पंजाब: राजनीति की कठपुतलियां और कारसाज

यह कहना जल्दबाजी होगी कि सुखबीर के अकाल तख्त जत्थेदार के सामने पेश होकर बिना शर्त माफी मांगना अस्तित्व के संकट से जूझ रही पार्टी को पुनर्जीवन देने में मददगार होगा!

फोटो: सोशल मीडिया
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हरजेश्वर पाल सिंह

शिरोमणि अकाली दल (बादल) का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। वरिष्ठ नेता बलविंदर सिंह भुंडर की अध्यक्षता वाली पार्टी की अनुशासन समिति की सिफारिशों पर प्रेम सिंह चंदूमाजरा, बीबी जागीर कौर और सिकंदर सिंह मलूका की अगुवाई वाले आठ विद्रोही अकाली नेताओं के पार्टी से निष्कासन के बाद संकट और गहरा गया है। वयोवृद्ध अकाली नेता और पार्टी संरक्षक सुखदेव सिंह ढींडसा ने फैसले की वैधता पर सवाल उठाया तो अगले ही दिन उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। विद्रोहियों ने पार्टी के उत्थान और कायाकल्प के लिए एक समानांतर संगठन ‘शिरोमणि अकाली दल सुधार लहर’ बनाया था और पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के इस्तीफे की मांग की थी।

ढींढसा और चंदूमाजरा पार्टी में बादल परिवार के बाहर सबसे बड़े अकाली नेता माने जाते थे। केन्द्र की अटल सरकार में मंत्री रहे ढींडसा पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के करीबी विश्वासपात्र रहे और उन्हें संगरूर क्षेत्र का निर्विवाद अकाली नेता माना जाता था जो अब ‘आप’ का गढ़ बन चुका है। ढींडसा और उनके बेटे परमिंदर ने सुखबीर बादल के खिलाफ बगावत कर अपनी खुद की पार्टी शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) बनाई। इसने 2022 का विधानसभा चुनाव भी भाजपा के साथ गठबंधन में लड़ा लेकिन खाता नहीं खोल सकी।

वह 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी में लौटे थे और संरक्षक बनाए गए थे। हालांकि अपने परिवार को संगरूर से लोकसभा टिकट न देने के लिए उन्होंने सुखबीर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। वामपंथी से अकाली बने चंदूमाजरा अकाली नेता गुरचरण सिंह टोहरा के शिष्य और पूर्व सांसद रहे हैं। उन्हें पटियाला-आनंदपुर इलाके में खासा प्रभावशाली माना जाता है।

विद्रोही नेता इससे पहले अकाल तख्त के सामने पेश हुए थे और अपनी ‘गलतियों’ के लिए माफी मांगी थी जिनके कारण अकाली शासन से ‘लोगों का मोहभंग’ हुआ था। उन्होंने अकाल तख्त जत्थेदार को सुखबीर के खिलाफ कई आरोप लगाते हुए एक पत्र भी दिया जिसमें जिसमें डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम सिंह को अकाल तख्त से माफी ‘दिलाने में उनकी भूमिका’, ‘बेअदबी’ पर न्याय दिलाने में विफलता और विवादास्पद आईपीएस सुमेध सिंह सैनी को राज्य पुलिस प्रमुख नियुक्त करने जैसे मुद्दे शामिल थे। इसके बाद सुखबीर अकाल तख्त जत्थेदार के सामने पेश हुए और उन्होंने “सभी गलतियों” की पूरी जिम्मेदारी लेते हुए अकाल तख्त जत्थेदार को लिखे अपने प्रायश्चित पत्र में अकाली दल प्रमुख के तौर पर “बिना शर्त माफी” मांगी। अब सुखबीर के खिलाफ जत्थेदार क्या कार्रवाई करते हैं, यह देखने वाली बात होगी। यह कहना जल्दबाजी होगी कि यह कदम अस्तित्व के संकट से जूझ रही पार्टी को पुनर्जीवन देने में मददगार होगा!

भगवंत मान के लिए लाइफ लाइन

जालंधर पश्चिम उपचुनाव की जीत मुख्यमंत्री भगवंत मान के लिए बड़ी राहत लेकर आई है जो लोकसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के कारण आम आदमी पार्टी आलाकमान के भारी दबाव में थे। हालांकि यह जीत पार्टी की छवि की कीमत पर हासिल मानी जा रही है क्योंकि आम आदमी पार्टी पर ‘फिनिशिंग लाइन’ पार करने के लिए सत्ताधारी दलों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सारे पारंपरिक हथकंडों- दलबदल, धन, बाहुबल और सरकारी मशीनरी के खुले इस्तेमाल के आरोप लगे हैं।

आम आदमी पार्टी का “अलग तरह की पार्टी” होने वाला आभामंडल अब साफ तौर पर दरक चुका है और इसकी “बयानबाजी” और “वास्तविकता” के अंतर ने मतदाता को निराश किया है। आम आदमी पार्टी 2022 में ‘दिल्ली मॉडल’, भगवंत मान की लोकप्रियता, अरविंद केजरीवाल की विश्वसनीयता, नए विधायक उम्मीदवारों, उत्साहित स्वयंसेवकों और ‘बदलाव’ के वादों के साथ-साथ किसान आंदोलन से उपजी मुख्यधारा की पार्टियों के खिलाफ भारी सत्ता विरोधी लहर पर सवार होकर भारी बहुमत से सत्ता में आई। कार्यकाल के आधे समय में ही आम आदमी पार्टी ने अपने कई मौके गंवा दिए हैं। इसका दिल्ली स्थित नेतृत्व पंजाब में विश्वसनीयता खो चुका है, इसके कई विधायक अपने कार्यकलाप और भ्रष्टाचार के कारण अलोकप्रिय हैं, राज्य सरकार दिशाहीन दिखती है, राज्य का खजाना खाली है और माना जाता है कि सरकार ड्रग्स, भ्रष्टाचार और बालू माफिया पर नकेल कसने में विफल रही है। दलितों, महिलाओं और कर्मचारियों सहित आबादी का बड़ा वर्ग चुनावी वादे पूरे न करने के कारण सरकार के खिलाफ है।

