कांग्रेस सरकार के वो फैसले, जिन्होंने देश में दलित समाज को बराबरी का हक दिलाने में निभाई बड़ी भूमिका

वर्ष 1953 में ही भूमिहीन दलित समाज को जमीन में आरक्षण देकर प्रत्येक गांव में अलग से हरिजन आबादी की व्यवस्था सुनिश्चित की गई। यह अभियान भारतीय समाज में अपने आप में एक क्रांतिकारी और ऐतिहासिक कदम था।

फोटो: सोशल मीडिया
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केशव चन्द यादव

भारत के अंदर दलितों की पीड़ा से जुड़ी कहानियां किसी से छिपी नहीं हैं। समय-समय पर तमाम समाज सुधारकों ने उनके अधिकार और न्याय हेतु कार्य किया, जिससे उन्हें जगाने में सफलता मिली। आइए उस सफर के कुछ छोटे हिस्से पर बात करते हैं जो कहीं चर्चा में तो नहीं हैं, लेकिन उन कार्यों ने दलित समाज को बहुत कुछ दिया जो दुनियां के कई मुल्कों में लोकतंत्र आने और खूनी क्रांति के बाद भी वहां के हाशिए के समाज को नहीं उपलब्ध हो पाया। भारत का दलित समाज जीवन के हर क्षेत्र में काफी पिछड़ा था। वर्ष 1948- 1949 में कांग्रेस सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विकास के लिए हरिजन कल्याण बोर्ड की स्थापना करके इन जातियों के उत्थान हेतु गंभीरता से कार्य शुरू किए। शिक्षा से इन्हें जोड़ने के लिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए छात्रवृत्ति योजना की शुरुआत की गई। साथ ही इस समाज के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने की व्यवस्था लागू की ताकि वो पढ़ लिख सकें और समाज की मुख्य धारा में जुड़ सकें।

आजाद भारत में कांग्रेस की सरकार पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कार्य करना शुरू किया। पद संभालने के बाद भारत के सपने को साकार करने के लिए पंडित नेहरू चल पड़े। भारत का संविधान सन 1950 में अधिनियमित हुआ, जिसके बाद सरकार ने देश में निवास कर रहे दलित समाज जो कि अशिक्षा, भुखमरी, आवास विहीन, गरीबी, बेरोजगारी, पानी, भोजन, छुआछूत, गैर बराबरी जैसे अनेकों समस्याओं से जूझ रहे था, उसके लिए कार्य करना शुरू किया। इन तमाम जिंदा सवालों को कांग्रेस ने चुनौती के रूप में लिया और उस पर योजनाबद्ध तरीके से नीतियां बनाईं और उन योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए पूरी ताकत से कार्य प्रारंभ किया। संवैधानिक अधिकार के तहत गैर बराबरी खत्म करने हेतु कानून का सख्ती से पालन करना शुरू किया तो आर्थिक विकास के लिए रोजगार अनुदान योजना के तहत स्वीकृत धनराशि में 50 फीसदी अनुदान दिया। विवाह अधिनियम 1953 के तहत बेटियों की शादी के लिए शादी अनुदान योजना की शुरुआत की गई।


