विष्णु नागर का व्यंग्यः चौकीदार साहेब से अंतरंग बातचीत के संपादित-मर्यादित अंश..
चौकीदार साहेब ने बताया कि वह वही चौकीदार हैं जिसके बारे में राहुल गांधी कहते हैं कि चौकीदार चोर है। उन्होंने बेबाक बातचीत में कहा कि चौकीदार का काम चौकीदारी करना है ना कि बेरोजगारी दूर करना या दलितों-मुसलमानों पर अत्याचार रोकना है।
क्या मैं देश के प्रधानमंत्री से बात कर रहा हूं?
नहीं। यह मुझे बदनाम करने की साजिश है। विपक्ष के नेता आज पाकिस्तान की भाषा में बात कर रहे हैंं। यह बात मैं हरगिज बर्दाश्त नहीं कर सकता। कितनी बार कहूं कि मैं देश का प्रधानमंत्री नहीं हूं! क्या बालाकोट की तरह आपको इसका भी प्रमाण चाहिए? यही आपकी देशभक्ति है? अरे मैं खुद कह रहा हूं कि मैं नहीं हूं तो नहीं हूं! क्या मेरी भाषा, मेरे तौर तरीकों से आपको जरा भी शक होता है कि मैं प्रधानमंत्री हूं? तो फिर यह निराधार बात आप क्यों कर रहे हैं? क्या मेरी तरह आप भी शर्म को घोलकर पी गए हैं?
क्षमा करें सर। मैं भूल गया था, आप तो दरअसल देश के प्रधान सेवक हैं।
प्रधान सेवक? नहीं। यह भी दंतकथा है। मैं प्रधान सेवक नहीं हूं।
आप गरीब माँ के बेटे तो होंगे ही!
नहीं, वह भी नहीं हूं। अब इसे रो-रोकर बताने जरूरत समाप्त हुई। जरूरत समाप्त तो अध्याय समाप्त।
तो क्या मैं विष्णु के ग्यारहवें अवतार से बात कर रहा हूं?
क्या सारे गलत सवाल पूछने का ठेका आपने ले रखा है ?
चलिए सही सवाल पर आता हूं। क्या मैं भूतपूर्व चायवाले से बात कर रहा हूं?
नहीं, भाइयो-बहनों, कितनी बार बताऊं कि अब मैं वह भी नहीं हूं, बिलकुल नहीं हूं। 2014 में मैंने चाय खूब बेची। इस तरह अपने को जी भरकर बेचा और जी भरकर कमाया भी। उसके बाद चाय बेचना और यहां तक कि चाय पर चर्चा करना भी मैंने बंद कर दिया है। चाय बेचने से नरेंद्र मोदी का अब कोई संबंध नहीं है। वह कोई और नरेंद्र मोदी था।
तो फिर क्या मैं देश के पकौड़ा-प्रमोटर से बात कर रहा हूं?
पकौड़ा प्रमोशन से भी मैं अब अपने आपको अलग कर चुका हूं। पकौड़ों को इससे अधिक प्रमोशन नहीं चाहिए। हां मैं दिल से अभी भी पेटीएम और जिओ का प्रमोटर हूं, मगर आज जब देश की सुरक्षा खतरे में है, मैंने ऐन चुनावी मौसम में एंटी सैटेलाइट मिसाइल छुड़वाई है, तब पकौड़ा- प्रमोशन की याद दिलाना भी देशद्रोह है। आपको मालूम है कि आप इस आरोप मेंं अंदर किए जा सकते हैं? फिलहाल आपकी जानकारी के लिए मैं सिर्फ और सिर्फ, केवल और केवल, चौकीदार हूं-चौकीदार, चौकीदार, चौकीदार।
वह चौकीदार, जिसे राहुल गांधी कहते हैं- चौकीदार चोर है!
हां, हूं तो वही मगर यह बात मैं अपनी जुबान से नहीं कह सकता! इसलिए मैंने सारे चोरों को चौकीदार की दीक्षा दे दी है। मेरी पार्टी के एक नेता ने मुझे 'ठग' भी कहा है- गुजरात का ठग। वैसे उस बेचारे ने भी गलत नहीं कहा मगर यह पार्टी अनुशासन के विरुद्ध है, इसलिए उस पर कार्रवाई की गई है। सच बोलना वैसे भी हमारी अपनी वाली चौकीदार-संस्कृति में अपराध है।
अच्छा आप जैसे चौकीदारों का काम क्या है?
