कोरोना काल में खुब हुई आंकड़ों की बाजीगरी, मोदी सरकार के दावों की पोल खोलती एक और रिपोर्ट
कोविड 19 से होने वाली मौतों के सरकारी आंकड़ों और वास्तविक आंकड़ों के बीच के अंतर को “अतिरिक्त मौत” कहा जाता है, और हरेक सरकार इसका सच जानते हुए भी हमेशा इसे नकारती है।
कोविड 19 के दौर में लोग मरते रहे और प्रधानमंत्री मोदी अपनी पीठ स्वयं थपथपाते रहे। भारतीय मीडिया, विदेशी मीडिया, भारतीय विशेषज्ञ, विदेशी स्वास्थ्य विशेषज्ञ और विश्व स्वास्थ्य संगठन – सभी भारत के सरकारी आंकड़ों पर प्रश्न उठाते रहे, पर सरकार हरेक ऐसे प्रश्न को नकारती रही। उस दौर में अनेक ऐसे पत्रकारों को जेल में डाला गया या फिर धमकियां भी दी गईं जो उस दौर की तथ्यपरक जानकारी जनता तक पहुंचा रहे थे। पर, हरेक गैर-सरकारी देशी-विदेशी रिपोर्ट इतना जरूर बताती रही कि मोदी सरकार वास्तविक आंकड़ों को नहीं बता रही है। पर, ऐसी देसी-विदेशी रिपोर्टों या अध्ययन का सिलसिला अभी थमा नहीं है।
हाल में ही साइंस एडवांसेज नामक जर्नल में इसी विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन को ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्री आशीष गुप्ता के नेतृत्व में वैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों के एक दल ने किया है, जिसमें अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी के विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिक शामिल हैं, और सभी वैज्ञानिक भारतीय मूल के हैं। इस अध्ययन के अनुसार वर्ष 2019 की तुलना में भारत में वर्ष 2020 के कोविड 19 काल में जन्म के समय अनुमानित जीवन अवधि 2.6 वर्ष तक कम हो गयी थी, और मृत्यु दर 17 प्रतिशत बढ़ गयी थी। अध्ययन के अनुसार वर्ष 2020 में भारत में 12 लाख अतिरिक्त मौतें हुईं थीं, जाहिर है इनमें में अधिकतर का कारण कोविड 19 था। दूसरी तरफ भारत सरकार की कोविड 19 से होने वाली मृत्यु की गिनती 4.81 लाख पर ही समाप्त हो गयी थी।
इस अध्ययन के अनुसार भारत में कोविड 19 से सबसे अधिक प्रभावित महिलाएं, युवा, अल्पसंख्यक और समाज के हाशिए पर बैठे समुदाय थे। देश में अनुमानित जीवन अवधि में औसतन कमी 2.6 वर्ष की थी, पर पुरुषों में यह कमी महज 2.1 वर्ष ही थी, जबकि महिलाओं में यह अवधि 3.1 वर्ष की थी। बड़ी अर्थव्यवस्था वाले दूसरे देशों में कोविड 19 से सबसे अधिक मौतें 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग की आबादी में दर्ज की गयी, जबकि भारत में बच्चे और बुजुर्ग दोनों ही इसके अधिक शिकार हुए।
वर्ष 2014 के बाद से लगातार अल्पसंख्यकों और पिछड़ी जाति के हिन्दुओं को सरकार ने अपनी नीतियों से हाशिये पर ही रखा है। कोविड 19 के दौर में भी यह सिलसिला बरकरार रहा। अनुमानित जीवन अवधि में कमी उच्च जाति के हिन्दुओं में महज 1.3 वर्ष रही, जबकि अनुसूचित जनजाति में यह 4.1 वर्ष और मुस्लिमों में 5.4 वर्ष रही। यह भेदभाव केवल मृत्यु दर तक ही सीमित नहीं था, बल्कि केंद्र की सत्ता, बीजेपी के अंधभक्त और पूरा मेनस्ट्रीम मीडिया कोविड 19 के विस्तार के लिए पूरी तल्लीनता से मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराता रहा। अध्ययन में कहा गया है कि भारत सरकार ने एक सामान्य धारणा स्थापित की थी कि कोविड 19 का वर्ष 2020 का पहला दौर बहुत कम प्रभावी था, यह एक गलत तथ्य था, इसमें भी वैसे ही मौतें हुईं थीं जिस तरह से वर्ष 2021 के अल्फ़ा-वैरिएंट के दौर में हुई थीं। दुनिया में इससे होने वाली कुल मौतों में से एक-तिहाई से अधिक भारत में हुई थीं।
