंटिलेटर का आदेश दिया था, वे गैर-बीपैप श्रेणी के थे। इस श्रेणी के वेंटिलेंटर ट्यूब लगाने की जोखिमभरी और तेजी से फैलनी वाली (इनवेसिव) प्रक्रिया के बिना ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं कर सकते। भारत में कोविड का उपचार करने वाले डॉक्टर गैर-इनवेसिव बीपैप वेंटिलेंटर को प्राथमिकता दे रहे हैं। ऐसे में, यही लगता है किऑर्डर देने से पहले या तो चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों से राय नहीं ली गई या उनकी राय की अनदेखी की गई।
लेकिन सबसे ज्यादा पेचीदा गुत्थी यह है कि जब वेंटिलेटर की घरेलू मांग ही पूरी नहीं हुई थी, तो निर्यात प्रतिबंध क्यों हटा दिए गए?
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