समाचार नहीं बल्कि तमाशा दिखा रहा देश का मीडिया, मानवाधिकार बस एक अर्थहीन शब्द
हमारा मीडिया जिस कांग्रेस में भाषण के दौरान सांसदों के खड़े होने और तालियाँ बजाने की गिनती कर रहा था, उसी कांग्रेस के 75 सांसदों ने राष्ट्रपति जो बाईडेन से आग्रह किया था कि वे बातचीत के दौरान भारत में मानवाधिकार का मुद्दा सीधा उठाएं।
हमारे देश का मीडिया समाचार नहीं बताता बल्कि तमाशा दिखाता है। प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा इसका ताजातरीन नमूना है। मीडिया का आलम यह है कि लगातार बताया जा रहा था कि अमेरिकी कांग्रेस में मोदी जी के भाषण के दौरान कितने बार सांसद खड़े हुए और कितने बार तालियां बजाईं। काश हमारा मेनस्ट्रीम मीडिया देश की गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी के आंकड़े भी कभी प्रस्तुत करता और अल्पसंख्यकों पर खुले आम सत्ता समर्थित हमलों की विवेचना करता। हमारा मीडिया जिस कांग्रेस में भाषण के दौरान सांसदों के खड़े होने और तालियाँ बजाने की गिनती कर रहा था, उसी कांग्रेस के 75 सांसदों ने, जिसमें बर्नी सैंडर्स और एलिज़ाबेथ वारेन शामिल हैं, ने एक खुले पत्र के माध्यम से राष्ट्रपति जो बाईडेन से आग्रह किया था कि वे बातचीत के दौरान भारत में मानवाधिकार का मुद्दा सीधा उठायें, जिसमें भारत में प्रजातंत्र और मानवाधिकार हनन के साथ ही सिविल सोसाइटी और मीडिया पर सरकारी प्रहार शामिल हो।
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी जो बाईडेन से आग्रह किया था कि वे भारत में अल्पसंख्यकों पर लगातार होते अत्याचार का मुद्दा प्रधानमंत्री मोदी के साथ होने वाली वार्ता में उठायें। पर, जो बाईडेन ने ऐसा कुछ नहीं किया, मानवाधिकार और प्रजातंत्र उनके लिए एक मजाक से अधिक कुछ नहीं है क्योंकि जो बाईडेन का गृह विभाग साल-दर-साल भारत में अल्पसंख्यकों पर प्रहार और मानवाधिकार हनन पर रिपोर्ट प्रकाशित कर रहा है। इस बीच अमेरिकी कांग्रेस के अनेक सांसदों ने, जिसमें प्रगतिशील विचारों वाले डेमोक्रेट सांसद शामिल हैं, प्रधानमंत्री मोदी के भाषण का बहिष्कार किया> डेमोक्रेट अलेक्सैन्द्रा ओकासियो कोर्तेज़ ने भाषण के बहिष्कार का आह्वान करते हुए ट्वीट किया था – जो समाज में बहुलता, सहिष्णुता और प्रेस की आजादी का समर्थन करते हैं, उन्हें इस भाषण का बहिष्कार करना चाहिए और मानवाधिकार का हनन करने वाले किसी भी व्यक्ति को ऐसा सम्मान नहीं देना चाहिए। डेमोक्रेट इल्हन ओमर ने भी बहिष्कार का आह्वान करते हुए ट्वीट किया था – यह शर्मनाक है कि मोदी को देश की राजधानी में भाषण के लिए प्लेटफोर्म दिया गया है। अनेक मानवाधिकार संगठनों के अनुसार अमेरिकी संसद के दोनों सदनों को संबोधित करने का मौका देना किसी भी वैश्विक नेता के लिए सबसे बड़ा सम्मान है, पर प्रधानमंत्री मोदी ऐसे सम्मान के हकदार नहीं हैं। कुछ मानवाधिकार संगठन “मोदी, आपका स्वागत नहीं है” और “भारत को हिन्दू राष्ट्र होने से बचाओं” जैसे बैनर लेकर विरोध प्रदर्शन में उतरे। एमनेस्टी इन्टरनेशनल ने कुछ दिनों पहले ही अमेरिकी सांसदों के लिए गुजरात दंगों पर बनी बीबीसी की डाक्यूमेंट्री का प्रदर्शन किया था। वर्ष 2019 में तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने प्रधानमंत्री मोदी के स्वागत के लिए हाउडी मोदी नामक कार्यक्रम का टेक्सास में आयोजन किया था, इसी की तर्ज पर मोदी दौरे के समय न्यूयॉर्क में कुछ मानवाधिकार संगठन हाउडी डेमोक्रेसी नाम कार्यक्रम का आयोजन कर भारत में प्रजातंत्र की ह्त्या पर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया।
प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे के समय न्यूयॉर्क के ट्रक चालकों ने भी मोदी की अमेरिका यात्रा का विरोध अपने अंदाज में किया। इन ट्रक चालकों ने अपने ट्रक पर डिजिटल पोस्टरों के माध्यम से विरोध दर्शाया। एक पोस्टर में जो बाईडेन को याद दिलाया गया था कि 2005 से 2015 तक प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका प्रवेश पर पाबंदी धार्मिक आजादी की अवहेलना के कारण लगाई गयी थी, और ऐसे पाबंदी झेलने वाले मोदी दुनिया के एकलौते इंसान हैं। एक दूसरे पोस्टर में मोदी जी को क्राइम मिनिस्टर ऑफ़ इंडिया बताया गया था। एक अन्य पोस्टर में प्रधानमंत्री मोदी से पूछा गया था कि छात्र नेता उम्र खालिद बिना किसी मुकदमे के 1000 से ज्यादा दिनों से जेल में क्यों बंद है।
अमेरिका और यूरोप कभी पूरी दुनिया के लिए प्रजातंत्र की मिसाल थे, पर अब सब कुछ बदल गया है। अब ये देश वैश्विक राजनीति में ध्रुवीकरण और पूंजीवाद के लिए जाने जाते हैं – और यही इनके प्रजातंत्र और मानवाधिकार की परिभाषा तय करता है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाईडेन ने बड़े तामझाम से अपने कार्यकाल की शुरुआत प्रजातंत्र पर वैश्विक सम्मलेन आयोजित कर की थी, पर उसके बाद उनकी प्राथमिकताएं बदल गईं और प्रजातंत्र बहुत पीछे छूट गया। हाल में ही उन्होंने चीन के राष्ट्रपति को तानाशाह कहा था, पर एक दूसरे तानाशाह के स्वागत में रेड कारपेट बिछा कर बता दिया कि उनके लिए मानवाधिकार हनन की परिभाषा अपनी सुविधा से बदल जाती है। अमेरिकी राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री की मुलाक़ात के दौरान हथियारों की खरीद-फरोख्त और व्यापार पर बातचीत होती रही, पर यह पहले ही स्पष्ट किया जा चुका था कि मानवाधिकार के मसले पर और भारत में प्रजातंत्र की अर्थी पर कोई बात नहीं होगी।
अमेरिका यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी की सबसे अधिक चर्चा हथियारों की खरीद से संबंधित रही – इसमें परम्परागत हथियारों के साथ सोशल मीडिया प्लेटफोर्म ट्विटर – भी शामिल है। सोशल मीडिया इन दौर में अपनी जनता से युद्ध के लिए सबसे घातक और सफल हथियार है। यह महज संयोग नहीं हो सकता है कि ट्विटर के कोफाउंडर और पूर्व सीईओ ने हाल में ही भारत सरकार पर अपने विरोधियों के ट्वीट हटाने और अकाउंट को ब्लोक कराने के गंभीर आरोप लगाए थे। ट्विटर शुरू से ही निरंकुश सत्ता, मानवाधिकार हनन, हिंसा, झूठ, सामाजिक ध्रुवीकरण और नफरती राजनीति को बढ़ावा देता रहा है – जाहिर है यही बीजेपी का राजनैतिक आधार भी है। आजकल तो सरकार भी फाइलों पर नहीं बल्कि ट्विटर से चलती है। ट्विटर के मालिक एलोन मस्क विशुद्ध तौर पर पूंजीवादी हैं। मीडिया खबरों के अनुसार मस्क ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाक़ात के दौरान टेस्ला के भारत में कारोबार पर बात की। यदि टेस्ला का कारोबार भारत में जल्दी बढ़ता है, तब जाहिर है ट्विटर का रुख बीजेपी की तरफ ही और तेजी से बढ़ेगा। बीजेपी के झूठ और फरेब को ट्विटर बढ़ावा देगा और सत्ता के विरोधियों के ट्वीट ब्लाक कर दिए जाएंगे। पूंजीवादी एलोन मस्क को अपनी पूंजी बढाने से मतलब है, और हमारे देश की सत्ता को समाज में नफरत और घृणा फैलाने से। प्रधानमंत्री मोदी की सत्ता में भारत प्रेस फ्रीडम इंडेक्स, ह्यूमन राइट्स इंडेक्स, इम्पुनिटी इंडेक्स, जेंडर इक्वलिटी इंडेक्स, हंगर इंडेक्स और पर्यावरण इंडेक्स जैसे मानवाधिकार से जुड़े इंडेक्स में पिछड़ता जा रहा है। हमारा देश इन्टरनेट बंदी का विश्वगुरु है। प्रजातंत्र से जुड़ा कोई भी इंडेक्स भारत के लोकतंत्र को जीवंत नहीं बताता है। पिछले कुछ दिनों से तमाम देश में पोस्टरों और वक्तव्यों के माध्यम से हमारे प्रधानमंत्री जी देश को, मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी, साबित कर रहे हैं। इसी बीच में इसी मदर के कुछ बच्चे बीबीसी को कोस रहे हैं और कुछ न्यूयॉर्क टाइम्स को झूठ का पुलिंदा और भारत के नहीं बल्कि मोदी जी के विरुद्ध साजिश बता रहे हैं। इसी मदर के बच्चे राहुल गाँधी के हर वक्तव्य को देश का अपमान करार देते हैं। इस फ़ौज के लिए अब भारत जो कुछ है वह मोदी जी में सिमट गया है।
