गंभीर होती जा रही है हवा में ओजोन की समस्या, सरकार लगातार कर रही है अनदेखी

वायु प्रदूषण के कारण असामयिक मौतों के संदर्भ में 25 लाख से अधिक मृत्यु के साथ भारत पहले स्थान पर और 18 लाख मौतों के साथ चीन दूसरे स्थान पर रहा। इन देशों में इसके कारण जितनी मौत होती है, वह आंकड़ा पूरी दुनिया में होने वाली मौतों का 51 प्रतिशत से अधिक है।

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

लोकसभा में 28 जून को पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि 2016 से 2018 के बीच दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में हवा में ओजोन की समस्या गंभीर थी। इन तीन वर्षों के दौरान दिल्ली में 95 दिन, नोएडा में 49 दिन, गुरुग्राम में 48 दिन, फरीदाबाद में 11 दिन और गाजियाबाद में 8 दिनों तक ओजोन की सांद्रता तय सीमा से अधिक रही। यही नहीं, इस साल पहली जनवरी से 31 मई के बीच भी दिल्ली में 23 दिनों तक ओजोन तय मानक से अधिक पाया गया। इसी तरह फरीदाबाद में इसकी सांद्रता 55 दिन, गुरुग्राम में 6 दिन और गाजियाबाद में 3 दिन अधिक रही।

इसके बाद भी प्रदूषण नियंत्रण की देश में शीर्ष संस्था केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास ओजोन की सांद्रता को नियंत्रित करने की कोई योजना नहीं है। ओजोन हवा में सीधे उत्पन्न नहीं होती बल्कि नाइट्रोजन के ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन की धूप में आपसी प्रतिक्रिया से उत्पन्न होती है। इससे श्वांस की समस्याएं, चक्कर आना, उल्टी आना जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इससे मानसिक परेशानियां भी हो सकती हैं और लंबे समय तक इसकी अधिक सांद्रता में रहने पर जान भी जा सकती है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वायु प्रदूषण पर चर्चा पीएम 2.5 और पीएम 10 से शुरू होती है और इसी पर खत्म हो जाती है। पूर्व पर्यावरण मंत्री डॉ हर्षवर्धन के अनुसार बहुचर्चित क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर में 20 से 30 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है, तो क्या सरकार यह मानती है कि हमारे देश में वायु प्रदूषण में गैसों का कोई योगदान नहीं है।


दूसरी तरफ दुनिया भर के अनुसंधान बताते हैं कि नाइट्रोजन के ऑक्साइड, ओजोन, अमोनिया और सल्फर डाइऑक्साइड गैसों का भी मवेशियों, जानवरों और कृषि पर घातक प्रभाव पड़ता है। भारत सरकार इन गैसों के प्रभावों को लगातार अनदेखा करती रही है और यहां तक स्थिति पहुंच गयी है कि इन गैसों की देश की हवा में में क्या स्थिति है यह भी नहीं पता। ओजोन के प्रभावों पर पिछले वर्ष एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन प्रकाशित किया गया था, जिसके अनुसार ओजोन के कारण भारत में खूब मौतें होती हैं। अभी हाल में ही नाइट्रोजन के ऑक्साइड को गर्भपात से जोड़ा गया और दूसरे अनुसंधान में बताया गया कि पूरे उत्तर और मध्य भारत में लगभग हरेक जगह अमोनिया के अधिक सांद्रता की समस्या है।

साल 2018 की स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट में केवल पीएम 2.5 से होने वाली मौतों की चर्चा की गयी है, जबकि 2017 की रिपोर्ट में ओजोन को भी शामिल किया गया था। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2017 के अनुसार हवा में पीएम 2.5 और ओजोन की अधिक सांद्रता के कारण हमारे देश में 2015 के दौरान कुल 11,98,200 व्यक्तियों की असामयिक मौत हुई, जो विश्व के किसी भी देश की तुलना में सर्वाधिक था।

वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के बारे में यह कोई पहली रिपोर्ट नहीं है। पिछले साल लांसेट कमीशन ऑन पोल्यूशन एंड हेल्थ की रिपोर्ट में बताया था कि साल 2015 के दौरान पूरे विश्व में 90 लाख से अधिक मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हुई। यह संख्या एड्स, टीबी और मलेरिया से संयुक्त रूप से होने वाली मृत्यु के आकड़ों से तीन गुना से भी अधिक है। वायु प्रदूषण के कारण असामयिक मौतों के संदर्भ में 25 लाख से अधिक मृत्यु के साथ भारत पहले स्थान पर और 18 लाख मौतों के साथ चीन दूसरे स्थान पर था।


वायु प्रदूषण की समस्या भारत और चीन में सबसे अधिक है और इन देशों में इसके कारण जितनी मृत्यु होती है, वह आंकड़ा पूरी दुनिया में होने वाली मौतों का 51 प्रतिशत से अधिक है। चीन में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण कोयले का जलना, उद्योग, घरों में जैविक इंधन का जलना और कृषि अपशिस्ट को खेतों में खुले में जलाना है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण कोयले का अत्यधिक उपयोग और घरों में लकड़ी, उपले या इसी प्रकार के जैविक इंधनों का उपयोग है।

एक पत्र के अनुसार सीपीसीबी तो अभी योजना बना रहा है कि हर वो शहर जहां की आबादी एक लाख या उससे ऊपर है, वहां मानकों में जिन 12 पैरामीटर का उल्लेख किया गया है, वे सभी पैरामीटर मापे जा सकें। इस बीच बहुचर्चित योजना, नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम, में बताया गया है कि वायु गुणवत्ता का परिमापन ग्रामीण क्षेत्रों तक भी ले जाया जाएगा। अब जरा सोचिये, जब शहरों में इसका परिमापन नहीं किया जा रहा है तो गांव का जिक्र भी बेमानी है।

इसी पत्र में सीपीसीबी ने बताया है कि पीएम 10 और पीएम 2.5 का नियंत्रण करने पर अन्य प्रदूषक जो वायु प्रदूषण करते हैं, स्वतः नियंत्रित हो जाते हैं। इसका सीधा सा मतलब है कि यदि पीएम 10 और पीएम 2.5 नियंत्रित हैं तब किसी और पारामीटर के तय मानक से बढ़ने की गुंजाइश ही नहीं है। यह कथन अपने आप में एकदम बकवास और अवैज्ञानिक है और खुद सीपीसीबी के आंकड़े ही इसे गलत साबित करते हैं। 2 जुलाई को 9 ऐसे स्थानों पर ओजोन, 9 स्थानों पर कार्बन मोनोऑक्साइड और 2 स्थान पर सल्फर डाइऑक्साइड तय मानक से अधिक था, जहां पीएम 10 और पीएम 2.5 की समस्या नहीं थी।

इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि 1981 में वायु प्रदूषण अधिनियम के बाद से देश में वायु प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता गया लेकिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी फलते-फूलते रहे और लोग प्रदूषण से मरते रहे।

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