खरी-खरी: सुप्रीम नेता के टूटते तिलिस्म और कुंद होती हिंदुत्व की धार से यूपी चुनावों में बीजेपी के उड़े होश
पांचों राज्यों में केवल हिन्दुत्व ही नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी का भी तिलिस्म टूटता दिखाई पड़ रहा है। हालांकि नतीजे तो 10 मार्च को आएंगे लेकिन अभी तक जो संकेत मिले हैं, वे यही हैं कि इन चुनावों में हिन्दुत्व एवं मोदी जी- दोनों की ही चमक फीकी पड़ी है।
अब तो ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ सुनामी चल रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं रूहेलखंड के दो चरणों में जिस प्रकार मतदाताओं ने खुलकर और पूरे जोश- खरोश के साथ बीजेपी प्रत्याशियों के खिलाफ वोट डाला, उससे यह आभास होता है कि प्रदेश में जनता बीजेपी सरकार को उखाड़ फेंकने का मन बना चुकी है। बीजेपी सहयोगियों का यह तर्क है कि पहले दो चरणों में जाट एवं मुस्लिम बहुल वोटर थे। इसलिए इन इलाकों में बीजेपी को नुकसान रहा। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। यह तर्क इसलिए गलत है कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 58 सीटों में से 53 सीटों पर विजय प्राप्त हुई थी जबकि दूसरे चरण में रूहेलखंड की 55 सीटों में से 38 में बीजेपी को जीत मिली थी। लेकिन इस बार इन दोनों क्षेत्रों में बीजेपी को गहरी क्षति हुई है। इसके अतिरिक्त पहले दो चरणों में जो बात दिखाई पड़ी, वह यह है कि कुछ नगरों जैसे बरेली में बीजेपी को लेकर ब्राह्मणों और वैश्यों में भी वोटिंग के प्रति उत्साह नहीं दिखाई पड़ा जो सन 2014 से बीजेपी के प्रति था।
इसके दो राजनीतिक अर्थ हैं। पहला तो यह कि योगी सरकार के प्रति प्रदेश के हर धार्मिक एवं सामाजिक तथा जातीय समूह में आक्रोश है और जनता सरकार बदलने का मन बना चुकी है। दूसरी, इससे भी गंभीर राजनीतिक बात यह है कि प्रदेश में हिन्दुत्व राजनीति धूमिल पड़ चुकी है। हिजाब उपद्रव जैसे हिन्दू-मुस्लिम विभाजन वाले मुद्दों का भी जनता पर अभी तक कोई गहरा प्रभाव नहीं है और वोटर धर्म के आधार पर नहीं, समस्याओं और मुद्दों या फिर जातीय हित के आधार पर वोट डाल रहा है। यह एक राजनीतिक अंगड़ाई है जो सन 2014 के चुनाव के बाद केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्किउन सभी राज्यों में दिखाई पड़ रही है जहां चुनाव हो रहे हैं।
जी हां, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर- इन पांचों राज्यों में केवल हिन्दुत्व ही नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी का भी तिलिस्म टूटता दिखाई पड़ रहा है। इस बात की पुष्टि तो दस मार्च को मतगणना के बाद होगी लेकिन अभी तक चुनावी राज्यों से जो संकेत मिले हैं, वे यही हैं कि इन चुनावों में हिन्दुत्व एवं मोदी जी- दोनों ही मुख्य मुद्दा नहीं हैं। पंजाब में मुस्लिम जनसंख्या नमक के बराबर होने के कारण वहां हिन्दुत्व कभी बड़ा मुद्दा नहीं रहा। पंजाब में मोदी जी के कृषि कानूनों से बीजेपी ही नहीं अपितु मोदी जी के प्रति आक्रोश की लहर है। उत्तर प्रदेश में भी बस नाम के लिए ही अब मोदी जी चुनाव प्रचार कर रहे हैं। उत्तराखंड से भी जो समाचार प्राप्त हुए, उससे भी यही प्रतीत होता है कि वहां भी चुनाव प्रदेश के मुद्दों पर ही रहा और मोदी जी के चुनावी प्रचार का कोई प्रभाव नहीं रहा। गोवा एवं मणिपुर की भी स्थिति कुछ ऐसी ही है।
कुल मिलाकर यह कि अभी तक पांच राज्यों के चुनाव से जो संकेत मिले हैं, वे यह हैं कि मोदी जी का वोटर पर से तिलिस्म टूटरहा है। सच तो यह है कि राज्य चुनावों में पहले भी मोदी जी बीजेपी के लिए ऐसा कोई चमत्कार नहीं कर सके जैसी कि मीडिया ने उनकी छवि बना रखी है। यह सच है कि सन 2017 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नोटबंदी के बावजूद मोदी जी ने हिन्दुत्व के आधार पर अपने दम पर बीजेपी को भारी बहुमत से जिताया था। लेकिन खुद उनके भारी प्रचार के बावजूद बीजेपी गोवा, पंजाब (अकालियों के साथ), मध्यप्रदेश, कर्नाटक एवं बंगाल जैसे प्रदेशों में चुनाव हारी।