इन सबके बीच स्वीडन की संस्था, वी-डेम (वेरायटीज ऑफ़ डेमोक्रेसी) ने डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2023 प्रकाशित किया है, जिसमें कुल 179 देशों के लिबरल डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत 97वें स्थान पर चुनावी प्रजातंत्र इंडेक्स में 108वें स्थान पर है। पिछले वर्ष के इंडेक्स में भारत का स्थान 100वां था। तंज़ानिया, बोलीविया, मेक्सिको, सिंगापुर और नाइजीरिया जैसे घोषित निरंकुश सत्ता वाले देश भी इस इंडेक्स में भारत से पहले के स्थानों पर हैं, यानि उनमें प्रजातंत्र की स्थिति भारत से बेहतर है। यही नहीं भारत को चुनावी निरंकुशता वाले देशों में शामिल किया गया है। यहाँ यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि इससे पहले फ्रीडम हाउस ने भारत को आंशिक स्वतंत्र देशों की सूचि में और इंस्टिट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस ने तेजी से पीछे जाते हुए प्रजातंत्र वाले देशों में शामिल किया था। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 वर्षों के दौरान दुनिया में प्रजातंत्र को निरंकुश सत्ता में बदलने वाले देशों में भारत सबसे आगे है। एमनेस्टी की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार भारत में अल्पसंख्यकों की मांगों को उठाते आंदोलनों को सत्ता और मीडिया देश के लिए ख़तरा बताती है और उन्हें इसके अनुरूप ही सजा भी दी जाती है। विरोध की हरेक आवाज को दबाने के लिए आतंकवादियों के लिए बनाये गए कानूनों का व्यापक दुरुपयोग किया जाता है। निष्पक्ष पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को खामोश करने के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी के साथ ही अवैध तरीके से उनकी निगरानी की जाती है।
आदिवासियों और दलित जैसे हाशिये पर खड़े समुदायों के विरुद्ध हिंसा और भेदभाव देश में सामान्य है। इस रिपोर्ट में जिन विषयों का विस्तार से वर्णन है, वे हैं – अभिव्यक्ति और विरोध की आजादी, गैर-कानूनी हिरासत, गैरकानूनी हमले और हत्याएं, सुरक्षा बलों का अत्यधिक उपयोग, धार्मिक आजादी, भेदभाव और असमानता, आदिवासियों के अधिकार, जम्मू और कश्मीर, निजता का अधिकार, महिलाओं का अधिकार, जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में विफलता और पर्यावरण विनाश। प्रजातंत्र को पूरी तरह से कुचल कर एक निरंकुश सत्ता स्थापित करने वाले का राजकीय स्वागत कर अमेरिका ने मानवाधिकार और प्रजातंत्र की नई परिभाषा गढ़ दी है। अमेरिका को लगता है कि भारत के बलबूते वह चीन को आगे बढ़ने से रोक सकता है और भारत को लगता है कि अमेरिका के ख़्वाब दिखाकर अगले चनावों को आसानी से जीता जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी भारत वापस आते ही एक तरफ तो आत्मनिर्भर भारत और वेदों में ज्ञान-विज्ञान पर प्रवचन देंगें और दूसरी तरफ अमेरिका से हथियारों और प्रोद्योगिकी की खरीद की नुमाइश करेंगें – मीडिया और जनता तालियाँ बजाएगी, जैसे मदारी के खेल में बजाती है।
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