राम पुनियानी का लेख: 26/11 हमले के बाद पाकिस्तान पर आक्रमण की तैयारी न करना समझदारी भरा फैसला था

26/11 को याद करते हुए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम इस घटना को साम्प्रदायिक चश्मे से देखने की बजाए उसे सही परिपेक्ष्य में देखें। यह भी साफ है कि पाकिस्तान के प्रति हमारी नीतियां संतुलित होनी चाहिए।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया
user

राम पुनियानी

26 नवंबर 2018 को मुंबई पर मौत के सौदागरों के क्रूर हमले के दस साल पूरे हो गए। हर तरह के हथियारों से लैस दस पाकिस्तानी मुंबई के तट पर उतरे। वे भले ही टी शर्ट और जींस पहने थे, परंतु उनकी मानसिकता अत्यंत दकियानूसी और पुरातनपंथी थी। वे जेहाद की अपनी समझ से प्रेरित थे।

एक समय अपने समावेशी और उदार चरित्र के लिए मशहूर मुंबई महानगर पर इस हमले ने देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर दिया था। यह हमला बारीकी से योजना बनाकर किया गया था और हमलावरों को नियंत्रित करने वाले लोग सैकड़ों मील दूर थे। जिन लोगों ने ये हमले किए, उनके दिमाग में यह बिठा दिया गया था कि हिंसा, नफरत और आतंकवाद ऐसी चीजें हैं, जिन्हें खुदा पसंद करता है।

इस हमले के बारे में कई बातें बहुत साफ हैं। इन लोगों ने समुद्र के मध्य गुजरात में पंजीकृत मछली पकड़ने वाले एक छोटे जहाज पर कब्जा किया। वे मुंबई के तट के नजदीक पहुंचे और फिर छोटी-छोटी नौकाओं में सवार होकर गेटवे ऑफ़ इंडिया पर उतर गए। अपनी पीठ पर बैकपैक लादे हुए इन लोगों ने मुंबई पर कहर बरपा दिया। वे पांच हिस्सों में बंट गए और अपनी कुत्सित हरकतों को अंजाम दिया।

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और मुंबई के प्रसिद्ध ताजमहल होटल में उन्होंने जो कुछ किया, वह अब इतिहास का हिस्सा है। उन्होंने अंधाधुंध गोलियां चलाकर निर्दोष लोगों की जान ली। उन्हें इस बात की कतई परवाह नहीं थी कि उनकी गोलियों के शिकार होने वाले लोग किस धर्म, जाति या देश के थे। इस हमले में 126 लोग मारे गए, जिनमें से 98 सामान्य नागरिक थे, 14 पुलिसकर्मी और 14 विदेशी थे। इनके अलावा 327 लोग गंभीर रूप से घायल हुए।

इस हमले में तीन शीर्ष पुलिस अधिकारी मारे गए। इनमें शामिल थे हेमंत करकरे, जो महाराष्ट्र पुलिस के आतंकवाद-निरोधक दस्ते के प्रमुख थे और जो मालेगांव, हैदराबाद की मक्का मस्जिद, अजमेर दरगाह और समझौता एक्सप्रेस में हुए बम धमाकों की जांच कर रहे थे।

पिछले कई दशकों से मुंबई पर आतंकी हमले होते रहे हैं। इनमें से पहला हमला 12 मार्च 1993 को हुआ था। इस दिन मुंबई के अलग-अलग इलाकों में हुए 23 बम विस्फोटों में 257 व्यक्ति मारे गए थे। ये धमाके बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद हुए थे। इसके बाद, 2 दिसंबर 2002 को मुंबई के उपनगर घाटकोपर में एक बस में हुए बम विस्फोट में दो लोग मारे गए। इसके पीछे था गोधरा के बाद हुआ मुसलमानों का कत्लेआम। 2003 में 13 मार्च, 29 जुलाई और 25 अगस्त को भी आतंकी हमले हुए। 11 जुलाई 2006 को पश्चिम रेलवे की एक लोकल ट्रेन के फर्स्ट क्लास के डिब्बे में विस्फोट हुआ।

इन सभी घटनाओं की कोई न कोई पृष्ठभूमि थी। शुरूआती धमाके मुंबई में 1992-1993 में शहर में मुसलमानों की बड़े पैमाने पर हत्याओं के बाद हुए। धमाकों की दूसरी श्रृखंला, गुजरात कत्लेआम के बाद हुई।

