खरी-खरी: आशा, निराशा और संघर्षों वाला होगा नववर्ष

2021 में कामनाएं और आशाएं तो बहुत हैं परंतु इनकी प्राप्ति के लिए कठिन प्रयास एवं संघर्ष करना होगा तब शायद कुछ बात बने। लेकिन यह तय है कि किसान आंदोलन के समान 2021 पिछले वर्ष के समान घोर अंधकार का वर्ष नहीं बल्कि आशाओं और निराशाओं का मिश्रित वर्ष होगा।

फोटो : Getty Images
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ज़फ़र आग़ा

यूं तो नववर्ष का स्वागत और इस अवसर पर हर्ष-उल्लास मनाना पश्चिमी प्रथा है। परंतु अब तो यह जश्न गांव-गांव मनाया जाता है। कुछ नहीं तो परिवार के सदस्य टीवी के सामने बैठकर पहले गीत-संगीत का आनंद लेते हैं और फिर रात बारह बजे तालियां बजाकर नववर्ष का स्वागत कर लेते हैं। हर नववर्ष पर यह आशा होती है कि नवीन वर्ष अपने दामन में खुशियां और हर प्रकार का सुख लेकर आए। मानव प्राणी तो जीता ही आशा पर है। इसलिए नववर्ष आशा के साथ आरंभ करना एक अच्छी परंपरा है। संभवतः इसी कारण यह पश्चिमी प्रथा सारे संसार में फैल गई। तो आइए, हम और आप भी इस वर्ष को आशा के साथ आरंभ करें।

सबसे पहले तो हमारी कामना और आशा यही है कि मानवता पर कोविड-19 का जो मनहूस साया छा चुका है, वह जल्द-से-जल्द हट जाए। सारा संसार जिस प्रकार कोरोना वायरस से भयभीत एक डरी-सहमी जिंदगी जी रहा है, वह डर जल्द-से-जल्द समाप्त हो। 2020 ने जिस प्रकार जीवन छिन्न-भिन्न किया, मानवता को लॉकडाउन पर मजबूर किया, सारी दुनिया में करोड़ों- करोड़ नौजवानों को बेरोजगार कर दिया, भारत सहित सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था तहस-नहस कर दी, कारोबार और काम-धंधे ठप कर दिए, भगवान करे, इन सारी समस्याओं से 2021 में संपूर्ण मानवता को निजात मिले।

स्वयं अपना देश इस वर्ष उन्नति एवं प्रगति के नए शिखर को चूमे। भारतवर्ष में जो सांप्रदायिकता एवं नफरत का बाजार गर्म है, वह ठंडा पड़ जाए। हम भारतवासी जैसे सदियों से हर धर्म का सम्मान करते आए हैं एवं हर धर्म अनुयायी के साथ सदियों से जीते आए हैं, इस 2021 में हम भारतीय फिर उसी परंपरा पर चल पड़ें। वह हिंदू हो, सिख हो, मुसलमान हो, ईसाई हो अथवा जैनी- हर मानव प्राणी सुखी और निर्भीक जीवन व्यतीत करे। इस गंगा-जमनी देश में इस वर्ष कोई ‘मॉब लिंचिंग’ न हो और कहीं कोई ‘लव जिहाद’ की आड़ में पीड़ित न किया जाए। बस, इस वर्ष आपसी मेल-मिलाप का ऐसा सागर उमड़ पड़े कि देश की तमाम नफरतें उसी में डूब जाएं। और 2021 में एक हंसता-खिलखिलाता भारत अपने हर नागरिक को सुख ही सुख दे।

परंतु इस 2021 के आगमन पर सबसे महत्वपूर्ण कामना यही है कि दिल्ली बॉर्डर पर इस ठिठुरती ठंड में जो किसान सिंघु, टिकरी एवं गाजीपुर के खुले मैदानों में आंदोलन कर रहे हैं, उनका आंदोलन सफल हो। ये हजारों किसान खुशी-खुशी वापस अपने-अपने घरों को लौट जाएं। उनके दिलों में जो भय बढ़ गया है कि अडानी- अंबानी जैसे पूंजीपति उनके खेतों पर कब्जा कर लेंगे, वह भय हट जाए। किसानों की एमएसपी और मंडी व्यवस्था जैसी तमाम मांगें पूरी हों। भगवान, हर किसान फिर सुख- चैन की सांस ले और दिल्ली बॉर्डर छोड़ एक बार फिर अपने खेत-खलिहानों को नई फसलों की हरियाली से रंग दे।


साथ ही हमारे वे नौजवान जो लॉकडाउन में बेरोजगार होकर नाउम्मीद अपने-अपने घरों में बैठे हैं, वे फिर से रोजगार से लग जाएं और उनके चेहरों एवं दिलों में खुशियां फूटे। हे भगवान, वे लाखों मजदूर-कारीगर जो महानगरों को छोड़ पैदल चल कर अपने गांव-देहात वापस चले गए थे, वे सब अब इस वर्ष में सवारियों पर बैठ वापस महानगरों की चमक-दमक बढ़ा दें। वह सिनेमा घर हो अथवा मॉल या बाजार, सन 2021 में फिर जगमगा उठें। होटलों, रेस्त्राओं तथा क्लबों में फिर वैसे ही हंसी-ठट्ठे गूंज उठें। बस, 2021 हमको वैसा ही जीवन फिर दे दे जैसा कि हम एक वर्ष पूर्व जी रहे थे।

हम और आप क्या, हर भारतवासी ही नहीं बल्कि हर प्राणी के मन में ये कामनाएं ही कूद रही हैं और हर लब पर यही प्रार्थना है कि जनजीवन पुनः सामान्य हो। परंतु क्या ये सारी कामनाएं इस वर्ष में पूरी होने जा रही हैं? कामनाएं तो कामनाएं ही होती हैं। हर प्राणी को अधिकार है कि वह अपनी कामना पूरी होने के लिए प्रार्थना करे। परंतु हम यह भी जानते हैं कि हर कामना एवं हर प्रार्थना कभी पूरी नहीं होती है। हर कामना को पूरा करने का सर्वोच्च तरीका यही है कि उसकी प्राप्ति के लिए कड़ा से कड़ा प्रयास किया जाए।

तो देखें कि हमारी इतनी ढेर सारी कामनाओं में से कितनी कामनाएं केवल प्रार्थना से सफल हो सकती हैं। इस नववर्ष की सर्वप्रथम कामना तो यही है कि कोविड- 19 की महामारी इस वर्ष जल्द से जल्द समाप्त हो। और इस कामना की प्राप्ति के लिए हजारों करोड़ प्राणी रोज मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों एवं चर्चों तथा हर पूजा स्थल से और अपने-अपने घरों में बैठ कर रोज प्रार्थना कर रहे हैं। परंतु अभी तक तो ईश्वर ने यह प्रार्थना नहीं सुनी। एक वैक्सीन का शोर जरूर है परंतु उसी के साथ-साथ इस महामारी को फैलाने वाले वायरस ने इंग्लैंड में अब नया रूप ले लिया है। कुछ वैज्ञानिक यह कह रहे हैं कि यह कोरोना वायरस अभी दस वर्षों तक रंग बदल-बदल कर मानवता को परेशान करता रहेगा। आखिर, मलेरिया, हैजा और टीबी-जैसी महामारियों ने कितने करोड़ की जान ले ली और ये आज भी समाप्त नहीं हुई हैं। ऐसे ही कोरोना वायरस की महामारी केवल एक वर्ष में मानवता का पीछा छोड़ने वाली नहीं है। अर्थात 2021 संपूर्ण रूप से कोरोना रहित नहीं होगा। इस महामारी में कमी तो आ रही है परंतु इसका भय अभी भी जाने वाला नहीं है। लेकिन मानवता को इसके साथ-साथ सामान्य जनजीवन बिताने के नए प्रयास एवं उपाय ढूंढने होंगे। जैसा कहते हैं, चिंताओं से ही नए रास्ते खुलते हैं, वैसे ही कोरोना चिंता से निपटने का इस 2021 में कोई नया रास्ता खुलेगा जो प्रार्थना से नहीं बल्कि मानव के संघर्ष से ही निकलेगा।


क्या किसानों की समस्या इस वर्ष हल हो जाएगी? सरकार बातचीत तो कर रही है। इस लेख के लिखे जाने तक सरकार की ओर से जो संकेत मिले हैं, उससे यह आभास होता है कि मोदी सरकार किसान आंदोलन से कुछ भयभीत है। और किसी हद तक घुटने टेकने को तैयार है। परंतु केवल किसी हद तक। कम्युनिस्टों की पुरानी रणनीति है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पहले दो कदम आगे बढ़ जाओ। फिर जब बातचीत हो तो एक कदम पीछे हट जाओ। इस रणनीति से एक कदम आगे तो बढ़ ही जाते हो। इसी प्रकार मोदी सरकार नए कृषि कानून बनाकर दो कदम आगे बढ़ चुकी है। अब बातचीत से एक कदम पीछे हटी भी तो जीत सरकार की ही रहेगी। इसका अर्थ क्या हुआ! यह कोई दूर को कौड़ी नहीं कि समझ में नआए। सीधी-सी बात है कि मोदी सरकार के कांधों पर सवार अंबानी-अडानी-जैसे पूंजीपतियों का एक कदम अब भारत के गांव-देहातों में पहुंच गया है। उसको वापस करने के लिए प्रार्थना नहीं, संघर्ष का ही रास्ता है। अर्थात भारतीय किसान को 2021 में भी संपूर्ण शांति एवं सुख प्राप्त होने वाला नहीं है।

इसी प्रकार बेरोजगार क्या रोजगार से लग जाएंगे? वह मजदूर जो पैदल चलकर गांव गया था, वह वापस महानगरों को लौट जाएगा? क्या हर बंद काम धंधा अथवा कारोबार इस वर्ष चल पड़ेगा? बाजार, मॉल, सिनेमा घर फिर चहक उठेंगे? देश की अर्थव्यवस्था क्या 2021 में फिर उसी उन्नति और प्रगति के शिखर चूमेगी जैसा कि लॉकडाउन से पूर्व चूम रही थी। असंभव! हमने जिस अर्थव्यवस्था को केवल एक वर्ष में खोया है, वह हमने सत्तर वर्ष में बनाई थी। भला उसको उसी स्तर तक एक वर्ष में पाना असंभव है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, हमने अपनी जीडीपी का लगभग 24 प्रतिशत भाग खो दिया है। स्पष्ट है कि यह प्राप्ति एक वर्ष में पूरी नहीं होगी। इसके लिए कड़े परिश्रम एवं संघर्ष की आवश्यकता होगी। स्पष्ट है कि इस कारणवश 2021 में हर चेहरा मुस्करा नहीं सकेगा।


अब रही समस्या सांप्रदायिकता एवं समाज में घोली गई बंटवारे और नफरत की राजनीति की, तो वह भी अकेले एक वर्ष में समाप्त होने वाली समस्या नहीं है। बीजेपी एवं संघ ने जो नई राजनीति आरंभ की है, वह गांव-गांव अपने पैर पसार चुकी है। इस जहर को समाज से दूर करने के लिए लंबे राजनीतिक संघर्ष की आवश्यकता है। जिसके आसार अभी 2021 में कहीं भी नहीं दिखाई पड़ रहे हैं।

अतः 2021 में कामनाएं और आशाएं तो बहुत हैं परंतु इनकी प्राप्ति के लिए इस वर्ष में कठिन प्रयास एवं संघर्ष करना होगा तब शायद कुछ बात बने। लेकिन यह तय है कि किसान आंदोलन के समान 2021 पिछले वर्ष के समान घोर अंधकार का वर्ष नहीं बल्कि आशाओं और निराशाओं का मिश्रित वर्ष होगा।

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