राम पुनियानीः ‘भारत माता की जय’ मार्का राष्ट्रवाद, जिसमें भारत के करोड़ों लोगों की जगह नहीं

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने हाल में कहा कि राष्ट्रवाद की अवधारणा और भारत माता की जय के नारे का दुरूपयोग भारत में एक अतिवादी और भावनात्मक विचार को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है। राष्ट्रवाद की इस संकल्पना में भारत के करोड़ों नागरिकों की कोई जगह नहीं।

फोटोः सोशल मीडिया
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राम पुनियानी

समय के साथ, हमारी दुनिया में राष्ट्रीयता का अर्थ बदलता रहा है। राजनैतिक समीकरणों में बदलाव तो इसका कारण रहा ही है, लेकिन साथ ही विभिन्न राष्ट्रों ने समय-समय पर अपनी घरेलू नीतियों और पड़ोसी देशों के साथ अपने बदलते रिश्तों के संदर्भ में भी इस अवधारणा की पुनर्व्याख्या की हैं। राष्ट्रीयता की कई व्याख्याएं और अर्थ हैं, जिनमें अनेकानेक विविधताएं स्पष्टतः देखी जा सकती हैं।

भारत में भी पिछले कुछ वर्षों में राष्ट्रीयता की अवधारणा और उसके अर्थ में अनेक परिवर्तन आए हैं। हिन्दू राष्ट्रवादी बीजेपी के सत्ता में आने के बाद राष्ट्रीयता की परिभाषा एकदम बदल गई है- विशेषकर अल्पसंख्यकों, मानवाधिकार के लिए संघर्ष करने वालों और उदारवादियों के संदर्भ में।

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने हाल में कहा कि “राष्ट्रवाद की अवधारणा और भारत माता की जय के नारे का दुरूपयोग भारत के एक अतिवादी और भावनात्मक विचार को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है। राष्ट्रवाद की इस संकल्पना में भारत के करोड़ों नागरिकों के लिए कोई जगह नहीं है।”

पूर्व प्रधानमंत्री ने यह बात पुरुषोत्तम अग्रवाल और राधाकृष्ण द्वारा लिखित पुस्तक “हू इज भारत माता” के विमोचन के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में अपने संबोधन में कही। यह पुस्तक भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा समय-समय पर व्यक्त किए गए विचारों का संकलन है। इसमें कई जाने-माने व्यक्तियों द्वारा नेहरू की भूमिका और देश के निर्माण में उनके योगदान का आकलन करते हुए लेख भी शामिल हैं।

डॉ मनमोहन सिंह ने कहा, “नेहरू ने आधुनिक भारत के विश्वविद्यालयों और उच्च शैक्षणिक व सांस्कृतिक संस्थानों की नींव रखी। अगर स्वतंत्रता के तुरंत बाद देश को नेहरू का नेतृत्व नहीं मिला होता तो भारत आज वह नहीं होता जो वह है।” नेहरू के बारे में मनमोहन सिंह की यह टिप्पणी इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन दिनों नेहरू को बदनाम करने और उन पर कीचड़ उछालने का अभियान चल रहा है। देश की सभी समस्याओं के लिए नेहरू को दोषी ठहराया जा रहा है, राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका को कम करके आंका जा रहा है और सरदार वल्लभभाई पटेल को अपनी तरह से महिमामंडित कर उनके बरक्स खड़ा करने के प्रयास हो रहे हैं। मनमोहन सिंह ने सारगर्भित ढंग से हमें यह बताने का प्रयास किया कि नेहरू के लिए राष्ट्रवाद का क्या अर्थ था।


डॉ मनमोहन सिंह ने अपने संबोधन में बीजेपी और उसके साथी हिन्दू राष्ट्रवादियों के राष्ट्रवाद का खाका खींचा। मनमोहन सिंह के इस भाषण के तुरंत बाद बीजेपी और उसके साथी हिन्दू राष्ट्रवादियों ने पूर्व प्रधानमंत्री पर हल्ला बोल दिया। यह आरोप लगाया गया कि वे जेएनयू और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में चल रही राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का समर्थन और भारत-विरोधियों को प्रोत्साहित कर रहे हैं।

ये सवाल पूछा जा रहा है कि क्या वे शशि थरूर और मणिशंकर अय्यर जैसे नेताओं का समर्थन करते हैं जो शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को भड़का रहे हैं। उनसे यह भी पूछा गया कि क्या वे जेएनयू और जामिया में चल रहे ‘भारत-विरोधी प्रदर्शनों’ का समर्थन करते हैं। मनमोहन सिंह पर निशाना साधने वालों के अनुसार कांग्रेस का राष्ट्रवाद से कोई लेनादेना नहीं है। इस सिलसिले में पूर्व सिने कलाकार शत्रुघन सिन्हा को भी लपेटे में लिया जा रहा है। उन्हें इसलिए कटघरे में खड़ा किया जा रहा है क्योंकि उन्होंने हाल में पाकिस्तान की अपनी एक निजी यात्रा के दौरान वहां के राष्ट्रपति से मुलाकात की।

