देश के लिए आने वाला समय कांग्रेस पर निर्भर, बुजुर्ग पार्टी को नए कलेवर में ढलना ही होगा
‘इंडिया’ को अपने मेनू को केवल 5 या 6 प्रमुख मुद्दों (300 बिंदु वाले घोषणापत्र नहीं) तक सीमित करना होगा और फिर उन पर सर्वसम्मति तैयार करनी होगी। वोटर के सामने बुफे में ढेर सारे पकवान रखने की जगह उसकी टेबल पर चुनिंदा स्वादिष्ट पकवान की ही पेशकश करनी होगी।
माहौल न तो ‘इंडिया’ गठबंधन के पक्ष में दिख रहा है और न ही कांग्रेस के। मौजूदा रुझान और लोगों के हाव-भाव बता रहे हैं कि 2024 उनके लिए मुश्किल है। वैसे भी, अगर 2024 में उम्मीदें परवान नहीं चढ़ सकीं तो उसके बाद का वक्त तो उनके लिए और भी बुरा होगा। दिक्कत यह है कि ‘इंडिया’ हर मामले पर उठ खड़ा हो रहा है जिसकी वजह से वह किसी भी एक मामले में कोई छाप नहीं छोड़ पा रहा है। किसी के लिए भी अपनी खास पहचान और अपील बनाए रखते हुए हर मतदाता की झोली में सबकुछ डाल देना संभव नहीं।
बीजेपी ने इसे बार-बार साबित किया है: सही हो या गलत, कि वह किसी ऐसी चीज के लिए खड़ी है जो उसे बाकी समूहों से अलग करती है- राष्ट्रवाद, बहुसंख्यकवाद, सत्तावादी शासन, हिन्दुत्व का नंगा नाच, हर चीज को इकरंगा बनाने की कोशिश। ऐसे में मतदाता के मन में भ्रम नहीं रहता कि उसे क्या मिलेगा। वह जानता है कि जो दिख रहा है, वही मिलने जा रहा है। दूसरी ओर, इंडिया गठबंधन क्या दे रहा है- अधपका खाना या जूठन। लोग क्या चुनेंगे?
‘इंडिया’ को अपने मेनू को केवल पांच या छह प्रमुख मुद्दों (300 बिंदु वाले घोषणापत्र नहीं) तक सीमित करना होगा और फिर उन पर सर्वसम्मति तैयार करनी होगी। वोटर के सामने बुफे में ढेर सारे पकवान रखने की जगह उसकी टेबल पर चुनिंदा स्वादिष्ट पकवान की ही पेशकश करनी होगी। बेहतर हो, बीजेपी के बहुसंख्यकवाद जैसे ‘विजयी मेनू’ का डटकर मुकाबला करें और बार-बार इसकी कमियों, असंवैधानिक आधारों, नागरिक विरोधी निहितार्थों, गैरजिम्मेदाराना प्रकृति और ये किस तरह बेरोजगारी, महंगाई और असमानता की खाई को और भी चौड़ा करने वाले हैं, इसे लोगों के सामने रखें। आपत्तिजनक संबोधनों, खैरात बांटने वाली नीति, अडानी और अंबानी, विफल विदेश नीति, प्रतिस्पर्धात्मक हिन्दुत्व की हारी हुई रणनीति को छोड़ दें। मोदी ने जिस नए भारत को गढ़ दिया है, उसमें पुरानी बोतल हो या नई, उसमें पुरानी शिकायत काम नहीं आने वाली।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि गठबंधन 400 निर्वाचन क्षेत्रों में बीजेपी के खिलाफ संयुक्त उम्मीदवार खड़ा करने में सक्षम है या नहीं। तथ्य यह है कि कांग्रेस का उत्तर में लगभग 200 संसदीय सीटों पर ऐतिहासिक रूप से हमेशा बीजेपी से सीधा मुकाबला रहा है। 2019 में इसने उनमें से 95% सीट खो दिए। ये सीटें ही हैं जो 2024 का भाग्य तय करेंगी। अगर कांग्रेस उनमें से 40%, यानी लगभग 80 सीट भी जीत ले, तो यह बीजेपी की किस्मत के दरवाजे को बंद कर पाएगी। इन सीटों पर कांग्रेस को काम करना है, गठबंधन को नहीं और बाकी सीटों को क्षेत्रीय दलों पर छोड़ दें। दक्षिण में तो चिंता की कोई बात ही नहीं है, वह बीजेपी के लिए हारी हुई बाजी है।
वोटरों की दुनिया इकरंगी नहीं, कई घटक हैं