अमेरिका के सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट नामक संस्था ने भारत में कोविड 19 से होने वाली मौतों का गहराई से अध्ययन किया था। यह अध्ययन वर्ष 2020 के जनवरी से वर्ष 2021 के मई महीने तक के गैर-सरकारी और सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर किया गया है। इस अध्ययन का निष्कर्ष है, सरकारी आंकड़ों के अलावा देश में मुख्यतः कोविड 19 के कारण दस गुना अधिक मौतें हुईं हैं, जिसे सरकार ने छुपाया है। इस अध्ययन के अनुसार जून 2021 के अंत में सरकारी स्तर पर मौत के आंकड़े 4 लाख थे, जबकि इस अध्ययन के अनुसार मौत के आंकड़े 30 लाख से 47 लाख के बीच हैं।
इस अध्ययन का आधार देश में जन्म और मृत्यु के पंजीकृत आंकड़े, सीरो सर्वे के आंकड़े और 9 लाख व्यक्तियों का वर्ष में तीन बार किया गया आर्थिक सर्वेक्षण है। इस अध्ययन में देश के अनेक निष्पक्ष पत्रकारों और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा इस विषय पर अध्ययन और विश्लेषण की समीक्षा भी की गयी है। इस अध्ययन के एक लेखक, अरविन्द सुब्रमण्यम के अनुसार इसमें अनेक चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए हैं। अब तक माना जाता रहा है कि कोविड 19 के पहले दौर में मौतें कम हुईं हैं, पर नए अध्ययन के अनुसार इस दौर में भी 20 लाख से अधिक मौतें हुई थीं। प्रधानमंत्री समेत पूरी सरकार कोविड 19 के नियंत्रण और कम मौतों के लिए आपनी पीठ थपथपाती रही, पर इस रिपोर्ट के अनुसार कोविड 19 से होने वाली मौतों के सन्दर्भ में भारत कोई अजूबा नहीं था, बल्कि यदि सरकार में मौत का वास्तविक आंकड़ा उजागर किया होता तो हम इस सन्दर्भ में पहले स्थान पर वर्ष 2020 में ही पहुँच गए होते।
अमेरिका में बसे भारतीय मूल के कैंसर विशेषज्ञ सिद्धार्थ मुख़र्जी ने वर्ष 2021 में कहा था कि भारत में कम मौतों के रहस्य का उत्तर पूरी दुनिया में किसी के पास नहीं है। विशेषज्ञों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि दुनिया के अधिकतर देश अपने यहाँ के पूरे आंकड़े प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं, संभव है भारत सरकार भी यही कर रही हो। न्यूयॉर्क टाइम्स ने अप्रैल 2020 में ही अमेरिका, कनाडा समेत 12 देशों में कोविड 19 से सम्बंधित मृत्यु के आंकड़ों का विश्लेषण कर बताया है कि इन देशों में सम्मिलित तौर पर सरकारी आंकड़ों के अलावा 40000 से अधिक मौतें हुईं हैं। इसी तरह फाइनेंसियल टाइम्स ने 14 देशों के आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण कर बताया कि इन देशों में सरकारी आंकड़ों की तुलना में 60 प्रतिशत अधिक जानें गईं।