सुना होगा आपने कि चौकीदार का काम है, चोर से कहना कि तू चोरी कर और चौकीदार के भरोसे सोने वालों से कहना कि जागते रहो। वही मेरी ड्यूटी है, मेरा कर्तव्य है।
अच्छा सच्चे हृदय से आप किसके चौकीदार हैं? ऐसा चौकीदार जो चोर से चोरी करने के लिए तो कहता है मगर दिनभर के थके हारे नींद में बेखबर सो रहे लोगों से जागते रहने के लिए नहीं कहता?
आप सच सुनना चाहते हैं? तो सुनिए। देखिए चौकीदार की जरूरत गरीब को तो होती नहीं, जिनको होती है, उनका चौकीदार मैं हूं और सच्चे-पवित्र हृदय से हूं। अधिक स्पष्ट शब्दों में सुनना चाहें तो मैं अडानी-अंबानी, नीरव मोदी, मेहुल भाई, विजय माल्या आदि का वफादार चौकीदार हूं। अमित शाह और आनंदीबेन पटेल जैसे मित्रों-सहयोगियों का भी विश्वस्त चौकीदार हूं। वैसे जुबान से गरीबों का हूं, लेकिन आप जानते हैं कि जुबान चलाने में गांठ का कुछ नहीं जाता लेकिन अपनी और अपनों की आमदनी तगड़ी हो जाती है। जैसे जुबान से मैंने हर हिंदुस्तानी को करीब पांच साल पहले ही पंद्रह -पंद्रह लाख रुपये दे दिए थे। अच्छे दिन भी ला के उनके सामने धर दिए थे। है कोई माई का लाल, जो इससे इनकार कर सके? मुझमें यह क्वालिटी है कि मेरी जुबान की पहुंच दिल तक नहीं है और दिल की पहुंच, जुबान तक नहीं है। इन दोनों डिपार्टमेंटों का आपस में मैंने कोई संबंध नहीं होने दिया है। ये मुझे पैरेलल सर्विस प्रोवाइड करते हैं। यही मेरी सफलता का असली राज है।
आंकड़े बताते हैं कि आपकी चौकीदारी में बेरोजगारी, गरीबी बेहद बढ़ी है, दलितों और मुसलमानों पर अत्याचार बढ़े हैं। उन्हें जलाने- मारने की घटनाएं इतनी अधिक हुई हैं कि सारे विश्व में आपने भारत का नाम रोशन कर दिया है।
इस सराहना के लिए आपका धन्यवाद। वैसे मैंने आंकड़ों के उत्पादन के सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में कई कारखाने और फैक्ट्रियां खुलवा रखी हैंं, उनमें श्रेष्ठ किस्म का उत्पादन होता है। उसके उत्पादित आंकड़े यह नहीं बताते मगर थोड़ी देर के लिए मान लो, आपकी बात सही है तो चौकीदार का काम चौकीदारी करना है- बेरोजगारी दूर करना, दलितों-मुसलमानों पर अत्याचार रोकना नहीं है। खेद है कि आपको इतनी सी बात मालूम नहीं। आखिर चौकीदार भी मनुष्य है। उसके कंधे पर आप इतना बोझ नहीं डाल सकते। और यह भी बता दूं कि मैं कोई ढाई हजार रुपये वेतन पर काम करनेवाला चौकीदार नहीं हूं, जिसे चार-चार महीने तक तनख्वाह नहीं मिलती, जो इसके लिए धरने -प्रदर्शन पर बैठता है और पुलिस के डंडे खाता है, हाथ-पांव तुड़वाता है। मैं अलग प्रजाति का चौकीदार हूं। मेरे कंधों पर मेरे मालिक स्वेच्छा से अधिक बोझ नहीं डालते हैं बल्कि मुझे ही कहना पड़ता है कि मालिक मेरे कंधे मजबूत हैं और बोझ डालो। वे मेरा निवेदन ठुकराते नहीं। मेरे मालिक कृपालु भजमन टाइप हैं।
अच्छा आखिरी सवाल, चौकीदार जब चोर हो जाता है तो उसे क्या कहते हैं?
मुस्कुराते हुए- उसे नरेंद्र मोदी के अलावा और क्या कह सकते हैं !
कुछ अलग सा मगर सचमुच का आखिरी सवाल, आपको सबसे अधिक क्या पसंद है?
अपने भाषण का एक-एक शब्द, अपने चेहरे के एक-एक भाव, हर विज्ञापन में अपना ही फोटो और दस लाख का वह सूट भी, जो हाय अब मेरा नहीं रहा।
इतना कहकर चौकीदार जी ने अपनी पीठ थपथपाई और साथ ही खुजाई भी। एक पंथ दो काज की कहावत सोदाहरण चरितार्थ करने के उपरांत उन्होंने मुझे विदा दी।
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