भविष्य में बढ़ेंगे बाढ़ के खतरे, कुशल जल प्रबंधन इस समस्या को बना सकता है पानी की कमी से निपटने का मौका
ग्लोबल वार्मिंग के कारण औसत तापमान बढ़ेगा और इस कारण बारिश अधिक होगी। भविष्य में अधिक बारिश वाले क्षेत्रों में 1.5 से 2 प्रतिशत तक अधिक बारिश होगी और शुष्क क्षेत्रों में 2 प्रतिशत से अधिक बारिश होगी। बारिश अधिक होने पर जाहिर है नदियों में पानी अधिक बहेगा।
जर्नल ऑफ हाइड्रोलॉजी: रीजनल स्टडीज नाम के जर्नल के अगस्त अंक में प्रकाशित एक लेख के अनुसार आने वाले वर्षों में भारत समेत सभी दक्षिणी एशियाई देशों में पहले से अधिक वर्षा होगी और नदियों में अधिक पानी बहेगा। ऑस्ट्रेलिया के कम्युनिकेशंस साइंस एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च आर्गेनाइजेशन के वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन किया है। इनका आधार संयुक्त राष्ट्र संघ के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की पांचवी असेसमेंट रिपोर्ट है। अध्ययन दल के एक सदस्य होन्गजिंग झेंग के अनुसार इस क्षेत्र में नदियों के वर्ष 1976 से 2005 के बीच के औसत बहाव की तुलना में वर्ष 2046 से 2075 के बीच पानी के बहाव में 20 से 30 प्रतिशत तक की वृद्धि हो जायेगी। भविष्य में अधिक बारिश वाले क्षेत्रों में 1.5 से 2 प्रतिशत तक अधिक बारिश होगी और शुष्क क्षेत्रों में 2 प्रतिशत से अधिक बारिश होगी।
दक्षिण एशिया में अनेक बड़ी नदियां हैं। इस अध्ययन के अनुसार इस क्षेत्र में 54 बड़ी नदियां और इनकी सैकड़ों सहायक नदियां हैं। सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र सभी चीन के तिब्बत क्षेत्र से उत्पन्न होती हैं। सिन्धु नदी का क्षेत्र चीन, अफगानिस्तान, भारत और पाकिस्तान तक फैला है। ब्रह्मपुत्र और गंगा का क्षेत्र बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत और नेपाल में स्थित है।
सिन्धु, तिब्बत के पठार और अराकान के सागर तटीय क्षेत्रों में नदियों में पानी के बहाव में 10 प्रतिशत से अधिक बढ़ोत्तरी होने का अनुमान है। अध्ययन के अनुसार गंगा, ब्रह्मपुत्र, दक्कन का पठार और पूर्वी और पश्चिमी घाट के क्षेत्रों की नदियों में वर्तमान की तुलना में 15 प्रतिशत से अधिक पानी बहेगा। नर्मदा, तापी और श्रीलंका की नदियों में पानी की मात्रा 20 प्रतिशत से अधिक बढ़ जायेगी।
इस अध्ययन के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस क्षेत्र का औसत तापमान बढ़ेगा और इस कारण बारिश अधिक होगी। बारिश अधिक होने पर जाहिर है नदियों में पानी अधिक बहेगा। वर्ष 2046 से 2075 के बीच वर्त्तमान की तुलना में औसत तापमान में 2.9 से 4 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने की संभावना है। देश के उत्तरी क्षेत्रों में सर्दियों के तापमान में वृद्धि होगी और गर्मी वर्त्तमान से अधिक प्रचंड होंगी। रात का औसत तापमान भी बढ़ेगा।
यदि भविष्य में पानी का ठीक प्रबंधन किया जाए तब शायद पानी की कमी भी दूर हो सकती है। कुछ महीने पहले ही नीति आयोग में देश में पानी की कमी पर आंकड़े पेश किये थे। इसके अनुसार देश में पानी की कमी भयानक स्तर तक पहुंच चुकी है। वर्ष 2030 तक पानी की मांग दुगुनी हो जायेगी। वर्त्तमान में प्रति वर्ष लगभग 2 लाख असमय मौतें केवल साफ़ पानी के अभाव में होती हैं। यह स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। अनुमान है कि अगले तीन वर्षों में देश के 21 प्रमुख शहरों में भू-जल उपलब्ध नहीं होगा।
हालात ऐसे ही रहे तब वर्ष 2050 तक देश को पानी की कमी के कारण सकल घरेलू उत्पाद में 6 प्रतिशत से अधिक का नुकसान उठाना पड़ेगा। हमारा देश वर्त्तमान में भी पानी की कमी वाले देशों में शुमार है। पिछले दशक के दौरान देश में प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता में 15 प्रतिशत की कमी आयी है।
काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट सेंटर के वैज्ञानिक अरुण श्रेष्ठ ने उपरोक्त अध्ययन पर आश्चर्य करते हुए कहा, “अब तक सभी अध्ययन भविष्य में नदियों में कम पानी बहाने की बात करते थे, पर नए अध्ययन ने क्लाइमेट चेंज के मोडल और उपग्रहों के चित्रों से साबित कर दिया गया है कि नदियों में पानी की मात्रा बढ़ेगी और यह इस पूरे क्षेत्र के लिए अच्छी खबर है।
अरुण श्रेष्ठ के अनुसार जब नदियों में पानी की मात्रा बढ़ेगी तब इसका उचित प्रबंधन आवश्यक होगा। उचित प्रबंधन से सामाजिक-आर्थिक विकास होगा और गरीबी कम होगी क्योंकि अधिकतर आबादी कृषि से जुड़ी है। पर, यदि पानी के प्रबंधन पर ध्यान नहीं दिया गया, तब बाढ़ का स्वरूप और विकराल हो जाएगा, जमीन का कटाव बढे़गा, जल-भराव की समस्या होगी और अंत में सूखे की संभावना बढ़ेगी। अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि भविष्य में बाढ़ की चेतावनी जारी करने के अच्छे तंत्र की जरूरत होगी और बाढ़ से प्रभावित नहीं होने वाली फसलों को बढ़ावा देना होगा। विकास भी ऐसे करना होगा जिससे जलभराव नहीं हो और बाढ़ से जान-माल का नुकसान नहीं हो।
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