उस काली तारीख से महज 10 दिन पहले ही तो राजीव गांधी ने मुझसे पूछा था- अरे तुम अभी तक यहां हो...

राजीव गांधी की 21 मई 1991 को तमिलनाडु में हत्या कर दी गई। इसके कोई 10 दिन पहले ही तो मेरी उनसे मुलाकात हुई थी। पूरी रात मैंने उनकी मुंबई यात्रा को कवर किया था...और अपनी गरिमामयी बेफिक्री के बीच ही उन्होंने अचानक मुझे देखा, और पूछा- तुम अभी तक यहां हो...

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की फाइल फोटो (सौजन्य-ट्विटर)
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की फाइल फोटो (सौजन्य-ट्विटर)
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सुजाता आनंदन

यह उसी साल की बात है। और, मेरे ब्यूरो चीफ को तो शायद 10 या 11 मई 1991 को ही राजीव गांधी को लेकर कुछ आशंका सी हो गई थी। राजीव गांधी अगले दिन मुंबई आने वाले थे और पूरी रात प्रचार करने वाले थे। यह तब की बात है जब टी एन शेषन ने नेताओं पर लगाम नहीं कसी थी। मैं उन दिनों एक न्यूज एजेंसी के लिए काम करती थी और मेरे ब्यूरो चीफ ने साफ कह दिया था, “जब तक राजीव गांधी यहां हैं, तुम्हारी नजरें नहीं हटनी चाहिए उन पर से...”

मैंने पूछा, पूरी रात भर....

हां...ब्यूरो चीफ का जवाब था। “वी पी सिंह ने उनकी सुरक्षा कम कर दी है। अगर उनका बाल भी बांका हुआ या किसी अजनबी ने उन्हें हलका सा धक्का भी दिया, तो यह खबर सबसे पहले हमारे पास होनी चाहिए और हमारे जरिए ही दुनिया को मिलनी चाहिए...जब तक राजीव यहां हैं, तुम इस असाइनमेंट से नहीं हटोगी...”

उस  वक्त शरद पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। मैंने उनके दफ्तर में फोन करके पूछा कि क्या मैं उनके काफिले के साथ आ सकती हूं, इससे मुझे राजीव की प्रचार यात्रा को नजदीक से देखने का मौका मिल जाएगा। और जब मैंने बताया कि ऐसा क्यों चाहती हूं तो शरद पवार झल्ला उठे थे। उन्होंने गुस्से से कहा, “तुम्हें क्या लगता है, मैं उन्हें अपनी जमीन पर कुछ होने दूंगा। मैंने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं...और उन्हें मुंबई या महाराष्ट्र के किसी भी हिस्से में खरोंच तक नहीं आ सकती...”

लेकिन, यह बात अलग है कि राजीव गांधी को काफी खरोंचे आईं...यहां तक की उनके कुर्ते की आस्तीन तक फट गई थी। राजीव गांधी मुलुंड से लेकर नागपाड़ा तक जिस तरह लोगों से मिल रहे थे, लोग उन्हें गले लगा रहे थे, अपने बच्चों को उनकी गोद में दे रहे थे...महाराष्ट्र पुलिस की हालत खराब थी क्योंकि राजीव ने साफ कह दिया था कि उनके पास कोई आना चाहता है तो आने दिया जाए....


मैं करीब 13 घंटे तक राजीव गांधी के आसपास ही रही, और यह 13 घंटे मेरी जिंदगी से आज भी बेहद नजदीकी से जुड़े हुए हैं। आधी रात होते-होते ज्यादातर रिपोर्टर घर चले गए थे, मैं और एक और एजेंसी रिपोर्टर ही वहां रह गए थे। रात 11 बजे के आसपास मैं नजदीक के एक रेस्त्रां में गई और अपनी पहली कॉपी फाइल की। इस दौरान मुझे लगातार लगता रहा कि मेरी नजरें राजीव गांधी पर नहीं है। इसलिए बाकी रिपोर्टर जहां कुछ खाने में मशगूल थे मैं वापस उस काफिले की तरफ दौड़ी।

