विष्णु नागर का व्यंग्य: टपकते-दरकते भारत को 'विकसित' बनाने का संकल्प छोड़ दो प्लीज़
आपने वंदे भारत ट्रेन चलाई। चलते ही गाय-भैंस से टकराकर उनके बोनट टूटने का विश्व रिकॉर्ड कायम हुआ। इस बरसात में इस ट्रेन के अंदर लोगों को बरसात का आनंद मिलने लगा। पढ़ें विष्णु नागर का व्यंग्य।
महामुनि जी, देश की और हम-सब की, आपसे जितनी तरह से और भी जितनी बार ऐसी-तैसी हो सके, करना, बस एक काम करना, 'विकसित भारत' बनाने का संकल्प तज देना। भारत को 'वर्ल्ड क्लास इन्फ्रास्ट्रक्चर' देना हमेशा के लिए भूल जाना।
मैं देश का दो कौड़ी का नागरिक, जिसने कभी आपको वोट नहीं दिया, न आपकी पार्टी को, न देगा कभी फिर भी हाथ और पांव जोड़कर यह निवेदन-आवेदन कर रहा हूं कि प्लीज़ इस देश को थोड़ा तो बख्श देना। आप मेरी बात मान लोगे, तो जो कहोगे करूंगा, बीजेपी ज्वाइन करने जैसा दुष्कर्म भी कर लूंगा। बस आप वचन दो कि आप आज से 'विकसित भारत' बनाना छोड़ दोगे, देश को वर्ल्ड क्लास इन्फ्रास्ट्रक्चर देना भूल जाओगे। देश का जितना कबाड़ा इस नाम पर कर चुके, बहुत काफी है। देश अब और बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है। उसकी कमर टूट चुकी है।
आपने इस चुनाव से पहले 'विकसित भारत' बनाने के लिए बहुत जोर लगाया। जिन्हें इस नाम पर कमीशन खाना था, डटकर खाया। दिन में खाया, रातभर जागकर खाया। परिणाम सामने है। जनता ने आपको इसके बदले क्या दिया- लड्डू? 400 पार की बात करने वाले प्रभु आप 240 पर लटककर रह गए! हंसी का पात्र बन गए और पहली बरसात ने आपके 'वर्ल्ड क्लास इन्फ्रास्ट्रक्चर' का कबाड़ा कर दिया। उधर आप संसद में अपनी पीठ ठोंक रहे थे, उधर आपका 'विकसित भारत' हवाई जहाज से लेकर मंदिर तक में टप-टप बह रहा था। यहां से, वहां तक भारत दरक रहा था।
आपने चुनाव से पहले झटपट अयोध्या में राम मंदिर कहें या वोट मंदिर बनाया, समारोहपूर्वक प्राण प्रतिष्ठा की। उसका गर्भगृह टपकने लगा है। अयोध्या में आपने तेरह किलोमीटर लंबा रामपथ बनवाया। पहली बरसात में कुछ महीने पुरानी इस महान सड़क पर गड्ढे ही गड्ढे पड़ गए। दरारें ही दरारें सामने आ गईं। यहां तक कि आपने अयोध्या में नया बहुमंजिला न्यायालय भवन बनाया। उसकी तीनों लिफ्ट नीचे गिर गईं। और ऊपर से आपका उम्मीदवार भी हार गया। और तो और विकसित भारत का अयोध्या में यह हाल हुआ कि तमाम फ्लाइटें बंद हो गईं!
इस बीच देश में करीब-करीब बीस पुल गिर गए। रोज एक पुल के गिरने की खबर आ रही है। पता नहीं इस बरसात में कितने और पुल ढहने की प्रतीक्षा में तैयार बैठे हैं। कितनी और जानें अभी जानी हैं। कितने और परिवार अपनों को खोने वाले हैं। दस पुल तो आपके परमप्रिय नीतीश कुमार के राज्य बिहार में स्वर्गवासी हो चुके हैं। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे!
