विष्णु नागर का व्यंग्यः सूरज का पूरब से निकलना बंद, लोकतंत्र में प्रधानमंत्री की बताई दिशा से ही निकलेगा!
प्रधानमंत्री ने कोई खंडन जारी नहीं किया, न करने दिया और सूरज को पश्चिम से ही निकलने दिया। वह इस लफड़े में भी नहीं पड़े कि आज से पूरब को पश्चिम और पश्चिम को पूरब कहा जाएगा, जबकि ऐसा वह एक अध्यादेश के जरिए कर सकते थे। सूरज की इस गुस्ताखी को भी उन्होंने इग्नोर मारा कि वह पहले की तरह पूरब से निकल रहा है!
हमारे देश की बात छोड़िए, वह तो निराला है। आज हम एक ऐसे देश की बात करते हैं, जिसके प्रधानमंत्री को यह तो याद था कि हां सूरज जैसा भी कुछ होता है, जो रोज निकलता और डूबता है, मगर उनका राजनीतिक करियर का ग्राफ इतना ऊंचा और ऊंचा उठता गया था कि उन्हें इस सबकी न कोई खबर रहती थी और न कोई परवाह थी। वह पुराना सबकुछ भूल चुके थे। उन्हें यह भी याद नहीं था कि सूरज जमीन से उगता है कि आकाश से। सूरज को जहां से निकलना हो, निकले, डूबना हो, डूबे, नहीं उगना-डूबना हो, न उगे-डूबे और भाड़ में जाना हो तो वहां चला जाए। हू केयर्स?
इसी तरह की सोच उनकी चांद के बारे में भी थी। ठंड, गर्मी और बरसात के बारे में भी। उनके अलावा किसी को भी भाड़ में जाना हो या गड्ढे में, तो जाए, पहाड़ से कूदना हो, कूदे, आत्महत्या करना हो, करे। सरकार इसमें बिना किसी भेदभाव के सबकी मदद करने को तैयार है। जीना हो तो जीये मगर एक शर्त पर कि फालतू की टें-टें न किया करे कि सरकार ने ये नहीं किया, वो नहीं किया, सरकार ऐसा क्यों करती है, वैसा क्यों नहीं करती है। सरकार को ये करना चाहिए, वो करना चाहिए!
लोग इतने अच्छे थे कि प्रधानमंत्री द्वारा दी गई इस स्वतंत्रता का आनंदपूर्वक उपभोग करते थे। इसके लिए अपने अलावा किसी को जिम्मेदार नहीं मानते थे, बल्कि प्रधानमंत्री को मानना तो वे कुफ्र से कम नहीं समझते थे।
हां, तो इसके बावजूद कि प्रधानमंत्री जी को सूरज के निकलने की परवाह नहीं थी, सूरज भी ढीठ था, उसे भी उनकी कतई परवाह नहीं थी। वह भी रोज निकलता और डूबता था। वह भी पूरा अकड़ू था।अपने को प्रधानमंत्री से कम क्या, उनसे काफी ज्यादा समझता था। वह बिना कहे, कहता था, प्रधानमंत्री जाए भाड़ में, मैं तो निकल कर ही रहूंगा और डूब कर ही रहूंगा। मैंने ऐसे हजारों प्रधानमंत्री देखे हैं और हजारों अभी और देखूंगा। ये आते-जाते रहते हैं, कुछ दिन, कुछ साल फूं-फां करते हैं और अंंत मेंं ये भी वहीं चले जाते हैं, जहां से कोई लौट कर आज तक नहीं आया!
लेकिन एक बार ऐसा हुआ कि प्रधानमंत्री को सूरज की परवाह करनी पड़ गई। उन्होंने एक दिन राष्ट्र के नाम संदेश में कहा कि सूरज जब पश्चिम से निकलता है तो उसकी छटा देखते ही बनती है। उन्हें याद था कि ऐसा वाक्य उन्होंने बचपन में स्कूल की किसी किताब में पढ़ा था और उन्होंने अपना यह ज्ञान पेल दिया। वैसे भी ज्ञान उनका क्षेत्र नहीं था, वह अज्ञान के विशेषज्ञ थे, मगर ज्ञान में अज्ञान को लपेटकर पेल देना वह कभी नहीं भूलते थे। इससे कौन माई का लाल उन्हें रोक सकता था? यह उनका लोकतांत्रिक अधिकार था और वह थे लोकतंत्र के चौकीदार!
