आकार पटेल का लेख: तो इसलिए देश छोड़कर लंदन भागे थे अदार पूनावाला, 100 करोड़ डोज़ की उपलब्धि के पीछे की कहानी...
भारत ने 100 करोड़ वैक्सीन डोज लगाने का कीर्तिमान हासिल किया है और यह एक उपलब्धि भी है। लेकिन यह 100 करोड़ डोज आई कहां से और सरकार ने इसे कहां से खरीदा है, इस सवाल को समझने की जरूरत है।
भारत ने 100 करोड़ वैक्सीन डोज लगाने का कीर्तिमान हासिल किया है और यह एक उपलब्धि भी है। लेकिन यह 100 करोड़ डोज आई कहां से और सरकार ने इसे कहां से खरीदा है, इस सवाल को समझने की जरूरत है।
पिछले साल 7 अगस्त 2020 को देश के सबसे बड़े निजी वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ने ग्लोबल वैक्सीन अलाएंस गावी और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के साथ दुनिया के 92 गरीब देशों को 2021 की छमाही तक वैक्सीन सप्लाई का समझौता किया था। समझौते के तहत सीरम इंस्टीट्यूट को कुल 100 करोड़ वैक्सीन निर्मित करनी थीं, जिन्हें 92 गरीब देशों की कुल 4 अरब आबादी के बीच वितरित किया जाना था। इस अलाएंस ने कहा था कि, “कोवैक्स (कोविड वैक्सीन ग्लोबल एक्सेस) का बुनियादी सिद्धांत है कि वैक्सीन की उपलब्धता समान होगी। इसका सिर्फ यह अर्थ नहीं है सभी देशों को समान संख्या में वैक्सीन डोज मिलेंगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि इसके लिए के तरीका हो और विश्व स्वास्थ्य संगठन की निगरानी में इन देशों और क्षेत्रों में वैक्सीन वितरण किया जाए।”
गावी अलाएंस सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा निर्मित वैक्सीन को अमीर देशों को बेचता भी है और इससे हासिल पैसे को भारत में वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने में इस्तेमाल किया जाता है।
पिछले साल 26 सितंबर 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा कि भारत दुनिया भर को वैक्सीन मुहैया कराएगा। उन्होंने कहा, “दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता देश होने के नाते, मैं विश्व को भरोसा देना चाहता हूं कि भारत की वैक्सीन उत्पादन और आपूर्ति की क्षमता से मानवता को इस आपदा से निपटने में मदद दी जाएगी। भारत दूसरे देशों को वैक्सीन की कोल्ड चेन और इसके भंडारण के लिए भी मदद करेगा।” मोदी के भाषण के बाद मीडिया ने मोदी को दुनिया का ‘वैक्सीन गुरु’ की संज्ञा दी थी।
इसके बाद 30 सितंबर 2020 तक सीरम इंस्टीट्यूट को गावी ने 300 मिलियन डॉलर (करीब 2500 करोड़ रुपए) दिए जिससे कि वैक्सीन निर्माण के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और आपूर्ति की व्यवस्था हो सके। इसी सप्ताह सीरम इंस्टीट्यूट के मालिक अदार पूनावाला ने ट्वीट कर प्रधानमंत्री मोदी से पूछा, “त्वरित सवाल, क्या भारत सरकार के पास अगले एक साल के दौरान 80,000 करोड़ हैं? क्योंकि देश के स्वास्थ्य मंत्रालय को वैक्सीन खरीदने और देश में सभी तक इसे पहुंचाने के लिए इसकी जरूरत है। यह अगली चुनौती है जिससे हमें निपटना है।” उन्होंने इस ट्वीट में पीएमओ को टैग किया था और आगे लिखा था।, “मैं यह सवाल इसलिए पूछ रहा हूं क्योंकि हमें भारत और अन्य देशों में वैक्सीन निर्माताओं को तैयार करना है ताकि समय से वैक्सीन हासिल कर उसे अपने देश में लोगों को वितरित किया जा सके।”
