भारत जैसी ही है दुनिया की राजनीति, संकुचित होता जा रहा प्रजातंत्र का दायरा

विरोधियों से निपटने के लिए ट्रोल आर्मी, सत्ता के लिए स्वतंत्र मीडिया को कुचल कर गोदी मीडिया को स्थापित करना और धर्म पर खतरे का हवाला देकर जनता को भड़काना – यह सब हथकंडे केवल भारत में ही नहीं है बल्कि पूरी दुनिया में अपनाए जा रहे हैं।

फोटो: IANS
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महेन्द्र पांडे

हमारे देश की राजनीति पूरी तरह से झूठ, फरेब, हिंसा, पूंजीवाद, धर्म, भ्रामक प्रचार और झूठे वादों पर टिकी है। तथाकथित संवैधानिक संस्थाएं, कुछ हद तक न्यायालय, सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया भी ऐसे कृत्यों में सत्ता का भरपूर साथ देते हैं। पर, यह स्थिति केवल भारत में ही नहीं है बल्कि पूरी दुनिया में है और इसी कारण कट्टर दक्षिणपंथी और तथाकथित राष्ट्रवादी सत्तालोभी नेता अधिकतर देशों में सत्ता के शिखर पर पहुँच रहे हैं। हाल में ही यूरोपीय देशों में एकलौते स्वघोषित तानाशाह हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन चौथी बार प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए हैं और दूसरी तरफ एशिया के फिलीपींस में पूर्व तानाशाह मार्कोस के पुत्र फर्डिनांड मार्कोस जूनियर राष्ट्रपति निर्वाचित हुए हैं। ये दोनों ही निरंकुश कट्टरपंथी शासक हैं और इनकी मानसिकता और करनी से भारतीय राजनीति और सत्ता में बैठे नेताओं की झलक मिलती है।

फर्डिनांड मार्कोस जूनियर को सत्ता अचानक ही नहीं मिली बल्कि इसके यह लगभग डेढ़ दशक की तैयारी का परिणाम है। उन्होंने सोशल मीडिया पर झूठ, फरेब, विपक्षी नेताओं के चरित्र हनन और पिछली सरकारों की नाकामियों का एक ऐसा जाल बुना, जिसमें जनता कैद होकर रह गयी और झूठ को ही सच समझने लगी। सोशल मीडिया की ताकत को समझते हुए ही फर्डिनांड मार्कोस जूनियर ने राष्ट्रपति चुनावों के दौरान एक भी रैली या प्रेस कांफ्रेंस में हिस्सा नहीं लिया। वे और उनकी पूरी टीम दिन रात सोशल मीडिया पर सक्रिय रहे, और उनकी विशालकाय ट्रोल आर्मी दूसरे नेताओं और विपक्षियों का चरित्र हनन करती रही।


फर्डिनांड मार्कोस जूनियर के सत्ता तक पहुंचते ही सबसे पहले झूठ का खुलासा उनकी शिक्षा से सम्बंधित था। मार्कोस ने बार-बार प्रचारित किया था कि वे प्रतिष्ठित ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से स्नातक हैं। फिलीपींस में विदेशी डिग्री, विशेष तौर पर यूनाइटेड किंगडम के यूनिवर्सिटी से प्राप्त डिग्री को बड़े आदर की दृष्टि से देखा जाता है और ऐसे लोगों का समाज में रुतबा स्वतः बढ़ जाता है। मार्कोस जनता की इसी कमजोरी को पकड़ कर अपना रुतबा बढ़ा रहे थे। हाल में ही मार्कोस के कुछ विरोधियों ने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से इस सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की है। ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसार मार्कोस ने वर्ष 1978 में एक वर्ष का स्पेशल डिप्लोमा किया है, और यह स्नातक के समतुल्य नहीं है। मार्कोस ने वर्ष 1975 में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में दर्शन शास्त्र, राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र से बीए करने के लिए दाखिला लिया था, पर अगले वर्ष तक वे तीन में से 2 परीक्षाओं में फेल हो चुके थे। यह वह दौर था जब तानाशाह मार्कोस सत्ता में थे और उनके दखल के बाद ही ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने मार्कोस जूनियर को यूनिवर्सिटी से बाहर करने के बजाय स्पेशल डिप्लोमा का रास्ता चुना।

तानाशाह के बड़े बेटे और अपनी शिक्षा पर पर्दा डालने वाले मार्कोस जूनियर के सत्ता पर काबिज होने के बाद से जाहिर है देश में शिक्षा और मानवाधिकार की कोई उम्मीद नहीं बची है। शिक्षा के सन्दर्भ में तो जल्दी ही उन्होंने अपने इरादे भी स्पष्ट कर दिए हैं। मार्कोस जूनियर ने राष्ट्रपति बनते ही सारा दुतेरते को शिक्षा मंत्री बना दिया। सारा दुतेरते पूर्व राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेरते की पुत्री हैं। रोड्रिगो दुतेरते ने अपने सत्ताकाल में नशे पर रोक लगाने के नाम पर पूरे देश में नरसंहार किया था, मानवाधिकार पर सख्त प्रहार किया, शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त किया था और विपक्षियों को निशाना बनाया था। रोड्रिगो दुतेरते के समय ही फिलीपींस में स्वतंत्र मीडिया संकट में था, और अब मार्कोस जूनियर के आने के बाद निश्चित तौर पर यह संकट और गहरा हो गया है।


हंगरी में चौथी बार लगातार निर्वाचित प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन स्वघोषित तानाशाह हैं, रूस के राष्ट्रपति पुतिन के मित्र हैं और यूरोपियन यूनियन में रहते हुए भी लगातार इसकी नीतियों का विरोध करते हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी इनके प्रबल समर्थक रह चुके हैं और ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के सलाहकार भी हैं। हाल में ही अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी के पोलिटिकल एक्शन कॉन्फ्रेंस की बैठक ओर्बन के आग्रह पर बुडापेस्ट में आयोजित की गयी। रिपब्लिकन पार्टी के इतिहास में यह सम्मलेन पहली बार अमेरिका से बाहर आयोजित किया गया है। इसमें प्रमुख वक्ता विक्टर ओर्बन रहे और उन्होंने अपने संबोधन में सत्ता हथियाने के 12 सूत्र बताये। इन सूत्रों में प्रमुख सूत्र हैं – स्वतंत्र मीडिया पर प्रतिबन्ध और अपने मीडिया से दिनरात दुष्प्रचार और विपक्ष की आलोचना, स्वाभाविक इतिहास को बदलकर अपने अनुरूप करना और धर्म के मामलों पर लोगों को उलझाए रखना। ओर्बन के अनुसार विकासवाद का रास्ता सत्ता से दूर करता है इसलिए जनता के बीच पुरातनपंथी विचारधारा का प्रसार आवश्यक है। ओर्बन ने रिपब्लिकन प्रतिनिधियों को सलाह दिया कि केवल अमेरिका के संवैधानिक संस्थानों पर ही नहीं बल्कि यूरोपियन पार्लियामेंट और संयुक्त राष्ट्र जैसे संस्थानों को भी अपनी गिरफ्त में रखने का प्रयास करें। हमें एक दूसरे में समानताएं खोजनी चाहिए और एक-दूसरे की विचारधारा का व्यापक प्रचार-प्रसार करना चाहिए। ओर्बन अपने कट्टर समर्थकों और अमेरिका में रिपब्लिकन समर्थकों को नागरिक या लोग नहीं कहते हैं, बल्कि इन्हें ट्रूप्स कहते हैं।

ओर्बन के अनुसार अपने समर्थन में खड़ी मीडिया सत्ता में आने का सबसे प्रभावशाली और अच्छा माध्यम है। मीडिया द्वारा ही प्रगतिशील नीतियों के पागलपन से निपटा जा सकता है। पश्चिमी स्वतंत्र मीडिया का स्वाभाविक झुकाव वामपंथ की तरफ है और इससे निपटने के लिए बड़े पैमाने पर अपने समर्थन वाली मीडिया की जरूरत है। ओर्बन के अनुसार अमेरिका की मीडिया पर डेमोक्रेट्स का कब्जा है, और इससे पार पाने के लिए कुख्यात फॉक्स न्यूज़ जैसे अनेक चैनल की जरूरत है। उन्होंने ट्रम्प के अंधभक्त फॉक्स न्यूज़ के टकर कार्लसन का नाम लिया और कहा कि ऐसे पत्रकारों के कार्यक्रम दिन भर दिखाए जाने चाहिए। चुनाव जीतने के लिए जनता का पुरातनपंथी और दकियानूस होना आवश्यक है और ओर्बन के अनुसार यह काम धर्म ही कर सकता है, इसलिए धर्म का मुद्दा और धर्म पर खतरे जैसे मुद्दे लगातार उछलते रहने चाहिए। रिपब्लिकन्स की इस बैठक का विषय था – ईश्वर, देश और परिवार। यूरोप में स्वतंत्र मीडिया को कुचलने का प्रयास केवल हंगरी में ही नहीं किया जा रहा है बल्कि तुर्की, बेलारूस, पोलैंड, चेक रिपब्लिक और स्लोवाकिया में ही ऐसी ही स्थिति है। यूरोपियन कमीशन की तरफ से कराये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार यूरोप के बहुत से देशों में निष्पक्ष स्वतंत्र मीडिया विलुप्तीकरण के कगार पर है।


सरकारें अब पूंजीपतियों और अपराधियों के सहयोग से बनती हैं, जाहिर है सत्ता में अपराधियों की गहरी पैठ है। फ्रांस के राष्ट्रपति इम्मानुएल मैक्रॉन ने एक मंत्री के तौर पर दमिएँ आबाद को मंत्रिमंडल में शामिल किया है। दमिएँ आबाद पर दो महिलाओं ने बलात्कार का आरोप लगाया है। राष्ट्रपति लगातार महिलाओं के सुरक्षा की बात करते रहे हैं, अब सामाजिक कार्यकर्ता और महिलायें पेरिस की सड़कों पर प्रदर्शन कर बलात्कारी मंत्री को मंत्रिमंडल से बाहर करने की मांग कर रहे हैं। आश्चर्य यह है कि फ्रांस में इस समय प्रधानमंत्री एक महिला, एलिजाबेथ बोरने, हैं – पर बलात्कारी मंत्री को बाहर करने की कोई पहल नहीं की जा रही है।

सत्ता हथियाने के लिए सोशल मीडिया पर धुआँधार दुष्प्रचार, अपनी शिक्षा के बारे में झूठ, अपराधियों से मिल कर सरकार चलाना, विरोधियों से निपटने के लिए ट्रोल आर्मी, सत्ता के लिए स्वतंत्र मीडिया को कुचल कर गोदी मीडिया को स्थापित करना और धर्म पर खतरे का हवाला देकर जनता को भड़काना – यह सब हथकंडे केवल भारत में ही नहीं है बल्कि पूरी दुनिया में अपनाए जा रहे हैं। इन्हें अपनाने वाले एक-दूसरे से सीख रहे हैं, सिखा रहे हैं। जाहिर है, दुनिया में प्रजातंत्र का दायरा संकुचित होता जा रहा है।

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