ट्रंप की लापरवाही से कोरोना की गिरफ्त में फंसा अमेरिका, अदूरदर्शिता के कारण गहरे संकट में सबसे ताकतवर देश

ट्रंप चीजों को कैसे लेते हैं, इसकी झलक उनकी इस बात से मिलती है जिसमें उन्होंने ये कह दिया कि किसी महामारी की स्थिति में सामाजिक तौर पर अलग-थलग रहने संबंधी दिशानिर्देश को वह महीनों की जगह हफ्तों में ही खत्म कर देंगे ताकि आर्थिक गतिविधियां बहाल हो सकें।

फोटोः सोशल मीडिया
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आशीस रे

वर्ष 2016 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (एफबीआई) के अक्षम्य हस्तक्षेप ने दुनिया के सामने एक गंभीर खतरे की आशंकाओं को ला खड़ा किया। तब के घटनाक्रम को याद रखना जरूरी है। एफबीआई उन ईमेल की जांच की घोषणा करती है जिन्हें हिलेरी क्लिंटन ने अमेरिकी विदेश मंत्री रहते हुए 2009-13 के दौरान अमेरिकी प्रशासन की सुरक्षित प्रणाली से बाहर भेजे या प्राप्त किए।

ऐसे समय जब राष्ट्रपति पद के चुनाव को लेकर हुए तमाम ओपिनियन पोल में हिलेरी आगे चल रही थीं, इस घटना ने जनमत को उनके खिलाफ कर दिया और उनकी छवि को गहरा धक्का पहुंचा। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान यह मामला हिलेरी के साथ चिपका रहा और चुनाव नतीजे आने के बाद हिलेरी के ईमेल प्रकरण की जांच रिपोर्ट भी आ गई, जिसमें पाया जाता है कि हिलेरी की ओर से कोई भी गैर-कानूनी काम नहीं हुआ।

लेकिन इसका असर यह हुआ कि डोनाल्ड ट्रंप को वह जीत हासिल हो गई जिसके वह कतई हकदार नहीं थे। नतीजतन, व्हाइट हाउस में ऐसा व्यक्ति बैठ गया जो सरकार में उतने बड़े ओहदे के लिहाज से सर्वथा अयोग्य था। आज जब दुनिया एक अदृश्य हत्यारे वायरस कोविड-19 के हाहाकारी हमले को झेल रहा है, ट्रंप की अदूरदर्शिता ने अमेरिका को बड़े संकट में डाल दिया है।

वायरस के प्रकोप के कारण अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा संकट खड़ा हो गया है और इससे बड़े पैमाने पर लोग बेरोजगार हो जाएंगे, काम-धंधे बंद हो जाएंगे और शेयर बाजार तबाह हो जाएगा। और तो और, वायरस के जानलेवा दौर के खत्म हो जाने के बाद भी सामान्य स्थिति तब तक बहाल नहीं हो सकेगी जब तक इसकी कारगर वैक्सीन न बन जाए, और इसमें कम से कम अभी एक साल का समय तो लग ही जाएगा।


ऐसे हालात में ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने की उम्मीदें धूमिल पड़ती दिख रही हैं। विश्लेषकों का मानना है कि चुनावी हवा ट्रंप के खिलाफ बह रही है। अमेरिका में राष्ट्रपति बनने के लिए एक प्रत्याशी को 270 इलेक्टोरल कॉलेजों में जीत हासिल करनी होती है। कुक पॉलिटिकल रिपोर्ट की ऐमी वाल्टर के मुताबिक डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बिडेन को 232 और ट्रंप को 204 इलेक्टोरल कॉलेजों में जीत मिलने जा रही है और 102 के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।

रॉथनवर्ग पॉलिटिकल रिपोर्ट के संस्थापक स्टू रॉथनबर कहते हैं, “दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के लिहाज से ट्रंप के लिए संभावनाएं कम ही हैं।” ट्रंप चीजों को कैसे लेते हैं, इसकी झलक इसी बात में मिलती है कि उन्होंने कह डाला कि किसी महामारी की स्थिति में सामाजिक तौर पर अलग-थलग रहने संबंधी दिशानिर्देश को वह महीनों की जगह हफ्तों में ही खत्म कर देंगे ताकि आर्थिक गतिविधियां बहाल हो सकें। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा, “बहुत जल्द हम फिर से अपने-अपने काम शुरू कर देंगे।”

उन्होंने यह तो माना कि स्थिति बुरी है लेकिन तब भी इसकी गंभीरता को नहीं समझा और कहा, “अगर हम अपना फैसला डॉक्टरों पर छोड़ दें तो वे तो यही कहेंगे कि सबकुछ बंद रखा जाए। वाहन दुर्घटना को ही लें। आज हम जिस भी संख्या को सामने रखकर बात कर रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा की मौत तो वाहन दुर्घटना के कारण हो जाती है। इसका यह तो मतलब नहीं कि हम सभी लोगों को गाड़ी चलाने से रोक दें।” अपनी बात के समर्थन में ट्रंप एक जुमला भी सुनाते हैं- हम इलाज को समस्या से ज्यादा कष्टकर नहीं बना सकते।

वायरस के हमले के प्रति ट्रंप की लापरवाही का ही नतीजा है कि अमेरिका तब तक अपेक्षित तैयारी करने से पिछड़ा रहा जब तक इसे वैश्विक महामारी घोषित न कर दिया गया। वह बार-बार कहते रहे कि “सबकुछ नियंत्रण में है” और वायरस “जल्द ही खत्म हो जाएगा” और इसके कारण कुछ ही समय बाद दुनिया का सबसे ताकतवर देश फेस मास्क, टेस्ट किट और वेंटिलेटर के लिए मोहताज हो गया।


दि हिल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि आईसीयू बेड और वेंटिलेटर की अमेरिका में कमी तत्काल दूर करने की जरूरत है। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि स्थितियों का अंदाजा करते हुए जो एहतियाती कदम उठाकर जिन चीजों की उपलब्धता पहले से ही सुनिश्चित की जा सकती थी, अब कई राज्यों में उन्हीं चीजों की कमी एक बड़ी समस्या बन गई है। दूसरी ओर ट्रंप हैं कि रोजाना होने वाली मीडिया ब्रीफिंग में वह आदत के मुताबिक शर्मनाक तरीके से झूठ बोल जाते हैं। और तो और, वह यहां तक बोल गए कि कार निर्माता कंपनी जनरल मोटर्स और फोर्ड वेंटिलेटर बना रही हैं, जबकि ऐसी कोई बात ही नहीं है।

वह इस तरह की भ्रामक बातें भी बड़े आराम से कर जाते हैं कि कोविड-19 का उपचार क्लोरोक्वीन से होता है। यह वह दवा है जिसका व्यापक तौर पर मलेरिया के मामलों में इस्तेमाल किया जाता है। ध्यान देने की बात है कि मलेरिया मच्छरों के काटने से होता है, न कि वायरस के कारण। एक रिपोर्ट में जरूर यह कहा गया कि फ्रांस में क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल कोविड-19 के 20 मरीजों पर किया गया, जिनमें से छह की स्थिति बेहतर हो गई। लेकिन इस बात का कोई अकाट्य प्रमाण नहीं कि क्लोरोक्वीन के कारण ही उन छह मरीजों की हालत बेहतर हुई।

लेकिन ट्रंप तो ट्रंप ठहरे, सो उन्होंने दावा कर दिया कि अमेरिका की फेडरल ड्रग अथॉरिटी ने कोरोना वायरस के उपाय के लिए एक एंटी-मलेरिया वैक्सीन के इस्तेमाल को मंजूरी दी है, लेकिन यह भी सरासर गलत है और इसकी पुष्टि अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शस डिसीजेज के निदेशक एंथोनी फाउसी ने की।

अमेरिका में महामारी को लेकर चुनौती यूरोप जितनी बड़ी होती जा रही है। एक तिहाई अमेरिकियों को घरों में रहने को कह दिया गया है। कहा जा सकता है कि अमेरिका भी इटली की राह पर है, लेकिन उसकी तैयारियां इटली से कहीं कम हैं। प्रति व्यक्ति डॉक्टर और अस्पताल बेड के मामले में अमेरिका की स्थिति इटली से कहीं खराब है। ट्रंप ने कांग्रेस से 2 ट्रिलियन की राशि मंजूर कराई, जिससे उन लोगों को क्षतिपूर्ति की जा सके जिनके जीवन को कोरोना ने बुरी तरह प्रभावित किया।

लेकिन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर इयान गोल्डिन ने न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखे आलेख में कहा है कि अगर विभिन्न देशों की सरकारें अपने-अपने स्तर पर कोशिशें करती रहीं तो इस वैश्विक समस्या का समाधान नहीं निकलेगा। उन्होंने ट्रंप पर आरोप लगाया कि उन्होंने बहुत देर से कदम उठाया।

वहीं, स्तंभकार निकोलस क्रिस्टोफ ने विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर जो निष्कर्ष निकाला है, वह काफी चिंताजनक स्थिति की ओर इशारा करता है। उनका कहना है कि अगर बुरा हुआ तो अगले साल तक अमेरिका में 20 लाख लोग मारे जा चुके होंगे और अगर सब अच्छा रहा तो मार्च, 2021 तक अमेरिका में इस वायरस के कारण मरने वालों की तादाद हजारों में होगी।

जाहिर है, यह सब एक व्यक्ति, डोनाल्ड ट्रंप, की घोर अदूरदर्शिता के कारण होगा।

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