आर्थिक असमानता के बारे में दुनिया को भ्रमित कर रही सरकार, पांच उद्योगपति परिवारों के पास देश की 22 प्रतिशत संपत्ति

मोदी सरकार के दौर में नीति आयोग कोई नीति नहीं बनाता क्योंकि देश में हरेक नीति और योजना केवल प्रधानमंत्री मोदी के दिमाग से उपजती है। अलबत्ता नीति आयोग इन दिनों मोदी जी को खुश करने के लिए कई रिपोर्ट तैयार करता जा रहा है।

फोटो : सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

हरुन इंडिया नामक संस्था ने हाल में ही भारत के खानदानी उद्योगपतियों के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट के अनुसार परंपरागत व्यवसायी परिवार के सन्दर्भ में मुकेश अंबानी खानदान देश में आर्थिक तौर पर सबसे प्रभावी परिवार है, इस परिवार की कुल संपत्ति 309 अरब डॉलर या 25.75 लाख करोड़ रुपये के समतुल्य है। यहाँ तक तो सबकुछ सामान्य लगता है, पर हैरानी तो यह जानकार होती है कि मुकेश अंबानी खानदान की कुल संपत्ति पूरे भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10 प्रतिशत है। जाहिर है, कुल जीडीपी का 10 प्रतिशत मालिक केवल एक परिवार है, और शेष 90 प्रतिशत 140 करोड़ से अधिक जनता के हिस्से आता है। 

परंपरागत व्यावसायी परिवार में संपत्ति के सन्दर्भ में बजाज परिवार है, जिसकी कुल संपत्ति 7.13 लाख करोड़ रुपये के समतुल्य है। तीसरे स्थान पर 5.39 लाख करोड़ रुपये के साथ कुमार मंगलम बिड़ला परिवार है। अंबानी, बजाज और बिड़ला परिवार की सम्मिलित संपत्ति 460 अरब डॉलर है, जो भारत के कुल जीडीपी का लगभग 15 प्रतिशत और पूरे सिंगापुर के जीडीपी के समतुल्य है। पहले जेनरेशन के व्यवसाइयों के परिवारों की सूची में पहला नाम गौतम अडानी परिवार का है, और दूसरा नाम पूनावाला का है। अडानी परिवार के पास 15.45 लाख करोड़ रुपये और पूनावाला परिवार के पास 2.37 लाख करोड़ रुपये हैं। पहले के तीनों परिवारों के साथ यदि अडानी और पूनावाला के परिवारों की संपत्ति जोड़ दें तो यह संपत्ति पूरे देश के जीडीपी के लगभग 22 प्रतिशत के समतुल्य है। 

जाहिर है हमारे देश में आर्थिक असमानता की स्थिति भयानक है, पर सरकार लगातार आधारहीन आंकड़ों के बल पर हमें बताती है की यह असमानता कम हो रही है। सरकारी रिपोर्टों में किस तरह से बिना किसी आकलन या आधार के ही अपनी मर्जी से आंकड़े भरे जाते हैं – इसके उदाहरण हरेक सरकारी रिपोर्ट में हैं। किसी भी एक विषय को देखिए, उससे संबंधित आपको हरेक रिपोर्ट या विज्ञप्ति में अलग आंकड़े नजर आएंगे। संभव है कि, इनमें से कोई भी आंकड़ा सही ना हो। हम आर्थिक असमानता से संबंधित आंकड़े की पड़ताल करते हैं क्योंकि सरकार के तमाम दावों के विपरीत इस समस्या से सभी जूझ रहे है और यह समस्या बढ़ती जा रही है।  

