महिलाओं की हत्या में वृद्धि विश्वव्यापी समस्या, बराबरी और सशक्तीकरण के नारों के बीच बना न्यू नॉर्मल
हमारे प्रधानमंत्री एक ओर अपने आप को तीन तलाक, उज्वला योजना, शौचालय निर्माण के जरिये महिलाओं का मसीहा बताने में लगे रहते हैं, तो दूसरी ओर रेप में शीर्ष और महिला अपराध में दूसरे स्थान पर काबिज उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था को सभी राज्यों से बेहतर बताते हैं।
हमारी दुनिया में किसी समस्या का समाधान नहीं होता, बल्कि पहले से अधिक विकराल होती जाती है तब उस समस्या से ध्यान भटकाने के लिए उसे एक नए कलेवर में प्रस्तुत किया जाता है। 1970 के दशक से दुनिया वायु प्रदूषण और महिला अधिकारों पर चर्चा कर रही है। खूब चर्चाएं की गईं पर कोई नतीजा नहीं निकला। आज हालत यह है कि दुनिया की 90 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या प्रदूषित हवा में सांस ले रही है। जब दुनिया से वायु प्रदूषण का मसला नहीं संभला, तब उसे जलवायु परिवर्तन के स्वरुप में नए कलेवर में प्रस्तुत किया गया।
यह सभी जानते हैं कि जिन कारकों से वायु प्रदूषित होती है, वही कारक जलवायु परिवर्तन के लिए भी जिम्मेदार हैं, पर अब सरकारें वायु प्रदूषण की चर्चा नहीं करतीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन की चर्चा लगातार करती हैं। इसी तरह का मुद्दा महिलाओं की हत्या (femicide) का भी है। यह विश्व्यापी समस्या है और धीरे-धीरे इतनी सामान्य हो चली है कि अब तो कोई समाचार भी नहीं बनता। साल दर साल महिला हत्या का दायरा व्यापक होता जा रहा है, पर दुनिया अब लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण की चर्चाओं में महिला हत्या का मुद्दा भूल गयी है।
हाल में ही हमारे देश में नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार देश में हरेक दिन औसतन 19 महिलाओं की हत्या केवल दहेज कारणों से होती हैं। यह केवल दहेज मामलों की हत्याओं की संख्या है, इसके अतिरिक्त देश भर में हरेक दिन 77 बलात्कार होते हैं और इनमें से बहुत सारी पीड़िताओं की हत्या साक्ष्य छिपाने के लिए कर दी जाती है। कई बार तो पुलिस और अस्पताल भी बलात्कार पीड़िता की हत्या में शरीक रहते हैं। ऑनर किलिंग या परिवार की इज्जत बचाने के नाम पर हमारे देश में लगभग 100 महिलाओं की हत्या हरेक वर्ष कर दी जाती है। आश्चर्य यह है कि सरकारी नीतियां और मीडिया महिला हत्या के सन्दर्भ में खामोश रहते हैं और कानून-व्यवस्था पूरी तरह से लचर है।
हाल ही में एमनेस्टी इन्टरनेशनल की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि मेक्सिको में हरेक दिन औसतन 10 महिलाओं की हत्या कर दी जाती है। मेक्सिको में पिछले तीन वर्षों से हरेक तबके की महिलाएं इसके विरोध में प्रदर्शन कर रही हैं, पर हत्याओं के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। एक अध्ययन के अनुसार मेक्सिको में पिछले 5 वर्षों के दौरान महिलाओं की हत्या के मामले में 137 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गयी है।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में औसतन हरेक वर्ष 87000 महिलाओं की हत्या वर्ष 2019 तक होती थी, पर वर्ष 2020 में कोविड-19 के कारण विश्वव्यापी लॉकडाउन के बाद यह समस्या और भी गंभीर हो गई है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार महिलाओं की कुल हत्या में से विभिन्न देशों में 50 से 90 प्रतिशत तक हत्याएं पति, पूर्व पति, पुरुष दोस्त, या फिर दूसरे ऐसे जानने वालों द्वारा की जाती हैं जिन्हें महिलाएं अपना विश्वस्त या भरोसेमंद मानती हैं।
