भारत में धार्मिक आजादी हनन पर अमेरिकी गृह मंत्रालय की रिपोर्ट, मोदी सरकार की नीतियों पर सवाल!
भारत में धार्मिक आजादी को अमानवीय तरीके से कुचला जा रहा है, यहां पर एक धर्म विशेष के लोगों के नरसंहार के लिए खुलेआम कैमरे के सामने आह्वान किया जाता है।
अमेरिका के गृह मंत्रालय ने दुनिया में वर्ष 2022 के दौरान धार्मिक आजादी पर वार्षिक रिपोर्ट जारी की है, इसके अनुसार पूरे वर्ष के दौरान देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा और सत्ता द्वारा भेदभाव के मामले सामने आते रहे। जाहिर है इस रिपोर्ट को भारत सरकार ने खारिज कर दिया है और देश के विरुद्ध दुष्प्रचार करार दिया है। दूसरी तरफ हाल में संपन्न कर्नाटक चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री से लेकर बीजेपी के हरेक स्टार प्रचारक हरेक भाषण और हरेक रोड शो में केवल धार्मिक ध्रुवीकरण की साजिश रचते रहे। बीजेपी के बड़े नेता और तथाकथित मेनस्ट्रीम मीडिया हिन्दू राष्ट्र का खुलेआम नारा बुलंद करते रहे और हिन्दू राष्ट्र का नारा लगाने वाले धीरेन्द्र कृष्ण तो मीडिया और सत्ता के चहेते बन गए।
जून में प्रधानमंत्री मोदी अपने 9 वर्ष के कार्यकाल में अमेरिका के पहले आधिकारिक राजनैयिक दौरे पर जा रहे हैं, जाहिर है रिपोर्ट में और इसके प्रस्तावना में भले ही भारत में धार्मिक उन्माद पर चिंता प्रकट की गई हो पर स्टेट सेक्रेटरी ने रिपोर्ट को जारी करते हुए भारत का नाम नहीं लिया। हालांकि गृह मंत्रालय के दूसरे वरिष्ठ वक्ताओं ने भारत में धार्मिक आजादी की स्थिति पर चिंता प्रकट की। रिपोर्ट के अनुसार भारत में मुस्लिम, क्रिस्चियन, सिख, दलितों और जन-जातीय समूहों को निशाना बनाकर लगातार हमले किए जाते हैं। अमेरिकी गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार भारत सरकार से आग्रह है कि ऐसे हमलों को बढ़ावा देने के बदले उन्हें रोकने का प्रयास करें। भारत में धार्मिक आजादी को अमानवीय तरीके से कुचला जा रहा है, यहां पर एक धर्म विशेष के लोगों के नरसंहार के लिए खुलेआम कैमरे के सामने आह्वान किया जाता है। अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाया जाता है, उनकी प्रार्थना सभाओं को रोका जाता है, अल्पसंख्यकों के घरों पर बुलडोज़र चलाए जाते हैं और अल्पसंख्यकों को धमकाने वाले या इनपर हिंसा करने वालों पर कोई कानूनी या पुलिस कार्यवाही नहीं की जाती है। जाहिर है ऐसे हिंसक और हत्यारों को सत्ता का पूरा समर्थन मिलता है।
इस रिपोर्ट को वास्तविक अध्ययन, मीडिया खबरों और मानवाधिकार पर कार्य करने वाले समूहों से मिले फीडबैक के आधार पर तैयार किया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार गौहत्या और लवजिहाद का नाम देकर खुलेआम पुलिस की मौजूदगी में मुस्लिमों की, धर्म परिवर्तन का नाम देकर ईसाईयों पर और खालिस्तानी का नाम देकर सिक्खों पर भीड़ द्वारा हमले किए जाते हैं और हत्याएं की जाती हैं। यूनाइटेड क्रिश्चियंस फोरम द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 में नवम्बर के अंत तक क्रिश्चियनों पर 511 हमले हो चुके थे, जबकि पूरे वर्ष 2021 के दौरान ऐसे 505 हमले किए गए थे। रिपोर्ट में बताया गया है कि समाचार चैनलों पर भाजपा से जुड़ी नुपुर शर्मा और नवीन जिंदल जैसे लोग खुलेआम हजरत मोहम्मद के बारे में अभद्र टिप्पणी करते हैं, उनके समर्थन में तमाम सोशल मीडिया पोस्ट आती हैं, कई जगह दंगे जैसे हालात हो जाते हैं पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती है।
अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट अन्थोनी ब्लिंकेन ने 20 मार्च को भारत से संबंधित “वार्षिक कंट्री रिपोर्ट ऑन ह्यूमन राइट्स प्रैक्टिसेज” को रिलीज़ किया। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष भारत में सरकार द्वारा मानवाधिकार का व्यापक तरीके से हनन किया गया। अनेक रिपोर्ट बताती हैं कि देश में सत्ता या पुलिस द्वारा गैरकानूनी हत्याएं, एनकाउंटर का नाम देकर हत्याएं, पुलिस और जेल के अधिकारियों द्वारा अमानवीय यातनाएं सामान्य घटनाओं की श्रेणी में आ गयी हैं। मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सरकारी पाबंदियां, हिंसा या हिंसा की धमकी, निष्पक्ष पत्रकारों को बिना कारण बताये गिरफ्तार करना, विरोधियों को जांच एजेंसियों और देशद्रोह से संबंधित कानूनों का डर दिखाना, इन्टरनेट को कभी भी और कहीं भी बंद कर देना और आंदोलनों और धरना/प्रदर्शनों के दौरान तमाम बाधाएं पैदा करना – सत्ता के हथियार हैं जिनका मानवाधिकार कुचलने के लिए लगातार इस्तेमाल किया जाता है।
