‘वायु प्रदूषण मुक्ति’ महायज्ञ: प्रदूषण फैलाकर प्रदूषण रोकने का आयोजन समझ से परे

मार्च के महीने में मेरठ क्षेत्र में गन्ना को काटने के बाद किसान इसकी पत्तियों को खेत में ही जलाते हैं, जिनसे काफी प्रदूषण उत्पन्न होता है। इन सबके बीच यह महायज्ञ आयोजित करना हास्यास्पद है।

फोटो: महेंद्र पांडे 
फोटो: महेंद्र पांडे
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महेन्द्र पांडे

उत्तर प्रदेश के मेरठ में भैसाली मैदान में श्री अयुतचंदी महायज्ञ समिति की ओर से महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। यह महायज्ञ 18 मार्च से शुरू किया गया है और एक करोड़ आहुतियों के बाद 9 दिनों में खत्म होगा।

बनारस के 350 पंडितों द्वारा किया जानेवाला इस महायज्ञ में 108 हवन कुण्ड बनाए गए हैं और कुल क्षेत्र 15000 वर्ग फीट है। देश में वायु प्रदूषण कम करने के उद्देश्य से किये जाने वाले इस यज्ञ में 5000 किलोग्राम आम की लकड़ी, 10000 किलोग्राम शीशम की लकड़ी, 6000 किलोग्राम चावल, 3000 किलोग्राम जौ और 150 बॉक्स देसी घी की आहुति दी जायेगी।

ऐसे समय जब देश के एक कोने में भारतीय विज्ञान कांग्रेस का आयोजन किया जा रहा हो, प्रदूषण फैलाकर प्रदूषण रोकने का आयोजन हास्यास्पद ही है, पर आश्चर्यजनक नहीं। इस देश में वर्तमान प्रधानमंत्री को वेदों में ही पूरा विज्ञान नजर आता है, विज्ञान के मंत्री पूरे वैज्ञानिक समुदाय को बताते हैं कि हमारी (हिन्दुओं की) सारी परंपरा वैज्ञानिक है। दूसरे मंत्री भी डार्विन, आइंस्टीन और न्यूटन जैसे वैज्ञानिकों के किसी भी सिद्धांत को कभी भी खारिज कर सकते हैं।

बीजेपी के सरकार में आने के बाद महायज्ञों के आयोजन में बहुत तेजी आ गयी है। बीजेपी सांसद महेश गिरि 18 से 25 मार्च तक दिल्ली के लाल किला के मैदान में राष्ट्रीय रक्षा महायज्ञ आयोजित कर रहे हैं। इसमें प्रधानमंत्री भी जानेवाले हैं, जबकी दिल्ली में लकड़ी जलाना प्रतिबंधित है। राष्ट्र की रक्षा के लिए किया जाने वाले इस यज्ञ का प्रभाव इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इस यज्ञ की रक्षा के लिए दिल्ली पुलिस, पारा-मिलिट्री बल और 200 से अधिक कमांडो लगाए गए हैं।

‘वायु प्रदूषण मुक्ति’ महायज्ञ: प्रदूषण फैलाकर प्रदूषण रोकने का आयोजन समझ से परे

इसी वर्ष जनवरी में गायों की रक्षा के लिए बीजेपी ने एक महायज्ञ आयोजित किया था। बीजेपी के वीरेंद्र सिंह ने तो बारिश लाने के लिए 2016 में ही महायज्ञ आयोजित कर डाला था। कुछ वर्ष पहले तक यज्ञ लोगों के व्यक्तिगत या पारिवारिक आयोजन थे, पर अब राजनैतिक महायज्ञों की भरमार हो गयी है।

आयोजन समिति के अध्यक्ष ज्ञानेंद्र अग्रवाल के अनुसार लकड़ी को घी के साथ जलाने से प्रदूषण नहीं होता, बल्कि यह हवा को शुद्ध कर देता है। ऐसी विचारधारा वाले सामान्य लोग ही नहीं हैं, बल्कि अनेक वैज्ञानिक भी हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के अनेक भूतपूर्व और वर्तमान अधिकारी भी ऐसा ही सोचते हैं। वैज्ञानिक तथ्य यह है कि एक किलोग्राम लकड़ी जलने पर 130 ग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड, 51 ग्राम हाइड्रोकार्बन, 21 ग्राम पार्टिकुलेट मैटर, 0.3 ग्राम पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन और 10 से 167 मिलीग्राम डोक्सिन उत्पन्न होता है। अंतिम दो रसायन कैंसरजनक हैं। कार्बन मोनोऑक्साइड वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित होता है जो तापमान वृद्धि के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है।

मार्च के महीने में इस तरह का आयोजन मेरठ में करना भी आश्चर्यजनक है। पूरे क्षेत्र में गन्ने की खेती होती है। इस समय गन्ने काटने का समय है, और गन्ना काट कर किसान इसकी पत्तियों को खेत में ही खुले में जलाते हैं। इस मौसम में अस्थाई तौर पर असंख्य गुड उद्योगों को स्थापित किया जाता है, जिनसे भारी मात्रा में प्रदूषण उत्पन्न होता है। इस इलाके में चीनी मिलों की भरमार है, जो प्रदूषण फैलाते हैं। इन सबके बीच यह महायग्य आयोजित करना हास्यास्पद ही है।

‘वायु प्रदूषण मुक्ति’ महायज्ञ: प्रदूषण फैलाकर प्रदूषण रोकने का आयोजन समझ से परे

बहुत पुरानी बात नहीं है, जब देश के प्रधानमंत्री मोदी ने खाना बनाने वाला गैस की सब्सिडी छोड़ने के अनुरोध करने के दौरान लकड़ी जलाकर खाना बनानेवाली महिलाओं का दुख बयां करते थे, पर वही लकड़ी जब यज्ञ में जलती है तब कभी कुछ नहीं कहते। ऐसे आयोजनों में शामिल जरूर हो जाते हैं।

लकड़ी जलाने पर लगभग वैसा ही प्रदूषण होता है, जैसा कृषि अपशिस्ट को खेतों में जलाने पर होता है। किसान जब खेतों में आग लगाता है तब वह एक अपराध है पर 50000 किलोग्राम लकड़ी जलाना देशभक्ति का काम है। पर्यावरण मंत्रालय ने हाल में खेतों में आग लगाने से किसानों को रोकने के लिए 1100 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत किया है।

हमेशा संविधान की दुहाई देनेवालों को शायद यह पता भी नहीं होगा कि वही संविधान वैज्ञानिक सोच को आगे बढ़ाने की बात करता है। पर हमारे यहां सारी समस्याओं का हल तो यज्ञों और हनुमानचालीसा में है। कम से कम सरकार तो यही मानती है।

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