लेकिन क्या होता है जी, लोकतंत्र नामक पुछल्ला, जिस किसी देश के पीछे लग जाता है, वहां विपक्ष को चींटी बराबर ही सही, मगर जगह देनी पड़ जाती है। तो विपक्ष ने प्रधानमंत्री के संदेश का सकारात्मक संदेश नहीं पढ़ा, यानी कि सूरज जब उगता है तो उसकी छटा देखते ही बनती है, उसने यह बात पकड़ ली कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि सूरज पश्चिम से निकलता है। विपक्ष को विपक्ष रहते चूंकि कई साल हो चुके थे तो उसके नेताओं को यह अच्छी तरह से पता था कि सूरज एक्चुअली पूरब से निकलता है और पश्चिम में डूबता है!
तो विपक्ष ने इस बात पर प्रधानमंत्री की खटिया खड़ी कर दी, जबकि उनके बंगले में खटिया थी ही नहीं, सौ टन वजन का पल़ंग था, जिसे खड़ा करना असंभव था। मगर प्रधानमंत्री को पलंग के खड़े होने और टूटने की इतनी अधिक आशंका थी कि वह जमीन पर सोते थे। इस कारण आप प्रधानमंत्री की खटिया खड़ी करो या पूरा पलंग खड़ा कर दो, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था। तो विपक्ष उनकी खटिया खड़ी करता रहा, पलंग भी खड़ा करने में जुटा रहा, मगर इस बंदे को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। वह जमीन पर मजे से खर्राटे मारता रहा!
प्रधानमंत्री ने कोई खंडन जारी नहीं किया, न करने दिया और सूरज को पश्चिम से ही निकलने दिया। वह इस लफड़े में नहीं पड़े कि आज से पूरब को पश्चिम और पश्चिम को पूरब कहा जाएगा, ऐसा वह एक अध्यादेश के जरिए कर सकते थे, मगर नहीं किया। उधर सूरज की इस गुस्ताखी को भी उन्होंने इग्नोर मारा कि वह पहले की तरह पूरब से निकल रहा है और उसकी कोई योजना आज ही क्या, सुदूर भविष्य में भी पश्चिम से निकलने की नहीं है!
अब चूंकि प्रधानमंत्री ने कहा था कि सूरज पश्चिम से निकलता है तो पार्टी और मंत्रियों ने स्वेच्छा से स्पष्टीकरण देना शुरू किया कि प्रधानमंत्री का आशय यह नहीं था। उनकी बात को जानबूझकर, षड़यंत्रपूर्वक, तोड़मरोड़ कर, संदर्भ से काट कर, जनता को भ्रमित करने की नीयत से, उनकी छवि को खराब करने के लिए पेश किया जा रहा है।
सूरज तो पूर्व से निकलता आया है, इस बात को प्रधानमंत्री से बेहतर दुनिया का कोई बड़ा से बड़ा विद्वान भी नहीं जानता, मगर प्रधानमंत्री ने ऐसे स्पष्टीकरण देने वालों को जोर से डांटा और कहा कि खबरदार जो आइंदा किसी ने ऐसा कोई स्पष्टीकरण दिया तो। अब से सूरज पश्चिम से ही निकलेगा! सूरज चाहे, पूर्व से निकले, आई हैव नो इश्यू विद सूरज, मगर आज से सरकार हो या पार्टी, सबको दिन में पांच बार कहना होगा कि सूरज पश्चिम से निकलता है!
तदनुसार सारे सरकारी दस्तावेजों, किताबों में भी संशोधन किया जाए और जो संशोधन करने से इनकार करे, कहे कि इससे दुनिया हम पर हंसेगी, उसे देशद्रोही करार देकर पड़ोसी देश में धकेल दिया जाए। यहां लोकतंत्र है और लोकतंत्र में सूरज भी प्रधानमंत्री की बताई दिशा से ही निकलता है। सूरज का पूरब से निकलना आज से बंद। इस बारे में कोई विवाद पसंद नहीं किया जाएगा।
अब आपको क्या बताना, आपको तो उस देश का नाम अच्छी तरह पता है और हां उसके माननीय प्रधानमंत्री का भी। उन्हें फौरन प्रणाम कीजिए। विलंब करने के नतीजे बुरे हो सकते हैं!
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