वर्ष 1953 में ही भूमिहीन दलित समाज को जमीन में आरक्षण देकर प्रत्येक गांव में अलग से हरिजन आबादी की व्यवस्था सुनिश्चित की गई। यह अभियान भारतीय समाज में अपने आप में एक क्रांतिकारी और ऐतिहासिक कदम था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे पूरी ताकत के साथ देश में लागू करवाया, जिसका नतीजा यह निकला कि प्रत्येक गांव में राजस्व विभाग द्वारा की जा रही चकबंदी के समय ही दलित आरक्षण के तहत हरिजन आबादी के लिए जमीन अलग से आरक्षित की जाने लगी। उन्हें घर बनाने के लिए पट्टे दिए जाने लगे। इससे भी आगे बढ़कर इंदिरा गांधी ने ऐसी व्यवस्था बनाई, जहां पर बचत की जमीनें नहीं थी, वहां पर सरकारी पैसे से जमीनें खरीद कर या ये कहें कि जमीन का पैसा अदा कर जमीन दलित समाज को पट्टे पर हमेशा के लिए आवंटित की गई। इस निर्णय के खिलाफ तमाम राजवाड़े, सामंती और जमीनदार इंदिरा गांधी के खिलाफ हो गए और आंदोलन छेड़ दिया, लेकिन दलित समाज को उनका हक देने के लिए इंदिरा गांधी प्रतिबद्ध रहीं। प्राथमिकता के तहत दलित बस्तियों में रास्तों का निर्माण, पीने के पानी के लिए इण्डिया मार्का हैंड पंप विशेष दर्जा देकर पहले प्रत्येक गांव के दलित बस्ती में लगवाए गए, आंगनवाड़ी में दलित बच्चों को प्राथमिकता दी गई। आवासीय तथा कृषि पट्टे मिलने से दलित समाज भी धीरे-धीरे कृषि से जुड़ने लगा।

शिक्षा, कृषि, पानी, रास्ते, छोटे मोटे रोजगार और आवासीय पट्टे के बाद भी पैसे के अभाव में वो अपना घर नही बनवा पा रहे थे। इसको देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इंदिरा आवास योजना लाकर उनकी जिंदगी में बहुत बड़ी खुशियों की सौगात दी और इस योजना के तहत उनके आवास भी बनने लगे। बड़े पैमाने पर उनको आवास बनवाकर आवंटित किए गए। रोजगार हेतु दलित समाज के लिए दुकानें बनाकर सरकार ने उनको निःशुल्क उपलब्ध कराई। खेतों में पानी की व्यवस्था के लिए पंपिंग सेट मशीनों में दलित समाज को खरीदने पर छूट दी गई।


वर्ष 2004 से 2014 के बीच वन अधिकार अधिनियम, मनरेगा, मध्यान्ह भोजन योजना, शिक्षा का अधिकार, हर छोटी बस्ती तक आंगनवाड़ी की व्यवस्था, प्रत्येक टोले मजरे को बिजली से जोड़ना, अंत्योदय, अन्नपूर्णा और हर गरीब परिवार को 35 किलो राशन, वृद्धा, विधवा, 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए पेंशन योजना, ये सब योजनाएं दलित समाज के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए हैं। हालांकि अभी बहुत से कार्य करने की जरूरत है। आप गौर से अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि बिना किसी खूनी क्रांति और श्वेत क्रांति के माध्यम से कांग्रेस ने देश तथा उसके उपेक्षित समाजों को उनका हक और अधिकार उपलब्ध कराएं हैं जोकि अपने आप में एक क्रांतिकारी कदम रहा है। रास्ते कठिन थे, लेकिन चलने वालों ने उसे चलने लायक बना दिया पर अफसोस की बात यह है कि आज की सरकारें उन तमाम योजनाओं को या तो बंद कर रही हैं या निष्प्रभावी कर रही हैं। दलित और गरीब के नाम पर राजनीति करने वाली पार्टियां कांग्रेस द्वारा दिए गए पट्टे तक नहीं बांट पाईं। आज भी गावों में राजस्व विभाग चकबंदी कर रहा है, लेकिन दलित वंचित समाज के लिए कहीं कोई व्यवस्था नहीं है। कांग्रेस पार्टी आज भी महात्मा गांधी और बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के बताए रास्तों पर चलने के लिए प्रतिबद्ध है, तथा दलित और वंचित समाज के हक और अधिकार के लिए कृतसंकल्पित होकर कार्य कर रही है। ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर कांग्रेस को चलना आता है। गैर बराबरी, असमानता और अन्याय के खिलाफ बराबरी, समानता और न्याय के लिए आज फिर राहुल गांधी चल रहे हैं।

(लेखक केशव चन्द यादव भारतीय युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हैं)

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