फणीश्वर नाथ रेणु की पुण्यतिथि: आंचलिक भाषा को हिंदी में समाहित करने वाले अनूठे लेखक
रेणु अपने लेखन के माध्यम से हमारे बीच हमेशा मौजूद रहेंगे, लेकिन अगर हम उनके साहित्य और उनसे जुड़ी वस्तुओं और पांडुलिपियों का एक संग्रहालय बना सकें तो यह सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
आज जब हिंदी लेखन में हम अंग्रेजी के शब्दों, देश के अनेकानेक क्षेत्रों की बोलियों का इस्तेमाल स्वछंदता से करते हैं तो अनायास ही रेणु याद आने लगते हैं। रेणु जी की रचनाओं में जिस तरीके से आंचलिक भाषा का प्रयोग हुआ वो हिंदी की एक उपलब्धि है, और दरअसल ये भी साबित करता है कि हिंदी हमारे देश की सांझी संस्कृति का जीवंत प्रतीक है। ये बात आज के साम्प्रदायिकता से बोझिल समय में और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गयी है, इसीलिए रेणु की रचनाएं आज भी महत्वपूर्ण हैं। भाषा शैली और कथानक के लिहाज़ से और किरदारों, हमारी सांस्कृतिक, सामाजिक अस्मिता के सन्दर्भ में भी।
पिछले साल रेणु जी की जन्मशती लॉक डाउन और महामारी के प्रकोप से जूझते हुए भी धूमधाम से मनाई गयी थी। फर्क सिर्फ इतना रहा कि लगभग सभी समारोह, परिचर्चाएं ऑनलाइन ही रहीं। वे हिंदी के पहले लेखक हैं जिनकी जन्मशती ऑनलाइन ही मनाई गयी और साल भर लगातार होते कार्यक्रमों के ज़रिए ये आयोजन लगभग एक डिजिटल अभियान में तब्दील हो गए। फेसबुक पर ‘मैला आँचल’ ग्रुप की स्थापना की गई। इस ग्रुप पर रेणु पर कम से कम 60 व्याख्यान ऑनलाइन आयोजित किए गए और सौ से अधिक लेख टिप्पणियां पोस्ट की गईं तथा सैकड़ों चित्र आदि भी लगाए गए। इनमें से कई फोटो तो अत्यन्त दुर्लभ थे। बहुत लोगों ने ये तस्वीरें पहली बार देखीं।
कुछ पत्रिकाओं का लोकार्पण भी किया गया। यह हिंदी साहित्य की संभवतः ऐसी पहली घटना है कि एक लेखक पर केन्द्रित इतनी सारी पत्रिकाओं ने विशेषांक निकाले हों। जिन पत्रिकाओं ने अंक निकाले उनमें "बनास जन" , "कथादेश", "लमही , "माटी ,"संवेद" "नवनीत,"पाखी"" प्रयाग पथ," सृजन सरोकार, "सृजन लोक ", "जनपथ " शामिल हैं। इसके संपादकों में पल्लव, राकेश बिहारी विजय राय ,किशन कालजयी , विश्वनाथ सचदेव, अपूर्व जोशी , गोपाल रंजन संतोष श्रेयांस अनंत कुमार सिंह, नरेंद्र पुंडरीक ,हितेश कुमार सिंह शामिल हैं। यह हिंदी साहित्य जगत में एक क्रांतिकारी बदलाव ही माना जा सकता है कि तमाम मंचों और विचारधाराओं के लेखकों ने एकसाथ आकर रेणु जी के लेखन, शैली और रचनाओं पर अपने विचार व्यक्त किये। उनकी रचनाओं का पाठ भी किया गया।
दिल्ली विश्वविद्यालय, हैदराबाद विश्वविद्यालय, इंदिरागांधी मुक्त विश्वविद्यालय में भी रेणु जी पर समारोह, परिचर्चाएं हुईं। दुखद यह रहा कि जन्मशती वर्ष में पटना स्थित रेणु के घर से उनकी कृतियों की चोरी भी हो गई। पुलिस उसे अब तक बरामद नहीं कर पायी है। हालांकि रेणुजी अपने लेखन के माध्यम से हमारे बीच हमेशा मौजूद रहेंगे, लेकिन अगर हम उनके साहित्य और उनसे जुड़ी वस्तुओं और पांडुलिपियों का एक संग्रहालय बना सकें तो यह सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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