खरी-खरीः यूएन में भी मुंह की खाएगा पाकिस्तान!

कुटनीति के परिप्रेक्ष्य में भारत और पाकिस्तान के कश्मीर मुकदमे को परखें, तो पाकिस्तान अभी से अपना मुकदमा हारता दिख रहा है। क्योंकि आज अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में पाक दुनिया के अधिकतर प्रमुख देशों के लिए एक खोटा सिक्का है, जबकि भारत अब एक खरा सिक्का है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया
user

ज़फ़र आग़ा

लीजिए, अभी अमेरिका में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) महासभा का अधिवेशन आरंभ हुआ भी नहीं, लेकिन उससे पहले ही भारत और पाकिस्तान के बीच वाकयुद्ध (वॉर ऑफ वर्ड्स) शुरू हो गया है। इस बार यह होना ही था, क्योंकि भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में पिछले माह जो कदम उठाए उसके बाद तो पाकिस्तान को कश्मीर पर शोर मचाना ही था।

भारत ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया और राज्य को दो हिस्सों में बांटकर उसका स्तर निम्न कर दिया। फिर कश्मीर में पिछले छह सप्ताह से कर्फ्यू है, जिसके कारण सामान्य जीवन छिन्न-भिन्न हो गया है। पाकिस्तान समझता है कि कश्मीर पर उसका ठेका है, वहां जो कुछ हुआ उसकी सहमति के बिना हुआ। अतः उसको कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोर मचाने का अवसर मिल गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन से बेहतर स्थान इसके लिए और क्या हो सकता है! अतः इस अधिवेशन में कश्मीर गूंजेगा ही गूंजेगा।

हालांकि ये भी जाहिर है कि भारत चुपचाप पाकिस्तान को खुला मैदान तो दे नहीं देगा। अतः भारत सरकार ने भी पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की रणनीति बना ली है। इस प्रकार दोनों देशों ने अभी से तुर्की-ब-तुर्की एक दूसरे से कश्मीर की स्थिति पर सवाल-जवाब करना आरंभ कर दिया है।

केवल इतना ही नहीं! सारे संसार की निगाहें संयुक्त राष्ट्र के इस अधिवेशन पर लगी हुई हैं। इस अधिवेशन में दो ही मुद्दे हैं, जो छाए रहेंगे। पश्चिमी देशों की निगाह मुख्यतः ईरान और अमेरिका के बिगड़ते संबंधों पर लगी रहेगी, जबकि एशियाई देशों के लिए कश्मीर मुख्य मुद्दा रहेगा। सऊदी अरब के तेल ठिकानों पर हमले के बाद मध्य एशिया की स्थिति काफी बिगड़ गई है। अगर ईरान पर अमेरिकी हमला होता है, तो सारे संसार की तेल की सप्लाई ही खतरे में नहीं पड़ेगी, बल्कि केवल भारत के शेयर बाजार में ही हजारों करोड़ का नुकसान हो गया, तो फिर सोचिए बाकी देशों की क्या स्थिति होगी!

आज के इस औद्योगिक सभ्यता के दौर में यदि तेल सप्लाई ठप, तो बस जनजीवन भी ठप। ईरान ने सऊदी ठिकानों पर आक्रमण के पश्चात यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर उस पर आक्रमण होता है, तो वह सारे संसार की तेल की सप्लाई ठप कर सकता है। जाहिर है कि पश्चिमी जगत के औद्योगिक देश भला यह कैसे सह सकते हैं। अतः संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन के लिए एकत्रित दुनिया भर के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री पहले ईरान-अमेरिका तनाव का हल निकालने में जुट जाएंगे।

परंतु कश्मीर की गुत्थी भी सारे जगत के लिए कोई कम टेढ़ी खीर नहीं है। भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु संपन्न देश हैं। कश्मीर की ताजा स्थिति के परिप्रेक्ष्य में दोनों देशों के बीच युद्ध की संभावनाएं बहुत बढ़ गई हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अभी हाल में ‘अलजजीरा’ नेटवर्क को एक इंटरव्यू देकर यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर पाकिस्तान सामान्य युद्ध हारने की स्थिति में आता है, तो वह फिर परमाणु हथियार का इस्तेमाल करेगा ही करेगा।

अब यह बात जग जाहिर है कि पाकिस्तानी सेना भारत के खिलाफ सामान्य युद्ध जीत नहीं सकती है। अर्थात् अगला भारत-पाक युद्ध परमाणु युद्ध में परिवर्तित हो ही जाएगा। यदि ऐसा होगा तो परमाणु धुंआ भारत और पाकिस्तान ही नहीं, अपितु दुनिया में कहां-कहां कहर ढाएगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता। स्पष्ट है कि ईरान-अमेरिका युद्ध के समान, भारत-पाक युद्ध भी सारे संसार के लिए चिंता का विषय होगा। अतः संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में दुनिया की निगाहें भारत-पाक तनाव पर भी लगी रहेंगी।

जाहिर है कि दुनिया भर के सामने भारत और पाकिस्तान दोनों इस अधिवेशन में अपना-अपना मुकदमा पेश करेंगे। वह तो तभी पता चलेगा कि दोनों देशों के मुकदमों की दलील क्या है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान अधिवेशन में अपना-अपना भाषण देंगे। लेकिन दोनों देशों ने जनता और संसार के सामने अपनी-अपनी दलील रखनी शुरू कर दी है।

