वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी की नीलाभ मिश्र को श्रद्धांजलि: स्मृति की भी अपनी ताकत होती है
नीलाभ मिश्र ने आउटलुक हिंदी को ढुलमुल शक्ल से उबारते हुए जुझारू तेवर दिया। साहित्य-संस्कृति से भी उनका अनुराग गहरा था, जो कम पत्रकारों में दिखाई देता है।
सुबह की किरण में आज उजाला नहीं। अलस्सबह मित्रवर अपूर्वानंद ने चेन्नई से सूचित किया कि नीलाभ मिश्र नहीं रहे। वे अपोलो अस्पताल में चिकित्सा के लिए भर्ती थे। पर कुछ रोज से हताशा भरे संकेत मिलने लगे थे। इसके बावजूद सुबह उनके निधन की खबर किसी सदमे की तरह ही मिली। हर धर्म को अपना धर्म मामने वाले नीलाभ मिश्र आज हमारे बीच नहीं है।
नीलाभ मिश्र कम बोलने वाले पत्रकार थे, सौम्य और सदा मंद मुस्कान से दीप्त। लेकिन उनका काम बहुत बोलता था। जब पत्रकारिता में सरोकार छीजते चले जा रहे थे, नीलाभ ने सरोकार भरी पत्रकारिता की। आउटलुक हिंदी को उन्होंने ढुलमुल शक्ल से उबारते हुए जुझारू तेवर दिया। साहित्य-संस्कृति से भी उनका अनुराग गहरा था, जो कम पत्रकारों में दिखाई देता है। पिछले साल उन्होंने नेशनल हेरल्ड के प्रधान सम्पादक का जिम्मा संभाला था। सीमाओं के बावजूद वहां भी उन्होंने कई अनुष्ठान अंजाम दिए।
उनकी साथी-संगिनी कविता श्रीवास्तव के दुख का अंदाज़ा मैं लगा सकता हूं। वे नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने वाली दबंग महिला है। नीलाभ का जाना उन्हें सबसे ज़्यादा तकलीफ़ देगा। पर उनका संघर्ष इससे विचलित न होगा। नीलाभ नहीं होंगे, पर स्मृति की भी अपनी ताकत होती है।
(ओम थानवी की फेसबुक वॉल से साभार)
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