विष्णु नागर का व्यंग्यः प्रधानमंत्री की छींक का राष्ट्रीय महत्व, नेता-अफसर-मीडिया सब लगे छींकने!

प्रधानमंत्री की छींक की खबर फैलने के बाद भी रोज खाने-कमाने वाले अपने कामोंं में लगे रहे। कई इनमें से पीटे गए कि देश संकट में है, देश की आत्मा कराह रही है, प्रधानमंत्री छींक-छींक कर हैरान हैं और तुम्हें आज भी गद्दारों, रोटी की चिंता सता रही है?

फाइल फोटोः पीटीआई
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विष्णु नागर

कोई प्रधानमंत्री है तो क्या, उसे छींक नहीं आ सकती? जरूर आ सकती है। छींक के स्वभाव में ही यह नहीं है कि वह देश, धर्म, जाति, ऊंच-नीच, रंग, धन, पद में कोई भेदभाव करे! तो प्रधानमंत्री भी छींकने लगे। उन्हें इतनी छींक आई, इतनी छींक आई कि छींकते ही चले गए। प्रधानमंत्री के कक्ष में उनके सचिव आए हुए थे। थोड़ी देर तो वे लाचार देखते रहे, कुछ सूझा नहीं उन्हें। फिर वह भी दनादन छींकने लगे!

प्रधानमंत्री ने छींकते-छींकते ही इशारे में पूछा- आप क्यों छींक रहे हैं? वह प्रधानमंत्री के सचिव थे मगर प्रधानमंत्री से झूठ नहीं बोल सकते थे। उन्होंने सत्यवादी का रोल निभाते हुए कहा- सर,आप छींक रहे हैं, इसलिए मैं भी आपके समर्थन में छींक रहा हूं। आप ही मेरे ईश्वर, मेरे भाग्यविधाता, यहां तक कि अब मेरे माता-पिता भी आप ही हो। प्रधानमंत्री ने कहा तब ठीक है, खूब छींको और जब तक मैं छींकता रहूं, तुम भी छींकते रहो, मगर इतनी जोर से मत छींकना कि मेरी छींक पर तुम्हारी छींक हावी जाए, प्रोटोकॉल का ध्यान रखना, वरना डिसिप्लिनरी एक्शन ले लूंगा। 'यस सर', सचिव ने कहा और दोनों ने फिर से छींकना शुरू कर दिया!

कभी सचिव जी जोश में आ जाते तो प्रधानमंत्री से भी अधिक जोर से छींकने लगते, प्रोटोकॉल भूल जाते। प्रधानमंत्री आंखें दिखाते तो लाइन पर आ जाते। इन दोनों को छींकते देख, अतिरिक्त सचिव, संयुक्त सचिव, उप सचिव भी 'आक छीं, आक छीं' करने लगे। छींकते हुए प्रधानमंत्री के चेहरे पर इससे प्रशंसा का भाव आते देख, वे सभी और अधिक उत्साह में आ गए। भूल गए कि उन्हें  क्रमशः प्रधानमंत्री और उनके सचिव से अधिक जोर से नहीं छींकना है, अपनी हैसियत का बराबर खयाल रखना है। खैर उन्हें होश में लाया गया तो सब पदानुक्रम के अनुसार कम या अधिक, अधिक या कम छींकने लगे!

प्रधानमंत्री तो प्रधानमंत्री थे, देश की करोड़ों जनता के प्रतिनिधि, उनका छींकने का जोश, उत्साह और तैयारी इतनी अधिक थी कि छींकते-छींकते अधिकारियों के होश फाख्ता होने लगे, लेकिन लाचारी थी, वचनबद्धता थी। किसी को सू-सू आने लगी, किसी की आँख से, किसी की नाक से पानी आने लगा, किसी का मोबाइल बज रहा था, मगर क्या करें मन मारकर, शरीर को काबू में रखकर छींक रहे थे। बीच-बीच में प्रधानमंत्री हाथ के इशारों से उनका उत्साहवर्द्धन करते जा रहे थे, तो बचने का कोई उपाय नहीं था!

इस बीच प्रधानमंत्री के सेवक इन छींकते हुए पदाधिकारियों के लिए चाय-नाश्ता लेकर आए तो यह दृश्य देख उन्हें भी छींकने की प्रेरणा प्राप्त हुई। इस चक्कर में एक के हाथ से नाश्ते की, दूसरे के हाथ से चाय की सभी प्लेंटें टूट गईंं। प्रधानमंत्री ने संकेत में कहा कि चिंता मत करो, सरकारी माल है और आ जाएगा और इनका चाय-नाश्ता करना भी जरूरी नहीं, तुम तो छींको और छींकते जाओ, मेरे स्टाफ हो, मेरा साथ निभाओ, मेरे हो, यह दुनिया को दिखाओ!

धीरे-धीरे प्रधानमंत्री निवास के पक्षियों को छोड़ सभी मनुष्य छींकने लगे, जिन्हें मनुष्य नहीं माना जाता था, वे भी शामिल हो गए। सुरक्षाकर्मी, सुरक्षा छोड़ 'आक-छीं' करने लगे। यह खबर मंत्रियों-अफसरों तक पहुंची तो जो जहां भी थे, दिल्ली में या लंदन-न्यूयॉर्क में, भागलपुर में या पोरबंदर में, वे सभी अटेंशन की मुद्रा धारण करके छींकने लगे। पार्टी के सांसद, विधायक आदि-इत्यादि जो भी थे, छींकने लगे। कुछ छींंकने लगे, कुछ छींंकने का फोटो और वीडियो बनवाकर प्रधानमंत्री निवास पहुंचवाने लगे!