इन आतंकी घटनाओं में सबसे विचलित कर देने वाली घटना थी हेमंत करकरे की मौत, जो मालेगांव बम धमाकों की जांच कर रहे थे और जिन्होंने इन धमाकों और साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के बीच की कड़ी, एक मोटरसाईकिल, को ढूंढ़ निकाला था। प्रज्ञा सिंह ठाकुर अब ले. कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित के साथ मालेगांव बम धमाके के आरोपी हैं। उनके स्वामी दयानंद पांडे और मेजर उपाध्याय के साथ संबंध भी सामने आए हैं।

जिस दौरान करकरे इस घटना की विभिन्न कड़ियों को जोड़ने का प्रयास कर थे, उस समय हिन्दू द्रोही और राष्ट्र द्रोही होने के आरोप उनपर चस्पा किए गए थे। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना‘ ने उन पर कटु हमला बोला था।

यह दिलचस्प है कि करकरे की मौत के बाद, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री, जो अब देश के प्रधानमंत्री हैं, ने मुंबई पहुंचकर करकरे की पत्नी को एक करोड़ रूपये देने की पेशकश की थी। करकरे की मृत्यु के बाद, अल्पसंख्यक मामलों के तत्कालीन केंद्रीय मंत्री ए आर अंतुले ने इस घटना को आतंकवाद के साथ कुछ और का नतीजा बताया था। उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया था कि ‘कुछ और‘ से उनका क्या आशय था।

इन हमलों से यह भी सामने आया कि आतंकी संगठन कम उम्र के नौजवानों के दिमाग में किस प्रकार का जहर भरते हैं। मुंबई हमले में जिंदा पकड़े गए एकमात्र आतंकी अजमल कसाब ने अपने बयान में बताया था कि आतंकी संगठन, रंगरूटों को बार-बार बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने का वीडियो दिखाते थे और उन्हें यह बताया जाता था कि भारत में लगातार मस्जिदों को ढहाया जा रहा है और इसका बदला लेना ज़रूरी है। इसी से प्रेरित हो उसने बंदूक उठाई।

अलकायदा और उससे जुड़े संगठनों के लड़ाकों के दिमाग में भी इस्लाम के कट्टरपंथी सलाफी संस्करण के सिद्धांत ठूंसे जाते थे। उन्हें यह बताया जाता था कि जो लोग इस्लाम में विश्वास नहीं करते, वे काफिर हैं और उन्हें मारना जेहाद है। और यह भी कि जेहाद करते हुए मारे जाने वालों को जन्नत में स्थाई रहवास का परमिट मिलेगा और उन्हें 72 हूरों के साथ अनंतकाल तक आनंद करने का मौका भी प्राप्त होगा।

इस त्रासदी का एक पहलू भारत और पाकिस्तान के रिश्तों से भी जुड़ा हुआ है। संसद पर हमले के बाद, आपरेशन पराक्रम के अंतर्गत, भारतीय सेना को पाकिस्तान की सीमा पर जमा किया गया था। वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार, संसद पर हमले का बदला लेना चाहती थी। अंततः इस कवायद का कोई नतीजा नहीं निकला, सिवाए इसके कि देश के करोड़ों रूपये बर्बाद हुए।

26/11 के हमले के बाद, केंद्रीय गृहमंत्री और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा था। केन्द्र सरकार पर यह जबरदस्त दबाव था कि वह पाकिस्तान पर हमला कर दे। एनडीए सरकार के विपरीत, यूपीए-1 सरकार इस दबाव में नहीं आई और अब ऐसा लगता है कि उसने परिस्थिति का सही और बेहतर ढंग से सामना किया।

भारत पर आतंकी हमलों के पीछे पाकिस्तान की सेना का एक हिस्सा और आईएसआई थे। पाकिस्तान के खिलाफ किसी भी तरह के सैन्य आक्रमण से वहां की प्रजातांत्रिक ढंग से चुनी गई जरदारी सरकार का कमजोर होना निश्चित था। यह प्रसन्नता और संतोष का विषय है कि भारत में आतंकी घटनाओं की संख्या में तेजी से कमी आई है।

यह स्पष्ट है कि इस तरह की घटनाएं अलकायदा-छाप आतंकवाद का नतीजा होती हैं, जिसके मूल में है कच्चे तेल के मूल्यवान स्त्रोतों पर कब्जा जमाने की साम्राज्यवादी देशों की लिप्सा है।

26/11 को याद करते हुए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम इस घटना को साम्प्रदायिक चश्मे से देखने की बजाए उसे सही परिपेक्ष्य में देखें। यह भी साफ है कि पाकिस्तान के प्रति हमारी नीतियां संतुलित होनी चाहिए। हमें लगातार इस बात के प्रयास करने होंगे कि ऐसी घटनाएं न हो सकें। पाकिस्तान को नेस्तोनाबूद कर देने की कोरी धमकियों से कुछ होना जाना नहीं है।

अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) (लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia