विष्णु नागर का व्यंग्यः पेगासस जैसे खुलासे से पीएम मोदी घबराने वाले नहीं, 'क्लीन चिट' का काफी पुराना अनुभव है!
हमारे लोकतंत्र की नींव इतनी कमजोर नहीं है कोई पोल खोल दे और मोदी जी चले जाएं या माफी मांग लें। कोई उनकी पोल खोल दे और मोदी जी त्यागपत्र दे दें, असंभव। वह किसी को यह श्रेय नहीं लेने देंगे कि उसने उनकी कुर्सी का एक पाया जोर से हिला दिया है।
आपने सोचा तो नहीं था न, और सोचना चाहिए भी नहीं था कि पेगेसेस जासूसी कांड की पोल खुल जाने पर मोदी जी इस्तीफा दे देंगे। खुद नहीं देंगे तो अमित शाह से दिलवा देंगे। आपको यह भी सोचना नहीं चाहिए था कि वह इसकी निष्पक्ष जांच करवा कर खुद को पाक-साफ साबित कर देंगे। उन्हें न इस्तीफा देना आता है, न उन्हें पाक-साफ साबित होने की पड़ी है। रोज नहाकर अच्छे बच्चे की तरह सज कर जितना पाक-साफ दिखा जा सकता है, उतना उनके लिए काफी है। इससे अधिक पाक-साफ दिखने की उन्हें कभी तमन्ना नहीं रही!
और पाक-साफ दिखें तो भी किसके सामने? अपने 'दुश्मनों' के सामने? उन 'देशद्रोही' पत्रकारों के सामने, जो आए दिन उनकी आलोचना करके उनकी नींद हराम किए रहते हैं? उस चुनाव आयुक्त के सामने जिसने हां में हां मिलाने से इनकार कर दिया था? उन राहुल गांधी के सामने, जिन्होंने एक दिन भी मोदी के समर्थन में एक शब्द तक नहीं बोला? और जिनके सामने पाक-साफ दिखना है, वे मानते हैं कि वे पाक भी हैं और साफ भी। गोदी मीडिया का तो एकमात्र काम ही उन्हें रोज पाक-साफ दिखाना है। भक्त उन्हें गोरस से धुला मानते हैं। तो पाक-साफ किसके सामने दिखें? जरूरत क्या है, मजबूरी क्या है?
और मान लो, उन्हें मजबूर होना पड़ा कि जांच करवाना है तो वह इतनी 'शानदार जांच' करवाएंगे कि उसमें उन्हें 'क्लीन चिट' मिलकर रहेगी, जिसे लेकर वे 2024 में शहर-शहर घूमेंगे।लो जी हो गई जांच। उन्हें जांच करवाकर 'क्लीन चिट' लेने का काफी पुराना अनुभव है। वह जानते हैं कि किन तिलों से तेल किस विधि निकलता है। उन्हें इससे कोई लेनादेना नहीं है कि पेगासस की फ्रांस या इजरायली जांच का नतीजा क्या निकलता है। जो निकलता है, निकलता रहे। वह जानते हैं कि जो भी निकलेगा, वह 'क्लीन चिट' के खिलाफ ही होगा। उसकी परवाह क्यों करें? अरे हम स्वदेशी हैं, आत्मनिर्भर हैं। हम जांच के उनके विदेशी चोंचलों से प्रभावित क्यों हों? हम नकलची होते तो क्या कभी जगद्गुरु बन पाते?
