आकार पटेल का लेख: कभी देश को अर्थव्यवस्था का चमकता सितारा कहने वाले पीएम अब क्यों चुप हैं आर्थिक संकट पर!

एक समय था जब सरकार कहते नहीं थकती थी कि भारत तो विश्व अर्थव्यवस्था का चमकता सितारा है और दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, लेकिन अब सरकार इस मोर्चे पर कुछ भी नहीं कहती।

फोटो : सोशल मीडिया
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आकार पटेल

जब तक मुझे यह न पता हो कि समस्या क्या है, तो उसका हल कैसे निकाल सकता हूं। अगर समस्या छोटी है तो इसका ज्यादा असर नहीं होता। हां इसे लगातार अनदेखा करना थोड़ा झुंझलाहट भरा जरूर होगा। लेकिन अगर समस्या बड़ी है, और यह न सिर्फ मुझे बल्कि मेरे आसपास मौजूद लोगों पर भी असर डाल रही है तो इसे अनदेखा करने के लिए मेरे पास मजबूत और माकूल वजह होनी चाहिए। तभी इसे सुलझाने के बजाय इसे अनदेखा करना तर्कपूर्ण लग सकता है।

भारत में बीते 5 साल के दौरान कारों की बिक्री में कोई खास इजाफा नहीं हुआ है। 2015-16 में भारतीयों ने कोई 27 लाख कारें खरीदी थीं, और 2019-20 में भी बिकने वाली कारों की संख्या 27 लाख ही है। इसका एक अर्थ तो यह निकलता है कि भारत के मध्यवर्ग का विकास बिल्कुल नहीं हो रहा है या फिर वह खर्च ही नहीं कर रहा है।

सरकार कहती है कि कारों की बिक्री में कोई वृद्धि न होना कोई समस्या नहीं है क्योंकि लोग अब टैक्सी (ओला, ऊपर) आदि का इस्तेमाल करने लगे हैं। अमेरिका में पिछले साल 2 करोड़ कारों की बिक्री हुई, इससे जाहिर है कि ओला या ऊबर से किसी देश में कारों की बिक्री पर कोई फर्क नहीं पड़ा है।

देश में दोपहिया वाहनों की बिक्री में भी बीते 4 साल के दौरान कोई वृद्धि नहीं हुई है। 2016-17 में देश में 1.7 करोड़ दोपहिया वाहन बिके थे, और 2019-20 में भी इनकी बिक्री की संख्या 1.7 करोड़ ही है। दोपहिया वाहन को निम्न मध्य वर्ग का वाहन मान जाता है, इनकी बिक्री न बढ़ने का अर्थ है कि निम्न मध्य वर्ग भी दबाव में है और उसका भी बीते चार साल में विकास नहीं हुआ है। इस पर सरकार का क्या रुख है हमें नहीं पता, क्योंकि सरकार तो मानती ही नहीं है कि विकास नहीं हो रहा है।

कमर्शियल वाहनों (ट्रक, बस आदि) की बिक्री में कोई इजाफा नहीं हो रहा है। बीते चार साल के आंकड़े देखें तो 2016-17 में 7 लाख वाहन बिके थे, जबकि 2019-20 में भी इनकी बिक्री का आंकड़ा 7 लाख ही है। कमर्शियल वाहनों में ट्रकों की संख्या अधिक होती है और ये वे वाहन हैं जो कच्चे सामान को फैक्टरी और तैयार सामान को बाजार में पहुंचाते हैं। यानी बाजार में बीते चार साल में जीरो ग्रोथ हुई है।


यही हाल रियल एस्टेट का है जहां बीते साल से शून्य ग्रोथ है। भारतीयों ने 2016 में करीब 2 लाख करोड़ रुपए रियल एस्टेट में लगाए, वहीं 2019 में भी यह आंकड़ा 2 लाख करोड़ ही है। देश के निर्यात यानी एक्सपोर्ट की बात करें, तो बीते 6 साल में देश ने उतना ही माल देश के बाहर भेजा है जितना मनमोहन सरकार ने दौर में भेजा जाता था।

