यूक्रेन में थम सी गई हैं शांति प्रक्रियाएं, फ्रांस, जर्मनी और भारत जैसे देशों की भूमिका अहम

जहां यूक्रेन के युद्ध में होने वाली क्षति के अनेक समाचार निरंतरता से मिल रहे हैं, वहां दूसरी ओर अत्यधिक चिंता का एक मुद्दा यह भी है कि शांति प्रक्रियाएं बहुत कम नजर आ रही हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

जहां यूक्रेन के युद्ध में होने वाली क्षति के अनेक समाचार निरंतरता से मिल रहे हैं, वहां दूसरी ओर अत्यधिक चिंता का एक मुद्दा यह भी है कि शांति प्रक्रियाएं बहुत कम नजर आ रही हैं। सभी संकेत इस तरह के हैं कि कुछ समय से शांति प्रक्रिायाएं थम सी गई हैं। वैसे तो यह शांति प्रक्रियाएं पहले भी बहुत मजबूत नहीं थीं, पर कम से कम इनसे कुछ उम्मीद तो बंध ही रही थी पर अब यह थोड़ी सी उम्मीद भी सिमटती नजर आ रही हे।

रूस और यूक्रेन के युद्ध के बारे में अनेक विशेषज्ञों का मानना है कि वास्तव में यह रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक प्राक्सी युद्ध है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने अनेक वर्षों से निरंतरता से यूक्रेन की राजनीति और चुनावों में दखल दिया ताकि यहां रूस के प्रति मित्रता की नीति अपनाने वाली सरकार का गठन न हो सके। इतना ही नहीं, ऐसी सरकारों का समर्थन किया गया जो यूक्रेन में रहने वाले पर रूसी भाषा वाले नागरिकों के प्रति दमनकारी नीति अपनाएं। इस कारण यूक्रेन में एक ओर गृह युद्ध जैसी स्थिति बनी और दूसरी ओर रूस पर दबाव बना कि यूक्रेन द्वारा और अधिक रूस विरोधी नीतियां अपनाने और नाटो सदस्यता प्राप्त करने से रोकने के लिए रूस आक्रमक कार्यवाही करे।


जब से रूस ने आक्रमक कार्यवाही की है संयुक्त राज्य अमेरिका और इसके मित्र देशों ने निरंतरता से यूक्रेन को अति आधुनिक और अधिक मारक क्षमता वाले हथियार दिए हैं। यहां तक कि अब इतनी लंबी दूरी के हथियार भी दिए हैं कि रूस की धरती तक भी विनाश किया जा सके। संयुक्त राज्य अमेरिका की अभी तक नीति यह बनी हुई है कि यूक्रेन को अधिक हथियार देकर रूस की कठिनाईयों को बढ़ाया जाए। इसके लिए न केवल हथियार बढ़ाए जा रहे हैं, अपितु विभिन्न देशों के कुछ धुर-दक्षिणपंथी, नस्लवादी और नव-नाजीवादी लड़ाकुओं को भी यूक्रेन में एकत्र कर रूसी सेना के विरुद्ध लड़ने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका सहायता पहुंचा रहा है।

यदि यूक्रेन की आंतरिक स्थिति को देखें तो यूक्रेन में अन्य देशों की तरह अधिकांश लोग शांतिप्रिय हैं और अमन-शांति चाहते हैं। यह देखते हुए कि रूस उनका सबसे शक्तिशाली पड़ौसी है और रूस से उनके ऐतिहासिक-सांस्कृतिक स्तर पर गहरे संबंध रहे हैं, वे रूस से भी अमन-शांति के संबंध ही चाहते हैं। पर अपेक्षाकृत कहीं कम संख्या में यूक्रेन में ऐसे भी तत्त्व हैं जो सदा से रूस के विरोधी रहे हैं। इनमें एक शक्तिशाली हिस्सा नव-नाजीवादियों और धुर दक्षिणपंथी व्यक्तियों का है जो प्रायः अधिक हथियारबंद भी होते हैं। ऐसे तत्त्वों को संयुक्त राज्य अमेरिका की सहायता मिलने से वे अधिक शक्तिशाली होते गए और सरकारी नीति निर्धारकों और सेना में उनकी अधिक पैठ हो गई। इनके सरकार और सेना में बढ़ते असर के कारण यूक्रेन की नीति में रूस के प्रति अधिक आक्रमकता आ गई है और बनी हुई है। जैसे-जैसे रूसी हमले में क्षति बढ़ती है तो यूक्रेन के अधिक लोगों में रूस के प्रति विरोध बढ़ता है।


उधर इस हमले की बड़ी कीमत रूस को अपने सैनिकों की क्षति के रूप में और आर्थिक प्रतिबंधों के रूप में चुकानी पड़ी है। इस स्थिति में उसने पूर्वी यूक्रेन में जिन क्षेत्रों पर अपना अधिकार किया है या रूसी भाषा बोलने वाले नागािकों के स्वशासन की स्थिति को मजबूत किया है वहां से रूस का हटना या यह क्षेत्र यूक्रेन को वापस सौंप देना कठिन है। पूर्वी यूक्रेन के कुछ क्षेत्रों पर रूसी हमले से पहले यूक्रेन के लड़ाकुओं ने हजारों निर्दोष रूसी भाषा बोलने वाले नागरिकों को मार दिया था। रूस का कहना है कि इन संकटग्रस्त लोगों की रक्षा के लिए उसने हमला किया। अतः यह क्षेत्र अब पहले की तरह यूक्रेन के अधिकार को दे देना संभव नहीं है।

दूसरी ओर यूक्रेन की सरकार कहती है वह अपना कोई क्षेत्र रूस को या रूसी समर्थित किसी अन्य शासन व्यवस्था को नहीं दे सकती है। इस निश्चय में यूक्रेन को संयुक्त राज्य अमेरिका का पूर्ण समर्थन मिल रहा है। इस स्थिति में शांति स्थापित हो तो कैसे हो।


इस कठिन स्थिति में यह बहुत जरूरी है कि जैसे भी हो फ्रांस, जर्मनी और भारत जैसे महत्त्वपूर्ण देश शांति प्रयास जारी रखने में मदद करें। संयुक्त राष्ट्र संघ से भी यही उम्मीद है। यदि रूस और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंध सुधरें तो इससे भी शांति स्थापित करने में मदद मिलेगी।

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