मोदी सरकार के लिए चांद तक पहुंचना वैज्ञानिक नहीं बल्कि राजनैतिक उपलब्धि
इसरो की इस उपलब्धि को शुरू से ही इस कदर सरकार और मीडिया ने प्रचारित किया था, मानो इससे पहले इसरो ने कुछ किया ही नहीं था।
दिल्ली में सड़कों के किनारे कई स्थानों पर चंद्रयान-3 से संबंधित बड़े-बड़े होर्डिंग भारतीय जनता पार्टी की तरफ से लगाए गए हैं। इसमें चांद की सतह पर विक्रम लैंडर की धुंधली तस्वीर नेपथ्य में है, सामने लगभग आधे होर्डिंग पर प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर है। इसपर धन्यवाद मोदी जी तो नहीं लिखा है, पर ये पोस्टर निश्चित तौर पर इसी मकसद से लगाए गए हैं। निश्चित तौर पर अगले चुनावों में इस भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की उपलब्धि को इस तरह जनता के सामने पेश किया जाएगा मानो बादलों के बीच राडार को फेल करने के बाद मोदी जी ने अब चंद्रयान में भी महारत हासिल कर ली हो। इसरो की इस उपलब्धि को शुरू से ही इस कदर सरकार और मीडिया ने प्रचारित किया था, मानो इससे पहले इसरो ने कुछ किया ही नहीं था। मीडिया ने और सत्ता से जुड़े अनेक नेताओं ने तमाम हवनों और पूजा-अर्चनाओं को कुछ इस तरह पेश किया मानो वैज्ञानिकों ने नहीं बल्कि हवन और मंत्रो ने विक्रम को चन्द्रमा तक भेज दिया हो।
चन्द्रमा की सतह तक पहुंचते ही इसको राजनैतिक रंग दिया जाने लगा। जो मीडिया पिछले 2 दिनों से लगभग लगातार जनता को 23 अगस्त की शाम को 6 बजकर 4 मिनट का समय बता रहा था, वही मीडिया विक्रम के चन्द्रमा की सतह को छूते ही इसके विसुअल्स हटाकर पूरे परदे पर प्रधानमंत्री का सन्देश प्रसारित करने लगा। सन्देश के बाद भी सिलसिला थमा नहीं बल्कि इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ की मोदी जी से फ़ोन पर होने वाली बात तक पहुँच गया। विक्रम चन्द्रमा की सतह पर उपेक्षित रहा और तमाम समाचार चैनलों पर कभी प्रधानमंत्री को फ़ोन पर बात करते तो कभी एस सोमनाथ को फ़ोन रिसीव करते दिखाया जाने लगा था। इन सबके बाद चन्द्रमा और इसरो के वैज्ञानिक नजर आये। टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर इस वैज्ञानिक उपलब्धि के बाद अचानक से न्यू इंडिया, विश्व गुरु और विकसित इंडिया जैसे उपमा और अलंकार सुनाये जाने लगे। सोशल मीडिया पर तो इसके बाद फिर से धार्मिक उन्माद शुरू हो गया।
इसरो के वैज्ञानिकों के विजुअल्स जब भी टीवी स्क्रीन पर उभरते हैं तो इसे देखकर इस संस्थान की लगातार सफलता का रहस्य उजागर हो जाता है। वैज्ञानिकों के समूह में लगातार युवा चेहरे और आधे से अधिक महिलाओं के चेहरा नजर आते हैं। शायद यही इसरो की लगातार सफलता का राज भी है। इसमें बुजुर्ग वैज्ञानिकों, युवा वैज्ञानिकों और महिला वैज्ञानिकों के अलग समूह भी नजर नहीं आता – एक ही समूह में और एक जैसे उत्साह के साथ सभी वैज्ञानिक नजर आते हैं।
इसरो के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव एस सोमनाथ ने इसी वर्ष मई में उज्जैन में एक कार्यक्रम में बड़े गर्व से कहा था कि सारा विज्ञान और वैज्ञानिक सिद्धांत दुनिया में सबसे पहले वेदों और दूसरे हिन्दू ग्रंथों में बताये गए थे। इस ज्ञान की चोरी अरब देश के लुटेरों ने की और फिर इसे पश्चिमी देशों तक पहुंचाया। जाहिर है, उनके कहने का तात्पर्य यह था कि सारा ज्ञान-विज्ञान वेदों और दूसरे धार्मिक ग्रंथों में है जिसके सहारे पश्चिमी देशों ने आधुनिक विज्ञान की नींव रखी है। आश्चर्य यह है कि यह वक्तव्य और विचार किसी प्रधानमंत्री, राजनेता या सामान्य नागरिक के नहीं बल्कि एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक के हैं और वह एक ऐसे संस्थान का अध्यक्ष है जिस संस्थान के वैज्ञानिकों ने 1970 के दशक से लगातार राकेट विज्ञान और अंतरिक्ष के क्षेत्र में देश का मान बढ़ाया है। एस सोमनाथ के अनुसार वैदिक काल से ही हमारे मनीषि राकेट विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, खगोल शास्त्र, गणित, धातु विज्ञान, स्वास्थ्य और वायुयान जैसे विषयों के विद्वान थे, पर उस समय की भाषा संस्कृत थी पर इसे लिखा नहीं जाता था।
