यूक्रेन से लौटे छात्रों को नहीं दिख रही उम्मीद की कोई किरण, वापस जाकर पढ़ाई पूरी करना ही एक मात्र विकल्प!
यूक्रेन में लगभग 20 हजार भारतीय मेडिकल विद्यार्थियों ने एडमीशन ले रखा है। हालांकि यूक्रेन से लौटने के बाद से ही ये विद्यार्थी और उनके परिवार वाले सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं, मगर उन्हें उम्मीद की कोई किरण नहीं दिख रही है।
एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई हो, तब भी आदमी को रास्ता तो चुनना ही पड़ता है। यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले बच्चे इसी दुविधा से जूझ रहे हैं। भले ही आप तक को पता हो कि यूक्रेन-रूस युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है और रूस क यूक्रेन पर जल्द ही एक बार फिर बड़े हमले करने की तैयारी की सूचनाएं सार्वजनिक हो रही हैं, फिर भी यह जानकर किसी का भी कलेजा दहल उठ सकता है कि कुछ भारतीय छात्र यूक्रेन लौटने की तैयारी कर रहे हैं ताकि वे वहां डिग्री ले सकें। इसकी वजह यह है कि केन्द्र सरकार ने इनके लिए किसी विकल्प का इंतजाम नहीं किया है।
यूक्रेन में लगभग 20 हजार भारतीय मेडिकल विद्यार्थियों ने एडमीशन ले रखा है। हालांकि यूक्रेन से लौटने क बाद से ही ये विद्यार्थी और उनके परिवार वाले सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं, मगर उन्हें उम्मीद की कोई किरण नहीं दिख रही है। वैसे, इन छात्रों को अंधेरा तब से ही दिखने लगा था जब जुलाई महीने में केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री भारती प्रवीण पवार ने लोकसभा में कहा था कि एनएमसी ने विदेश में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्ररों को भारतीय मेडिकल संस्थानों में स्थानांतरित या समायोजित करने की इजाजत नहीं दी है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 के तहत किसी भी विदेशी चिकित्सा संस्थान से भारतीय विद्यार्थियों को भारत के किसी मेडिकल कॉलेजों में स्थानांतरित या समायोजित करने का कोई प्रावधान नहीं है। उसके बाद एनएमसी ने जिस तरह यूक्रेन सरकार के मोबिलिटी प्रोग्राम विकल्प को मान्यता नहीं देने का फैसला किया है, उससे भी विद्यार्थियों के पास रहा-सहा विकल्प भी खत्म हो गया है। वैसे, कुछ विद्यार्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है, पर वहां अभी सुनवाई शुरू भी नहीं हुई है।
कई लोगों ने अपने खेत, जमीन बेचकर और बैंक से लोन लेकर अपने बेटे- बेटी को पढ़ाई केलिए यूक्रेन भेजा था। अब ये लाखों रुपये डूबने और इन बच्चों के डॉक्टर नहीं बनने की आशंका साफ दिख रही है। लोग परेशान हैं कि आखिर, कर्ज से कैसे मुक्ति मिल सकती है। बैंक वालों ने कुछ लोगों को किस्त जमा करने के लिए रिमांइडर भेजना शुरू भी कर दिया है।
एनएमसी के फैसले से मुंबई के घाटकोपर के रहने वाले सुलेमान शेख और जयेश शलमलकर खासे नाराज हैं। जयेश तो किसी भी तरह से एक बार फिर यूक्रेन जाकर अपनी बची हुई पढ़ाई पूरी करने की सोच रहे हैं। मुंबई के रहने वाले राममणि शुक्ला की बेटी लवि का तीन साल का कोर्स पूरा हो गया है। संडे नवजीवन से बात करते हुए राममणि कहते हैं कि मेरी बेटी की जिद है कि युद्ध क माहौल के बीच ही वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए यूक्रेन जाएगी लेकिन एक पिता के तौर पर हम उसे जाने नहीं दे रहे हैं। राममणि के मुताबिक, एजुकशन लोन लेने वाले लोगों को अगर बैंक से कोई राहत मिलती, तो वह कोई विकल्प सोच भी सकते थे। राममणि का कहना है कि महाराष्ट्र में जब उद्धव ठाकरे की महा विकास आघाड़ी सरकार थी, तो उसने आश्वासन दिया था कि अगर एनएमसी ने एडमिशन को लेकर नियमों में ढील दी, तो महाराष्ट्र क लगभग 1,400 छात्रों का मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन करा दिया जाएगा। लेकिन अब तो यहां सरकार बदल गई है और वह उम्मीद ही खत्म हो गई है।
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