विष्णु नागर का व्यंग्य: ‘स्वरोजगार की दिशा में बहुत बड़ा कदम है पकौड़ा उद्योग’

जो समय बचता है उसमें मैं पकौड़ा उद्योग के विकास की नई-नई स्कीमें लांच करने की सोचता रहता हूं। सच-सच बताना लोगों, इतनी तरह के पकौड़े आपको जिन्दगी में कभी खाने को मिले? आजकल तो मैं भी कहता हूं कि नो खिचड़ी, ओनली पकौड़ा। पकौड़ा एंड पकौड़ा ओनली।

फोटो: सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

देखिए, भाइयों-बहनों और अन्यों,

पद की गरिमा को समझते हुए आदरणीय एवं माननीय प्रधानमंत्री जी स्वयं जो कहना नहीं चाहते, उस सचमुचवाले मन की बात को मेरे जैसे लफदंर के माध्यम से आप तक पहुंचाना चाहते हैं, तो मैंने सोचा कि चलिए प्रधानमंत्री की सेवा भी देश की सेवा है, कर देते हैंं, सो कर दी है:

'देश और विदेश की मेरी प्यारी जनता, नन्हे-मुन्ने बच्चों और बच्चियों, मुझे ही अपना प्यारा-प्यारा, जान से न्यारा वोट देना। आज देश के युवाओं के सामने च्वॉइस स्पष्ट है। अगर वे स्वरोजगार के जरिए समृद्धि चाहते हैंं तो मुझे वोट दें और गुलामगीरी करने के लिए सरकारी नौकरी चाहते हैं तो राहुल गांधी या एक्स, वाई, जेड जिसे देना चाहते हैं, बेशक वोट दें। मैं बचपन से ही संघ से जुड़ा हूं तो लोकतंत्र में मेरी आस्था नेहरू-गांधी से भी अधिक प्रबल है।

मैं आज पहचान पा रहा हूं कि स्वरोजगार का क्षेत्र कितनी तीव्र गति से विकसित हो रहा है। पकौड़ा उद्योग को ही लें। इसका विकास चरम गति से आगे बढ़ रहा है। इसमें 250 प्रतिशत की प्रगति हुई है, यह मोदी नहीं, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष कह रहा है, विश्व बैंक कह रहा है और कल ही मेरे मित्र ट्रंप साहब ने भी मुझसे टेलीफोन पर कहा कि वाह यार मोदी, मेरे यार, तूने तो कमाल कर दित्ता! कहां से लाता है ऐसे-ऐसे ब्रिलियंट आइडियाज? मेरे दिमाग में तो यह सब आता नहीं। ऐसा कर मेरी जगह तू अमेरिका का प्रेसिडेंट बन जा, तेरी जगह मैं चला जाता हूं। मैंने कहा कि ट्रंप जी,आप मेरे दोस्त हो, यह अलग बात है मगर आइंदा आप ऐसी बात मुंह से भी मत निकालना। मैं राष्ट्रभक्त हूं तो उन्होंने कहा, सॉरी यार, मैंने तुम्हारी भावनाओं को अगर चोट पहुंचाई हो तो मुझे लिंचिंग से बचाना, मुझे लिंचिंग से बड़ा डर लगता है। अगर आप गारंटी दो कि नहीं होगी मेरी लिंचिंग, तो ही गणतंत्र दिवस पर भारत आऊंंगा। तो मैंने कहा डोंट वरी, ट्रंप साहेब। गणवेश में आ जाना, सब ठीक रहेगा।

ये तो 'बाई द वे' एक उदाहरण दे दिया मैंने, ऐसे तो आलतू-फालतू रोज ही सैकड़ों फोन आते हैं, कभी इस प्रेसिडेंट का तो कभी उस प्राइम मिनिस्टर का। सच कहूं कि मैं तो अब ऐसे फोन उठाता भी नहीं। मुझे अपनी तारीफ खुद करना तो अच्छा लगता है, मगर दूसरे करें तो बोर हो जाता हूं, इसलिए कहलवा देता हूं कि साहेब बाथरूम में हैं।

इससे जो समय बचता है उसमें मैं पकौड़ा उद्योग के विकास की नई-नई स्कीमें लांच करने की सोचता रहता हूं। सच-सच बताना लोगों, इतनी तरह के पकौड़े आपको जिन्दगी में कभी खाने को मिले? आजकल तो मैं भी कहता हूं कि नो खिचड़ी, ओनली पकौड़ा। पकौड़ा एंड पकौड़ा ओनली। उसी की डाइट पर आजकल हूं। मैं कहता हूं कि अगर मैं देश के सामने पकौड़ा खाने का उदाहरण पेश नहीं करूंगा तो क्या ट्रंप यहां आकर करेगा? उसमें है हिम्मत मेरे जितने पकौड़े खाने की? हो जाए 26 जनवरी, 2019 को मेरा और उसका मुकाबला!

लेकिन स्वरोजगार की दिशा में यह छोटा सा, नन्हा-मुन्ना सा एक प्रयत्न है। दुनिया करती रहे तारीफ मेरी इसके लिए, मैं ध्यान नहीं देता। खैर, ट्रंप साहब को तो हम कुछ नहीं होने देंगे मगर आपने गौर किया होगा इधर लिंचिंग उद्योग का कितना चहुंमुखी विकास हुआ है? रिलायंस-विलायंस, अनिल- मुकेश के औद्योगिक साम्राज्य से बड़ा साम्राज्य यह विकसित हो रहा है और लोग अंबानी-अडाणी चिल्लाते रहते हैं। कहते हैं कि मैं उनको फेवर कर रहा हूं। ऐसा कर रहा होता तो आज इस उद्योग पर भी उनका कब्जा हो जाता। मैं कहता हूं नो, नथिंग डूइंग।

नेहरू जी को ये लोग बड़ा स्वप्नदर्शी कहते हैं। अरे इंदिरा जी तो देश से गरीबी हटाना चाहती थीं, क्यों नहीं हटाई उन्होंने गरीबी? सब आकर मोदी ही करे क्या? करेगा वह, सब करेगा! वह अब नहीं रुकनेवाला! कोई आम चुनाव उसे विकास के इस पथ से विचलित नहीं कर सकता। अभी तो देखना, अभी क्या है, अभी तो ये अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है। बहुत-सी विकास की नयी-नयी स्कीमें हैं मेरे दिमाग में। अट्ठारह-अट्ठारह घंटे यूं ही हाथ पर हाथ धरे बैठा नहीं रहता। मैं सफेद टोपी नहीं पहनता, काली टोपी पहनता हूं और लालकिले पर भाषण देता हूं तो ऊपर से साफा कसके बांध लेता हूं। जान लीजिए, जो आज आगे नहीं आएगा, कल पछताएगा। मोदी-मोदी करेगा ये देश, मगर ये फकीर एक बार गया तो फिर पलटकर नहीं आनेवाला।

(लेखक के विचारों से नवजीवन की सहमति अनिवार्य नहीं है।)

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