खरी-खरी: कगंना के जरिए इतिहास के संघी रूप का प्रचार और यूपी में फिर बीजेपी के हाथ में श्मशान-कब्रिस्तान की पतवार
दरअसल कंगना ने जो कुछ कहा वह देश को संघी इतिहास के प्रचार को धार देना है। वहीं उत्तर प्रदेश में जमीनी हकीकत से परे बीजेपी एक बार फिर हिंदुत्व और 'श्मशान-कब्रिस्तान' की पतवार के सहारे अपनी चुनावी नैया खेने की जुगत में है।
जो कंगना की जुबान पर है, वही संघ के दिल में है। जी हां, अभिनेत्री कंगना रनौत ने भारतीय स्वतंत्रता के संबंध में टीवी चैनल पर जो विचार रखे, वे ही संघ के विचार हैं। कंगना तो केवल संघ का एक माध्यम थीं जो इस विचार को रख रही थीं। कंगना रनौत के अनुसार, देश को 1947 में जो आजादी मिली, वह ‘भीख’ थी। देश को वास्तविक आजादी तो सन 2014 में नरेन्द्र मोदी के केन्द्रीय सत्ता में आने के बाद मिली। कंगना के बारे में यह प्रचलित है कि उनकी पढ़ने-लिखने में ऐसी कोई रुचि नहीं है कि वह इतिहास पर अपने विचारों के आधार पर इतनी बड़ी बात कह सकें। उनको तो जो समझाया गया, वही उन्होंने टीवी डिबेट में उगल दिया। स्पष्ट है कि उनको यह ज्ञान संघ के लोगों से ही मिला। क्योंकि संघ के बड़े नेता यह बात सन 1947 में आजादी के बाद से ही कहते और लिखते चले आ रहे हैं। संघ के शीर्ष नेता माधव सदाशिव गोलवलकर ने भारत के संविधान पर उंगली उठाई। संघ ने भारतीय राष्ट्रगान और भारतीय ध्वज पर ऐतराज जताया। आजादी के संबंध में अटपटी बातें कही गईं।
संघ का सदैव से यह विचार रहा है कि भारत केवल एक हिन्दू राष्ट्र है। इस हिन्दू राष्ट्र पर मुसलमानों और अंग्रेजों ने कब्जा जमाकर भारत को गुलाम बना दिया। अतः भारत को जब तक अंग्रेजों से ही नहीं बल्कि मुसलमानों के चंगुल से भी आजाद नहीं करवा लिया जाता है, तब तक देश को संपूर्ण रूप से आजाद नहीं समझा जा सकता है। हिन्दुत्व विचारधारा के संस्थापक सावरकर ने ऐसे ही कुछ विचारों पर आधारित अपनी पुस्तक ‘हिन्दुत्व’ में मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों, जैसे ईसाइयों को हर प्रकार के अधिकारों से वंचित करने की बात उठाई थी। हिन्दुत्व की विचारधारा पर स्थापित भाजपा भला उस भारत को कैसे स्वतंत्र मान सकती है जिसमें ‘विदेश’ से आए मुसलमान और ईसाइयों को भी बराबर के अधिकार हों।
सन 1947 में जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में बाबा साहेब आम्बेडकर ने देश को जो संविधान दिया, उसके अनुसार, मुसलमान एवं ईसाई भी हिन्दुओं के बराबर नागरिक हैं। जिस देश में मुसलमान और ईसाई हिन्दुओं के बराबर अधिकार रखते हों तो वह संघ और भाजपा-जैसे हिन्दुत्व के विचारों पर स्थापित संगठनों का भला स्वतंत्र भारत कैसे हो सकता है। अतः इस सोच के अनुसार, सन 1947 में मिली स्वतंत्रता संघ के लिए वास्तविक स्वतंत्रता नहीं थी। तब ही तो कंगना ने कहा कि भारत को स्वतंत्रता 2014 में मोदी जी के राज में प्राप्त हुई।
यदि आप मोदी जी की उपलब्धियों पर ध्यान दें तो यह बात बहुत स्पष्ट नजर आती है कि उनके शासनकाल में भारत हर क्षेत्र में पीछे गया है। देश आर्थिक रूप से पीछे हो गया। देश में बेरोजगारी का सैलाब फैल गया। कोविड महामारी में लाखों लोग सरकार के कुप्रबंधन के कारण मारे गए। लॉकडाउन के कारण कारोबार और अन्य काम-धंधे चौपट हो गए। भूख से परेशान लाखों मजदूर-कारीगर हजारों मील पैदल चलकर जान बचाने के लिए अपने-अपने गांव-देहात जाने को मजबूर हो गए। लब्बोलुआब यह है कि सन 2014 से अब तक मोदी राज में भारत हर प्रकार से पीछे चला गया। लेकिन एक ऐसा काम अवश्य हुआ जिसने देश के मुस्लिम एवं ईसाई अल्पसंख्यकों को सामाजिक और राजनीतिक तौर पर लगभग दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया।
