नोटबंदी से हिली अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार ने लगाया बिग बाजार, सड़क से लेकर रेल तक सबकुछ होगा नीलाम

नोटबंदी के ‘सदमे’ वाले कदम के बाद अजीबो-गरीब फैसलों की जैसे झड़ी ही लगा दी सरकार ने, जिससे 2016 से अर्थव्यवस्था गिरावट के दौर में चली गई। नुकसान की भरपाई के लिए सरकार ने अब राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन के रूप में राजस्व पैदा करने की अजीब-सी तरकीब खोजी है।

सोशल मीडिया
सोशल मीडिया
user

एम वाई सिद्दीकी

दो साल पहले रेलवे के निजीकरण की अटकलों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिरे से खारिज करते हुए कहा था कि ऐसी कोई योजना नहीं है। लेकिन अटकलें ही सही साबित हुईं और उनकी सरकार ने न केवल रेलवे बल्कि तमाम सार्वजनिक संपत्ति के बड़े पैमाने पर ‘निजीकरण’ की घोषणा कर दी है।

कागज पर तो ‘संपत्ति मुद्रीकरण’ योजना आकर्षक है और सरकार का दावा है कि उसने उन संपत्तियों की पहचान की है जो पर्याप्त रिटर्न नहीं दे रही हैं या जिनका कम उपयोग किया जा रहा है। लेकिन किसी को नहीं पता कि किन संपत्तियों को और क्यों चुना जा रहा है। सरकार ने संसद में या हितधारकों के साथ चर्चा नहीं की। तमाम मामलों की तरह ही सरकार की सोच यही है कि वही सबकुछ जानती है और बाकी लोग या तो इसे मान लें या फिर किनारे हो जाएं।

अगर आपको परिवार के पास जमा चांदी बेचनी ही है तो तब बेचें जब फायदेमंद हो, तब नहीं जब आप संकट में हों। लेकिन सरकार गंभीर स्थिति में है और राजस्व के लिए स्थायी संपत्तियों को बेच रही है। विनिवेश के पिछले प्रयास सफल नहीं रहे, बावजूद इसके सात दशकों के दौरान करदाताओं के गाढ़े पैसे से बनी संपत्तियों के निजीकरण को बेचैन है।

सरकार ने नोटबंदी के ‘सदमे’ वाले कदम के बाद अजीबो-गरीब फैसलों की जैसे झड़ी ही लगा दी जिसके कारण 2016 से अर्थव्यवस्था गिरावट के दौर में चली गई। 2019 में दोषपूर्ण तरीके से जीएसटी को अमल में ले आया गया और उसके बाद कॉरपोरेट के लिए 1.45 लाख करोड़ रुपये की अनावश्यक कर रियायतें। हालांकि तब सरकार ने कहा कि इससे क्षमता निर्माण होगा और रोजगार बढ़ेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। सोचने वाली बात है कि उत्पादन ठप होने, कीमतों में वृद्धि और रोजगार में गिरावट के

बावजूद कॉरपोरेट मुनाफा रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया। नुकसान की भरपाई के लिए सरकार को पेट्रोलियम उत्पादों पर भारी कर लगाना पड़ा, जिससे आम आदमी की परेशानी और बढ़ गई है। अब सरकार ने राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) के रूप में राजस्व पैदा करने की अजीब-सी तरकीब खोज ली है। 23 अगस्त , 2021 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसकी घोषणा की जिससे अगले चार सालों में छह लाख करोड़ रुपये आने की उम्मी दहै। एनएमपी के तहत सरकार एकमुश्त भुगतान के एवज में 25 साल के लिए निजी क्षेत्र को चुनी हुई सरकारी संपत्तियों के संचालन के लिए बोली लगाने देगी; पर संपत्ति का मालिकाना हक नहीं देगी।