हमारे देश में इस तर्क को समझाना आसान है, क्योंकि दहेज कारणों से की जाने वाली सभी हत्याओं में पति और उनके रिश्तेदार शामिल रहते हैं। इसके अतिरिक्त सभी तथाकथित ऑनर-किलिंग में भी पिता, भाई या अन्य रिश्तेदार शामिल रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया में हरेक वर्ष 50000 से अधिक महिलाओं की हत्या उनके पहचान वालों या संबंधियों द्वारा की जाती है।
यूनाइटेड किंगडम में वर्ष 2019 तक औसतन 120 महिलाओं की हत्या प्रतिवर्ष होती थी, पर वर्ष 2020 के मार्च से अगस्त महीनों के बीच ही 180 हत्याएं दर्ज की गई थीं। इस वर्ष मार्च से सितम्बर तक वहां 81 महिलाओं की हत्या की जा चुकी है। यहां की एक जागरूक महिला, करेन इंगला स्मिथ, सोशल मीडिया पर ब्लॉग के माध्यम से एक मुहीम चलाती हैं, काउंटिंग डेड वीमेन। इस ब्लॉग में वे उन महिलाओं की पूरी जानकारी बताती हैं, जिनकी हत्या की गई है।
यहां मार्च के शुरू में ही सारा एड्वर्ड नामक महिला की हत्या ड्यूटी पर तैनात एक पुलिस ऑफिसर ने बलात्कार के बाद की थी और इसकी चर्चा मीडिया और समाज में बहुत की गई थी। करेन इंगला स्मिथ के अनुसार इसके बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ और इसके बाद के 28 सप्ताह में ही 81 और महिलाओं की हत्या की जा चुकी है। उनकी सूची में 5 भारतीय मूल की महिलाओं- सुखजीत उप्पल, तमारा पदी, सुखजीत बदिअल, स्मिता मिस्त्री और गीतिका गोयल के नाम भी शामिल हैं। करेन के अनुसार महिलाओं की हत्या किसी वर्ग तक सीमित नहीं है बल्कि यह श्वेतों, अश्वेतों, अप्रवासी, गरीब, अमीर हरेक वर्ग में है, हालांकि श्वेत, युवा और मध्यमवर्गीय वर्ग की महिलाओं की हत्या जब अनजान लोगों द्वारा की जाती है तब इसकी चर्चा सर्वाधिक की जाती है।
फ्रांस में 2021 में अब तक 80 से अधिक महिलाओं की हत्या की जा चुकी है। हाल में ही फ्रांस के बौर्डिओक्स शहर में पुलिस के बड़े अधिकारियों पर इस संबंध में लापरवाही के आरोप से संबंधित मुकदमा भी दायर किया गया है। चाहिनेज़ बौटा नामक एक महिला ने स्थानीय पुलिस से अपने पति के खिलाफ मार्च में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके अनुसार उसके पति मौनिर बौटा उसके साथ मारपीट करते और जान से मारने की धमकी भी देते थे। पर पुलिस ने इस शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं की और दो महीने बाद ही उसके पति ने चाहिनेज़ बौटा को पहले गोली मारी और फिर बीच सड़क पर उसके शरीर पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी, जिससे उसकी मौत हो गई। शुरुआती जांच से पता चला है कि पुलिस ने उसकी शिकायत ठीक से नहीं लिखी थी और जिस पुलिस अधिकारी ने शिकायत दर्ज की थी वह भी घरेलू हिंसा के आरोप में सजा काट चुका है।