आपने वंदे भारत ट्रेन चलाई। चलते ही गाय-भैंस से टकराकर उनके बोनट टूटने का विश्व रिकॉर्ड कायम हुआ। इस बरसात में इस ट्रेन के अंदर लोगों को बरसात का आनंद मिलने लगा। टिकट कटाया ट्रेन का। एक टिकट में उन्हें आपने दो आनंद सुलभ करवा दिए। दूसरे आनंद का टिकट नहीं लेना पड़ा तो जीएसटी भी नहीं देना पड़ा!
दिल्ली हवाई अड्डे के टर्मिनल वन की छत गिर पड़ी। एक ड्राइवर की जान गई। फिर आपने प्रगति मैदान के पास टनल बनाई। वहीं जहां आप कचरा बीनते हुए एक दिन पाये गये थे। उसमें लोगों को और कारों को लगभग तैरते हुए दशा में आना-जाना पड़ा। आपने भारत मंडपम बनवाया। उसने तो बनते ही अपने वर्ल्ड क्लास इंजीनियरिंग कौशल का कमाल अविलंब जी-20 के खास मेहमानों के सामने ही दिखा दिया। पानी के बीच आपके मेहमान आ- जा रहे थे। भारत पानी-पानी हो रहा था। भारत का नाम उसके जरिए जितना रोशन आप करना चाह रहे थे, उससे कुछ ज्यादा ही रोशन हो रहा था। भारत का डंका दुनिया में बहुत जोर से बज रहा था।
इधर मुंबई में आप द्वारा पांच महीने पहले उद्घाटित 18 हजार करोड़ रुपए की लागत के पुल में दरारें पड़ गईं। चित्रकूट में ग्लास ब्रिज तो महाशय उद्घाटन से पहले दरार को प्राप्त हुआ वरना सोचिए उद्घाटनकर्ता का क्या हुआ होता!
इस प्रकार जहां-जहां पैर पड़े 'विकसित भारत' के तहां-तहां बंटाधार। गनीमत है कि अभी तक नए संसद भवन की छत नहीं टपकी है। वैसे वह भी 'विकसित भारत' की 'विकसित संतान' है। पता नहीं किस दिन प्रधानमंत्री जी की माहनीय उपस्थिति में बल्कि उनके कक्ष में टपकने लग जाए!
उप राष्ट्रपति जी 'विकसित भारत' योजना के अधीन बने अपने विशाल भवन में पहुंच चुके हैं। बहुत ही संकोची और अत्यंत सहनशील व्यक्ति हैं, यह हम राज्यसभा में अनेक बार देखकर प्रभावित हो चुके हैं। खुदा खैर करे, उनके भवन को बरसात की नजर न लगी हो। लगी भी होगी तो संकोची जीव हैं, कुछ कह नहीं पाए होंगे और महामुनि जी आपको भी अपने नए निवास में शायद इसी साल जाना होगा कभी। पता कर लीजिएगा कि कहीं 'विकसित भारत' वहां भी विकसित होने पहुंच न चुका हो!
तो ये तो चंद से भी चंद उदाहरण आपकी नज़र पेश किए हैं विकसित भारत के। जल्दी नहीं है भारत को, विकसित बनने की। भारत को कभी किसी बात की जल्दी नहीं रही। जल्दी आपको है और इस कारण आपके गुजराती मित्र बदनाम हो रहे हैं, जो अयोध्या समेत हर जगह आपका सहयोग करते हुए 'विकसित भारत' बनाने में लगे हुए हैं। आप अगर 'विकसित भारत' बनाना त्याग दें तो आपको 2047 तक यानी 99 वर्ष की उम्र तक काम करने का कष्ट नहीं करना पड़ेगा।
वैसे भारत की जनता भी 2024 में ही दिखा चुकी है कि आपको 2047 तक देश अपनी चिंता नहीं करने देगा। उसे भी आपकी उम्र का ख्याल है। वह आपको और कष्ट देना नहीं चाहती! इसलिए 'विकसित भारत' का ख्वाब देखना और दिखाना छोड़िए और सम्मानपूर्वक झोला उठाकर चल दीजिए।
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia