विष्णु नागर का व्यंग्यः इस आदमी ने झूठ को जो प्रतिष्ठा दिलाई, वैसी गांधीजी गोली खाकर भी सत्य को नहीं दिला पाए!

उसकी प्रतिज्ञा है कि मैं जो बोलूंगा, झूठ बोलूंगा और झूठ के सिवाय कुछ नहीं बोलूंगा। भगवान के सामने ली गई इस प्रतिज्ञा को वह तोड़े भी तो कैसे? वह झूठा है मगर ईश्वर को मानता है! अंतर बस इतना है कि वह ईश्वर की पूजा सुबह करता है, और झूठ की दिन-रात करता रहता है!

फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

ये तो मानना पड़ेगा कि इस आदमी ने झूठ को जैसी 'प्रतिष्ठा' दिलाई है, वैसी प्रतिष्ठा तो गांधीजी सीने पर गोली खाकर भी सत्य को नहीं दिलवा पाए! क्या पता इसे भरोसा हो कि गांधीजी से अधिक भविष्य, मेरी पूजा करेगा! और अगर भविष्य ने दगा किया तो मैं उसका भविष्य भी खराब कर दूंगा। भविष्य का भविष्य खराब करने का ठेका भी मेरे पास है! बच्चू ये बच कर जाएगा कहां?

गांधीजी हर बात में सच बोलते थे और ये आदमी हर बात में वीर की तरह झूठ बोलने में आगे रहता है। बिना झूठ बोले अगर काम चल सकता हो तो भी यह चलने नहीं देता। झूठ और फरेब के प्रति इसकी ऐसी गहरी निष्ठा देख कर मेरे एक दोस्त ने एक बार कहा था कि यार इसकी झूठ के प्रति यह निष्ठा देख कर तो मेरा मन इसके आगे शीश झुकाने को करता है!

इस आदमी की झूठ के प्रति गहन निष्ठा का एक ताजा उदाहरण। अभी इसने कहा कि मैं स्कूल के दिनों में सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष देखने धोलावीरा गया था,जबकि वहां खुदाई 1990 में शुरू हुई थी। तब वह चालीस साल का हो चुका था। इसकी समस्या यह है कि धोलावीरा को विश्व धरोहर का दर्जा मिला तो इसकी खुशी जाहिर करना उसके लिए जरूरी था, मगर उतना ही जरूरी झूठ बोलना भी था!

उसकी प्रतिज्ञा है कि मैं जो कुछ बोलूंगा, झूठ बोलूंगा और झूठ के सिवाय कुछ नहीं बोलूंगा। भगवान के सामने ली गई इस प्रतिज्ञा को वह तोड़े भी तो कैसे? वह झूठा है मगर ईश्वर को मानता है! अंतर बस इतना है कि वह ईश्वर की पूजा सुबह करता है, और झूठ की दिन-रात करता रहता है!


वह चाहता है कि यह मान लिया जाए कि उसके जीवन का असली मिशन बड़ा से बड़ा पद पाना नहीं बल्कि झूठ और फरेब को भारतीय जीवन में उसका उचित स्थान दिलाना है। बड़ा पद तो इस मिशन को सफल बनाने का मात्र एक सशक्त माध्यम है। वह जानता है कि मिशनरी आदमी के बारे में अक्सर भ्रांतियां फैल जाती हैं, मगर सच्चा मिशनरी कभी अपने पथ से विचलित नहीं होता। वह जानता है कि उसका मिशन अंततः सफल होगा!

वैसे असफल तो आज भी नहीं है। झूठ बोलने को आज राष्ट्रीय मुख्यधारा का दर्जा मिल चुका है।लोग खुशी-खुशी इस मुख्यधारा में बहे जा रहे हैं। धारा जिधर ले जा रही है, जा रहे हैं। धारा डुबाए तो डूबने को तैयार हैं। और लोग इसमें अकेले नहीं, पूरे खानदान के साथ बह रहे हैं। घर का मुखिया खुद भी बहता है और पीछे मुड़कर देखता भी जाता है कि घर का कोई सदस्य भागा तो नहीं! भागे हुए को वह कहीं से भी पकड़ कर लाता है। बीवी हो तो उसे सीधे तलाक देने की धमकी देता है। बेटा-बेटी हो, तो दो झापड़ रसीद करता है और घर से निकल जाने की धमकी देता है!

वैसे कभी तो इस आदमी की स्थिति भी ऐसी हो जाती है कि वह न सच बोल पाता है, न झूठ। जैसे पेगासस जासूसी कांड है। वह हां या ना में सीधा जवाब नहीं दे पा रहा। आं ऊं-आं ऊं कर रहा है। स्थिति यह है कि वह सच बोले या बुलवाए तो मरे और झूठ बोले-बुलवाए तो मरे! चुप्पी रहना भी वैसे सच का स्वीकार है, मगर ऐसे वक्त पर चुप रहने के अलावा कोई उपाय भी नहीं है!

इसके विपरीत गांधीजी को किसी की जासूसी करवाने की जरूरत नहीं थी तो आं ऊं,आं ऊं करने की जरूरत भी नहीं पड़ी। इस एक फायदे के लिए मगर झूठ का मिशनरी अपना मिशन तो नहीं छोड़ सकता वरना विष्णु नागर और उसमें क्या फर्क रह जाएगा? नागर को बमुश्किल सौ लोग जानते होंगे, इसे आज हद से हद डेढ़ सौ लोग जानते होते! करोड़ों लोग जानें, इसके लिए आदमी को सच या झूठ में से किसी एक का मिशनरी होना पड़ता है। तब उसकी दाढ़ी विकासमान हो तो उस पर भी लाखों लोग कमेंट करते हैं। मैं बढ़ाता तो चार भी कमेंट नहीं करते!


वैसे जिंदगी में एक बार तो मुझे भी खयाल आया था कि मैं भी कोई एक मिशन पकड़ लूं। दूसरी तरह के मिशन पकड़ने में फादर स्टेन स्वामी जैसा कुछ हो जाने का खतरा था। सच के मिशन पर गांधीजी की आनरशिप थी और झूठ के मिशन पर तब तक यह कब्जा कर चुका था! मन मसोस कर रह गया!

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