मीडिया और सत्ता के लिए बदल गई है विकास की परिभाषा, ये जो देश है, एक अजूबा है!

मीडिया और सत्ता के लिए विकास की परिभाषा ही बदल गयी है। देश में लोग गर्मी और बाढ़ से मर रहे हैं और सत्ता के साथ ही मीडिया विकास का राग अलापने लगती है। हवाई अड्डों की हिस्से रोज गिर रहे हैं और सत्ता हमें हवा में उड़ते विकास को दिखा रही है।

फोटो: सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

संसद में नेता प्रतिपक्ष, राहुल गाँधी, ने जब बीजेपी के हिंदुत्व को वास्तविक हिंदुत्व के ठीक विपरीत और हिंसक बताया था तब प्रधानमंत्री समेत तमाम मंत्री छाती पीट-पीट कर विलाप कर रहे थे, इस बयान को देश के सभी हिन्दुओं के खिलाफ बता रहे थे। सोशल मीडिया पर तो आजतक यही सिलसिला चल रहा है। राहुल गांधी के बयान वाले दिन गृह मंत्री अमित शाह संसद में भारतीय न्याय संहिता की खूबियां बता रहे थे और अपनी ही पीठ थपथपा रहे थे। उन्होंने कहा कि अब दंड नहीं न्याय मिलेगा। प्रधानमंत्री जी राज्य सभा में जीरो टॉलरेंस अगेंस्ट करप्शन की बात कर रहे थे। 

ठीक इसी दिन हाथरस में सूरजपाल यानि तथाकथित भोले बाबा के प्रवचन में आये 120 से अधिक लोगों की मृत्यु ने राहुल गांधी के दावे को सही और प्रधानमंत्री समेत सत्ता के सभी दावों को खोखला साबित कर दिया। नरेंद्र मोदी की सरकार इसी वैचारिक खोखलापन को विकास बताती है। कल्पना कीजिये, सूरजपाल के बदले कोई मुस्लिम नाम होता तो फिर क्या होता? योगी जी का बुलडोज़र तमाम ठिकानों पर चल रहा होता और दरबारी मीडिया तालियाँ बजा-बजा कर लाइव टेलीकास्ट कर रहे होते। पर, सूरजपाल उर्फ़ भोले बाबा के हिन्दू नाम का चमत्कार देखिये, बीजेपी सरकार की पुलिस ने उनका नाम एफआईआर तक में शामिल नहीं किया और जाहिर है योगी जी के बुलडोज़र में जंग लग गया है। तमाम हिंदी फिल्मों में पुलिस वालों की फूहड़ता दिखाई जाती है, पर मीडिया की तस्वीरों में जो पुलिस की तस्वीरें आ रही हैं, वे फिल्मों से भी कई गुना अधिक फूहड़ नजर आ रही हैं। सूरजपाल के किसी राजसी आश्रम के बाहर एक गाड़ी में पुलिस वाले आश्रम के गेट के बाहर बैठे है, ऊंघ रहे हैं, आश्रम के भीतर तक नहीं जा रहे हैं। यही भारतीय न्याय संहिता और बीजेपी के हिंदुत्व का असली चरित्र है। हिन्दू होने के कारण ही पुलिस और प्रशासन ने भी आनन-फानन में स्वीकृति दी होगी।  

संसद में राहुल गाँधी के हिंदुत्व वाले बयान के बाद बीजेपी के किसी सांसद ने कहा था कि 1990 में अयोध्या में पुलिस द्वारा तथाकथित कारसेवकों पर गोली चलाना क्या था? पुलिस के इस हमले में पुलिस के अनुसार 17, बाद में मुलायम सिंह यादव के एक बयान में 28 और अटल बिहारी बाजपाई के अनुसार 56 लोग मारे गए थे। सवाल यह है कि अयोध्या में लोग मारे गए थे और हाथरस में भी इससे कई गुना अधिक लोग मारे गए– फिर अयोध्या के घटना ही क्यों आरएसएस और बीजेपी की नजर में वीभत्स है, यह बीजेपी के हिंदुत्व का उदाहरण है। प्रधानमंत्री जी का भ्रष्टाचार भी अजीब है, क्या ऐसे आयोजनों में प्रशासन और राज्य की लापरवाही और लचर रवैया और घटना के बाद एफआईआर लिखने और जांच में लीपापोती भ्रष्टाचार नहीं है? पश्चिम बंगाल या विपक्ष शासित किसी भी राज्य में एक भी बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या होती है तब तो प्रधानमंत्री जी और उनके मंत्री बयानों की झड़ी लगा देते हैं, पर इस घटना में दुःख प्रगट करने के अलावा कुछ नहीं है।  