पूरी दुनिया में आर्थिक असमानता को मापने का तरीका गिनी इंडेक्स या गिनी कोएफ़िसिअंट है। यह पैमाना 0 से 1 तक चलता है – 0 यानि कोई असमानता नहीं और 1 का मतलब है पूरी असमानता। वर्ल्ड बैंक और वर्ल्ड पापुलेशन रिव्यु – दोनों की वेबसाइट पर दुनिया के विभिन्न देशों का गिनी इंडेक्स देखा जा सकता है। इसके अनुसार आर्थिक समानता के सन्दर्भ में सबसे बेहतर प्रदर्शन नॉर्वे का है और यहाँ गिनी इंडेक्स 0.227 है। इसी तरह आर्थिक समानता के सन्दर्भ में सबसे खराब प्रदर्शन गिनी इंडेक्स पर 0.63 अंक के साथ साउथ अफ्रीका का है। जाहिर है, दुनिया के भारत समेत शेष देशों का गिनी इंडेक्स 0.227 से शुरू होकर 0.63 के बीच है। इसमें भारत का इंडेक्स 0.342 है। 


मोदी सरकार के दौर में नीति आयोग कोई नीति नहीं बनाता क्योंकि देश में हरेक नीति और योजना केवल प्रधानमंत्री मोदी के दिमाग से उपजती है। अलबत्ता नीति आयोग इन दिनों मोदी जी को खुश करने के लिए कई रिपोर्ट तैयार करता जा रहा है। किसी रिपोर्ट में 15 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आते हैं, फिर चार महीने बाद दूसरी रिपोर्ट में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आते हैं, किसी में शहरी और ग्रामीण असमानता कम होने लगती है तो किसी रिपोर्ट में लोगों की क्रय क्षमता बढ़ जाती है। नीति आयोग की ऐसी ही एक रिपोर्ट है – एसडीजी इंडिया इंडेक्स 2023-2024। एसडीजी को सतत विकास लक्ष्य कहा जाता है और यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित है। सतत विकास लक्ष्य में लक्ष्य 10 असमानता घटाने से सम्बंधित है और 10.1 में कहा गया है कि समाज के आर्थिक तौर पर सबसे कमजोर आबादी का विकास वर्ष 2030 तक राष्ट्रीय औसत दर की तुलना में अधिक तेजी से किया जाना चाहिए।  

इस रिपोर्ट के पृष्ठ संख्या 150 से 153 तक बताया गया है कि भारत का औसत गिनी इंडेक्स 0.2 है और दिल्ली में तो यह 0.08 ही है। यह एक हास्यास्पद और आधारहीन आंकड़ा है क्योंकि दुनिया के देशों में 0.227 के साथ नॉर्वे सबसे आगे है। इन आंकड़ों की बाजीगरी यहीं ख़त्म नहीं होती। प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो द्वारा 8 जनवरी 2024 को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार देश में आर्थिक असमानता घटती जा रही है – वर्ष 2014-2015 में गिनी इंडेक्स 0.472 था जो वर्ष 2022-2023 में घटकर 0.402 रह गया। 

लोक सभा में 5 फरवरी 2024 को आर्थिक असमानता से सम्बंधित एक जवाब में वित्त मंत्रालय ने जो जवाब दिया, वह बीजेपी सरकार के खोखलापन को दर्शाता है। वर्ष 2024 में पूछे गए प्रश्न के जवाब में वित्त मंत्रालय ने वर्ष 2004-2005 और वर्ष 2011-2012 के गिनी इंडेक्स को प्रस्तुत किया है। जवाब के अनुसार वर्ष 2004-2005 में ग्रामीण क्षेत्रों में गिनी इंडेक्स 0.27 था जो वर्ष 2011-2012 में बढ़कर 0.28 हो गया। इसी तरह शहरी क्षेत्रों में वर्ष 2004-2005 और 2011-2012 में गिनी इंडेक्स क्रमशः 0.35 और 0.37 था। 

