आकार पटेल का लेख: राष्ट्र-विरोधी कह कर दूसरों को बदनाम करने वाले भारत और भारतीयों का कर रहे हैं नुकसान

वे भारतीय समाज के ताने-बाने को तहस-नहस कर रहे हैं, उसे स्थायी नुकसान पहुंचा रहे हैं और महान जीत की तरह उसका उत्सव मना रहे हैं। वे भारतीयों के खिलाफ जाकर ‘भारत की एकता और अखंडता’ के लिए खतरा बन रहे हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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आकार पटेल

राजस्थान का चुनावी संघर्ष जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, ओपिनियन पोल कह रहे हैं कि कांग्रेस की वहां जीत होगी। बीजेपी की वही प्रतिक्रिया रही है जो उससे अपेक्षित था कि वह साम्प्रदायिक राजनीति के अपने एकमात्र कार्ड की तरफ वापस चली जाए। टिकट वितरण भी एक ऐसा तरीका है जिसमें यह परिलक्षित होता है। बीजेपी विधायक हबीबुर्रहमान ने कहा, “मैंने कल बीजेपी से इस्तीफा दे दिया। अब यह पार्टी की राजनीति होगी कि किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं देना चाहिए...हम इसके बारे में क्या कह सकते हैं? मैंने ऐसा कुछ भी गलत नहीं किया है कि मुझे टिकट नहीं मिले।”

सच्चाई यह है कि उन्होंने बीजेपी के हिसाब से एक गलती की थी और वह यह है कि वे जन्मजात मुस्लिम हैं। लेकिन पार्टी का व्यवहार एक सवाल खड़ा करता है: क्या बीजेपी राष्ट्र-विरोधी है? यह एक गंभीर आरोप है और हमें न्यायपूर्ण और संतुलित व्यक्तियों की तरह इसकी जांच करनी चाहिए।

पहला, हमें यह देखना चाहिए कि राष्ट्र-विरोधी होने का मतलब क्या है? हमारी दंड-संहिता में इसे अपराध के तौर पर परिभाषित नहीं किया गया है। यह एक भारतीय शब्दावली है (‘नॉन-वेज’ की तरह) जिसे दुनिया के बाकी देश न तो इस्तेमाल करते हैं और न ही समझते हैं।

दुनिया उन लोगों की भावनाओं से परिचित है जो बिना किसी नफरत या दुर्भावना के सकरात्मक अर्थ में राष्ट्र से आगे जाना चाहते थे, जैसे टैगोर।

इंटरनेट हमें बताता है कि “राष्ट्रवाद-विरोध उन भावनाओं के खिलाफ खड़ा होता है जो राष्ट्रवाद से जुड़ी होती हैं। कुछ राष्ट्रवाद-विरोधी मानवतावादी होते हैं जो विश्व समाज का एक आदर्शवादी नजरिया रखते हैं और विश्व नागरिक के तौर पहचाने जाने की कोशिश करते हैं। वे अक्सर अंध-देशभक्ति, कट्टरता और सैन्यवाद का विरोध करते हैं, निरंतर टकराव की जगह शांति चाहते हैं, जिसके बारे में उनका दावा है कि राष्ट्रवाद में उसकी जड़ें हैं।” 20वीं सदी में राष्ट्रवाद को लेकर यूरोप का अनुभव काफी बुरा रहा और उन्होंने अपने आर्थिक और राजनीतिक संघ के लिए सीमाओं को गिराना और अपना निरस्त्रीकरण करना शुरू किया। उनकी भाषाओं में ‘नेशनलिज्म’ शब्द काफी डरावना है और हमारी भाषा में ‘राष्ट्रवाद’ शब्द की जो गर्माहट है वैसा उनके यहां नहीं है। इसी वजह से हमारी कुछ उदार पार्टियां भी अपने नाम के आगे ‘राष्ट्रवादी’ लगाती हैं लेकिन यूरोपीय दल ऐसा नहीं करते हैं और जो करते हैं, वे बावले होते हैं।

ऊपर दी गई व्याख्या में राष्ट्रवाद के खिलाफ जो भावना है वो निरपवाद है और जैसा मैंने कहा कि इस अर्थ में टैगोर राष्ट्रवाद-विरोधी हैं। इस शब्द का यह जो अर्थ है भारत में इसका इस्तेमाल उस तरह नहीं होता है। हम इसे कलंक की तरह इस्तेमाल करते हैं। राष्ट्रवाद-विरोधी व्यवहार का हमारे यहां अर्थ यह है कि यह ऐसी भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है जो ‘भारत की एकता और अखंडता’ के लिए खतरा है और उस पर सवाल खड़े करता है। ऊपर दिया गया मुहावरा उद्धरण-चिन्ह में इसलिए है क्योंकि यह फॉर्मूलाबद्ध है।