दरअसल बीजेपी ने देश को दो हिस्सों में बाँट दिया है– बीजेपी शासित (मणिपुर छोड़कर) और गैर-बीजेपी शासित। दोनों हिस्सों में नियम क़ानून, पुलिस का रवैया और प्रशासन का ढांचा बिलकुल अलग हो गया है। अमित शाह का दंड और न्याय भी केवल गैर-बीजेपी राज्यों में सिमट गया है। हाथरस में तमाम हंगामे के बाद भी असली दोषियों को कभी दंड नहीं मिलेगा, और जो मर गए उन्हें न्याय तो मिलना ही नहीं है। यही मोदी जी का अमृत काल है, और यही विकास है। 


मोदी जी को पुरुष क्रिकेट टीम की कामयाबी नजर आती है, उसके लिए समय भी रहता है, पर दूसरे खेलों और महिला क्रिकेट टीम द्वारा विश्व रिकॉर्ड स्थापित करने के बाद भी बधाई के लिए समय नहीं मिलता। आखिर जय शाह का कुछ तो करिश्मा है। सर्वोच्च न्यायालय ने हाल में मणिपुर सरकार से कहा है की न्यायालय उनपर भरोसा नहीं करती। इसे हास्यास्पद ही कहा जाएगा की ठीक उसी दिन प्रधानमंत्री मणिपुर में स्थिति सामान्य होने का दावा कर रहे थे और मणिपुर में अराजकता के लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहरा रहे थे। यही मोदी जी का तथाकथित विकास है। 

बचपन से हम पढ़ते आये हैं कि पहले चुनाव होते हैं, फिर सबसे बड़े दल के या गठबंधन के जीते उम्मीदवारों की बैठक होती है और एक नेता चुना जाता है। अब तो एक नेता प्रधानमंत्री बन कर और दूसरे नेता मंत्री बनकर ही चुनाव प्रचार करते हैं, सामाजिक ध्रुवीकरण करते हैं, चुनाव लड़ते हैं। और प्रधानमंत्री और मंत्री ही बने रहते हैं। इस तरीके से देखें तो शायद ऐसा पहली बार हो रहा होगा कि एक आदमी के प्रधानमंत्री या मंत्री पद पर कोई विराम ही नहीं लगा। चुनावों के बाद जब नतीजे आते हैं तब वे केवल नतीजे ही होते हैं और संसद में शपथ लेने के बाद ही तकनीकी तौर पर सांसद का पद मिलता है। सांसद की शपथ लिए बिना प्रधानमंत्री या मंत्रियों ने अपने पदों की शपथ भव्य जलसे में ले ली और अपने कार्यालयों में जाकर विकास को नए सिरे से गढ़ना शुरू कर दिया। यह ठीक वैसा ही है, जैसे आप किसी प्रतियोगी परीक्षा के महज रिजल्ट के आधार पर कार्यालय में बिना ज्वाइन किये ही फाइलें देखने लगें। पर, अब तो संसद में शपथ लिए बिना ही प्रधानमंत्री और मंत्री अपने-अपने कार्यालयों में पहुँच जाते हैं और फाइलें देखने लगते हैं, विकास की नदियाँ बहने लगती हैं और मीडिया दिनभर बताता है कि प्रधानमंत्री ने पहली फ़ाइल किसान सम्मान निधि की क्लियर की है। मीडिया के लिए किसानों की गरीबी ही किसानों का विकास है क्योंकि महज 500 रुपये महीने की सम्मान निधि 9 करोड़ से अधिक किसानों को देना ही मीडिया और सत्ता को छोड़कर शेष सभी को किसानों की दयनीय स्थिति दर्शाता है। 

मीडिया और सत्ता के लिए विकास की परिभाषा ही बदल गयी है। देश में लोग गर्मी और बाढ़ से मर रहे हैं और सत्ता के साथ ही मीडिया विकास का राग अलापने लगती है। हवाई अड्डों की हिस्से रोज गिर रहे हैं और सत्ता हमें हवा में उड़ते विकास को दिखा रही है। हरेक परीक्षा के पेपर बाजार में बिक रहे है और सरकार इसे तकनीक का विकास बता रही है। अयोध्या में सड़कें गड्ढों में तबदील हो रही हैं और मंदिर में पानी टपक रहा है पर यह विकास भगवान का आशीर्वाद बताया जा रहा है। आतंकवाद कश्मीर से चलकर जम्मू तक पहुँच गया है और हमें विकास दिखाया जा रहा है। आदिवासियों को नक्सलियों के नाम पर मारा जा रहा है और प्राकृतिक संपदा पूंजीपतियों के हवाले की जा रही है। विकास तो अब इतना भारी हो गया है कि बिहार में नदियों पर बने पुल इसके बोझ से नदियों में ही समाते जा रहे हैं। विकास तो संसद में भी दीखता है, लोकसभा अध्यक्ष जय संविधान पर आपत्ति उठाते हैं और जय हिन्दू राष्ट्र पर अपनी कुटिल मुस्कान बिखेरते हैं।  

विकास ऐसा है कि बेदर्दी से देश-भर में सत्ता की छत्रछाया में पेड़ काटे जा रहे हैं और प्रधानमंत्री जी माँ के नाम पर वृक्ष लगाने की और धरती माँ को संरक्षित करने का प्रवचन दे रहे हैं। नदियों से अब पानी गायब हो गया है, केवल विकास बह रहा है। हिमालय से बर्फ का आवरण गायब हो गया है, विकास का आवरण पड़ा है। चारों तरफ विकास का साम्राज्य है। जहां-जहां आपने पहले पेड़ देखे थे, पर अब वीरान है वहीं विकास है। बहती नदियाँ जो अब रेत की चादर में लिपटीं हैं वही विकास है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा बड़े तामझाम से उद्घाटन किये गए एक्सप्रेसवे पर आप जो गड्ढ़े और दरारें देख रहे हैं वही विकास है, रोज दरकते पहाड़ तो विकसित भारत में विकास की पराकाष्ठा हैं।  


विकास आपको देखना है तो अरबपतियों की संपत्ति देखिये, जो पूरे देश की संपत्ति से भी अधिक है। विकास तो किसानों का भी हुआ है, पर पता नहीं क्यों हम लोगों को दिखता नहीं। इस बार संसद में जीतकर पहुंचे सांसदों में से लगभग 37 प्रतिशत सांसदों ने अपना व्यवसाय कृषि बताया है, और नव-निर्वाचित सांसदों की औसत संपत्ति 46.34 करोड़ रुपये है। जाहिर है, कम से कम आंकड़ों में तो किसान समृद्ध हुए ही हैं, यह अलग बात है कि एक भी सांसद किसान जैसा नजर नहीं आता। संसद में विकास का आलम यह है की वर्ष 2009 में महज 58 प्रतिशत सांसद करोड़पति थे, वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी की आंधी में करोड़पति सांसदों की संख्या 82 प्रतिशत तक पहुँच गयी। इसके बाद नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़े जाने लगे – वर्ष 2019 की संसद में 88 प्रतिशत सदस्य करोड़पति थे, जबकि 2024 में यह आंकड़ा 93 प्रतिशत तक पहुँच गया। 

जब आप बेरोजगारी की बात करेंगे, सरकार विकास की बात करेगी; महंगाई में भी विकास है; 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज में भी विकास है, बाढ़ और गर्मी से मरते लोगों में भी विकास है। दरअसल लोग विकास पचा नहीं पा रहे हैं और मरते जा रहे हैं। विकास और समृद्धि की पराकाष्ठा के दौर के अमृतकाल के हम साक्षी हैं। यदि आप को विकास नजर नहीं आता तो निश्चित ही आप देशद्रोही हैं, भारत को बदनाम करना चाहते हैं, माओवादी और नक्सली हैं। अब तो गारंटियों में भी विकास ही विकास है। देश का भ्रष्टाचार ही विकास है और इस विकास में न्याय की उम्मीद करना ही बेईमानी है। 

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