10 मार्च 2022 को प्रतिष्ठित स्वास्थ्य जर्नल, द लांसेट में एक अध्ययन प्रकाशित किया गया – Estimating Excess Mortality due to COVID 19 Pandemic: A systematic Analysis of COVID 19 Related Mortality 2020-2021। इसके अनुसार भारत में 2021 के अंत तक सरकारी मौत के आंकड़ों की तुलना में आठ-गुना अधिक मौतें हुईं हैं। इस अध्ययन के अनुसार 31 दिसम्बर 2021 तक भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार कुल 4.89 लाख मौतें हुईं थीं, पर वास्तव में 40.7 लाख मौतें हुईं थीं।
कोविड 19 से होने वाली मौतों के सरकारी आंकड़ों और वास्तविक आंकड़ों के बीच के अंतर को “अतिरिक्त मौत” कहा जाता है, और हरेक सरकार इसका सच जानते हुए भी हमेशा इसे नकारती है। लांसेट में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार वर्ष 2020 से 2021 के बीच दुनिया में कोविड 19 के कारण 1.82 करोड़ अतिरिक्त मौत हुई, जो सरकारे आंकड़ों, 59 लाख, की तुलना में तीन गुना है, पर भारत में ऐसी मौतें आठ-गुना हैं। दुनिया में कुल अतिरिक्त मौतों के आंकड़ों में अकेले भारत का योगदान 22.3 प्रतिशत है, और सबसे अधिक ऐसी मौतें भी भारत में ही हुईं हैं। भारत में 40.7 लाख अतिरिक्त मौतों के बाद, 11.3 लाख के साथ अमेरिका और 10..7 लाख के साथ रूस तीसरे स्थान पर है। इस अध्ययन के अनुसार भारत में सरकारी आंकड़ों के अनुसार कोविड 19 के कारण प्रति लाख आबादी में 18.3 मौतें हुईं हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि यह आंकड़ा लगभग 153 है।
मई 2021 में द इकोनॉमिस्ट ने कोविड 19 से अतिरिक्त मौतों पर एक विश्लेषण प्रकाशित किया था, जिसके अनुसार भारत में जब सरकार 2 लाख मौतों का आंकड़ा बता रही थी, तबतक वास्तविक मौतों का आंकड़ा 23 लाख से अधिक था। द प्रिंट ने 10 फरवरी 2022 को देश के सभी बड़े बीमा कंपनियों के हवाले से एक समाचार प्रकाशित किया था, जिसके अनुसार कोविड 19 की दूसरी लहर की अवधि, अप्रैल से सितम्बर 2021 के बीच जीवन बीमा के क्लेम में 136 प्रतिशत की बृद्धि दर्ज की गयी थी।
एक सत्तालोभी शासक अपनी अकड़ से और महान बनने की चाह के क्रम में केवल अपनी जनता का ही नरसंहार नहीं करता बल्कि पूरी मानवता के लिए खतरा बनता है – इसका उदाहरण सबके सामने है। जनवरी 2021 में वर्ल्ड इकनोमिक फोरम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने बड़े गर्व से दुनिया को कोविड 19 पर अपने विजयी अभियान की जानकारी दी थी। उनके अनुसार, सब कहते थे भारत सबसे अधिक प्रभावित होगा, कोविड 19 की सुनामी आयेगी, कोई कहता था 60 से 70 करोड़ लोग प्रभावित होंगें, कोई कहता था 20 लाख से ज्यादा लोग मरेंगें – पर हमने इस महामारी पर काबू करके दुनिया को बचा लिया। दूसरे देश की विफलताओं से भारत के हालात की तुलना नहीं करनी चाहिए, हम जीवट वाले हैं और हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता अलग है और हम पूरी दुनिया से अलग हैं।
याद कीजिये, हिटलर भी नाजियों को पूरी दुनिया से अलग और श्रेष्ठ बताता था। कोविड 19 पर हमने काबू बेहतर प्रबंधन से नहीं बल्कि आंकड़ों की बाजीगरी से पाया। यही अमृत काल का विकसित भारत है, जिसके जश्न में सत्ता डूबी है।
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