भारत, फ्रांस, अफगानिस्तान, तुर्की, होंडुरास और मेक्सिको जैसे देश तो महिला हत्या के संदर्भ में दुनिया भर में बदनाम हैं, पर अमेरिका में भी यह समस्या बहुत गंभीर स्वरुप ले चुकी है। सेंटर फॉर डिजीज कन्ट्रोल के अनुसार 19 वर्ष से कम उम्र की बालिकाओं में होने वाली मौतों में हत्या चौथा सबसे बड़ा कारण है, जबकि 20 से 44 वर्ष की उम्र की महिलाओं में मृत्यु का यह पांचवां सबसे बड़ा कारण है। बदनाम फ्रांस में वर्ष 2018 में 120 महिलाओं की हत्या की गयी, जबकि उसी वर्ष अमेरिका में 1014 महिलाओं की हत्या की गयी। वर्ष 2019 में अमेरिका में स्थिति और भी खराब थी। इस वर्ष बदनाम तुर्की में 474 महिलाओं की हत्या की गयी थी, जबकि अमेरिका में यह आंकड़ा 2991 तक पहुंच चुका था।
जिस तरीके से हमारे देश में पिछड़ी जातियों और आर्थिक स्तर पर कमजोर लोगों में महिला हत्या की समस्या शेष आबादी से अधिक विकराल है, उसी तरह अमेरिका में भी अश्वेतों और जनजातियों में यह समस्या अधिक गंभीर है। नेशनल इंडिजेनस विमेंस रेस्पोंस सेंटर के आंकड़ों के अनुसार अश्वेतों और जनजातियों में यह समस्या श्वेत महिलाओं की तुलना में 6 गुना अधिक है। पुलिस इनके मामलों में लापरवाह भी रहती है। लापता श्वेत लोगों में से 81 प्रतिशत का सुराग पुलिस रिपोर्ट दर्ज करने के एक सप्ताह के भीतर ही लगा लेती है, जबकि अश्वेतों के लिए यह संख्या 61 प्रतिशत ही है।
फेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन के अनुसार अमेरिका में 92 प्रतिशत महिलाओं की हत्या उनके जानने वालों द्वारा की जाती है, जबकि 63 प्रतिशत हत्याएं तो वर्तमान पति द्वारा ही की जाती हैं। अमेरिका में एक नर्स डौन विलकॉक्स निजी तौर पर ऐसी महिलाओं का रिकॉर्ड एकत्रित करती हैं जिनकी हत्या की गई हो, उनके अनुसार यह समस्या समाज में इतनी गहराई तक पसरी है कि इसे हम सामान्य समझने लगे हैं और इस पर कोई आवाज नहीं उठती। कानून की समस्या यह है कि अधिकतर हत्याएं पति या फिर अन्तरंग मित्रों द्वारा की जाती हैं, जिन पर महिलाएं भरोसा करती हैं- ऐसी हत्याओं का कोई गवाह नहीं होता और महिला की मृत्यु हो चुकी होती है।
महिला समानता और महिला सशक्तीकरण का नारा बुलंद करते-करते समाज में महिला हत्या एक नया सामान्य हो चला है। यह दुनिया भर की समस्या है, पर महिलाओं की हत्याओं की संख्या के सन्दर्भ में हम सही मायने में विश्वगुरु हैं। यहां की महिलाओं की स्थिति को प्रधानमंत्री मोदी के बयानों से अच्छी तरह समझा जा सकता है। प्रधानमंत्री लगातार अपने आप को तीन तलाक, उज्वला योजना, शौचालय निर्माण इत्यादि के माध्यम से महिलाओं का मसीहा साबित करने पर तुले रहते हैं, तो दूसरी तरफ बलात्कार में शीर्ष पर और महिला अपराधों के संदर्भ में दूसरे स्थान पर काबिज राज्य उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था को सभी राज्यों से बेहतर बताते हैं। दुनिया के देश अफगानिस्तान की महिलाओं पर आंसू बहाकर अपने देश की स्थिति पर आसानी से पर्दा डाल लेते हैं।
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