अब हम अपने सवाल पर लौटते हैं। जिन्ना ने महान अध्येता और राष्ट्रवादी मौलाना अबुल कलाम आजाद को कांग्रेस का ‘दिखावटी लड़का’ कह कर संबोधित किया था। उनका मतलब यह था कि धर्म से ऊपर होने की बात करने वाली एक हिंदू पार्टी में आजाद की उपस्थिति प्रतीकात्मक थी। आज यह सोचना हास्यास्पद है कि कांग्रेस हिंदू बहुसंख्यकवाद का प्रतिनिधित्व करती है और वह भी यह देखते हुए कि हमारी राजनीति हाल के सालों में अतिवाद की तरफ जा चुकी है।

आज अगर जिन्ना होते तो भारत की सबसे बड़ी पार्टी के बारे में क्या सोचते? हमारी इसे लेकर क्या कल्पना है कि बाकी दुनिया हमारे देश को चलाने वाले नेताओं के बारे में क्या सोचती होगी जो जानबूझकर 18 करोड़ लोगों को राजनीति से बाहर रखने पर अमादा हैं। उत्तर प्रदेश में किसी भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया गया, और मुख्यमंत्री के तौर पर नरेन्द्र मोदी के गौरवशाली वर्षों की तरह ही गुजरात में भी किसी को टिकट नहीं मिला। यह एक राजनीतिक निष्कासन है: जानबूझकर भारतीयों का अलग-थलग किया गया जो दूसरे तरीके से प्रार्थना करते हैं। याद रखिए: यह प्रेमजी और खोराकीवाला का ही समुदाय है।

वे दक्षिण एशिया के सबसे ज्यादा उत्पादक समूहों में एक हैं। गुजराती मुसलमानों को जानबूझकर अलग-थलग करने और उन पर अत्याचार करने से हमारे देश की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान पहुंचा? इसका कोई विश्लेषण नहीं है और मुझे यह जानकर आश्चर्य होगा अगर बीजेपी ने इसके बारे में या भारत को इससे होने वाले नुकसान के बारे में सोचा है। पीएम मोदी की बुद्धिमता इसे स्वीकार्य बनाने में है और एक न्यायसंगत चीज के रूप में इसे स्वीकार करने के लिए हमें मजबूर करने में है।

एक बार फिर, हम इसकी कैसे कल्पना करते हैं कि पूरी दुनिया इसे कैसे देखती होगी? दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी होने के हमारे खोखले गौरव को इस तथ्य के बरक्स रखना चाहिए कि हमने राजनीतिक रूप से कमोबेश उनको नागरिकता से वंचित कर दिया है, जैसा कि बड़े बीजेपी बौद्धिक सुब्रमण्यम स्वामी लंबे समय से चाहते थे। सवाल यह है कि क्या हिंदुओं की यही चाहत है? मैं निश्चित रूप से यह नहीं चाहता कि मेरे धर्म और देश पर कालिख लगे जैसा लगाया जा रहा है। साथी भारतीयों के खिलाफ चल रही इस दादागिरी का विरोध जरूर होना चाहिए।

यह राजनीति या राजनीतिक दलों के बारे में नहीं है। कोई भी बहुसंख्यकवाद का विरोध कर सकता है और डीएमके या टीएमसी से लेकर पीडीपी या आम आदमी पार्टी को वोट कर सकता है। लेकिन अगर कोई इस विभाजन और अलग-थलग किए जाने की प्रक्रिया के पक्ष में है तो सिर्फ एक विकल्प बचता है। अगर बीजेपी की विभाजनकारी नीतियों को छोड़ दें तो मैं उसे किसी अन्य पार्टी से अलग नहीं मानता और उसमें भी ऐसी कई बातें हैं जिनकी प्रशंसा की जा सकती है। लेकिन दूसरे भारतीय नागरिकों के प्रति उनके पूर्वाग्रह की वजह से वह सबकुछ अप्रासंगिक हो जाता है।

हमारी महान सभ्यता को तुर्की, पाकिस्तान और अरब देशों जैसे भयाक्रांत और छिछले बहुसंख्यकवादी देश में तब्दील कर दिया गया है, जबकि उन देशों से हम नफरत करते हैं। हम उनके जैसे दिख रहे हैं: क्या हम उनके जैसा होना चाहते हैं?

जो लोग राष्ट्र-विरोधी कह कर दूसरों को बदनाम करते हैं, वे ऐसा नारों और शब्दों से करते हैं।

इस बीच जानबूझकर की गई नफरत भरी उनकी करतूत असली भारतीयों का असली नुकसान कर रही है। वे भारतीय समाज के ताने-बाने को तहस-नहस कर रहे हैं, उसे स्थायी नुकसान पहुंचा रहे हैं और महान जीत की तरह उसका उत्सव मना रहे हैं। वे भारतीयों के खिलाफ जाकर ‘भारत की एकता और अखंडता’ के लिए खतरा बन रहे हैं।

यह व्यवहार देश से गद्दारी जैसा है। निश्चित रूप से उनकी परिभाषा के अनुसार यह राष्ट्र-विरोधी है।

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