अडानी प्रकरण में सबसे बड़ा सवाल- आखिर कौन पकड़ेगा SEBI के कान!

पता चला है कि सेबी की सूची में जिन लोगों के नाम का जिक्र है, वे इन एफपीआई के अंतिम लाभार्थी मालिक या असल फंड मैनेजर नहीं हैं। ये सब बिचौलियों द्वारा नियुक्त प्रॉक्सी थे जो बेनाम निवेशकों को अपारदर्शी कंपनियों, फंडों के जरिये अपना धन छिपाने में मदद करते थे।

फोटोः विपिन
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रवि नायर

हिंडनबर्ग की जिस रिपोर्ट ने अडानी समूह के शेयरों को जमीन सुंघा दी, उसमें भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) पर भी तल्ख टिप्पणियां की गई हैं। हिंडनबर्ग ने इसमें कहा है कि ‘ऐसा लगता है कि सेबी की दोषियों को सजा देने की जगह उन्हें बचाने में ज्यादा दिलचस्पी है।’

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट 24 जनवरी, 2023 को आई थी और अब तक सेबी का मौन टूटा नहीं है। इसने आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को यह कहने को मजबूर कर दिया कि हैरानी की बात है कि सेबी को इसमें ऐसी क्या दिक्कत पेश आ रही है? न्यूयॉर्क स्थित गिनती के कर्मचारियों वाला हिंडनबर्ग रिसर्च अगर ऐसे तथ्य निकाल सकता है जिसका अब तक खंडन नहीं किया जा सका है, तो भारतीय नियामक को तो उससे कहीं ज्यादा जानकारी निकालने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए थी। प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया से बातचीत में राजन ने कहा, ‘क्या सेबी को जांच एजेंसियों की मदद की दरकार है?’

भारतीय पत्रकार और सांसद सवाल उठा रहे हैं कि आखिर क्यों सेबी मॉरीशस की उन फंड कंपनियों की कुंडली नहीं निकाल सका है जिन्होंने सिर्फ, और सिर्फ अडानी समूह के शेयरों में निवेश किया? आखिर क्यों सेबी को नहीं दिखा कि अडानी समूह कथित तौर पर उसके इस दिशानिर्देश का उल्लंघन कर रहा है कि एक सूचीबद्ध कंपनी के लिए 25 फीसद शेयर आम लोगों के लिए रखना जरूरी है? हकीकत यह है कि उसके केवल 2-3 फीसद शेयर ही आम लोगों के लिए हैं। हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट ने बताया कि किस तरह संदिग्ध शेल कंपनियों और भारत में सूचीबद्ध अडानी समूह की कंपनियों के बीच संदिग्ध लेनदेन हुआ, इन शेल कंपनियों ने समूह की कंपनियों में मोटा निवेश किया और समूह की कंपनियों पर भारी-भरकम कर्ज है। इसका नतीजा यह हुआ कि इस रिपोर्ट के बाद शेयर बाजार में कत्लेआम मच गया।

सेबी के दिशानिर्देश (प्रतिभूति बाजार से संबंधित धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार प्रथाओं का निषेध) विनियम, 2003, अध्याय 1 के खंड (सी) में कहा गया है: ‘धोखाधड़ी’ में वैसा कोई भी कार्य, बताई गई या छिपाई गई जानकारी शामिल है- बेशक यह करने का तरीका धोखाधड़ी भरा हो या नहीं- जिससे प्रतिभूति में सौदा करने के लिए अपने एजेंट या किसी अन्य व्यक्ति को प्रेरित किया गया हो…’ । (सी) (9) में कहा गया है, ‘प्रतिभूति जारी करने वाले के किसी कार्य से कोई गलत सूचना प्रसारित होती है जिससे प्रतिभूति का बाजार मूल्य प्रभावित होता है और जिसके परिणामस्वरूप निवेशक गुमराह हो जाता है ...’


सेबी के दिशा-निर्देशों के अनुसार, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को अंतिम लाभकारी मालिकों (यूबीओ) और वरिष्ठ प्रबंधन अधिकारियों के नाम नियामक को देना जरूरी है। लेकिन सेबी द्वारा उपलब्ध कराई गई और केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री द्वारा साझा की गई सूची से पता चलता है कि अडानी समूह की कंपनियों में अपना ज्यादा पैसा लगाने वाले कुछ विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) यूबीओ की पहचान छिपाने के लिए प्रॉक्सी का उपयोग कर रहे थे।

तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने अडानी समूह में निवेश किए गए एफपीआई के अंतिम लाभकारी मालिकों की जानकारी मांगी तो केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने 19 जुलाई, 2021 को जवाब में किसी पूर्व निवेश बैंकर से राजनेता बने व्यक्ति की बात की। महुआ ने यह भी पूछा था कि क्या इस एफपीआई, अडानी समूह की कंपनियां और विशेष रूप से मॉन्टेरोसा समूह और इससे संबंधित लोग (एलेस्टेयर गुगेनबुहल-इवेंस, एरिक विडमर, मार्टिंडे क्वेवेन, फ्लोरियन लिनर) भारतीय प्रवर्तन एजेंसियों की किसी जांच का सामना कर रहे हैं? तो मंत्री ने इसके जवाब में कहा कि सेबी और डायरेक्टरेट एंड रेवेन्यू इंटेलिजेंस (डीआरआई) कुछ ऐसे एफपीआई की जांच कर रहे हैं जिन्होंने केवल अडानी समूह में निवेश किया है। जवाब में यह भी बताया गया कि आयकर विभाग द्वारा किसी भी जांच विवरण का खुलासा आयकर अधिनियम, 1961 के तहत निषिद्ध है और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) आरोपों की जांच नहीं कर रहा।

मंत्री के जवाब में सेबी से प्राप्त 84 पन्नों का अनुलग्नक शामिल था और इसमें उन एफपीआई के नामों का जिक्र था जिन्होंने अडानी समूह की छह सूचीबद्ध कंपनियों (अडानी टोटल गैस, अडानी पावर, अडानी पोर्ट्स और विशेष आर्थिक क्षेत्र, अडानी एंटरप्राइजेज, अडानी ग्रीन एनर्जी और अडानी ट्रांसमिशन) में निवेश किया था। इसके अलावा कागजात में अंतिम लाभकारी मालिक या अंतिम लाभकारी मालिक की जानकारी न होने की स्थिति में फंड के वरिष्ठ अधिकारी के नाम की पहचान नहीं की गई थी।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों, नामित डिपॉजिटरी प्रतिभागी और योग्य विदेशी निवेशक के लिए सेबी का दिशानिर्देश कहता है कि ‘लाभार्थी स्वामी (बीओ) वे प्राकृतिक व्यक्ति हैं जो अंततः एफपीआई के मालिक हैं या उसे नियंत्रित करते हैं और जिन्हें धन-शोधन निवारण (अभिलेख रखरखाव) नियम, 2005 के नियम 9 के अनुसार पहचाना जाना चाहिए ...’। दिशानिर्देशों में इस बात का भी जिक्र है कि ‘अगर कंपनियों/ट्रस्टों का प्रतिनिधित्व वकील/एकाउंटेंट जैसे सेवा प्रदाता कर रहे हों तो एफपीआई उन कंपनियों/ट्रस्टों के वास्तविक मालिकों/प्रभावी नियंत्रकों की जानकारी उपलब्ध कराए। यदि बीओ मतदान अधिकार, समझौते, किसी अन्य व्यवस्था जैसे माध्यमों से नियंत्रण करता है, तो उसके बारे में भी बताया जाना चाहिए। यह स्पष्ट किया जाता है कि बीओ किसी अन्य व्यक्ति का नॉमिनी नहीं हो सकता और वास्तविक बीओ की पहचान की जानी चाहिए।’


