पीएम मोदी के ‘डिजिटल इंडिया’ की हकीकत, पहले से वंचित ग्रामीण समाज को और पीछे धकेला

ट्राई के आंकड़ों के अनुसार देश में इंटरनेट उपयोग करने वालों का घनत्व 48.4 है। शहरी क्षेत्र में यह घनत्व 97.9 है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह महज 25.3 है। इसका सीधा मतलब है कि मोदी सरकार का डिजिटल इंडिया ग्रामीण समाज को पहले से अधिक वंचित और शोषित बना रहा है।

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

डिजिटल इंडिया ने समाज को दो वर्गों में बांट दिया है- एक जिनके पास इंटरनेट की सुविधा है और दूसरे वे लोग जिनके पास यह सुविधा नहीं है। जिनके पास यह सुविधा नहीं है, समाज का वह तबका पहले से ही वंचित, सीमान्त और शोषित है। शहरों या कस्बों में हर किसी के हाथ में स्मार्टफोन देखकर लगता है कि देश में हर किसी के पास फोन है और हर कोई इन्टरनेट का उपयोग कर रहा है, पर ऐसा है नहीं। भारत इंटरनेट का उपयोग करने वालों के सन्दर्भ में दुनिया के देशों में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। यहां इंटरनेट का उपयोग करने वालों की संख्या 63 करोड़ है।

भारत में इंटरनेट के उपयोग करने वालों की संख्या अमेरिका, इंग्लैंड, रूस और दक्षिण अफ्रीका की सम्मिलित आबादी से भी अधिक है। इसके बाद भी इंटरनेट का उपयोग करने वालों की संख्या देश की आबादी की आधी भी नहीं है। देश में इंटरनेट के उपयोग करने वालों का घनत्व (प्रति 100 लोगों में संख्या) 48.4 है। टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के आंकड़ों के अनुसार शहरी क्षेत्रों में यह घनत्व 97.9 है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह घनत्व महज 25.3 है। आबादी के सन्दर्भ में यह अंतर और भी स्पष्ट होता है- देश के शहरी क्षेत्रों में कुल आबादी में से केवल 34 प्रतिशत लोग बसते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 66 प्रतिशत आबादी रहती है।

इसका सीधा सा मतलब यह है कि देश के हरेक आदमी जिसके पास इंटरनेट है, के साथ एक आदमी ऐसा है जिसके पास इंटरनेट नहीं है और अधिक संभावना यही है कि वह आदमी ग्रामीण क्षेत्र का है। ऐसे में प्रधानमंत्री समेत पूरी सरकार जब बार-बार डिजिटल इंडिया का नारा बुलंद करती है, तब वह ग्रामीण समाज को पहले से अधिक वंचित और शोषित बनाती है। डिजिटल इंडिया में सबको इंटरनेट सुविधा मुहैय्या कराने का लक्ष्य है और 250000 गांव तक ब्रॉडबैंड इंटरनेट सुविधा पहुंचाने की बात कही गयी थी, पर अभी तक इनमें से आधे गांव तक भी यह सुविधा नहीं पहुंच पाई है।


इंटरनेट सुविधा ने जो विभाजन पैदा किया है, उसके क्षेत्रीय आयाम भी हैं और लैंगिक भी। बिहार, उत्तर प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों में इंटरनेट की सुविधा बहुत कम है। इसी तरह, हिमाचल प्रदेश के सुदूर गांव, राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके और मध्य प्रदेश के वनाच्छादित इलाके इस सुविधा से महरूम हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री का प्रिय नारा- सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास- एक ढकोसला से अधिक कुछ नजर नहीं आता।

जीएसएमए की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार देश की कुल महिलाओं में से महज 16 प्रतिशत महिलाएं इंटरनेट का उपयोग करती हैं। यही नहीं, जितनी महिलाओं के पास यह सुविधा है उनमें भी पुरुषों की अपेक्षा इंटरनेट उपयोग की संभावना 56 प्रतिशत कम है। इसके अनेक सामाजिक कारण भी हैं, जिसके कारण वे इंटरनेट का उपयोग करने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं। अनेक ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों के स्मार्टफोन के उपयोग की मनाही है और दूसरी तरफ इन क्षेत्रों में महिलाएं अशिक्षित भी हैं और आर्थिक तौर पर पूरी तरह पुरुषों पर निर्भर भी।

देश के शहरी क्षेत्रों में पिछले 5 वर्षों में इंटरनेट क्रान्ति आयी है और इसका खूब विस्तार हो गया है। वर्तमान में लोग औसतन प्रति महीने 9 जीबी डाटा का उपयोग करते हैं, इससे 16 घंटे की वीडियो या फिल्म देखी जा सकती है। इसके मुकाबले साल 2015 में प्रति महीने महज 15 मिनट का उपयोग किया जाता था।

इंटरनेट ने समाज को नए तरीके से भले ही बांटा हो पर पहले का वंचित और सीमान्त समूह इस सन्दर्भ में भी पीछे रह गया है। सारी सुविधाएं पहले भी शहरों में मौजूद थीं, इसमें एक सुविधा और जुड़ गयी है।

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