सवाल उठता है कि सरकार अगले 25 वर्षों के लिए संपत्ति को बनाए रखने और संचालित करने के अधिकार को छोड़ रही है तो उसके बाद सरकार के स्वामित्व का क्या मतलब रह जाएगा? जो इन परिसंपत्तियों का अधिग्रहण करेगा, वह सुनिश्चित करेगा कि सरकार को पैसे देने के बाद उसकी खासी कमाई हो। तय है कि आने वाले समय में रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों, बंदरगाहों और राजमार्गों पर सेवाओं की लागत कई गुना बढ़ जाएगी क्योंकि सफल बोली लगाने वाले इन सरकारी संपत्तियों को निचोड़ लेंगे।

2046 तक वर्तमान सरकार इतिहास बन जाएगी। 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की वर्तमान पीढ़ी के तमाम लोगों का निधन हो चुका होगा; और आज जो किशोरावस्था में हैं, उन्हें टिन का डिब्बा पकड़ा दिया जाएगा, अगर वह भी बचा तो।

‘महत्वा कांक्षी’ एनएमपी के लिए जिनकी पहचान की गई है, उनमें राष्ट्रीय राजमार्गों के बाद रेलवे दूसरा सबसे बड़ा बुनियादी ढांचा है। 400 स्टेशन, 90 यात्री ट्रेनें, 14,00 किलोमीटर रेलवे ट्रैक, कोंकण रेलवे का 741 किलोमीटर, 15 रेलवे स्टेडियम, चयनित रेलवे कॉलोनियां, 265 रेलवे माल शेड और चार पहाड़ी रेलवे सभी मुद्रीकरण की सूची में हैं। सरकार द्वारा अनुमानित मुद्रीकरण मूल्य 1,52,496 करोड़ रुपये है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह आंकड़ा मौजूदा राजस्व को घटाकर निकाला गया है या नहीं। जो भी हो, इसमें से 17, 810 करोड़ रुपये का इस वित्त वर्ष (2021-22), 57, 222 करोड़ रुपये 2022-23 में, 44,907 करोड़ 2023-24 में और 32, 557 करोड़ रुपये 2024-25 में मुद्रीकरण किया जाएगा। रेलवे स्टेशनों और यात्री ट्रेनों के मुद्रीकरण से क्रमशः 76,250 करोड़ और 21,642 करोड़ रुपये आने का अनुमान है। कोंकण रेलवे का मुद्रीकरण मूल्य 7,281 करोड़ रुपये और पहाड़ी रेलवे का अनुमानित मूल्य 630 करोड़ रुपये है।

जैसा कि एनएमपी दस्तावेज में उल्लेख है, रेलवे के अन्य हिस्सों जिन का मुद्रीकरण किया जाना है, उनमें 673 किलोमीटर के डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर से 20, 178 करोड़ रुपये; ट्रैक, सिग्नलिंग और ओवरहेड उपकरण (ओएचई) से 18,700 करोड़ रुपये; माल-शेडों से 5,565 करोड़ रुपये और रेलवे कॉलोनियों के पुनर्विकास से 2,250 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे। सरकार का अनुमान है कि इन ब्राउनफील्ड इंफ्रास्ट्रक्चर संपत्तियों के मुद्रीकरण से वित्तीय वर्ष 2025 तक के चार वर्षों में 1.52 लाख करोड़ रुपये से अधिक की कमाई होगी। इस प्रकार एनएमपी योजना के तहत जो छह लाख करोड़ रुपये आने का अनुमान है, उसमें रेलवे का योगदान 26 प्रतिशत होगा।


एनएमपी कई दशकों में कड़ी मेहनत और करदाताओं की गाढ़ी कमाई के पैसे और जमीन से बनी सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट कर देगी। बहुप्रचारित ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा लगाते हुए मोदी सरकार स्वदेशी आत्मनिर्भरता की ही रीढ़ तोड़ रही है और सार्वजनिक हित की परवाह किए बिना भारतीय पूंजीपतियों और वैश्विक साम्राज्यवादियों के फायदे का ध्यान रख रही है। सड़क, परिवहन, उड्डयन, बंदरगाहों और रेलवे जैसे प्रमुख क्षेत्रों में विदेशी खिलाड़ियों को अनुमति देने पर विस्तार से विचार-विमर्श किया जाना चाहिए था।

