यूपी की जनसंख्या नीति बंगाल चुनाव से धुंधली हो चुकी मोदी की आभा चमकाने की कोशिश और ध्रुवीकरण की चाल है...
एक साल पहले तक केंद्र सरकार ‘परिवार नियोजन के थोपे गए उपायों’ के खिलाफ थी। उसने 12 दिसंबर 2020 को सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि, ‘वैश्विक अनुभव बताता है कि बच्चों की संख्या तय करने के लिए किसी भी जबरदस्ती के प्रतिकूल प्रभाव होंगे और इससे डेमोग्राफिक दिक्कतें होंगी।’
उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे भी अगर पश्चिम बंगाल की तरह रहे तो 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बोरिया बिस्तर बांधकर गुजरात के वडनगर रवाना होना होगा। ऐसे में दबाव यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ पर है। अभी डेढ़ महीने पहले तक उनकी राजनीतिक छुट्टी की चर्चा तेज थी, लेकिन उन्हें राहत दे दी गई और तब से ही वह जांचे-परखे हिंदुत्व के उस ब्रांड को बेच रहे हैं जिसे अभ तक कोई और दूसरा हिंदुत्व संगठन नहीं बेच पाया है।
सार यह है कि योगी आदित्यनाथ को मोदी के लिए उत्तर प्रदेश जीतना ही होगा। इसीलिए उन्होंने उस मुद्दे को उछाला है जिसे एक साल पहले तक मोदी छूना भी नहीं चाहते थे। मिसाल के लिए सामने है उत्तर प्रदेश में तैयार की गई जनसंख्या नीति। विपक्ष का साफ कहना है कि इसके पीछे निशाना उत्तर प्रदेश की मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी है।
रोचक बात तो यह है कि एक साल पहले तक केंद्र की मोदी सरकार ‘परिवार नियोजन के थोपे गए उपायों’ के खिलाफ थी। मोदी सरकार ने 12 दिसंबर 2020 को सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि, ‘वैश्विक अनुभव बताता है कि बच्चों की संख्या तय करने के लिए किसी भी जबरदस्ती के प्रतिकूल प्रभाव होंगे और इससे जनसांख्यिकीय विकृतियां भी पैदा होंगी।’
लेकिन अब योगी सरकार ने इस जनसांख्यिकीय ताने-बाने को तहस-नहस कर दिया है जिसे मुसलमान चुनावी फायदे के लिए ध्रुवीकरण का एक तरीका मानते हैं।
दिसंबर 2020 में, मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था, "भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम स्वैच्छिक प्रकृति का है, जो पति-पत्नी को अपने परिवार के आकार का फैसला करने और परिवार नियोजन के तरीकों को अपनी पसंद के अनुसार, बिना किसी जबरदस्ती के, अपनाने के लिए सक्षम बनाता है।“ साथ ही यह भी कहा था कि राज्यों को जनसंख्या नीति तय करने में आगे आना चाहिए।
उस वक्त तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस पर कान नहीं धरे थे। लेकिन अब करीब एक साल बाद जब नरेंद्र मोदी संभवत: अभी भी पश्चिम बंगाल में बीजेपी की अपमानजनक हार को समझने की कोशिश कर रहे हैं, तो योगी आदित्यनाथ विकास के नाम पर जनसंख्या पर अंकुश लगाने को तत्पर नजर आ रहे हैं। नीति कहती है कि जिनके दो बच्चे होंगे उन्हें सारे लाभ मिलेंगे। कहा जा रहा है कि दो बच्चों के नियम का पालन न करने वालों को सरकारी लाभों से वंचित होना पड़ेगा और स्थानीय चुनाव लड़ने पर भी रोक लग जाएगी। तीसरा बच्चा अवांछित होगा और उसे परिवार के राशन कार्ड में शामिल नहीं किया जाएगा।
हकीकत यह है कि देश में हिंदू और मुस्लिम दोनों की ही जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आई है और दोनों के बीच कोई बड़ा अंतर नहीं है। यह भी सामने आया है कि न सिर्फ मुस्लिम उलेमा बल्कि विश्व हिंदू परिषद को भी योगी आदित्यनाथ की प्रस्तावित जनसंख्या नीति पर एतराज है। योगी आदित्यनाथ ने 11 जुलाई को जनसंख्या नीति का जो मसौदा पेश किया है उसमें 2026 तक जन्मदर को प्रति हजार 2.1 करने और 2030 तक 1.9 करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। फिलहाल उत्तर प्रदेश में जन्मदर 2.7 फीसदी है।
इस दौरान असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी इसी किस्म की नीति की घोषणा की है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि जनसंख्या से विकास पर प्रभाव पड़ता है और संसाधनों पर दबाव बनता है, लेकिन क्या बीजेपी और मोदी सरकार जनसंख्या नियंत्रण को लेकर गंभीर हैं? क्या वे ये सब सिर्फ विकास के लिए कर रहे हैं या फिर उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य के चुनावों से पहले यह भी बाकी जुमलों की तरह मतदाताओं को मूर्ख बनाने का दांव भर है?
हिंदुत्व के कट्टरपंथी अब नरेंद्र मोदी पर विश्वास नहीं करते हैं। बात खत्म। और मोदी को इसका एहसास हो चुका है। हिंदुत्ववादी ज्वरशील सपने में योगी आदित्यनाथ अब मोदी की जगह ले रहे हैं। इसलिए इसकी संभावना तो बिल्कुल नगण्य है कि नरेंद्र मोदी या अमित शाह या खुद योगी भी जन्म दर को लेकर कोई खास चिंतित हों। यह तो पश्चिम बंगाल की हार और नरेंद्र मोदी की धुंधली हो चुकी आभा को चमकाने की सिर्फ एक और चाल या नाटक है।
(आईपीए के लिए सुशील कुट्टी का लेख। लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने विचार हैं)
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