एस सोमनाथ एक ऐसा उदाहरण हैं जो वैज्ञानिक होने के बाद भी जनता में वैज्ञानिक चेतना जगाने के बदले पुरातनपंथी और अंधविश्वासी बना रहे हैं। जिस समय किसी भाषा को लिखा ही नहीं जाता था, जाहिर है उस काल के कोई ग्रन्थ भी नहीं होंगे और उस काल की आधी-अधूरी जानकारी होगी, उस काल में विज्ञान अपने चरम पर रहा होगा – यह दावा ही हास्यास्पद है। दूसरा बड़ा सवाल यह है कि जब उस काल में ग्रन्थ नहीं थे तो फिर अरब देशों के लुटेरों ने हमारे विज्ञान को चोरी कैसे किया होगा? एस सोमनाथ ने 23 अगस्त को चन्द्रमा की सतह तक पहुँचने पर इसरो के तमाम वैज्ञानिकों और देशवासियों को बधाई दी और प्रधानमंत्री से बात भी की – उन्हें अगला चंद्रयान आधुनिक विज्ञान की तकनीक से नहीं बल्कि वेदों के तथाकथित ज्ञान के आधार पर तैयार कर चन्द्रमा पर भेजना चाहिए – जो श्लोकों और संस्कृत के मंत्रों से चलता हो।
हमारे जैसे अंधविश्वासी देश में वैसे भी चन्द्रमा या दूसरे ग्रहों पर पहुंचाना कठिन नहीं है। यहां तो हरेक शहर और गांव में तमाम लोग आपको मिल जाएंगे जो केवल चन्द्रमा ही नहीं बल्कि किसी भी ग्रह की दशा, दिशा, गति और प्रभाव को मंत्रों, रत्नों और अनुष्ठानों से बदलने का दावा करते हैं। जब चन्द्रमा पूरी तरह हमारे अनुकूल हो तब जाहिर है वहां तक पहुंचना आसान होगा। एस सोमनाथ को यह भी बताना चाहिए कि जव प्राचीन ग्रंथों में हरेक जानकारी है तब फिर चन्द्रमा पर प्रज्ञान क्या खोज रहा है?
23 अगस्त को चन्द्रमा तक सफलतापूर्वक पहुंचने से और लगातार मीडिया द्वारा इसे दिखाने के सत्ता के सन्दर्भ में कई फायदे भी थे। उस दिन मिजोरम में एक निर्माणाधीन रेल-पुल गिर गया और इसमें अनेक श्रमिक मारे गए – यह समाचार मीडिया से पूरी तरह से गायब रहा।
चन्द्रमा पर सफलतापूर्वक पहुंचना वैज्ञानिक दृष्टि से महान उपलब्धि है, पर इस उपलब्धि से सामान्य जनता को हासिल क्या होगा? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। जिस देश की 140 करोड़ आबादी में से 81 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देकर जिंदा रखा जाता हो, उस देश को चांद तक पहुंचाने के क्या मायने हैं? 23 अगस्त को तमाम टीवी समाचार चैनलों में बैठे विशेषज्ञों ने भारत को चांद तक पहुंचने वाला चौथा देश और चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास पहुंचने वाला पहला देश तो बताया पर किसी ने भी इस अभियान के स्पष्ट फायदे नहीं बताये। किसी ने कहा पानी खोजेंगे, किसी ने कहा चाँद टूरिज्म करेंगे और किसी ने कहा कि चन्द्रमा पर खनिज की खोज होगी।
यदि चन्द्रमा पर पहुंचने के यही कारण हैं तो फिर पृथ्वी की तरह चन्द्रमा का भी तबाह होना तय है। पर, चन्द्रमा तक पहुंचने की बाद भी आपका चन्द्रमा खराब बताकर आपको बेवकूफ बनाने वालों की संख्या में कोई अभी नहीं आएगी। चन्द्रमा पर प्रज्ञान अपना काम करेगा, पर इससे अधिक काम अगले चुनावों में भाजपा करेगी, और इस पूरे अभियान को वैज्ञानिकों की उपलब्धि से हटाकर मोदी जी की उपलब्धि में तबदील कर देगी।
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