रात 2 बजे के आसपास कुर्ला में राजीव की सभा खत्म हुई। उस समय शरद पवार और उस वक्त के मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष मुरली देवड़ा भी राजीव के साथ थे। तभी राजीव गांधी की नजर मुझ पर पड़ी। वह जब स्टेज से उतर रहे थे तो मैं सड़क किनारे अकेली खड़ी थी। उनके मुंह से अचानक निकला, ‘ओह माय गॉड...।’ मेरी तरफ बढ़ते हुए उन्होंने मुझसे पूछा, ‘तुम अभी तक यहां क्या कर रही हो?” मैंने सीधा जवाब दिया कि मैं एक न्यूज एजेंसी के साथ काम करती हूं और आपके प्रचार को आधे रास्ते में तो छोड़कर नहीं जा सकती... राजीव मुस्कुराए और पूछा, कुछ खाया या नहीं...?” मैंने न में सिर हिलाया तो उन्होंने मुरली देवड़ा की तरफ मुड़ते हुए कहा, ‘तुम जो सैंडविच मेरे लिए लाए थे, इसे दे दो।“ और फिर वे बोले, अगले स्टॉप पर पूछूंगा मैं इस बारे में।” इसके बाद वह कार में बैठ गए।

मुरली देवड़ा कुछ परेशान से हो उठे...कहने लगे, “रात के 2 बजे सैंडविच कहां से लाऊं...जो थे वह खत्म हो गए हैं...।” मैंने कहा कोई बात नहीं...लेकिन तभी देवड़ा बोले...”नारियल पानी पिएगी?” उन्होंने मुझे नारियल दिया और मैंने उसकी मलाई खाकर अपनी भूख को कुछ हद तक शांत किया...तभी देवड़ा ने कहा, ‘राजीव से बोलना नहीं कि सैंडविच हीं दिए...वह पूछेंगे जरूर..’

और हुआ भी ऐसा ही....राजीव गांधी ने अगले स्टॉप पर मुझसे पूछा, “मुरली ने तुम्हें खाने को कुछ दिया?” मैंने ईमानदारी से सिर हिला दिया...

इस रात के सिर्फ 10 दिन बाद ही राजीव गांधी की हत्या कर दी गई...मैं कांप उठी कि वह श्रीपेरुंबदुर में जिस तरह सुसाइड बॉम्बर से मिले, ठीक उसी तरह तो वह 10 दिन पहले मुंबई में सारे बैरियर तोड़कर लोगों से मिल रहे थे...

मैं कभी लुटियन दिल्ली की रिपोर्टर नहीं रही, लेकिन उन दिनों राजीव गांधी अकसर बॉम्बे आया करते थे...और मेरा परमामेंट असाइनमेंट उन्हें कवर करना था...कभी वह  किसी आर्ट शो में आते, कभी नेवल बेस पर, कभी भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, अगस्त क्रांति मैदान, सब जगह मैं मौदूज रही....

मुझे याद है कि एक बार जहांगीर आर्ट गैलरी में वह किस तरह सोनिया गांधी का हाथ थामे किस तरह उन्हें डिवाइडर पार करवा रहे थे या फिर उनकी फोटो खींचते फोटोग्राफर के अचानक गिरने पर वह मदद के लिए आगे आए थे...

राजीव अपनी कार खुद चलाते, अपना विमान खुद उड़ाते थे...और जिस सुबह वह मुंबई से आखिरी बार रवाना हुए तो वे अपना विमान खुद उड़ाकर त्रिवेंदरम गए थे...ऐसा वह इसलिए भी करते थे, ताकि उनका पायलट लाइसेंस बना रहे....


जब तक मैं उनींदी आंखों के साथ दफ्तर पहुंचकर अपनी रिपोर्ट फाइल कर रही थी, तब तक राजीव गांधी के केरल पहुंचने की खबरें आने लगी थीं...राजीव पूरी रात नहीं सोए थे...और शरद पवार के साथ नाश्ता करने के बाद केरल के लिए रवाना हो गए थे

जिस दिन राजीव गांधी की हत्या हुई, उस दिन पता नहीं क्यों मुझे लग रहा था कि राजीव गांधी जैसा प्रधानमंत्री देश को नहीं मिलेगा और भारत भी पहले जैसा भारत नहीं रह जाएगा...मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा पूर्वाभास सच साबित होगा...

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