कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी को दिखानी होगी नई कल्पनाओं और विचारों की धार

जब देश अपनी पीठ थपथपाने वाले बहुसंख्यकवाद में तब्दील हो रहा है जहां एक वोट और हत्यारी भीड़ में फर्क नहीं बचा, ऐसे में राहुल गांधी नई कल्पना की राजनीति को लोकतंत्र की उम्मीद की तरह सामने रख सकते हैं।

फोटो: विपिन
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शिव विश्वनाथन

सत्ता और कांग्रेस के अध्यक्ष पद तक पहुंचने का राहुल गांधी का सफर बहुत संकोची रहा है। अक्सर पूरे सफर और उसकी कहानी को इस तरह से दिखाया जाता है कि खुद राहुल गांधी ही अपने भविष्य लेकर दिलचस्पी नहीं लेते हैं। लेकिन अब भविष्य इशारा कर रहा है और उनका पहला काम एक पार्टी और विचार के रूप में कांग्रेस की साफ-सफाई कर उसे हरा-भरा बनाना है।

कांग्रेस बहुत तेजी से एख अतीत की पार्टी बनती गई है या एक ऐसी पार्टी जिसके पास सिर्फ उसका अतीत है। वह अतीत विरासत से ज्यादा बोझ की तरह है। कांग्रेस को अपने अतीत और वर्तमान को एक नए तरीके से सोचना और सामने रखना होगा। कांग्रेस को एक नई भाषा, नए आख्यान और नए मुहावरे की जरूरत है। इसे फिर से अपने इलाके और अपनी वैधता के स्त्रोतों को बनाना होगा।

राहुल गांधी को नए किस्म के आख्यानों की जरूरत है। अगर बीजेपी अतीत के आधार पर अपनी वैधता पाना चाहती है, तो कांग्रेस को अपनी विरासत को समझते हुए नए इलाके बनाने होंगे जिनका एक भविष्य हो और जो भविष्य की गांरटी देते हों। कांग्रेस को एक ऐसी भाषा की जरूरत है जहां क्षेत्रीय जबानों में भी समावेशी और न्यायपूर्ण बातें कही जाती हों। कांग्रेस समाजवाद की भाषा नहीं बोल सकती क्योंकि, सही या गलत, समाजवाद को शासन की एक अयोग्य भाषा के तौर पर गढ़ दिया गया है।

कांग्रेस को न्याय और विविधता को दो अलग-अलग स्तरों पर मिलाना होगा। पहला, लोकतंत्र की कल्पना के तौर पर और दूसरा, योग्यता, कार्य व्यवस्था और शासन की पारदर्शी भाषा के तौर पर। खोखले वादों की भाषा को काम की भाषा के लिए जगह बनानी होगी और यह पूरा काम सिर्फ व्यवहारिकता और काम निकालने के उद्देश्य से नहीं होगा। इसमें न्याय का दर्शन होना चाहिए जो नई पीढ़ी को अपनी ओर खींच सके।

कांग्रेस को गहराई से बीजेपी की गलतियों को समझना होगा और उसके आधार पर खुद का पुनर्निर्माण करना होगा। इसकी सबसे बड़ी समझदारी यह होगी कि यह किस तरह प्रतिरोध की आवाजों, हाशिए के लोंगों और ‘अल्पसंख्यकवाद’ को एकता के व्यापक सूत्र में बांधता है। यह सिर्फ चुनावी गणित को ध्यान में रखकर नहीं, बल्कि भारत की एक नई समझ से तय होगा। इसे अपनी गलतियों को समझना होगा, खासतौर पर नर्मदा से लेकर इसकी वन आधारित नीति के तहत चलने वाली विकास परियोजनाओं की हिंसा तक को।

इसे एक ऐसे सामाजिक अनुबंध की जरूरत है जिसके अंतिम आदमी के दर्शन में आदिवासियों, कामगारों, विस्थापितों और लुप्तप्राय लोगों को जगह मिले और जिसे समाज के नैतिक आधार के रूप में गांधी देखना चाहते थे।

कांग्रेस के विचार में जान फूंकने के लिए गांधी के दर्शन को वापस लाना होगा। मसलन, कुछ साल पहले कांग्रेस ने बादशाह खान के खुदाई-खिदमतगार के विचार को फिर से आगे बढ़ाते हुए जमीन पर जोश-खरोश पैदा करने का एक कमाल का तरीका ढूढ़ा था। इससे न सिर्फ संवाद और दूसरों की परवाह करने का एक समावेशी विचार विकसित हुआ, बल्कि भागीदारी और सहभागिता की एक समझ बनी।

पार्टी को अपने मुख्य सदस्यों में उन लोगों को वापस लाना होगा, जिनके पास आदर्शों और मूल्यों की थाती है, जिनके पास सपने हैं, उन्हें नहीं जो कांग्रेस को अपनी अकांक्षा पूरी करने के एक तरीके के रूप में देखते हैं। आश्रम का दर्शन इसके मुख्य आदर्शों में शामिल होना चाहिए। आम आदमी पार्टी का उभार यह दिखाता है कि आदर्शों वाले युवा राजनीति में आना चाहते हैं। राहुल गांधी लगातार युवाओं के महत्व पर जोर देते रहे हैं, उन्हें युवाओं को समाजशास्त्रीय समूह के तौर पर देखना होगा और उनका रचनात्मक विकास करना होगा, ताकि नैतिक ‘स्टार्टअप’ शुरू किए जा सकें। आज इस आदर्श में कुछ भी नासमझी भरा नहीं है। इसे भविष्य के रचनात्मक समझ के तौर पर देखना होगा।

