राम पुनियानी का लेखः बीजेपी का चाल, चरित्र और चेहरा हैं प्रज्ञा ठाकुर
प्रज्ञा का स्तन कैंसर भी एक रहस्य है। मेडिकल बोर्ड ने जांच में पाया था कि वह किसी प्रकार के कैंसर से ग्रस्त नहीं थीं। हालांकि, उनके अनुसार, वे गौमूत्र और पंचगव्य से इस रोग से मुक्त हुई हैं। उनकी बीमारी तो रहस्य है ही, उसका इलाज भी उतना ही रहस्यपूर्ण है।
इस लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी दल बीजेपी द्वारा निहायत संकीर्ण और सांप्रदायिक मुद्दे उछाले जा रहे हैं। नागरिकता विधेयक, कब्रिस्तान, वंदेमातरम्, छद्म राष्ट्रवाद आदि जैसे भड़काऊ मुद्दों का इस्तेमाल करने के अलावा, बीजेपी ने भोपाल संसदीय क्षेत्र से प्रज्ञा ठाकुर को अपना उम्मीदवार बनाया है।
प्रज्ञा कई आतंकी मामलों में मुख्य आरोपी हैं, जिनमें मालेगांव, अजमेर, मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस विस्फोट शामिल हैं। इन सभी घटनाओं में कई लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हुए थे। बीजेपी में शामिल होने और भोपाल से पार्टी उम्मीदवार घोषित होने के बाद प्रज्ञा ने कई ऐसी बातें कहीं हैं जो चिंतित करने वाली तो हैं ही, वरन उनसे प्रज्ञा और बीजेपी की मानसिकता का पता भी चलता है।
यहां उनके विरुद्ध जो आरोप हैं, उनका विवरण देना उचित होगा। साल 2008 में मालेगांव में हुए बम धमाके, जिसमें छह लोग मारे गए थे, की जांच के दौरान, महाराष्ट्र पुलिस के आतंकवाद-निरोधक दस्ते के तत्कालीन प्रमुख हेमंत करकरे को एक महत्वपूर्ण सुराग मिला। बम धमाके में जिस मोटरसाइकिल का इस्तेमाल किया गया था, उसके चेसिस नंबर के आधार पर पता चला कि वह प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर पंजीकृत थी।
इसके बाद, आगे जांच हुई, जिसके आधार पर लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित, मेजर उपाध्याय, स्वामी दयानंद पाण्डेय और स्वामी असीमानंद आदि को गिरफ्तार किया गया। अत्यंत सूक्ष्मता से की गयी जांच और लैपटॉपों में उपलब्ध सामग्री और आरोपियों की आपसी बातचीत के अध्ययन से यह पता चला कि मालेगांव धमाके एक बड़े षड़यंत्र का हिस्सा थे, जिसमें शामिल लोगों का आरएसएस से किसी न किसी तरह का जुड़ाव था। इनमें सबसे अहम सबूत था असीमानंद का इकबालिया बयान। एक न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए अपने बयान में असीमानंद ने पूरे षड़यंत्र का खुलासा किया था, जो विधिक दृष्टि से पूर्णतः स्वीकार्य था।
साल 2014 में, बीजेपी के नेतृत्व में, एनडीए सरकार के केंद्र की सत्ता में आने के बाद, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) का इन मामलों में रुख बदल गया। इसका सबसे बड़ा सबूत था संबंधित सरकारी वकील रोहिणी सालियन का बयान, जिसमें उन्होंने स्पष्ट कहा कि उन्हें इन मामलों को हल्के ढंग से लेने के लिया कहा गया। उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया, जिसके बाद ये मामले उनसे वापस ले लिए गए।
प्रज्ञा के मामले में एनआईए ने 2016 में अदालत में आरोप पत्र पेश किया, जिसमें उन्हें क्लीनचिट देते हुए कहा गया कि उन्हें स्तन कैंसर है और वे बिना सहारे के चल भी नहीं पातीं हैं। अदालत ने एनआईए के निष्कर्ष को स्वीकार नहीं किया और प्रज्ञा के खिलाफ आरोप तय कर दिए। उन्हें केवल और केवल बीमारी के आधार पर जमानत दी गयी। अदालत ने कभी यह नहीं कहा कि वह निर्दोष हैं। अतः तथ्यात्मक स्थिति यह है कि प्रज्ञा ठाकुर आतंकवाद के प्रकरण में आरोपी हैं और बीमारी के आधार पर जमानत पर हैं।
भोपाल से उन्हें बीजेपी का उम्मीदवार घोषित किये जाने के बाद उन्होंने कहा कि हेमंत करकरे की मौत उनके श्राप के कारण हुई थी। करकरे की मौत, 27/11 2008 को मुंबई पर पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकी हमले में हुई थी। करकरे एक साहसी पुलिस अधिकारी थे और सड़क पर आतंकियों से मुकाबला करते हुए उनकी गोलियों से मारे गए थे। प्रज्ञा का बयान एक ऐसे शहीद का घोर अपमान है जो अपने कर्त्तव्य के पालन में देश की रक्षा करते हुए मारा गया। हालांकि, बाद में प्रज्ञा ने यह कहते हुए अपना बयान वापस ले लिया कि इससे देश के दुश्मनों को लाभ होगा!
