G20 शिखर सम्मलेन में जलवायु परिवर्तन नियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण पर वादे और इरादे

साझा घोषणापत्र के अनुसार, “हम जलवायु परिवर्तन सहित विभिन्न पर्यावरणीय संकट और चुनौतियों से निपटने के अपने कार्य में तत्काल तेजी लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।"

फोटो: विपिन
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महेन्द्र पांडे

भारत की अध्यक्षता में जी20 के सभी राजनेताओं का शिखर सम्मेलन 9-10 सितम्बर, 2023 को नई दिल्ली में संपन्न हुआ और जिसका आदर्श “वसुधैव कुटुम्बकम” था। इस सम्मलेन में केवल आर्थिक सहयोग और प्रगति पर ही नहीं बल्कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण विनाश जैसे वैश्विक समस्याओं पर भी चर्चा की गयी, और इन समस्याओं को दूर करने के कदम भी सुझाए गए। हालांकि, भारत समेत इसके अधिकतर सदस्य देश अपने देश में या वैश्विक स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण को एक उपेक्षित विषय मानते हैं, जिसकी चर्चा तो की जाती है पर समाधान नहीं खोजा जाता है।

साझा घोषणापत्र के अनुसार, “विश्व की सटीक दिशा तय करने के लिए जी20 के सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग अत्यंत आवश्यक है। वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास और आर्थिक स्थाईत्व में प्रतिकूल हालात अब भी बने हुए हैं। आपस में जुड़ी तरह-तरह की चुनौतियों और संकट के लगातार कई वर्षों तक जारी रहने के कारण 2030 एजेंडा और इसके सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की दशकों में हासिल हुई गति अब पलट गई है। वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउसगैसों (जीएचजी) के उत्सर्जन में निरंतर वृद्धि हो रही है। यही नहीं, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता को हो रहे भारी नुकसान, प्रदूषण, सूखा, भूमि क्षरण और मरूस्थलीकरण के कारण लोगों के जीवन और आजीविका पर खतरा मंडरा रहा है। खाद्य पदार्थों और ऊर्जा की कीमतों सहित अनेक कमोडीटी या वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाने के कारण जीवनयापन की लागत बढ़ती जा रही है। गरीबी एवं विषमता, जलवायु परिवर्तन, महामारी और युद्ध जैसी वैश्विक चुनौतियों की वजह से महिलाओं एवं बच्चों और समाज के सबसे कमजोर या असुरक्षित तबके का जीवन बुरी तरह प्रभावित होता है।“

“एकीकृत और समावेशी दृष्टिकोण को अपनाते हुए कम जीएचजी/कम कार्बन उत्सर्जन, जलवायु-अनुकूल और पर्यावरणीय रूप से सतत विकास वाले पथ पर चलेंगें। हम विकास और जलवायु चुनौतियों से निपटने के लिए अपने ठोस उपायों में तत्काल तेजी लाएंगे, पर्यावरण के लिए जीवन शैली (लाइफ) को बढ़ावा देंगें, और जैव विविधता, जंगलों एवं महासागरों का संरक्षण करेंगे।”

जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट

साझा घोषणापत्र के अनुसार, “हम जलवायु परिवर्तन सहित विभिन्न पर्यावरणीय संकट और चुनौतियों से निपटने के अपने कार्य में तत्काल तेजी लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दुनियाभर में, विशेष तौर पर एलडीसी और एसआईडीएस सहित सबसे गरीब और सबसे कमजोर वर्ग के लोगों द्वारा अनुभव किया जा रहा है। अपनी नेतृत्वकारी भूमिका को ध्यान में रखकर, हम समानता और साझा लेकिन वर्गीकृत जिम्मेदारियों एवं संबंधित क्षमताओं के सिद्धांत को दर्शाते हुए पेरिस समझौते और उसके तापमान संबंधी लक्ष्यों के पूर्ण एवं प्रभावी कार्यान्वयन को मजबूत करके जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने हेतु यूएनएफसीसीसी के उद्देश्यों की प्राप्ति के क्रम में विविध राष्ट्रीय परिस्थितियों के आलोक में अपनी दृढ प्रतिबद्धताओं की पुष्टि करते हैं। हम चिंता के साथ इस तथ्य को दर्ज करते हैं कि जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने से जुड़ी वैश्विक महत्वाकांक्षा और कार्यान्वयन पेरिस समझौते के तापमान संबंधी लक्ष्यों, जिसमें वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को औद्योगीकरण के पूर्व के स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक से नीचे रखने और तापमान वृद्धि को औद्योगीकरण के पूर्व के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक तक सीमित करने के प्रयास को आगे बढ़ाने की बात शामिल है, को हासिल करने की दृष्टि से अपर्याप्त है।”