स्थिति की  गंभीरता को प्रकट करने के लिए एंकर तक छींंकने लगे, छींक-छींककर एंकरिंग करने लगे। यह देश के इतिहास का भूतो न भविष्यति क्षण था। टीवी पर देश के विख्यात-कुख्यात-अज्ञात छींक विशेषज्ञ बुलाए गए। उनसे पूछा गया कि प्रधानमंत्री जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति को इतनी छींक आखिर क्यों और कैसे आ सकती है? इसका जिम्मेदार कौन है? उसे या उन्हें अभी तक नौकरी से निकाला क्यों नहीं गया? कब तक निकाला जाएगा? क्या सचमुच इस देश में मेडिकल साइंस का हाल इतना बुरा है, इतना बुरा है कि वह प्रधानमंत्री की छींक को तुरंत रोक नहीं सकती? इतने सारे विशेषज्ञ रोज उनकी जांच करते हैं तो करते क्या हैं वे?

वे अगर प्रधानमंत्री को छींक की पूर्व चेतावनी तक नहीं दे सकते तो उन्हें चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए और उन्हें इस तरह डूबना नहीं आता तो उन्हें घर में फांसी के फंदे पर झूल जाना चाहिए। अगर वे फंदा लगाने के लिए रस्सी का प्रबंध न कर सकें तो हमारा चैनल इसकी मुफ्त सप्लाई करेगा। मैं अपनी जेब से पैसा देने को तैयार हूं, क्योंकि प्रधानमंत्री से अधिक महत्वपूर्ण कुछ नहीं हो सकता। देश बाद में है, प्रधानमंत्री पहले हैं। प्रधानमंत्री हैं तो देश है, वरना देश के होने का क्या मतलब है। मुझे इस बात की भी कोई परवाह नहीं कि आत्महत्या की प्रेरणा देने के नाम पर मुझे गिरफ्तार किया जा सकता है। मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है!

एक एंकर को और वह भी अंग्रेजी के चैनल को इतने जोश में आते देख टीआरपी बढ़ाने के लिए दूसरे चैनल भी जोश में आकर होश खो बैठे। एक ने पूछा कि क्या अपने आपको छींंक विशेषज्ञ मानने वालों को इस बात का जरा भी अहसास है कि उन्होंने इस महान देश को कहां लाकर खड़ा कर दिया है? सारा संसार हम पर थू थू कर रहा है कि देश की प्रति अपना कर्तव्य प्रति शाम निभाने वाले हम एंकरों को तो छोड़ो, हम अपने प्रधानमंत्री को भी छींक के खतरे से बचा नहीं पा रहे हैं? क्या इन बड़ी-बड़ी तनख्वाह पाने वाले विशेषज्ञों का हाल मौसम विभाग के वैज्ञानिकों से भी बुरा है? और कहीं प्रधानमंत्री की इस छींक के पीछे कोई विदेशी या विपक्षी षड़यंत्र तो नहीं है? क्या कर रही हैं हमारी इतनी सारी गुप्तचर एजेंसियां?

इतने सवाल पूछे गए कि इतनी तरह के, इतने सारे विशेषज्ञों से कि उनकी विशेषज्ञता की फूंंक वहीं की वहीं निकल गई। देश में यह संदेश गया कि इनसे अच्छे छींक विशेषज्ञ, सुरक्षा विशेषज्ञ और प्रधानमंत्री के शुभचिंतक तो ये एंकर हैं। ये बेचारे एंंकरी करके पेट पाल रहे हैं और ये विशेषज्ञ बने मौज मार रहे हैं? कुछ लोगों की आंखों में यह सोचते-सोचते आंसू आने लगे, जबकि इससे पहले वे प्रधानमंत्री के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए छींकने को तैयारी कर रहे थे!

इस बीच विदेशों से संदेश आने लगे थे कि प्रधानमंत्री ठीक तो हैं, भारत संकट में तो नहीं है, वरना हम अपनी फौजें भेजें। इस स्थिति में लोग भ्रमित हो गए कि क्या उन्हें भी छींकना चाहिए या देश पर आए संकट का सामना करने के लिए सन्नद्ध हो जाना चाहिए? उनमें से कुछ छींकने लगे, कुछ बार्डर पर जान कुर्बान करने का विचार करने लगे, मगर रोज खाने-कमाने वाले अपने-अपने कामोंं में लगे रहे। कई इनमें से पीटे गए। कुछ पर प्राणघातक हमला हुआ कि देश संकट में है, देश की आत्मा कराह रही है, हमारे प्रिय प्रधानमंत्री छींक-छींक कर हैरान हैं, सारा देश उनके लिए छींक रहा है और तुम्हें आज भी गद्दारों, रोटी की चिंता सता रही है?

सब पर ऊपर वाले यानि सीसीटीवी की नजर थी। उसी रात को नौ बजे प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित किया। इसमें उन्होंने देश के हर नागरिक को धन्यवाद दिया कि उसने उनके ऊपर इतना प्रेम, इतना स्नेह बरसाया है, उनके नेतृत्व में इतना भरोसा जताया है कि अब उन्हें  पूरा विश्वास हो गया है कि वह अगला आम चुनाव अवश्य जीतेंगे। चुनाव आयोग कल ही चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर रहा है!

लोग अब पूछ रहे हैं कि प्रधानमंत्री कल, किसलिए इतना छींक रहे थे? जवाब सबको मालूम है, फिर भी सबसे पूछ रहे हैं- 'प्रधानमंत्री कल इतना छींक क्यों रहे थे?

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