देश में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब है। घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, कार्य के स्थल पर शोषण, तमाम प्रकार की हिंसा, बलात्कार, बाल विवाह इत्यादि से संबंधित मामलों की कभी जांच पूरी नहीं होती, दोषियों को सजा नहीं होती और किसी अधिकारी की कोई जिम्मेदारी नहीं होती। देश में हवालात में और जेलों में हत्याएं और मुठभेड़ के नाम पर हत्याएं लगातार की जाती हैं।
अमेरिका सरकार की रिपोर्ट में अल्पसंख्यकों और एक धर्म विशेष के विरुद्ध बुलडोज़र के हथियार के तरीके से इस्तेमाल की चर्चा भी की गयी है। इसके अनुसार कानूनी प्रक्रिया के बिना ही अल्पसंख्यकों के घरों को अवैध निर्माण का नाम देकर उनके घरों को बुलडोज़र से ढहा दिया जाता है। ऐसे अधिकतर मामले एक धर्म विशेष के लोगों से जुड़े हैं, जिन्होंने सरकार की नीतियों का विरोध किया।
हाल में ही स्वीडन की संस्था, वी-डेम (वेरायटीज ऑफ़ डेमोक्रेसी) ने डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2023 प्रकाशित किया है, जिसमें कुल 179 देशों के लिबरल डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत 97वें स्थान पर और चुनावी प्रजातंत्र इंडेक्स में 108वें स्थान पर है। पिछले वर्ष के इंडेक्स में भारत का स्थान 100वां था। तंज़ानिया, बोलीविया, मेक्सिको, सिंगापुर और नाइजीरिया जैसे घोषित निरंकुश सत्ता वाले देश भी इस इंडेक्स में भारत से पहले के स्थानों पर हैं, यानि उनमें प्रजातंत्र की स्थिति भारत से बेहतर है। यही नहीं भारत को चुनावी निरंकुशता वाले देशों में शामिल किया गया है। यहाँ यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि इससे पहले फ्रीडम हाउस ने भारत को आंशिक स्वतंत्र देशों की सूचि में और इंस्टिट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस ने तेजी से पीछे जाते हुए प्रजातंत्र वाले देशों में शामिल किया था| इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 वर्षों के दौरान दुनिया में प्रजातंत्र को निरंकुश सत्ता में बदलने वाले देशों में भारत सबसे आगे है।
तमाम रिपोर्ट लगातार बताती रही हैं कि हमारे देश का प्रजातंत्र अब निरंकुश और धर्मांध हो गया है। सत्ता और तमाम समर्थक के सपनों का देश तैयार हो रहा है, जहां मीडिया पर सत्ता से जुड़े लोग कैमरे के सामने देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने का, एक धर्म-विशेष की आबादी को ख़त्म कर देने का आह्वान करते हैं। सतही तौर पर लगता है कि सत्ता और उसके समर्थकों की विशाल फ़ौज जैसा भारत बनाना चाहती है, वैसा भारत बन चुका है – और देश की जनता खुश भी होगी। पर, ऐसा बिलकुल नहीं है। हाल में ही प्रकाशित हैप्पीनेस इंडेक्स में कुल 137 देशों की सूचि में हम 126वें स्थान पर हैं, यानि केवल 11 देश ऐसे हैं जहां की प्रजा भारत से भी अधिक दुखी है।
भारत जैसे देशों में धार्मिक आधार पर भले ही लिखित क़ानून न बनाए जाते हों, पर सत्ता द्वारा धार्मिक कट्टरता का प्रचार धार्मिक कानूनों वाले देशों से भी कई गुना अधिक किया जाता है। दरअसल धर्म के आधार पर सत्ता का आधार एक विभाजित समाज ही होता है। आप इसमें किसी धर्म की रक्षा नहीं करते या फिर उसे आगे नहीं बढाते बल्कि केवल दूसरे धर्मों के विरुद्ध नफरत फैलाते हैं। हमारे देश में सत्ता प्रचारित यह धारणा जनता तक पहुंचा दी गयी है कि भारत केवल हिंदुओं का देश है और हिंदुओं को इस्लाम और दूसरे धर्मों से खतरा है। हमारे देश में सत्ता में बैठे लोगों की खुशनसीबी है कि मीडिया जैसी कोई चीज इस देश में बची ही नहीं है। मीडिया के नाम पर जो आप न्यूज़ चैनल देखते है, या समाचारपत्र पढ़ते हैं वह तो महज सरकार का प्रचार तंत्र है जो बीजेपी के आईटी सेल के तरह झूठ और नफरत फैलाने का माध्यम है।
अमेरिका की सरकार एक रिपोर्ट प्रकाशित कर भारत में मानवाधिकार हनन का मसला उठाती है, पर दुखद यह है कि अमेरिकी सरकार अपनी तरफ से कोई दबाव नहीं बनाती जिससे इस स्थिति में सुधार आए।
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Published: 21 May 2023, 10:00 AM