विष्णु नागर का व्यंग्यः हत्यारों की पूजा किए जाने वाले युग में लाने के लिए मोदी जी का शुक्रिया!
मोदी जी को गोडसे वाला लड्डू प्रिय है, मगर गांधीजी वाला लड्डू भी खाते हुए कम से कम फोटो में जरूर दीखते हैं क्योंकि गांधीजी का सिक्का अभी इतना भी खोटा नहीं हुआ है कि बाजार में गोलवलकर का सिक्का चल सके।
मोदी जी को क्या इसके लिए धन्यवाद दें कि वह हमें ऐसे युग में ले आए हैं, जहां हत्यारे पूजे जा रहे हैं। चाहे वह नाथूराम गोडसे हो या शंभुलाल रैगर। यह एकदम नया युग है, आजादी के बाद का एकदम नया युग! अंबेडकर, महात्मा गांधी, भगत सिंह की परिकल्पना से बिल्कुल अलग युग। इसमें हत्यारों के मंदिर बन रहे हैं, उनकी झांकियां निकल रही हैं। मंदिर भी मोदी जी के भाई-बंधु बनवा रहे हैं और रैगर की झांकी भी वही निकलवा रहे हैं। एक ने गांधीजी की हत्या की थी, दूसरे ने बंगाल के गरीब मुस्लिम मजदूर की। एकतरफ मोदी जी, गांधीजी की मौखिक पूजा कर रहे हैं, दूसरी ओर हिंदूवादी भक्तों से नाथूराम गोडसे की पूजा करवा रहे हैं। वह समझते हैं कि उनके दोनों हाथों में लड्डू हैं। कभी वह एक लड्डू चखते हैं, कभी दूसरा। वैसे प्रिय तो उन्हें गोडसे वाला लड्डू है, मगर दवा की तरह गांधीजी वाला लड्डू भी खाते हुए कम से कम फोटो में तो दीखते हैं क्योंकि गांधीजी का सिक्का अभी इतना खोटा भी नहीं हुआ है कि गुरु गोलवलकर का सिक्का बाजार में चल सके!
उधर योगी जी और जितने भी भाजपाई-संघी मुख्यमंत्री देशभर में फैले हैं, अपराधियों और अपराधी घोषित होने वालों को दनादन रिहा करवा रहे हैं। सबकुछ एक संगति में हो रहा है। जो आज रिहा हो रहे हैं, क्या पता कल वे पूजे जाएं, उनके मंदिर बन जाएं , वे भी रैगर के हमशक्ल की तरह रामनवमी या हनुमान जयंती की झांकियों की शोभा बढ़ाएं? क्या पता रिहाई के बहाने उसी की आधारशिला रखी जा रही हो? अभी मस्जिद तोड़कर मंदिर बनाने की कोशिशें हो रही हैं, कल गांधीजी, नेहरू जी, मौलाना आजाद की मूर्तियां तोड़कर इनकी मूर्तियां स्थापित करवाने की कोशिशें हो सकती हैं और यह सिलसिला शुरू हो चुका है। जहां मूर्ति होगी, वहां भजन, कीर्तन, हवन, प्रवचन, भंडारा भी होगा! हो सकता है कल ये ही धनुष-बाण लिए, बांसुरी बजाते मंदिरों में दिखें और स्थानीय देवता का दर्जा पाएं! जो नया युग लाया जा रहा है, उसकी परिणति यही हो सकती है ! अगर आज बड़े-बड़े अपराधी बड़े-बड़े पदों पर आराम से पसरकर बैठ सकते हैं तो कल यह क्यों नहीं हो सकता? कल की आधारशिला आखिर आज ही तो रखी जाती है न!
फर्क यह हो सकता है कि टेक्नोलॉजी कल पिछड़ी थी, तो जो काम पहले पचास साल में होता था,आज पांच साल में हो जाए! यह भी तो 'टेक्नोलॉजिकल प्रोग्रेस' का ही सबूत हुआ न! टेक्नोलॉजी बढ़ती है तो कई दिशाओं में बढ़ती है। और मोदीजी को जितना प्रेम हिंदुत्व से है, उससे कम टेक्नोलॉजी से नहीं है! वह हिंदुत्व और टेक्नोलॉजी का संगम हैं, उनके आगे इलाहाबाद का संगम फेल है!
इस नये युग में भी इतनी गड़बड़ी जरूर कभी-कभी हो जाती है कि अमित शाह जी जैसे चतुर-सुजान और न जाने क्या किस्म के नेता भी गलती से सच बोल जाते हैं कि येदियुरप्पा सरकार देश की भ्रष्टतम सरकार है (थी), जो हम आपको पुन: उपलब्ध करवाने जा रहे हैं! इस बहाने जीवन का एकमात्र सच वह भी आखिर बोल ही गए! सबको एक दिन दुनिया से जाना होता है। कम से कम खाते में एक सच तो दर्ज हो, तो शाह साहब ने उसे दर्ज करवा लिया है। अब मोदीजी की बारी है! क्या पता एकाध बार मोदीजी भी ऐसी गलती कर जाएं और उन्हें भी 'पुण्य लाभ' मिल जाए! कहते हैं कि आशा पर आकाश टिका है। क्या पता वाकई टिका हो और एक दिन मोदीजी ही कह दें कि देश की भ्रष्टतम और अयोग्यतम सरकार मोदी सरकार थी! हालांकि मैं जानता हूं कि वह ऐसी गलती नहीं करेंगे और आप कहेंगे कि हे मूर्ख तूने आशा पर आकाश को कुछ ज्यादा ही टिका रखा है, जब ये खंभे गिरेंंगे तो तेरे ही सिर पर पूरा का पूरा आकाश गिर पड़ेगा! तब तुझे पता चलेगा कि आशा के खंभे कितने कमजोर होते हैं! उन पर ज्यादा वजन डाल दो तो डालनेवाले को ही वे सबसे पहले कुचल देते हैं।
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