प्रधानमंत्री मोदी निजी क्षेत्र और बाजार की ताकतों को लाभ पहुंचाने के लिए भारत की ब्लू चिप ढांचागत संपत्ति उन्हें थाली में रखकर परोस रहे हैं और कुछ कॉरपोरेट्स के फायदे के लिए देश को गिरवी रख रहे हैं। इसके साथ ही चेहेते कॉरपोरेट्स को तथाकथित वैश्विक बोलि यों में परदे के पीछे से ‘खेल’ करने की अनुमति दी जा रही है।

विशेषज्ञ सरकार को आगाह करते रहे हैं। एंडी मुखर्जी ने ब्लूमबर्ग में लिखाः ‘न्यू साउथ वेल्स (ऑस्ट्रेलिया) में बिजली के खंभों और तारों के निजीकरण के बाद पांच साल के भीतर बिजली की कीमतें दोगुनी हो गईं और सरकार को उपभोक्ताओं पर बोझ कम करने के लिए पैकेज देना पड़ा।

भारतीय करदाता पहले से ही बिजली पर अधिभार वगैरह से जूझ रहा है और अगर बिजली और महंगी हुई तो वह इसे झेल नहीं पाएगा।’ सार्वजनिक सेवाओं का नियंत्रण छोटे निजी क्षेत्र को सौंपने से उपभोक्ता को नुकसान होने की आशंका निराधार नहीं है। प्रधानमंत्री की राजनीति चकाचौंध पैदा करने और लोगों को ऐसे उलझाकर रखने की है कि उन्हें अपने दुख-दर्द की सुध ही न रहे और इस तरह लूटपाट का यह सिलसिला चलता रहे।

ज्यादातर अर्थशास्त्रियों का आकलन है कि एनएमपी से ज्यादा कुछ निकलने वाला नहीं है। उनका अंदाजा है कि इससे ज्यादा से ज्यादा 3 लाख करोड़ मिल सकते हैं और अगर यह राशि 1.5 लाख करोड़ के आसपास ही रह जाए तो भी किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वैसे भी, कॉरपोरेट बैलेंस शीट में हेरफेर करके सरकार को दिए जाने वाले राजस्व को काफी हद तक घटा देने के लिए बाजार की सर्वोत्कृष्ट प्रतिभाओं की सेवाएं लेते हैं और ऐसे में यह आशंका तो है ही कि सरकार अपना राजस्व लक्ष्य पूरा नहीं कर पाएगी।


इसके विपरीत निजी पट्टेदार मुनाफे को अधिकतम करने के लिए संपत्ति को निचोड़ लेंगे, उनका एकमात्र उद्देश्य लाभ बढ़ाना होगा और लीज खत्म होने तक वे संपत्ति की नोच-खसोट कर चुके होंगे। विश्लेषकों का यह भी अनुमान है कि इस व्यवस्था में सत्तारूढ़ दल को मौका मिलेगा कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की कीमत पर पार्टी खजाने को और समृद्ध कर सके। ऐसे में होगा यह कि भाजपा धनी और मजबूत होती जाएगी जबकि विपक्ष और सिविल सोसाइटी को समान अवसर से वंचित किया जाएगा।

अर्थशास्त्री एनएमपी को एक ऐसे औजार के रूप में देखते हैं जो अनिवार्यतः विभिन्न क्षेत्रों में निजी एकाधिकार की स्थिति पैदा करेगा और रूसी कुलीनतंत्र की तरह चुनिंदा व्यवसायों के सरकार पर कब्जा कर लेने का रास्ता खोलेगा। बेरोजगारी कई गुना बढ़ जाएगी और यह बाजार अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाएगी। यह ऐसी भविष्यवाणी है, जिसके बारे में हर भारतीय को यही उम्मीद करनी चाहिए कि वह सच न हो।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia