विष्णु नागर का व्यंग्य: मोदीजी के ज्ञान-अज्ञान का निचोड़, ‘बोलो-बताओ...’
मोदीजी किसी रैली में दस हजार लोगों के सामने कहेंगे कि क्या कोई कांग्रेसी नेता भगत सिंह से जेल में मिलने गया था, बोलो गया था क्या तो वहां किसमें हिम्मत कि वहीं, उसी समय कह दे कि हां, नेहरू गये थे।
लोग कहते हैं कि यह देश का दुर्भाग्य है कि मोदीजी को इतिहास का पता नहीं, इतना भी नहीं मालूम कि कांग्रेसी नेता और बाद में देश के पहले प्रधानमंत्री बने जवाहर लाल नेहरू, भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, जतींद्र नाथ दास से लाहौर जेल में मिलने गये थे। लोग कहते हैं कि मोदीजी को तो भूगोल का भी नहीं पता कि तक्षशिला, भारत में नहीं, पाकिस्तान में है। लोग कहते हैं कि मोदीजी को तो अर्थशास्त्र का भी पता नहींं। लोग कहते हैं, इन्हें अर्थशास्त्र का भी पता नहीं, नोटबंदी करके और जीएसटी लागू करके इन्होंने देश की अर्थव्यवस्था का भट्टा बैठा दिया। और तो और मोदीजी को तो तीन के पहाड़े का भी पता नहीं।
सार यह कि मोदीजी को ये भी नहीं पता, वो भी नहीं पता। बिल्कुल सही है कि उन्हें नहीं पता (और जिन्हें पता है उन्हें वह बेवकूफ समझते हैं)। लेकिन हम ये पता करने चलेंगे कि मोदीजी को क्या- क्या नहीं पता है तो फोकट में अपना टाइम इतना ज्यादा बर्बाद करेंगे कि खाने-पीने की तो छोड़िए, टॉयलेट जाने की फुरसत भी नहीं मिलेगी। 24 में से 22 घंटे भी झोंक देंगे तो भी प्रोजेक्ट साल भर में पूरा नहीं होगा।
उधर मोदीजी बीजेपी-संघ की किसी संयुक्त रैली में दस हजार लोगों के सामने कहेंगे कि क्या कोई कांग्रेसी नेता भगत सिंह से जेल में मिलने गया था, बोलो गया था क्या तो वहां किसमें हिम्मत कि वहीं, उसी समय कह दे कि हां, जवाहर लाल नेहरू गये थे। संघी मार-मार कर उसकी वहीं जान ले लेंगे और एफआईआर तक दर्ज नहीं होगी। तो मोदीजी का इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, विज्ञान सबके ज्ञान-अज्ञान का निचोड़ इस बोलो-बताओ में निहित है। दस हजार की भीड़ से अपने 'अ' से संबद्ध ज्ञान की एप्रूवल उन्होंने ले ली, तो वे तो हो गए सर्वज्ञानी। कर लो बेट्टा, जिससे जो बने, कर लो। यह 'जनता' द्वारा एप्रूव्ड 'ज्ञान' है। और 'ज्ञान' भी दरअसल वही होता है, जिसकी एप्रूवल मोदीजी, श्रोताओं से लेते हैं, वह नहीं, जो दस्तावेजों में मिलता है, जिसके लिए विश्वविद्यालय, पुस्तकालय, नेशनल आर्काइव आदि बनाने की 'गलती' नेहरू जी काफी पहले कर चुके थे!
वैसे मोदीजी को इतना अवश्य पता है कि भाषण के शुरू में भाइयों-बहनों कहते हैं और फिर शुरू हो जाते हैं और फिर एक के ऊपर एक फेंकते चले जाते हैं। वैसे भी ये कोई नेहरू युग तो है नहीं कि प्रधानमंत्री को इतिहास, भूगोल, विज्ञान, साहित्य सबका पता होना चाहिए। यह तो फेकूयुग है, जिसे फेंकना पता है और सिर्फ फेंकते जाना पता है, उसे सब पता है। और राहुल जी से लेकर येचुरी जी तक अपने-अपने सीने पर हाथ रखकर ईमानदारी से यही बताएंगे कि मोदीजी इसमें नंबर वन हैं, बल्कि वन से टेन तक केवल वही हैं। इलेवन से ट्वेंटी तक अमित शाह हैं। बाकी ट्वेंटी वन से वन हंड्रेड तक में मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक आदि चंगूमंगू आते हैं।
वैसे भी सोचो कि नेहरू युग से लेकर आज तक इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र आदि- आदि का जिन्हें खूब पता था, जो सचमुच के विद्ववान थे, वे सब के सब क्या प्रधानमंत्री बन गए? नहीं बने न! और बना कौन आखिरकार? हमारा फेकू जी ही न! तो या तो खूब पढ़ लो और प्रोफेसर वगैरह बन जाओ, हद से हद वाइस चांसलर बन जाओगे। इससे आगे लाइफ है क्या? नहीं है। इसलिए नहीं पढ़ोगे तो फेकू बनोगे और फेकू बनोगे तो मुख्यमंत्री भी बनोगे, प्रधानमंत्री भी बनोगे। तुम रोज फेकोगे, विद्वान रोज लोकेंगे। तुम इतिहास पर फेंकोगे, वे कहेंगे, यह फेकू है, फेंक रहा है। तुम भूगोल पर बोलोगे, वे कहेंगे, लो ये प्राइमिनिस्टर बना फिरता है, इसे इतना भी नहीं मालूम कि तक्षशिला, पाकिस्तान में है! तुम आंकड़े दोगे, वे कहेंगे, ये फेकू आंकड़े हैं। यानी न्यूज में तुम ही रहोगे। जनता तुम्हारे फेकू ज्ञान का एप्रूवल देगी और इन विद्वानों का ज्ञान बट्टे-खाते में चला जाएगा। इतिहास, समाजशास्त्र, विज्ञान सबका वास्तविक ज्ञान हद से हद एक दो टीवी चैनलों और चार-छह अंग्रेजी अखबारों के काम आएगा, यह उसकी सीमा है। इस बहाने ज्ञानियों को फेकू को गरियाने का सुख भी मिलेगा और फेकू का कुछ बिगड़ेगा भी नहीं। लोकतंत्र भी सुरक्षित, रोज फेकू ज्ञान का वायरल होना भी सुरक्षित। फेकू के मजे हैं।
(यह लेखक के निजी विचार हैं। नवजीवन का उनके विचारों से सहमत होना अनिवार्य नहीं है)
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