“हम सर्वोत्तम उपलब्ध विज्ञान को ध्यान में रखते हुए, पेरिस समझौते के सभी स्तंभों पर महत्वाकांक्षी कार्यवाई करने के महत्त्व को रेखांकित करते हैं। तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बहुत कम होने संबंधी आईपीसीसी के आकलन को ध्यान में रखते हुए, हम तापमान बृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए आगे के प्रयासों को प्रोत्साहित करने के अपने संकल्पों को दोहराते हैं। इसके लिए विभिन्न दृष्टिकोणों को में रखते हुए, सभी देशों की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर दीर्घकालिक महत्वाकांक्षाओं को अल्पकालिक एवं माध्यम अवधि के लक्ष्यों के अनुरूप ढालने वाले स्पष्ट रास्ते विकसित करने के जरिये और वित्त एवं प्रोद्योगिकी सहित अंतरराष्ट्रीय सहयोग व समर्थन के साथ तथा सतत विकास के सन्दर्भ में टिकाऊ एवं जिम्मेदार उपभोग व उत्पादन के महत्वपूर्ण प्रवर्तकों के रूप में सार्थक एवं प्रभावी कार्यों और प्रतिबद्धता की आवश्यकता होगी। हम मानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए वर्ष 2019 के वैश्विक स्तर के सापेक्ष वर्ष 2030 तक जीएचजी उत्सर्जन में 43 प्रतिशत की तीव्र, गहरी और निरंतर कटौती की आवश्यकता है। हम वैश्विक मॉडल मार्गों एवं मान्यताओं पर आधारित आईपीसीसी एआर सिंथेसिस रिपोर्ट 6 के निष्कर्षों पर भी ध्यान देते हैं, जिसमें कहा गया है कि वैश्विक जीएचजी उत्सर्जन से पहले 2025 और 2020 के दौरान उन वैश्विक मॉडल मार्गों, जो बिना या सीमित अतिक्रमण के साथ वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करते हैं और उन मार्गों ,जो वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करते हैं तथा तत्काल कार्रवाई चाहते हैं, में चरम पर पहुंचने का अनुमान है। इसका मतलब यह नहीं है कि इस समय सीमा के भीतर सभी देशों में तापमान चरम पर पहुंच जाएगा। चरम पर पहुंचने की समय सीमा सतत विकास, गरीबी उन्मूलन संबंधी आवश्यकताओं, समानता और विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप तय हो सकती है। हम यह भी मानते हैं कि इस संबंध में वैश्विक एवं पारस्परिक रूप से सहमत शर्तों पर प्रौद्योगिकी विकास व हस्तांतरण, क्षमता निर्माण और वित्तपोषण विभिन्न देशों की सहायता कर सकते हैं।”

“ हम उन सभी देशों, जिन्होंने अभी तक अपने एनडीसी को पेरिस समझौते के तापमान संबंधी लक्ष्यों के अनुरूप नहीं बनाया है, से अपने एनडीसी में 2030 के लक्ष्यों को फिर से निर्धारित व मजबूत करने का आग्रह करते हैं विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए 2023 के अंत तक ऐसा करना आवश्यक है और हम उन देशों का स्वागत करते हैं जिन्होंने पहले ही ऐसा कर लिया है। हम एनडीसी का राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित प्रकृति और पेरिस समझौते के अनुच्छेद 4.4 को याद करते हैं, जिसमें यह प्रावधान है कि विकसित देशों को अर्थव्यवस्था के अनुरूप उत्सर्जन में पूर्ण कटौती के लक्ष्यों को हासिल करके आगे बढ़ना जारी रखना चाहिए। विकासशील देशों को उत्सर्जन में कमी लाने के अपने प्रयासों को आगे बढ़ाना जारी रखना चाहिए और उन्हें विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों के आलोक में अर्थव्यवस्था के अनुरूप उत्सर्जन में कमी लाने या सीमित रखने के लक्ष्य को दिशा में समय के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।”