हालांकि आम आदमी पार्टी के लिए अगर रोशनी की कोई किरण है, तो वह मुख्यमंत्री भगवंत मान की छवि है। मुख्यमंत्री ने लगातार “आम आदमी” वाला कार्ड खेलते हुए, बड़ी होशियारी से हमलों, सभाओं, विज्ञापनों, कार्यक्रमों का इस्तेमाल अपने समर्थकों की नाक ऊंची रखने और विरोधियों को नीचा दिखाने के लिए किया और सफल रहे हैं। पंजाब और उसके बाहर भी इसका कल्याण, स्वास्थ्य और शिक्षा वाला मॉडल जनता तक पहुंचाते हुए वह लगातार “ब्रांड आप” के सर्वश्रेष्ठ ‘दूत’ बने हुए हैं। उनकी सहजता, वक्तृत्व और संचार कौशल कम नहीं हुआ है। हालांकि वह अकेले अपने दम पर 2027 में आप की गाड़ी को अंतिम रेखा तक खींचकर पहुंचा पाएंगे, यह सवाल कायम है और अनुत्तरित भी।

अतिवादी पंथिक राजनीति की दशा-दिशा

अपनी लकीर पर लंबे समय तक अड़े रहे सुदूर दक्षिणपंथी सिख समूहों का अप्रत्याशित पुनरुद्धार पंजाब में लोकसभा चुनावों की प्रमुख विशेषताओं में से एक था। नव-पंथिकों में सबसे प्रमुख और सक्रिय फरीदकोट के नवनिर्वाचित सांसद सरबजीत खालसा हैं जिन्होंने जेल में बंद तरण तारण के सांसद अमृतपाल सिंह की सलाह से एक नई ‘पंथिक’ पार्टी बनाने के अपने इरादे की घोषणा की है।

हालांकि ड्रग्स के खिलाफ लड़ाका योद्धा की पहचान वाले अमृतपाल सिंह की छवि को तब झटका लगा जब उनके भाई हरप्रीत सिंह को जालंधर पुलिस ने नशीली दवा ‘आइस’ का सेवन करने और उसे अपने पास रखने के आरोप में पकड़ लिया। गुटबाजी, संगठन की कमी और नेतृत्व में एका के संकट के बावजूद, पंजाब की धरती कई कारणों से धुर-दक्षिणपंथी राजनीति के लिए खासी उर्वर बनी हुई है और ड्रग्स, रिवर्स माइग्रेशन, बढ़ती राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, मोहभंग का शिकार युवा, सोशल मीडिया का ध्रुवीकरण और भीड़ भड़काने वाली राजनीतिक धंधेबाज फौज इसके प्रमुख कारक हैं।

अलग अंदाज वाले चरणजीत चन्नी

पंजाब में एक राजनेता ऐसे भी हैं जिनका शेयर लगातार बढ़ रहा है और वह हैं पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी। जालंधर लोकसभा क्षेत्र से अपनी बड़ी जीत के बाद चन्नी ने हिरासत में लिए गए सांसद अमृतपाल सिंह की ‘एनएसए में गिरफ्तारी’ का मुद्दा उठाकर हलचल मचा दी। जाहिर तौर पर कांग्रेस ने चन्नी के बयानों से खुद को अलग कर लिया है लेकिन चन्नी का रणनीति का अपना एक अलग ही डिजाइन और तरीका है।

राज्य के सबसे बड़े दलित नेता चन्नी का गरीबों, युवाओं और जट सिख मतदाताओं के बीच पहले से ही एक बड़ा अनुयायी वर्ग है। वह उनके उस हास्य और चतुराई का भी मुरीद है जिसका प्रदर्शन उन्होंने फिरोजपुर के रास्ते में अपना काफिला रोके जाने पर प्रधानमंत्री मोदी का बड़ी कुशलता से मुकाबला करने में किया था। अपने मजबूत दलित आधार के साथ ही वह किसान हित के मुद्दे उठाकर और पंजाब के एक प्रतीक बन चुके, मारे गए पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला को न्याय दिलाने की वकालत करके जट सिख समुदाय को भी अपने साथ जोड़कर रखने में सफल हुए हैं। नई दिल्ली में कांग्रेस नेतृत्व के पहले से ही करीबी माने जाने वाले चन्नी दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में सक्रियता के साथ नेटवर्किंग करते हुए अपने समय का इस्तेमाल तो कर ही रहे हैं, खुद को पंजाब की राजनीति में नेतृत्वकारी भूमिका के लिए भी मजबूती से स्थापित कर रहे हैं।

(हरजेश्वर पाल सिंह एसजीजीएस कॉलेज, चंडीगढ़ में सहायक प्रोफेसर हैं)

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