ऐसे में अगर देश की पूरी आबादी को 2021 में वैक्सीन लगानी है तो भारत को कहीं से तो इसे हासिल करना होगा। लेकिन भारत सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया।
फरवरी 2021 तक, भारत ने सिर्फ 11 करोड़ वैक्सीन का ही ऑर्डर दिया था जब उसे उस समय वैक्सीन लगवाने के लिए पात्र 14 वर्ष से कम उम्र की आबादी के लिए 270 करोड़ डोज चाहिए थीं। और इसमें भी माना गया था कि वैक्सीन की कोई भी डोज़ बरबाद नहीं होगी। भारत के 11 करोड़ डोज के ऑर्डर के मुकाबले कनाडा ने 33 करोड़, अमेरिका ने 120 करोड़, यूके ने 45 करोड़, ब्राजील ने 23 करोड़, अफ्रीकी संघ ने 67 करोड़, इंडोनेशिया ने 19 करोड़ और यूरोपीय यूनियन ने 180 करोड़ डोज का ऑर्डर दिया था। भारत ने ऑस्ट्रेलिया (12 करोड़) से भी कम डोज का ऑर्डर दिया था जबकि ऑस्ट्रेलिया की आबादी एनसीआर से भी कम है।
मार्च 2021 के अंत तक जब देश में कोरोना की दूसरी लहर ने सिर उठाना शुरु कर दिया तो सरकार ने गैर अधिकारिक तौर पर सीरम इंस्टीट्यूट पर वैक्सीन का निर्यात गावी को करने पर रोक लगा दी थी, जबकि गावी पहले ही सीरम इंस्टीट्यूट को भुगतान कर चुका था। इसेक बाद सीरम इंस्टीट्यूट के मालिक अदार पूनावाल लंदन चले गए थे क्यों कि उन्होंने भारत में कुछ ‘बहुत शक्तिशाली’ लोगों से खतरा था।
मई में द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने लिखा था, “दुनिया के अधिकतर सबसे गरीब देश वैक्सीन के लिए सिर्फ एक देश के एक ही वैक्सीन निर्माता पर निर्भर हो कर रह गए थे। यह एक बहुत ही क्रूर मोड़ था जब वैक्सीन आपूर्तिकर्ता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कोविड-19 महामारी की लपटों में ही घिर गया था। इसके चलते गावी, जिसने वैक्सीन के लिए पहले ही एसआईआई को भुगतान कर दिया था, को जरूरत की वैक्सीन नहीं मिलीं। 92 विकसित देशों को लिखे एक पत्र में गावी ने कहा, “प्रिय भागीदारों, हमें अफसोस के साथ यह बताना पड़ रहा है कि भारत में तेजी से गहराए कोविड-19 संकट के कारण, कोवैक्स को अब शायद वैक्सीन आपूर्ति नहीं हो पाएगी...” जब यह पूछा गया कि क्या भारत पर निर्भरता एक गलती थी उन्होंने कहा, हमने बहुत सारी आलोचनाएं सुनी हैं और सच यह है कि हमने वह किया जो हमे लगता था कि सही है। तो क्या भारत में इस मोर्चे पर निवेश करना सही था। इसका जवाब था कि नहीं इस नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए क्योंकि सबसे तेज गति से वैक्सीन उसी तरह हासिल की जा सकती थीं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अप्रैल में भारत बिगड़े हालात के कारण इससे कोविड के खिलाफ वैश्विक युद्ध को नुकसान हुआ। इस दौरान सीरम इंस्टीट्यूट को 14 करोड़ वैक्सीन डोज भेजनी थीं, लेकिन जब इसने 2 करोड़ से भी कम डोज भेजीं थीं तभी भारत सरकार ने इस पर रोक लगा दी थी।
ऐसे में क्या भारत को विश्व वैक्सीन गुरु कहेंगे, इसने तो दुनिया भर के उस कार्यक्रम में ही अड़ंगा लगा दिया था जिसकी योजना दुनिया ने बनाई थी और इसके लिए भुगतान भी कर दिया था। अब इस महीने भारत सरकार ने कहा है कि वह सीरम इंस्टीट्यूट को वैक्सीन निर्यात करने की इजाजत दे देगा।
तो 100 करोड़ वैक्सीन डोज़ की कहानी यह है। हमें राहत की सांस लेनी चाहिए कि हमें वैक्सीन की खुराक मिल गई, लेकिन हमें यह भी जानना चाहिए कि यह डोड आईं कहां से और इस उपलब्धि के लिए कौन जिम्मेदार है।
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