“इस सन्दर्भ में, हम उन देशों की सराहना करते हैं जिनके एनडीसी में सभी जीएचजी को कवर करते हुए अर्थव्यवस्था के अनुरूप लक्ष्य शामिल हैं और अन्य देशों को विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों के आलोक में अपने आगामी एनडीसी चक्र में अर्थव्यवस्था के अनुरूप ऐसे लक्ष्यों को शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। हम दुबई में कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज में पहले वैश्विक स्टॉकटेक के सफल समापन में योगदान देंगे, जो उत्सर्जन घटाने, अनुकूलन और कार्यान्वयन एवं सहयोग के साधनों के मामले में उन्नत जलवायु कार्यवाई को प्रेरित करेगा। हम नवीनतम वैज्ञानिक विकासों को ध्यान में रखते हुए और विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप चक्रिय कार्बन अर्थव्यवस्था, सामाजिक आर्थिक, तकनीक एवं बाजार के विकास और सबसे प्रभावी समाधानों को बढ़ावा देने सहित विभिन्न दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, मध्य शताब्दी तक या उसके आसपास वैश्विक शुद्ध शून्य जीएचजी उत्सर्जन/ कार्बन निरपेक्षता का लक्ष्य हासिल करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हैं।”


एक सर्कुलर इकोनॉमी पर आधारित दुनिया की रूपरेखा

“हमारे आर्थिक विकास को पर्यावरणीय क्षरण से अलग करने और आर्थिक विकास का समर्थन करते हुए प्राथमिक संसाधन उपभोग सहित टिकाऊ उपभोग एवं उत्पादन को बढ़ाने के प्रयास हेतु हम सतत विकास हासिल करने में सर्कुलर इकोनॉमी, विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी और संसाधन दक्षता द्वारा निभाई गई महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हैं। हम संसाधन दक्षता और सर्कुलर इकोनॉमी उद्योग गठबंधन (आरईसीईआईसी) का शुभारंभ करने के लिए भारत की अध्यक्षता को धन्यवाद देते हैं। हम पर्यावरण के अनुकूल अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ाने, तथा अपशिष्ट उत्पादन को काफी हद तक कम करने और शून्य अपशिष्ट पहल के महत्व को रेखांकित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

स्वच्छ एवं समावेशी ऊर्जा परिवर्तन का कार्यान्वयन

“हम मजबूत, टिकाऊ, संतुलित और समावेशी विकास को संभव बनाने और अपने जलवायु संबंधी उद्देश्यों को हासिल करने के साधन के रूप में विभिन्न मार्गों का अनुसरण करते हुए स्वच्छ, टिकाऊ, न्यायसंगत, किफायती एवं समावेशी ऊर्जा परिवर्तन में तेजी लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम विकासशील देशों की जरूरत, कमजोरियां, प्राथमिकताओं और विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों को पहचानते हैं। हम नवाचार, स्वैच्छिक एवं पारस्परिक रूप से सहमत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और कम लागत वाले वित्तपोषण की सुलभता को बढ़ावा देने हेतु मजबूत अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर समर्थ बनाने वाले वातावरण का समर्थन करते हैं।”


महासागर आधारित अर्थव्यवस्था का दोहन और संरक्षण

“हम विश्व के महासागर, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण, रक्षण, पुनरस्थापन और उनके टिकाऊ उपयोग के लिए प्रतिबद्ध हैं और इस दिशा में प्रगति के लिए उत्सुक हैं तथा इस संबंध में 2025 संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन में योगदान देने को तत्पर हैं। इस प्रयोजन के लिए, हम:

 I. टिकाऊ और लचीली नीली/महासागर आधारित अर्थव्यवस्था के लिए चेन्नई उच्च-स्तरीय सिद्धांतों का स्वागत करते हैं।

II. राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों की समुद्री जैविक विविधता (बीबीएनजे) के संरक्षण और टिकाऊ उपयोग के संबंध में संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (यूएनसीएलओएस) के तहत कानूनी रूप से बाध्यकारी नए अंतरराष्ट्रीय साधनों को अपनाने पर ध्यान देंगे और सभी देशों से इसमें जल्दी से जल्दी शामिल होने और इसे लागू करने का आह्वान करते हैं।

III. अंटार्कटिक संधि प्रणाली के भीतर अंटार्कटिक समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण के लिए आयोग (सीसीएएमएलआर) का समर्थन करते हैं, ताकि उपलब्ध सर्वोत्तम वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर सीसीएएमएलआर अन्वेंशन क्षेत्र में समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (एमपीए) की एक प्रतिनिधि प्रणाली स्थापित की जा सके।

IV. अवैध, असूचित और अनियमित (आईयूयू) मछली पकड़ने के साथ-साथ अंतराष्ट्रीय कानून के अनुसार मछली पकड़ने के विनाशकारी तरीकों को समाप्त करने की प्रतिबद्धता दोहराते हैं।

