विष्णु नागर का व्यंग्यः सिंहासन खाली करो कि गोडसे आया है, मोदी भक्तों का धीरज अब चूक रहा है!

पिछले सात सालों से इस देश में नागरिक कम, भक्त ज्यादा पैदा हुए हैं। मोदी भक्ति अब गोडसे भक्ति के अगले चरण में है। मोदीजी अब अपना बोरिया-बिस्तर बांधो। अब गोडसे आपके प्रोत्साहन पर ही आपके मुकाबले में आ चुका है। सिंहासन खाली करो कि गोडसे आया है!

फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

आज गांधीजी की शहादत का दिन है। आज उन्हें हर तरह से मारा जा रहा होगा। उनकी जय बोल कर और उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे की जय बुलवाकर भी। आजकल गोडसे के मुर्दे को साल में कम से कम तीन बार जगा कर गांधी जी को मारना पड़ रहा है, ताकि वे मर जाएं तो मर ही जाएं। बार बार परेशान न करें। उनका नाम तक न बचे। उनके जन्मदिन पर, फिर आज 30 जनवरी पर और फिर 15 नवंबर को भी मारा जाता है, जब गोडसे को फांसी दी गई थी।

पिछले सात साल से इस हत्यारे के मुर्दे को जगाया जा रहा है कि उठ। हर बार मुर्दे को जगाने वाले सोचते हैं कि इस बार तो गांधी को हमारा यह परमवीर मुर्दा पूरी तरह छलनी करके ही दम लेगा। उनके शरीर, आत्मा सबको हमेशा के लिए नष्ट-भ्रष्ट कर देगा मगर मुर्दे के बस में यह कहां? उल्टा हर बार गांधी पहले से अधिक जिन्दा हो जाते हैं।

गांधी जी, सुनो बेचारे गोडसे का मुर्दा थक रहा है। मुर्दे भी थक जाते हैं गांधीजी। दया करो इस पर, दया करो! अब तो हत्यारों के भक्त होने लगे हैं। आपको मारने के बाद गोडसे को ये भक्त' महात्मा' का दर्जा भी दे चुके हैं। महात्मा ही, 'महात्मा' पर दया नहीं करेगा तो फिर कौन करेगा?

आज सुबह से बल्कि रात बारह बजे के बाद से गोडसे का मुर्दा सोशल मीडिया पर गांधी जी की हत्या करने में व्यस्त हो चुका होगा। आज फिर से गोडसे जिन्दाबाद, गोडसे अमर रहे का ट्विटर आदि पर जयघोष हो रहा होगा। पिछले सालों की तरह उसे 'आज भी महान शहीद' वगैरह बताया जा रहा होगा। चुनौती दी जा रही होगी कि है कोई माई का लाल, जो सीना ठोंक कर कह सके कि मैं 'शहीद' नाथूराम गोडसे का भक्त हूं? बताइए मोदी राज में भी लोगों की 'कायरता ' खत्म नहीं हुई कि खुद को गोडसे का भक्त घोषित करने तक में हिचक रहे हैं? इस तरह कैसे बनेगा रे तुम्हारा हिन्दू राष्ट्र? 1947 में भी नहीं बना था, अब भी नहीं बनेगा!


पिछले सात सालों से इस देश में नागरिक कम, भक्त ज्यादा पैदा हुए हैं। मोदी भक्ति अब गोडसे भक्ति के अगले चरण में पहुंच रही है। मोदी जी अब अपना बोरिया-बिस्तर बांधो। अब नाथूराम गोडसे आपके प्रोत्साहन पर ही आपके मुकाबले में आ चुका है। उसके आगे आप कुछ नहीं हो।2002 के नरसंहार का वह 'महत्व' अब भक्तों की नजर में नहीं रहा, जिसने कभी आपमें हिन्दू हृदय सम्राट देखा था। अब 30 जनवरी 1948 को गोडसे ने जो किया था, उसका 'महत्व' स्थापित हो चुका है। याद है तब आपके मातृ संगठन ने मिठाइयां बांटी थीं।इ स हत्या को वध बताया था। तो आओ अब सिंहासन खाली करो, मिठाई भी बांटो कि गोडसे आया है!

आपके राज की सबसे बड़ी उपलब्धि यही तो है कि अब गोडसे आपसे आपकी कुर्सी मांग रहा है। नहीं दोगे तो किसी दिन वह छीन लेगा। जब हत्यारे पूजे जाने लगते हैं। जब हत्यारे हत्या के अपराध से मुक्त किए जाने लगते हैं। जब हत्यारे बड़े-बड़े पदों पर बैठाए जाने लगते हैं। जब उन्हें खुलेआम नरसंहार की धमकियां देने की छूट दी जाती है। जब मुख्यमंत्री इनके चरण छूने लगते हैं। जब इस बात का प्रबंध किया जाने लगता है कि कानून की आंच हत्यारों, नरसंहार की धमकी देने वालों तक न पहुंचे और पहुंचे तो ऐसी पहुंचे जैसे जनवरी की ठंड में चूल्हे की आंच शरीर को गर्मी पहुंचाती है, हीटर गर्मी पहुंचाता है तो भक्ति शिफ्ट होकर नाथूराम गोडसे में समाने लगती है।

भक्तों को यह रास नहीं आता कि गांधी जी को श्रद्धांजलि भी दी जाए और नाथूराम गोडसे की जय भी बुलवाई जाए। ऐसी साध्वी को मन से माफ न करने की बात भी की जाए, जो गोडसे भक्ति का ऐलान करती है, फिर उसे लोकसभा का टिकट देकर जिता भी दिया जाए। उन्हें अब दोहरे मापदंड पसंद नहीं। मन अगर गोडसे के साथ है, तो मुंह गांधी के साथ नहीं होना चाहिए।भक्तों को यह समझ में नहीं आता कि ऐसा रणनीति अपनाकर भी आप उस दिन को पास लाने की कोशिश कर रहे हैं, जिस दिन जो मन में है, वह मुख पर भी होगा।

हत्यारों की खुलेआम जय बोलने वाले राजनीति की इस बारीकी को नहीं समझते। उनका धीरज चूक रहा है। उन्हें धीरे-धीरे रेतने की कला में मजा आना बंद हो चुका है। उन्हें एक झटके में सिर सामने चाहिए। राम मंदिर उन्हें बहला नहीं पा रहा। जिनमें गांधी का नाम-काम सब एक झटके में मिटा देने की तमन्ना पैदा की जा चुकी है, उन्हें अब गोडसे चाहिए। ऐसा गोडसे जो गांधीजी के पैर छूकर उन्हें मार दे। गांधी को रेत-रेत कर मारने के खेल से उन्हें ऊब होने लगी है। वे गोडसे को सीधे राजगद्दी सौंपना चाहते हैं।

सिंहासन खाली करो कि गोडसे आया है!

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