पेगासस जांच का एक सीनेरियो यह भी हो सकता है कि अंततः उन्होंने जांच की मांग मान ली। विपक्ष इससे खुश हो गया। उसने अपनी विजय की दुंदुभि बजा दी। उधर मोदी जी जांच करने वाले की नियुक्ति में छह महीने लगा देंगे। जांच करने वाले को नियुक्त कर दिया तो जांचकर्ता को दफ्तर नहीं मिलेगा। दफ्तर मिल गया तो क्लर्क, कागज, कंप्यूटर, पेंसिल, कंप्यूटर ऑपरेटर नहीं मिलेगा। इसमें एक साल गुजर जाएगा। तब काम शुरू होगा। चूंकि जांच का काम सावधानी का है, बहुस्तरीय है, 'निष्पक्षता' की मांग करता है, इसलिए आयोग को विदेश जाना पड़ेगा। इस तरह 2024 आ जाएगा- 'क्लीन चिट' मिलने का वर्ष।
और हर बार उन्हें 'क्लीन चिट' किसी आयोग से चाहिए भी नहीं। गोदी मीडिया की क्लीन चिट ही काफी है। अफसर की क्लीन चिट भी काफी है। पार्टी के प्रवक्ता दे दें तो वह भी पर्याप्त है। और खैर भागवत जी दे दें तो वह 'मोर देन इनफ' है। और भक्तों के पास तो क्लीन चिटों के बोरे भरे हैं। उनकी ड्यूटी रोज एक निकाल कर देना है, बस! वैसे तो कुछ विपक्षी नेता भी इतने उदार हृदय हैं कि वे भी 'क्लीन चिट' दे देते हैं, ताकि उन्हें भी 'क्लीन चिट' मिलती रह सके!
और मान लो, इतना सब मैनेज करने के बावजूद वह 2024 में लोकसभा चुनाव हार गए। पश्चिम बंगाल की तरह जोड़तोड़ से सरकार बनाने लायक भी न रहे तो भी क्या मोदी जी आराम से त्यागपत्र देकर चले जाएंगे? नहीं जाएंगे। ट्रंप आज अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं हैं, मगर मोदी जी के पक्के मित्र तो हैं! त्यागपत्र देने की स्थिति आई तो उनसे भी दो कदम आगे बढ़ कर दिखा देंगे। मित्र की नाक दो फुट बढ़ा कर दिखा देंगे!
आराम से तो वे विदेश यात्रा पर ही जा सकते हैं, जिसका उनके दुर्भाग्य से रास्ता अभी बंद पड़ा है। आराम से तो वे कोरोना से और ऑक्सीजन की कमी से भी लोगों को जूझते-मरते ही देख सकते हैं। आराम से तो वे गंगा में बहती लाशें भी देख सकते हैं। आराम से तो वे गरीब प्रवासी मजदूरों को घिसटते-पुलिस के डंडे खाते, बच्चे की लाश छाती से चिपका कर जाते हुए पिता को ही देख सकते हैं। आराम से तो वे बेरोजगारी और महंगाई से तड़पते हुए लोगों को ही देख सकते हैं। आराम से तो वे अर्थव्यवस्था की ऐसी-तैसी होते ही देख सकते हैं और आराम से तो वह अपना नया बंगला बनते देख ही सकते हैं!
वैसे हमारे लोकतंत्र की नींव इतनी कमजोर नहीं है, हमारा संविधान भी इतना छुईमुई नहीं है कि कोई पोल खोल दे और मोदी जी-शाह जी चले जाएं या माफी मांग लें। 'द वायर' उनकी पोल खोल दे और मोदी जी त्यागपत्र दे दें, असंभव। वह 'द वायर' को यह श्रेय नहीं लेने देंगे कि उसने उनकी कुर्सी का एक पाया जोर से हिला दिया है। वह दुनिया के किसी अखबार, किसी न्यूज चैनल, किसी नेता, किसी लोकसभा चुनाव को भी यह श्रेय लेने नहीं देंगे। इसका श्रेय तो वह स्वयं भी नहीं लेंगे। माना कि उन्हें श्रेय लेने की जल्दी रहती है मगर वे इतने लालची भी नहीं हैं कि अपने त्यागपत्र का श्रेय वह स्वयं ले लें! कभी-कभी श्रेय का त्याग करना भी वे जानते हैं!
और पोल का क्या है, मोदी जी चाहें, न चाहें, पोल तो उनकी खुलती ही रहती है और खुलती ही रहने वाली है। इसके लिए किसी अखबार, किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन की जरूरत भी नहीं। अभी कोरोना ने उनकी पोल खोल दी। दुनिया का कोई अखबार, कोई नेटवर्क भी नहीं बोलता तो उनके दावों की पोल खुली हुई थी। इसके लिए हर आदमी का अपना अनुभव ही काफी था। तो उनकी पोल खोलने वालों समझ लो, ये पोलप्रूफ मोदी जी हैं। ऐसे-वैसे प्रधानमंत्री नहीं हैं कि 'फर्जी' आरोप लगे तो भी वे अपने को बचा न पाएं!
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