विष्णु नागर का व्यंग्यः गरीबों अभी वेट करो, यू आर इन द क्यू!

मोदी जी ने सत्ता में फिर से आने के पहले ही दिन ज्ञान की इतनी तेज रोशनी फेंकी कि तत्काल कुछ भी दिखना बंद हो गया। मैं उस ज्ञान से जितना लाभान्वित हो सकता था, हुआ। खुशी इस बात की है कि इससे समाजशास्त्री और अर्थशास्त्री मुझसे कहीं अधिक लाभान्वित हुए होंगे।

फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

सबसे पहले तो मोदी जी को दुबारा प्रधानमंत्री बनने के लिए बधाई। वैसे दुबारा प्रधानमंत्री बनना उतना मुश्किल नहीं है, जितना कि दुबारा प्रधानमंत्री बन जाने पर दुगुना विद्वान हो जाना! 23 मई को मोदी जी ने उन्हें प्रचंड बहुमत देने के लिए मतदाताओं को धन्यवाद देते हुए कई विद्वत्तापूर्ण बातें कहीं। न मेरे बस में है, न था, न होगा कि उन सब पर टिप्पणी कर सकूं। बस में तो इतना भी नहीं है कि उनकी सिर्फ एक बात पर टिप्पणी कर सकूं। मगर कहते हैं न, हिम्मते मर्दा तो मदद ए खुदा! तो हम हिम्मत करते हैं, मदद खुदा कर देगा। करेगा कि नहीं करेगा? करेगा कि नहीं करेगा?

हां तो मोदीजी ने सत्ता में फिर से आने के पहले ही दिन ज्ञान की एकदम इतनी तेज रोशनी फेंकी- पता नहीं टार्च की थी या स्मार्ट फोन की- कि तत्काल मुझे कुछ भी दिखना बंद हो गया। ज्ञानचक्षु एकदम सील हो गए और सील हुए तो ऐसे सील हुए कि बड़ी मुश्किल से सील खुली। पलकें एकदम चिपक गई थीं। मैं घबरा गया था कि हे कालिये अब तेरा क्या होगा! खैर थोड़ी देर बाद जब कुछ दिखना शुरू हुआ तो मैं उस ज्ञान से जितना लाभान्वित हो सकता था, उतना हुआ। खुशी इस बात की है कि इससे समाजशास्त्री और अर्थशास्त्री मुझसे बहुत अधिक लाभान्वित हुए होंगे।


ज्ञान मोदी जी ने यह दिया कि अब इस देश में दो जातियां बचेंगी। मैंने अपनी सीमित समझ से समझा कि अब ये कहेंगे एक तो गरीब की जाति और दूसरी अमीर की जाति। मगर मोदी जी ठहरे मौलिक विद्वान। वह पिटी-पिटाई बात क्यों करेंगे! उन्होंने एकदम नया ज्ञान देते हुए कहा कि एक तो गरीब की जाति और दूसरी देश को गरीबी से मुक्त करने वालों की जाति। यानी हमारे मोदी जी की अतिपिछड़ी जाति भी खत्म हो जाने वाली है, जो चुनाव प्रचार तक तो थी! खैर वह जानें, उनकी जाति जाने। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में इन दोनों जातियों का सशक्तिकरण करना होगा।

चलो गरीब की जाति की बात तो फिर भी कुछ-कुछ समझ में आती है, लेकिन ये दूसरी जाति कौन सी है भाइयों-बहनों, गरीबी से मुक्त करने वालों की जाति! बहुत माथापच्ची करने के बाद समझ में आया कि ओह इस जाति में एक तो मोदी जी खुद होंगे, मगर एक अकेले आदमी से तो कोई जाति बनती नहीं। तो फिर इस जाति में और कौन-कौन होगा? तो जैसे पेड़ के नीचे बैठने पर बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था, उसी तरह मुझे घर की छत के नीचे बैठने पर ज्ञान प्राप्त हुआ कि ये दूसरी जाति है- अंबानियों-अडानियों की जाति। मोदी जी को इन दोनों जातियों को सशक्तिकरण करना है।

इसका मतलब यह हुआ कि गरीबी से मुक्त करने वालों की जाति का पहले सशक्तिकरण करना होगा, तभी तो वह गरीबों का सशक्तिकरण कर पाएगी! बहुत गरीब है न यह जाति! उसे खुद खाने के लाले पड़े हुए हैं तो बेचारी गरीबों को गरीबी से मुक्त कैसे कर पाएगी? बहुत तार्किक बात है यह, जो मोदी जी कम ही क्या, बिल्कुल ही नहीं किया करते हैं।

तो भाइयों-बहनों आप जानते ही हैं कि अपने पिछले पांंच साल में गरीबी से मुक्त करने वाली इस जाति के लिए मोदी जी विशेष कुछ कर नहीं पाए, अब वह इस जाति का सशक्तिकरण करेंगे। इसकी धन संपदा खूब बढ़ाएंगे। जितनी डूबती जाएगी, उतनी बट्टे खाते में डालते जाएंगे और फिर से देते जाएंगे। जब तक गरीबों को गरीबी से दूर करने वालों का सशक्तिकरण अभियान पूरा नहीं होगा, यह काम वह करते जाएंगे।


यह बहुत मुश्किल काम है। यह कभी भी पूरा हो नहीं सकता। जितना इस जाति को सशक्त करोगे, उतनी ही अधिक इसकी गरीबी बढ़ती जाएगी। बहत्तर साल से अघोषित रूप से यही अभियान चल रहा है। बैंक लुट गए, सरकारी खजाना खाली हो गया, लेकिन गरीबों को गरीबी से मुक्त कराने वालों की इस जाति का सशक्तिकरण नहीं हो पाया! जब गरीबों का सशक्तिकरण पिछले 72 सालों में नहीं हो पाया तो गरीबों को सशक्त करने वालों का सशक्तिकरण अगले पांच साल में कैसे हो पाएगा? कतई नहीं हो पाएगा।

लेकिन चलो मोदी जी कोशिश करेंगे और अभी पांच साल के लिए सरकार है तो पांच साल का ही वायदा कर पाएंगे। गरीबों को सशक्त करने वालों की जाति का आगे भी उन्हें समर्थन मिलता रहा तो मोदी जी पांच-पांच साल तक इस अभियान को बढ़ाते रहेंगे। तो गरीबों पहले तुम्हारी गरीबी दूर करने वालों को सशक्त हो जाने दो। प्लीज वेट, यू आर इन द क्यू!

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