कांग्रेस को एक बार फिर हाशिए पर खड़े लोगों की आवाज बनना होगा और उनके सपनों की सैद्धांतिकी तैयार करनी होगी, जो यह मानते हैं कि लोकतंत्र ही जीने का तरीका है। इसे आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट जैसे विचार को निकाल देना होगा और विकास के सपनों के परिणाम के तौर पर होने वाली हिंसा पर सवाल उठाना होगा।

कांग्रेस को यह सुनिश्चित करना होगा कि गरीबी की अनदेखी न की जाए। इसके लिए उसे असंगठित अर्थव्यवस्था और कृषि का पुनर्निर्माण करना होगा, जिसे बीजेपी तहस-नहस करने में जुटी है। कृषि को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया में आदिवासी अर्थव्यवस्था और अंसगठित क्षेत्र का लोकतंत्रीकरण करते हुए कांग्रेस को अपनी लोकतांत्रिक कल्पना के लिए नया राजनीतिक अर्थशास्त्र गढ़ना होगा।

इसके लिए विविधता की नई कल्पना की जरूरत है, जो कई मायनों में योजना के लंबे इतिहास में उपेक्षित रही है। बीजेपी के जनाधार में भी कांग्रेस को संस्कृति का एक नया विचार ले जाना होगा जिसमें विविधता को जगह दी जाती है, जहां बहुलता का विचार अल्पसंख्यकवादी कल्पना से भी आगे जाता है। इसे ऐसे कानून लाने होंगे जिससे संविधान में प्रकृति को जगह मिले, ताकि पर्यावरण के हर सवाल को जीविका के सवाल से जोड़ा जा सके और वह लोकतांत्रिक कल्पना का केन्द्रीय तत्व बने।

इसे क्षेत्रीय भाषाओं और मौखिक परंपराओं को आगे बढ़ाना होगा, ताकि बीजेपी के सांस्कृतिक विचार के खोखलेपन को चुनौती दी जा सके। इसे बहुलता की शक्ति और समन्वयवाद की रचनात्मकता को समझना होगा, ताकि कमजोर क्षणों में यह सेकुलरवाद की कमजोर समझ को न पाल ले या नकल करते हुए कमजोर हिंदुत्व के आश्रय में न चली जाए।

इसे विचार के लोकतंत्र को पनपने देना होगा जो सभ्यतामूलक, बहुधार्मिक हो और जिसमें विरोधी आवाजों और हाशिए की कल्पना के लिए जगह हो। इसके लिए स्कूल और विश्वविद्यालय के विचार को ज्यादा रचनात्मक कल्पना के साथ देखना होगा।

मेरा मानना है कि कांग्रेस को इतिहास में वापस जाना होगा और राष्ट्रवाद के इतिहास का बहुलतावादी कल्पनाओं के इतिहास, उपलब्ध अनोखेपन, और वैकल्पिक विचारों के तौर पर पुनर्पाठ करना होगा। संभव और असंभव विचारों की बहुलता को विकास, सुरक्षा और राष्ट्र-राज्य के मौजूदा विचार को चुनौती देनी होगी, जिससे नागरिकता की तरलता बन सके और जो लोकतंत्र को चुनावी दायरों से आगे ले जा सके। इसके लिए न सिर्फ देश के भीतर बहुलतावादी दायरों को बनाने की जरूरत है, बल्कि सार्क जैसी कल्पनाओं को क्षेत्र के नए विचार के रूप में ढालना होगा।

बहुत साल पहले, राजनीतिशास्त्री रजनी कोठारी ने अपनी महत्वपूर्ण किताब ‘पॉलिटिक्स इन इंडिया’ में यह तर्क दिया था कि असमान विचारों की भ्रांतियों से ही भारत का रूप बना है। एक संगठन के रूप में कांग्रेस ने भारत के इस विचार का अनुकरण किया है। आज जब भारत की यह समझ बदल रही है तो कांग्रेस को विचारों के एक भारत का निर्माण करना होगा, जो एक नई कल्पना को बनाने में मदद कर सकती है। कांग्रेस को एक पार्टी के रूप में खुद की कल्पना के पुनर्निर्माण की जरूरत है। सिर्फ तब सांस्थानिक अर्थों में कोई सुधार आ सकता है।

अगर हम सुधार को मरम्मत के एक चालू विचार में घटा देंगे, तो कांग्रेस खत्म हो जाएगी। जब देश खुद की पीठ थपथपाने वाले बहुसंख्यकवाद में तब्दील होता जा रहा है जिसमें एक वोट और हत्यारी भीड़ में फर्क नहीं किया जाता, ऐसे में इस नई कल्पना की राजनीति को राहुल गांधी लोकतंत्र की एक उम्मीद के रूप में सामने रख सकते हैं।

इस संदर्भ में, एक छोटी पर जरूरी चेतावनी जोड़नी होगी। जब भी कांग्रेस सत्ता में रही है, यह आलोचना को लेकर या तो अहंकारी रही है या फिर अनपढ़। चाहे मानवाधिकार समूहों का सवाल हो या नागरिक समाज के प्रतिरोधों का, कांग्रेस में एक आडंबरी व्यवहार दिखा है। अब इसे मेहनत कर उनके प्रति एक खुला व्यवहार दिखाना होगा और उनसे सीखना होगा। भविष्य की एक संभावना के तौर पर आपातकाल को हमेशा के लिए खारिज कर देना होगा और दिमाग के आपातकालों को भी मिटा देना होगा। एक नए खुलेपन की तलाश में कांग्रेस को यह सारी बातें नहीं भूलना चाहिए। एक नए लोकतांत्रिक कल्पना की तलाश में इसे अपने पुराने पापों की एक सूची साथ रखनी चाहिए। सिर्फ ऐसा आत्मविश्लेषण ही इसे खुद की पुनर्रचना करने का मौका देगा।

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