मोदी के भारत में कोई भी मुसलमान आज कहीं भी ‘मॉब लिंचिंग’ का शिकार हो सकता है। केवल इतना ही नहीं, सीएए और एनआरसी-जैसी सरकारी नीतियों के तहत मुसलमान वास्तविकता में अपने नागरिकता के अधिकार खोकर दूसरे दर्जे का शहरी बन सकता है। सत्य तो यह है कि नरेन्द्र मोदी की केवल यही उपलब्धि है कि उन्होंने सामाजिक एवं राजनीतिक तौर पर लगभग एक ‘मुस्लिम मुक्त भारत’ बना दिया है। भले ही भारतीय मुसलमानों की जनसंख्या देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी हो लेकिन भारतीय मुसलमान समाज एवं राजनीति में अब दूसरे दर्जे का शहरी हो चुका है।
संघ की स्वतंत्र भारत की यही कल्पना थी कि जिसमें अल्पसंख्यक, विशेषतया मुसलमान संपूर्ण रूप से देश के हाशिये पर हों। मोदी का भारत सम्पूर्ण रूप से संघ के उसी सपने का वास्तविक रूप है। अतः कंगना रनौत ने टीवी डिबेट में भारतीय स्वतंत्रता की जो नई संज्ञा दी, वह उनकी अपनी सोच नहीं बल्कि संघ के विचारों पर आधारित संज्ञा थी। मुझे इस बात पर भी आश्चर्य नहीं होगा कि जल्द ही पाठशालाओं में जो इतिहास पढ़ाया जाए, उसमें कंगना की बताई हुई स्वतंत्रता की संज्ञा ही बच्चों को पढ़ाई जाए। अगर जिया उल हक के पाकिस्तान में पाकिस्तानी इतिहास का आरंभ भारत पर मुसलमानों के आक्रमण के समय से हो सकता है, तो संघ के सपनों के भारत की आजादी का वर्ष सन 1947 नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी के हिन्दुत्व पर आधारित राज 2014 से क्यों नहीं हो सकता है!
बात यह है कि कंगना तो एक बहाना है, संघ को अब एक नया इतिहास पढ़ाना है।
भाजपा की उत्तर प्रदेश की चुनावी रणनीति
इन दिनों दिल्ली में राजनीतिक बाजार इतना ठंडा है कि समाचार पत्रों में भी ठंड छाई हुई है। यदि कहीं से कोई राजनीतिक समाचार आता है तो वह है उत्तर प्रदेश। लगभग तीन महीनों के बाद उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव होने हैं और वहां मोदी और योगी- दोनों की साख दांव पर लगी है। जमीनी स्थितियों के अनुसार, भाजपा को उत्तर प्रदेश में करारी हार से सामना होना चाहिए। योगी शासनकाल में प्रदेश की जो गत बनी, वह उत्तर प्रदेश ने स्वतंत्र भारत में कभी नहीं झेली थी। प्रदेश में योगी जी का डंडा शासन है। लॉकडाउन और नोटबंदी ने प्रदेश की आर्थिक कमर तोड़ दी। प्रदेश की मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी के लिए चैन से सांस लेना मुहाल हो गया है। इन सब कारणों से सत्तासीन किसी भी पार्टी को दूसरी बार चुनाव नहीं जीतना चाहिए।
परंतु उत्तर प्रदेश कोई मामूली प्रदेश नहीं है। लोकसभा में अस्सी सीटों का योगदान करने वाला उत्तर प्रदेश यदि 2022 में भाजपा के हाथों से निकल गया तो फिर 2024 में देश की सत्ता भी मोदी जी के हाथों से निकल सकती है। भला संघ और भाजपा यह कैसे होने दे सकते हैं? अतः मोदी-योगी को हर प्रकार से वापस लाने की रणनीति पर उत्तर प्रदेश में अभी से काम हो रहा है।
सवाल यह है कि भाजपा की उत्तर प्रदेश रणनीति क्या है? भाजपा की 2022 उत्तर प्रदेश जीतो का मुख्य आधार यह है कि प्रदेश की अधिकांश जनसंख्या योगी शासन की पिछली विफलताओं को भूलकर नई आशाओं के आधार पर भाजपा को फिर वोट डाल दे। उसके लिए भाजपा ने मुख्य रूप से तीन तत्वों पर आधारित रणनीति बनाई है।
इस रणनीति का पहला अंग तो हिन्दुत्व ही है जिसमें पार्टी का कैंपेन मुख्यतः ‘मुस्लिम शत्रु’ के इर्द-गिर्द ही होगा। अतः इस बार भी ‘श्मशान घाट बनाम कब्रिस्तान’-जैसा ही कैंपेन होगा जिसमें ‘लव जिहाद’-जैसे मुद्दे तड़के का काम करेंगे। इस रणनीति का दूसरा मुख्य अंग मुफ्त उपहार है, अर्थात गरीब जनता को मुफ्त राशन, किसान सम्मान निधि योजना एवं स्कूल ड्रेस की आड़ में मुफ्त पैसा बांटकर जनता की निराशा को आशा में बदला जाएगा। भाजपा की चुनावी रणनीति का तीसरा अंग ‘एक्सप्रेस-वे’ पर मोदी जी गरीब जनता के बीच सड़क पर उतर कर अथवा जेवर हवाई अड्डे-जैसे सरकारी कार्यों को एक इवेंट बनाकर जनता को प्रदेश की प्रगति का सपना दिखाकर उसकी विगत की परेशानियों को भुलाना है।
भाजपा एक अत्यंत सोची-समझी रणनीति के साथ उत्तर प्रदेश चुनाव में कदम रख चुकी है। अब देखें विपक्ष इसका सामना कैसे करता है।
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