क्या सेबी एफपीआई के मामले में अपने ही दिशानिर्देशों का पालन कर रहा है? क्या अडानी समूह के मामले में सेबी ने अपने नियमों का पालन किया? नियामक के रुख से पता चलता है कि या तो उसने परवाह नहीं की या उसने एफपीआई को केवल अडानी समूह में निवेश करने के मामले में बिल्कुल खुली छूट दे दी।

स्वतंत्र जांच से पता चला है कि सेबी की सूची में जिन लोगों के नामों का जिक्र है, वे इन एफपीआई के अंतिम लाभार्थी मालिक या वास्तविक फंड मैनेजर नहीं हैं। ये सभी बिचौलियों द्वारा नियुक्त प्रॉक्सी थे जो गुमनाम निवेशकों को अपारदर्शी कंपनियों और फंडों के माध्यम से अपना धन छिपाने में मदद करते थे। उनमें से कई मनी लॉन्ड्रिंग और टैक्स चोरी के लिए कुख्यात टैक्स हैवन्स से अपारदर्शी फंड से जुड़े पाए गए हैं।

यह मानना मुश्किल है कि सेबी को इन तथ्यों की जानकारी नहीं थी। जुलाई, 2021 में वित्त राज्यमंत्री ने संसद को बताया था कि सेबी पहले से ही इन एफपीआई से जुड़े मामले की जांच कर रहा है और डीआरआई अडानी समूह के कुछ लेनदेन से संबंधित एक और जांच कर रहा है। सेबी के एक सूत्र ने इस रिपोर्टर के साथ बातचीत में दावा किया कि क्षेत्राधिकार के कारण नियामक की जांच रुक गई क्योंकि ये सभी फंड मॉरीशस या कुछ अन्य टैक्स हैवन में स्थित थे। सूत्र ने यह भी बताया कि उन टैक्स हेवन ने विवरण साझा करने से इनकार कर दिया या फिर सेबी को कोई जवाब नहीं दिया अगर यह सच है, तो क्या सेबी निदेशक मंडल ने केन्द्रीय वित्त मंत्रालय और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय को इसके बारे में जानकारी दी? डीआरआई की जांच का क्या हुआ? सरकार ने पहले जांच में तेजी क्यों नहीं लाई?

मई, 2022 में इस तरह की खबरें आईं कि होल्सिम से एसीसी और अंबुजा सीमेंट के अधिग्रहण में शामिल 17 विदेशी कंपनियों के मामले में सेबी ने अडानी समूह से जवाब तलब किया है। हर तरफ से यही जानकारी मिल रही है कि नियामक अब भी समूह की ओर से दिए गए जवाब की जांच ही कर रहा है। सेबी को जांच में इतना समय क्यों लग रहा है?


‘द हिंदू बिजनेसलाइन’ ने प्रकाशित किया है कि सितंबर और अक्तूबर, 2022 में चार सप्ताह के दौरान गौतम अडानी दो बार सेबी मुख्यालय गए और उन्होंने वहां अधिकारियों, निदेशकों और सेबी अध्यक्ष माधवी पुरी से मुलाकात की। अगर सेबी पहले से ही अडानी समूह, उसकी अपतटीय संस्थाओं और उनके लेनदेन के साथ-साथ समूह में मोटा पैसा लगाने वाले एफपीआई के खिलाफ उठाए गए मुद्दों की जांच कर रहा था, तो क्या सेबी के अध्यक्ष और निदेशकों का गौतम अडानी से मिलना सही था? इन बैठकों में क्या बात हुई? क्या सरकार को भी इसके बारे में पता है? इन सवालों का जवाब सेबी या सरकार देगी, इसकी तो संभावना है नहीं। यही वजह है कि अडानी समूह के खिलाफ विभिन्न आरोपों की जांच एक संयुक्त संसदीय समिति से कराने की जरूरत महसूस हो रही है।

हालांकि, अडानी समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वकील ने हाल ही में अडानी समूह के स्वामित्व वाले समाचार चैनल एनडीटीवी को बताया कि सरकार पर जेपीसी बनाने के लिए दबाव डालना मोदी सरकार (और प्रधानमंत्री) की छवि को धूमिल करने का प्रयास है।

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