डॉ मनमोहन सिंह के खिलाफ जो कुछ कहा जा रहा है वह अत्यंत सतही और निराधार है। डॉ सिंह ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के मूलभूत मूल्यों के खिलाफ कुछ भी नहीं कहा है। ‘भारत माता की जय’ का नारा समाज के एक तबके को अस्वीकार्य हो सकता है, लेकिन डॉ सिंह ने जिस पुस्तक का विमोचन किया उसका शीर्षक ही ‘हू इज भारत माता’ था। डॉ सिंह जो कह रहे हैं, वह मात्र यह है कि इस नारे को तोड़-मरोड़कर उसका इस्तेमाल धार्मिक अल्पसंख्यकों को आतंकित करने के लिए किया जा रहा है।

भारतीय राष्ट्र के निर्माण की नींव कुछ मूल्यों पर रखी गई थी। बाद में यही मूल्य देश के संविधान का आधार बने। भारतीय संविधान में हिन्दू या मुस्लिम राष्ट्रवाद को तनिक भी स्थान नहीं दिया गया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जो कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम का महत्वपूर्ण हिस्सा थी, उसे हमारे संविधान में भी स्थान दिया गया। भारतीय संविधान देश की विविधता को स्वीकार्यता देता है और उसका सम्मान करता है। हिन्दू राष्ट्रवादियों की सोच के विपरीत, भारतीय संस्कृति किसी विशिष्ट धर्म की संस्कृति नहीं है। हमारा संविधान भारत की सांस्कृतिक विविधता को मान्यता देता है और हम पड़ोसी देशों से सौहार्दपूर्ण संबंध रखने में विश्वास करते हैं।


जेनएनयू, एएमयू और जामिया मिल्लिया इस्लामिया जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं का दानवीकरण किया जा रहा है। इन संस्थाओं की विशेषता यह है कि वहां हमेशा से बहस-मुबाहिसों और विचार-विनिमय को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता रहा है और यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि असहमति ही प्रजातंत्र की आत्मा है। इन संस्थानों को बदनाम करने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। मीडिया का एक हिस्सा और विशेषकर कुछ टीवी चैनल पाकिस्तान के खिलाफ युद्धोन्माद भड़का रहे हैं।

ये चैनल और संस्थान दरअसल सत्ताधारियों के पिट्ठू हैं। वे पत्रकारिता के सभी स्थापित मानदंडों और सिद्धांतों के परखच्चे उड़ा रहे हैं। किसी भी व्यवस्था में मीडिया का यह मूल कर्तव्य है कि वह सरकार पर कड़ी नजर रखे और उसकी भूलों, कमियों और गलत नीतियों की ओर जनता का ध्यान आकृष्ट करे। यदि मीडिया ऐसा नहीं करेगा तो वह लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने का अपना अधिकार खो देगा।

पिछले छह वर्षों में देश में एक घुटन भरा वातावरण बना दिया गया है। देश के प्रधानमंत्री जब अपनी आधिकारिक यात्रा के दौरान पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के बिना पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ एक कप चाय पीने के लिए रूक जाते हैं तो उन्हें कोई कुछ नहीं कहता। परंतु अगर कोई कांग्रेस नेता हमारे पड़ोसी देश के प्रधानमंत्री से औपचारिक मुलाकात भी कर लेता है, तो उसे राष्ट्रद्रोही करार दे दिया जाता है। अगर विद्यार्थी संविधान की उद्देशिका का पाठ करते हुए जुलूस निकालते हैं तो वे भारत विरोधी हो जाते हैं, लेकिन जो लोग शाहीन बाग में या जामिया के बाहर पिस्तौल लहराते हैं, उन्हें देशभक्त का तमगा दिया जाता है।

असली राष्ट्रवाद वह है जो देश के नागरिकों में प्रेम और सौहार्द को बढ़ावा दे। असली राष्ट्रवाद वह है जो देश की प्रगति की राह प्रशस्त करे। इस समय जिस राष्ट्रवाद का बोलबाला है, वह हमारे देश के नागरिकों के बीच बंधुत्व के भाव को कमजोर कर रहा है।


पंडित नेहरू का कहना था कि हमारे देश के पहाड़, उसकी नदियां और उसकी जमीन भारत माता नहीं हैं। भारत माता इस देश के नागरिकों में बसती हैं। स्वाधीनता संग्राम के दौरान ही हमने यह तय कर लिया था कि हम न तो मुस्लिम राष्ट्रवाद को अपनाएंगे और ना ही हिन्दू राष्ट्रवाद को। हमारा आदर्श है भारतीय राष्ट्रवाद।

हमारा आदर्श है गांधी, नेहरू, पटेल और मौलाना आजाद का राष्ट्रवाद। वह राष्ट्रवाद जिसमें अल्पसंख्यकों को समान अधिकार प्राप्त होंगे और जिसमें उन्हें समाज के अन्य वर्गों के साथ बराबरी पर लाने के लिए सकारात्मक कदम उठाने से परहेज नहीं किया जाएगा। देश को बांटने वाले राष्ट्रवाद को हमें सिरे से खारिज करना होगा।

(अंग्रेजी से हिन्दी रुपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा)

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