यह बात अलग है कि गोवा, मध्यप्रदेश एवं कर्नाटक जैसे राज्यों में साम, दाम, दंड, भेद के आधार पर बीजेपी ने अपनी सरकार बना ली। स्पष्ट है कि मोदी जी की चुनावी विजेता वाली छवि उतनी प्रभावी नहीं रही है। बीजेपी के लिए चिंता का विषय यह है कि हिन्दुत्व गढ़ उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में भी मोदी जी का प्रभाव धूमिल पड़ रहा है।
आखिर क्या बात है कि हिन्दू हृदय सम्राट नरेंद्र मोदी स्वयं हिन्दुत्व के गढ़ उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में भी अभी तक बेअसर हैं। बात यह है कि हिन्दुत्व राजनीति की कलई अब खुलती जा रही है। भले ही संघ मुस्लिम नफरत का चश्मा पहनाकर मोदी के नेतृत्व में एक बड़ी हिन्दू जनसंख्या का वोट बीजेपी की ओर झुकाने में सफल हो गया हो लेकिन जमीनी स्थिति यह है कि हिन्दुत्व स्वयं हिन्दू विरोधी सिद्ध हुआ।
पिछले सात वर्षों में देश की आर्थिक तौर पर जो दुर्गति हुई, उसका सबसे अधिक खामियाजा स्वयं हिन्दूओं ने भुगता है। देश में बेरोजगारी का सैलाब बह निकला। स्वाभाविक है कि बेरोजगारी से हिन्दू युवा ही प्रभावित हुआ। लॉकडाउन एवं कोविड महामारी के कारण देश में करोड़ों छोटे एवं मध्यम धंधे बंद हो गए। इनमें भी कम-से-कम 90 प्रतिशत धंधे हिन्दुओं के ही थे। सच यह है कि सरकार कंगाल हो चुकी है और अब एयर इंडिया एवं एलआईसी जैसी देश की संपत्ति बेच-बेचकर काम चला रही है। आम जनता जिनमें अधिकांश हिन्दू हैं, वह आए दिन और गरीब होती जा रही है जबकि अडानी एवं अंबानी के मजे आ रहे हैं।
पांच राज्यों- पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गोवा एवं मणिपुर के चुनावी नतीजे अभी आने में समय है। परंतु यह स्पष्ट है कि देश का मूड बदल रहा है। चुनाव से जो संकेत मिले हैं उनसे यह स्पष्ट है कि देश में हिन्दुत्व राजनीति एवं हिन्दू हृदय सम्राट मोदी जी की छवि धूमिल पड़ती जा रही है। देश की जनता इन दोनों के खिलाफ खड़ी हो रही है। अब देखना यह है कि विपक्ष इस परिवर्तन का कितना फायदा उठाता है।
हिजाब तो बस एक बहाना है
उत्तर प्रदेश की चुनावी हवा से घबराए संघ परिवार ने अब अपनी पूरी ताकत हिजाब मामले में झोंक दी है। संघ एवं बीजेपी को भलीभांति समझ में आ चुका है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी हार की ओर बढ़ रही है। उसका कोई भी कार्ड काम नहीं आ रहा है। ऐसी स्थिति में घबराई हिन्दुत्व शक्तियां हिन्दू-मुस्लिम विभाजन की रणनीति पर पूरा जोर दे रही हैं। हिजाब तो बस एक बहाना है, मकसद हिन्दू-मुस्लिम को लड़ाना है। बात स्पष्ट है कि हिन्दू जनता की आंखों पर मुस्लिम नफरत का नशा चढ़ा रहे ताकि वह अपनी समस्याएं भूलकर बीजेपी को वोट देती रहे।
लेकिन अभी तक उत्तर प्रदेश का हिन्दू वोटर हिजाब के झांसे में नहीं आया है। यह एक खतरनाक रणनीति है। इससे बचने के लिए मुस्लिम समाज पर भी बड़ी जिम्मेदारी है। क्योंकि संघ की रणनीति यह है कि किसी प्रकार मुसलमान जज्बात में सड़कों पर निकले तो बस संघ हिन्दू प्रतिक्रिया उत्पन्न कर हिन्दू वोटर को बीजेपी के हित में मोड़ दे। मुस्लिम समाज को यह बात भलीभांति समझनी चाहिए एवं सब्र से काम लेना चाहिए। इस समय केवल संयम ही सबसे सफल रणनीति है और उसी से ही संघ की राजनीति को विफल बनाना चाहिए। जज्बात से काम नहीं चलेगा, अक्ल से ही काम बनेगा। और अक्ल का तकाजा यही है कि क्या हिजाब या कोई और मामला, मुसलमान चुप्पी साधे बैठा रहे।
हिजाब के मामले में लिबरल हिन्दू पर भी गहरी जिम्मेदारी है। उसको घर-घर जाकर वोटर को यह समझाना है कि वोटर हिन्दू-मुस्लिम विवाद से परे अपना वोट अपनी समस्याओं के आधार पर डाले। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह काम किसानों ने सड़कों पर पर्चे बांटकर एवं घर-घर जाकर किया। ऐसे ही दूसरे क्षेत्रों में सिविल सोसायटी को हिन्दू-मुस्लिम एकता बनाए रखने का काम करना चाहिए।
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