V. इस अजेंडे को हासिल करने की दिशा में प्रगति करने में ओशन 20 डायलॉग की भूमिका का समर्थन करते हैं।”

प्लास्टिक प्रदूषण समाप्त करना

“हम प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस सन्दर्भ में हम यूएनईपी/ईए.5/आरईएस14 प्रताव का स्वागत करते हैं, जिसने 2024 के अंत तक अपना कार्य पूर्ण हो जाने की महत्वाकांक्षा से समुद्री पर्यावरण सहित प्लास्टिक प्रदूषण के संबंध में कानूनी रूप से बाध्यकारी एक अंतरराष्ट्रीय साधन विकसित करने के लिए एक अंतर सरकारी वार्ता समिति (आईएनसी) की स्थापना की। हम ओसाका ब्लू ओशन विजन के अनुसार जी20 समुद्री कचरा कार्य- योजना पर भी काम करेंगे।”


पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण

“हम जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का हनन, मरूस्थलीकरण, सूखा, भूमि क्षरण, प्रदूषण, खाद्य असुरक्षा और पानी की कमी से निपटने में स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र के महत्त्व पर जोर देते हैं। हम सभी नष्ट हो चुके पारिस्थितिकी तंत्र में से कम से कम 30 प्रतिशत को 2030 तक बहाल करने और भूमि क्षरण तटस्थता प्राप्त करने के प्रयासों को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं। इसे हासिल करने के लिए, हम:

I. कुनमिंग- -मोंट्रियल वैश्विक जैव विविधता ढांचा (जीबीएफ) के त्वरित, पूर्ण और प्रभावी कार्यान्वयन के लिए प्रतिबद्ध हैं, और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, और 2030 तक जैव विविधता के नुकसान को रोकने और उलटने से संबंधित कार्यों को प्रोत्साहित करते हैं। हम सभी स्त्रोतों से वित्तीय संसाधनों में बृद्धि करने का भी आह्वान करते हैं। इस उद्येश्य से, हम हाल ही में वैश्विक पर्यावरण सुविधा (जीईएफ) के अंतर्गत वैश्विक जैव विविधता ढांचा कोष की स्थापना किये जाने का स्वागत करते हैं।

II. जी-20 वैश्विक भूमि पहल (जीएलआई) के तहत व्यक्त प्रतिबद्धता के अनुसार, स्वैच्छिक आधार पर 2040 तक भूमि क्षरण को 50 प्रतिशत तक कम करने की जी-20 की महत्वाकान्क्षा का समर्थन करते हैं तथा गांधीनगर कार्यान्वयन रोडमैप और गांधीनगर सूचना मंच पर हुई चर्चा पर ध्यान देते हैं।

III. यह स्वीकार करते हैं कि वन महत्वपूर्ण पारिस्थितिकीय सेवाएं प्रदान करने के साथ ही साथ जलवायु संबंधी उद्देश्य के लिए पर्यावरण, जलवायु और लोगों के लिए वैश्विक और स्थानीय स्तर पर अवशोषक के रूप में कार्य करते हैं। हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत समय-सीमा के अनुरूप वनों के संरक्षण, रक्षण और स्थाई प्रबंधन के लिए तथा वनों की कटाई से निपटने की दिशा में प्रयास बढ़ाएंगे, संधारणीय विकास के लिए और स्थानीय समुदायों और मूल वनवासियों की सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए इन कार्यों के योगदान को रेखांकित करेंगे। वनों के सन्दर्भ में, हम डब्लूटीओ नियमों और बहुपक्षीय पर्यावरण समझौतों के अनुरूप पक्षपातपूर्ण हरित आर्थिक नीतियों से बचेंगे। हम विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए रियायती और नवोन्मेषी वित्तपोषण सहित सभी स्रोतों से वनों के लिए नए और अतिरिक्त वित्तपोषण जुटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम जंगल की आग की रोकथाम और शमन तथा खनन-के कारण होने वाले भूमि क्षरण के उपचार के लिए प्रतिबद्ध हैं।

IV. जल के संबंध में वैश्विक सहयोग बढ़ाने और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने का आह्वान करते हैं और संयुक्त राष्ट्र 2023 जल सम्मेलन और जल पर जी-20 संवाद में हुए विचार-विमर्श का स्वागत करते हैं।”

 जी20 समूह एक आर्थिक मंच है और इस मंच के घोषणापत्र में पर्यावरण पर विस्तार से व्याख्या पर्यावरण और सामाजिक न्याय का संकेत कतई नहीं है, बल्कि यह एक दिखावा है। हमारे प्रधानमंत्री जी स्वघोषित विश्वगुरु हैं और आज की दुनिया में समस्याओं का समाधान नहीं बल्कि समाधान का दिखावा ही ट्रेंड कर रहा है।

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