सरकारी आंकड़ों में गिनी इंडेक्स 

स्त्रोत   गिनी इंडेक्स 

विश्व बैंक   0.328 

नीति आयोग    0.2 

प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो  0.402 

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस  ग्रामीण – 0.266

शहरी – 0.314 

भारत सरकार के नेशनल सैम्पल सर्वे ऑफिस द्वारा जून 2024 में प्रकाशित रिपोर्ट, पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-2023 में भी गिनी इंडेक्स की चर्चा है। इसके अनुसार वर्ष 2011-2012 और 2022-2023 में ग्रामीण क्षेत्रों में गिनी इंडेक्स क्रमशः 0.283 और 0.266 था जबकि शहरी क्षेत्रों में क्रमशः 0.363 और 0.314 था। 

फोर्ब्स द्वारा वर्ष 2024 के अरबपतियों की सूचि में 200 नाम भारत से हैं, जबकि वर्ष 2023 के सूचि में महज 169 भारतीय ही थे। इन 200 अरबपतियों की सम्मिलित सम्पदा 954 अरब डॉलर, यानि लगभग 1 खरब डॉलर है। देश की 140 करोड़ से अधिक आबादी है और इसकी जीडीपी औसतन 7.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ती है – इस आबादी में से महज 200 लोगों के पास जीडीपी का 27 प्रतिशत है, और इस 27 प्रतिशत में 41 प्रतिशत का उछल हो रहा है – यानि देश के गरीबों की संपदा में वृद्धि तो निगेटिव में हो रही है। यही मोदी जी का तथाकथित विकास है, जिसपर बेरोजगार, भूखे, नंगे सभी तालियाँ बजा रहे हैं और मोदी-मोदी के नारे लगा रहे हैं। 

प्रधानमंत्री जी ने भले ही संपत्ति पुनर्वितरण को लेकर चुनावों के समय लगातार भ्रामक प्रचार किए हों, पर मोदी राज में भी संपत्ति का पुनर्वितरण बड़े पैमाने पर हो रहा है। मोदी राज में इसके लाभार्थी अडानी-अम्बानी जैसे अरबपति है। वर्ष 2023 की तुलना में भारत के अरबपतियों की सम्मिलित संपदा में 41 प्रतिशत का उछाल आया है, वर्ष 2023 में यह 675 अरब डॉलर थी और अब 954 अरब डॉलर है। वर्ष 2024 के लिए यदि देश के सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है तो देश की अर्थव्यवस्था 4 खरब डॉलर की होगी और अरबपतियों की संपत्ति में 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान लगाएं तो इनकी हिस्सेदारी 1.33 खरब डॉलर तक पहुँच जायेगी। जाहिर है, अगले वर्ष इन गिने-चुने अरबपतियों की भागीदारी देश की कुल अर्थव्यवस्था में 27 प्रतिशत से बढ़कर 33 प्रतिशत पहुँच जायेगी। 

इन आंकड़ों से इतना तो स्पष्ट है कि हमारे देश की आर्थिक असमानता की कोई सटीक जानकारी केंद्र सरकार के पास नहीं है – हरेक रिपोर्ट या फिर संसद में दिए गए जवाबों में अलग-अलग संख्या बताई गयी है। आश्चर्य यह है कि इस सम्बन्ध में विपक्ष ने भी कभी प्रश्न नहीं उठाये। अमृत काल के जश्न में डूबे देश में आर्थिक असमानता कोई मुद्दा ही नहीं है।  

संदर्भ: 

1.    https://hurunindia.com/blog/barclays-private-clients-and-hurun-india-release-the-first-edition-of-barclays-private-clients-hurun-india-most-valuable-family-businesses/ 

2.    https://worldpopulationreview.com/country-rankings/gini-coefficient-by-country 

3.    SDG India Index 2023-2024, NITI Aayog, sdgIndiaIndex.niti.gov.in 

4.    https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1994259 

5.    https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/1715/AU390.pdf?source=pqals 

6.    https://www.mospi.gov.in/sites/default/files/publication_reports/Report_591_HCES_2022-23New.pdf 

7.    Forbes 38th Annual World’s Billionaires List: Facts & Figures - https://www.forbes.com/sites/chasewithorn/2024/04/02/forbes-38th-annual-worlds-billionaires-list-facts-and-figures-2024/?sh=8888f7443a60 

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