महिलाएं, युवा, व्यवसायी, किसान, शिक्षक, सरकारी कर्मचारी। कांग्रेस और ‘इंडिया’ को उनमें से हर के लिए खास तौर पर अलग अभियान/उत्पाद तैयार करना होगा और फिर उन्हें लक्षित तरीके से बेचना होगा, जैसे कि बीजेपी अपने जहरीले कैप्सूल के साथ सफलतापूर्वक ऐसा करती है। इस मामले में अब तक उपेक्षित पहली बार के मतदाता की खास अहमियत है जिनकी भागीदारी मतदाताओं में 10% से 14% के बीच है और वे किसी भी सीट पर जीत हासिल करने के लिए काफी है। इस वर्ग के वोटरों के सामने तमाम मुद्दे हैं- बेरोजगारी, परीक्षा पत्र का लीक हो जाना, सरकारी भर्तियों में बड़े पैमाने पर कटौती, पाठ्यक्रम के साथ छेड़छाड़, किसी भी प्रकार के विरोध पर रोक- इन्हें पुरजोर तरीके से उठाने की जरूरत है। ऐसे ही एनडीए सरकार ने किसानों के साथ जैसा सलूक किया, उसके बाद भी किसानों के वोट अपने पक्ष में नहीं कर पाना विपक्ष की बहुत बड़ी कमजोरी रही। यही बात महिलाओं, छोटे व्यवसायों/एमएसएमई के साथ भी है जिन्हें इस शासन के तहत सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है।
ईवीएम का मुद्दा अपने आप में एक गंभीर समस्या है जिसे चुनाव आयोग स्वीकार नहीं करेगा और सुप्रीम कोर्ट भी इसका समाधान नहीं करेगा; अब इस पर नई रणनीति अपनाने की जरूरत है। एक उपाय यह है कि ‘इंडिया’ शासित राज्य यह घोषणा करें कि वे अब से पंचायत और शहरी स्थानीय निकाय चुनाव वीवीपैट मॉडल पर करेंगे, यानी वोटर को ईवीएम से निकली स्लिप दी जाएगी जो वे ड्रॉप बॉक्स में डाल देंगे। नतीजे इन वीवीपैट पर्चियों की भौतिक गिनती के आधार पर घोषित किए जाएंगे, न कि ईवीएम में दर्ज गिनती के आधार पर।
यह हाल ही में इंडिया गठबंधन द्वारा पारित प्रस्ताव के अनुरूप भी होगा। इससे यह भी दिखेगा कि विपक्ष जो कहता है, उसपर चलने का भी इरादा रखता है, वह पारदर्शिता में भरोसा करता है और मतदाता के यह जानने के अधिकार का सम्मान करता है कि उसका वोट कैसे डाला गया, कैसे दर्ज किया गया और कैसे गिना गया। इससे अन्य राज्यों में भी इसी तरह की प्रथा अपनाने की सार्वजनिक मांग पैदा हो सकती है और यहां तक कि सोते हुए चुनाव आयोग को भी नींद से जगाया जा सकता है।
अंत में एक बात, आप पर्दे के पीछे हजार रणनीति बना लें, ट्विटर/फेसबुक पर जितने भी झंडे गाड़ दें लेकिन इससे जमीनी स्तर पर हुए नुकसान की भरपाई नहीं कर सकते। बीजेपी अपने जमीनी कार्यकर्ताओं की वजह से जीतती है जबकि कांग्रेस इसलिए लगातार हार रही है कि उसके पास ‘नेताओं’ की तो फौज है लेकिन जमीन पर काम करने वाले नहीं हैं। उम्मीद थी कि भारत जोड़ो यात्रा इस कमी को दूर कर देगी लेकिन ऐसा नहीं हो सका। भारत न्याय यात्रा में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। 2024 कैसा रहेगा, यह विशुद्ध रूप से कांग्रेस पर निर्भर करता है। अन्य पार्टियां अपना मैदान संभाल लेंगी, इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है। बुजुर्ग पार्टी को बदलाव का कारक बनना होगा; अगर वह खुद को बदलते समय के साथ नहीं ढाल सकती तो उसे मिट जाना होगा। यही प्रकृति का नियम है और राजनीति का भी।
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