कुछ लोगों ने बिलकुल सही कहा है कि अगर प्रज्ञा के श्राप में इतनी ही शक्ति है तो उन्होंने पाकिस्तान में बैठे आतंकियों के आकाओं को श्राप क्यों नहीं दिया। प्रज्ञा का यो भी कहना है कि उन्हें करकरे ने यातनाएं दी थीं और इसलिए उन्होंने करकरे को श्राप दिया। यह सफेद झूठ है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने यातना संबंधी उनकी शिकायत की जांच की थी और उसे झूठ पाया था। करकरे को किसी को यातना देने की जरुरत नहीं थी क्योंकि उन्होंने मजबूत साक्ष्य इकठ्ठा कर लिए थे।
करकरे के बारे में प्रज्ञा की अपमानजनक और बेहूदा टिप्पणी के बाद, अनेक पूर्व पुलिस अधिकारी, जो अपनी कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे, करकरे के सम्मान की रक्षा के लिए आगे आए। इनमें जूलियो रिबेरो, प्रकाश सिंह और मीरन बोरवंकर शामिल हैं। अखबारों में प्रकाशित अपने लेखों और टेलीविजन साक्षात्कारों में उन्होंने जोर देकर कहा कि करकरे एक ईमानदार और साहसी अधिकारी थे, जो अपने काम पूरी तरह से पेशेवराना तरीके से करते थे। उनके जीवनकाल में भी कई हिंदुत्व नेताओं ने उन्हें देशद्रोही बताया था।
हालांकि, नरेंद्र मोदी ने प्रज्ञा को उम्मीदवार बनाने के अपनी पार्टी के निर्णय को सही ठहराते हुए फरमाया कि प्रज्ञा पर आतंकी हमले में शामिल होने का आरोप लगाना, पांच हजार साल पुरानी हिन्दू सभ्यता का अपमान है! ऐसे में सवाल उठता है कि प्रज्ञा हमारी सभ्यता के मूल्यों की प्रतिनिधि कब से बन गईं?
भारत की सभ्यता समावेशी है और इस धरती की सभी परंपराओं को आत्मसात करने वाली है। हमारी सभ्यता के प्रतिनिधि गौतम बुद्ध, भगवान महावीर, कबीर, गुरुनानक, निजामुद्दीन औलिया और गांधी जैसे व्यक्तित्व हैं, जो प्रेम, शांति और सहिष्णुता की बात करते थे न कि प्रज्ञा जैसे लोग।
प्रज्ञा का स्तन कैंसर भी एक रहस्य है। मुंबई के जेजे अस्पताल के डीन की अध्यक्षता में गठित एक मेडिकल बोर्ड ने यह पाया था कि वे किसी प्रकार के कैंसर से ग्रस्त नहीं थीं। उनके अनुसार, वे गौमूत्र और पंचगव्य (गाय के दूध, मूत्र, गोबर, दही और घी का मिश्रण) से अपने रोग से मुक्त हुई हैं। इस तरह के बेसिरपैर के दावे, उस विचारधारा के अनुरूप ही हैं जिसकी वे अनुयायी हैं और जो सांप्रदायिक राष्ट्रवाद के अपने एजेंडे के तहत अंधश्रद्धा को बढ़ावा देती है। उनकी बीमारी तो रहस्य है ही, उसका इलाज भी उतना ही रहस्यपूर्ण है।
प्रज्ञा ने यह दावा भी किया है कि वे बाबरी मस्जिद को ढहाने वाली टीम में शामिल थीं। चुनाव आयोग ने इस पर उन्हें एक नोटिस भी जारी किया है। यह बहुत अच्छी बात है कि वे अपना गुनाह कुबूल कर रही हैं। वे मालेगांव बम धमाका मामले में तो आरोपी हैं हीं, अब उन्होंने यह भी स्वीकार कर लिया है कि वे बाबरी विध्वंस में भी शामिल थीं।
इस तरह के व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बना कर बीजेपी क्या साबित करना चाहती है? लगता है, अब उसने अपना हिन्दुत्ववादी एजेंडा पूरी तरह लागू करने का निर्णय ले लिया है। वाजपेयी जैसे नेताओं के काल में, बीजेपी अपने इरादे छुपा कर रखती थी। अब वह अपना असली रंग दिखा रही है। यह साफ है कि वह विघटनकारी, हिंसक और संकीर्ण सांप्रदायिक विचारधारा में यकीन करती है। यह विचारधारा भारतीय संविधान के मूल्यों के खिलाफ है तो हुआ करे।
(लेख का अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा)
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