मनमहोन सिंह सरकार का कार्यकाल जब खत्म हुआ तो उस वक्त भारत करीब 300 अरब डॉलर सालाना का एक्सपोर्ट करता था। 2019-20 के आंकड़े देखें तो भारत ने 300 अरब डॉलर का ही एक्सपोर्ट किया है।

ऐसा क्यों है? हम नहीं जान सकते क्योंकि सरकार इस बारे में बात ही नहीं करती है। इतना ही नहीं जब भारत में निर्यात के मुकाबले आयात कम हुआ तो सरकार ने तो बाकायदा इसका जश्न मनाया और इसे अपनी उलब्धि माना।

देश में रोजगार में भी बीते 6 साल में कोई तरक्की नहीं हुई है, दरअसल इसमें तो गिरावट ही दर्ज हुई है। एक सरकारी रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में बेरोजगारी की दर 6 फीसदी है, जोकि इतिहास में कभी इतनी नहीं रही। आखिर भारतीयों के रोजगार क्यों खत्म हो रहे हैं या उनकी नौकरियां जा रही हैं। हमें नही पता क्योंकि सरकार तो पकोड़ा बेचने का आडिया देकर या उबर ड्राइवर बनने की सलाह देकर अपना पल्ला झाड़ लेती है।

निस्संदेह कोविड से देश की अर्थव्यवस्था पर जबरदस्त असर पड़ा है और आने वाले दिनों में भी इसका असर दिखेगा। इस साल जनवरी में देश की जीडीपी ग्रोथ जितनी थी उसे हासिल करने में ही कम से कम तीन साल का वक्त लग जाएगा। यानी जब तक मोदी का दूसरा कार्यकाल खत्म होगा तो देश की अर्थव्यवस्था वहां होगी जहां इस साल जनवरी में थी। समस्या यह है कि इस साल जनवरी में हम जहां थे, वह कोई आदर्श या अच्छी स्थिति नहीं थी। और मैंने ऊपर जितने भी आंकड़े सामने रखें हैं वह सब कोविड के आगमन से पहले के हैं।


हमारी अर्थव्यवस्था में सिकुड़न या ठहराव तो लॉकडाउन से पहले ही आ चुका था और इसका मौजूदा संकट से बहुत लेना-देना नहीं है। अगर हम कोविड की समस्या से उबर भी आए तो भी हम अर्थव्यवस्था के उसी संकट में खड़े होंगे जहां पहले थे।

कोविड से पहले की 10 तिमाहियों में देश की जीडीपी ग्रोथ में लगातार गिरावट दर्ज की गई। क्यों, हमें नहीं पता। कोई एक कारण हो सकता है, या बहुत से कारण भी हो सकते हैं। लेकिन अगर हम यह ही नहीं मानें कि समस्या क्या है तो उसे सुलझाएंगे कैसे। समस्या का समाधान तभी होता है जब आप उसके बारे में सोचें, चर्चा करें और सुधार के तरीके अपनाएं। लेकिन अगर आप यह मानते रहें कि कुछ हुआ ही नहीं है तो समस्या गहराती जाएगी क्योंकि बड़ी समस्याएं अपने आप कभी खत्म नहीं होतीं।

एक समय था जब सरकार कहते नहीं थकती थी कि भारत तो विश्व अर्थव्यवस्था का चमकता सितारा है और दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, लेकिन अब सरकार इस मोर्चे पर कुछ भी नहीं कहती।

समस्या गंभीर है, और इससे अकेले प्रधानमंत्री पर ही असर नहीं पड़ता बल्कि देश के करोड़ों लोग प्रभावित होते हैं। इसे अनदेखा करने के पीछे माकूल और मजबूत वजह चाहिए।

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