इस संबंध में शुरुआत पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने ‘अलजजीरा’ को एक इंटरव्यू देकर की। उनके इंटरव्यू के दो मुख्य बिंदु थे। एक, यह कि “अगर पाकिस्तान सामान्य युद्ध हारता है, तो अपनी सुरक्षा और आजादी के लिए हम न्यूक्लियर हथियार के इस्तेमाल से संकोच नहीं करेंगे।” दूसरा बिंदु यह था कि “जब भारत सरकार कश्मीर में कर्फ्यू हटाएगी, तो कश्मीरी सड़कों पर निकल पड़ेंगे।” उनके अनुसार, “दुनियाभर के 1.25 बिलियन मुसलमानों की निगाहें कश्मीर पर लगी हैं। और कश्मीर के बिगड़ते हालात से सारे संसार के “मुसलमानों में आतंक फैलेगा।”

यह तो रहेगी यूएन अधिवेशन में पाकिस्तानी दलील की रूपरेखा। अब सवाल यह है कि भारत के पास इसका जवाब क्या है, तो इस संबंध में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक प्रेस वार्ता के माध्यम से अभी से भारतीय मुकदमे की दलील स्पष्ट कर दी है। जयशंकर के अनुसार भारतीय दलील के तीन मुख्य बिंदु हैं। पहला, अनुच्छेद 370 भारत का आंतरिक मामला है। क्योंकि भारतीय संविधान के अनुसार अनुच्छेद 370 केवल एक अस्थाई अरेंजमेंट था, अतः भारत ने उसको समाप्त कर पूरी तरह कश्मीर को भारत की मुख्यधारा में जोड़ लिया है। इसलिए पाकिस्तान सहित किसी भी देश को भारत के आंतरिक मामले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है।

भारतीय दलील के अनुसार किसी भी देश को भारत के इस आंतरिक मामले में दखल नहीं देना चाहिए। भारतीय दलील का दूसरा मुख्य बिंदु यह है कि भारत, पाकिस्तान से बातचीत को तैयार है। लेकिन इस बातचीत का मुख्य बिंदु अब केवल यही होगा कि पाक अपने अधिकृत कश्मीर को भारत को कब तक लौटा रहा है। तीसरी बात, जो सारे संसार को भारत बताने जा रहा है वह यह है कि पाकिस्तान भारत सहित सारे संसार में आतंक एक्सपोर्ट का मुख्य केंद्र बन चुका है। उसके लिए पाकिस्तानी फौज ने बाकायदा पूरा ‘टेरर इंफ्रास्ट्रक्चर’ बना रखा है। अतः सारे संसार को मिलकर इसको समाप्त करना चाहिए।

यह तो रही कश्मीर मामले पर पाक और भारत की अपनी-अपनी दलील। अब सवाल यह है कि इस मुद्दे पर यूएन अधिवेशन में संसार के प्रमुख देश किस देश की सुनते हैं। इसका स्पष्ट जवाब तो अधिवेशन की समाप्ति के पश्चात ही मिलेगा। परंतु डिप्लोमेसी जगत के अपने अलग ही कुछ नियम होते हैं। राजनीति के समान सारे देश डिप्लोमेसी का उपयोग अपने-अपने देशहित में करते हैं। यदि इस परिप्रेक्ष्य में भारत और पाकिस्तान के कश्मीर मुकदमे को परखिए, तो पाकिस्तान अभी से अपना मुकदमा हारता नजर आ रहा है। वह क्यों और कैसे! अरे भाई, आज की अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में पाकिस्तान संसार के अधिकतर मुख्य देशों के लिए एक खोटा सिक्का है, जबकि भारत अब एक खरा सिक्का है।

अंतरराष्ट्रीय जगत में 1980 से लगभग 2010 तक अमेरिका के नेतृत्व में सारे पश्चिमी देशों को पाकिस्तान की अन्य से अधिक जरूरत थी। यह वह दौर था जब पश्चिम दो समस्याओं से जुझ रहा था। पहले तो 1980 के दशक में पश्चिम के मुख्य प्रतिद्वंद्वी सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर उसको अपने कब्जे में कर लिया था। उस समय भारत सोवियत संघ के साथ था और अमेरिका को सोवियत संघ को सबक सिखाना था। इसके लिए अमेरिका ने जिहाद की रणनीति अपनाई थी। क्योंकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान का पड़ोसी देश है, अतः उस समय पश्चिम और अमेरिका का हित इसी में था कि पाकिस्तान का हर मामले में साथ दिया जाए।

इसलिए 1980 के दशक से लेकर लगभग 2010 तक अमेरिका कश्मीर मामले पर यूएन और दूसरी जगहों पर सीधे या टेढ़े पाकिस्तान का साथ देता रहा। परंतु अब स्थिति बदल चुकी है। इराक में 2014 में अल बगदादी की इस्लामी खिलाफत की स्थापना के पश्चात जिहाद की आग की चपेट में स्वयं पश्चिम भी आ गया। अतः अब अमेरिका और पश्चिम को जिहाद अर्थात् आतंकी रणनीति की आवश्यकता नहीं है। उधर सोवियत संघ 1990 के दशक में ध्वस्त हो चुका है। इस परिप्रेक्ष्य में अब अमेरिका सहित संपूर्ण पश्चिम के लिए पाकिस्तान की उपयोगिता लगभग समाप्त हो चुकी है।

जबकि साल 1990 से अब तक भारत दुनिया के एक मुख्य बाजार के रूप में उभरा है। यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। आज अमेरिका सहित सारे देशों का हित भारत के साथ जुड़ा हुआ है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन में होने वाली जग डिप्लोमेसी संसार के इन्हीं हितों के परिप्रेक्ष्य में कश्मीर पर अपना रूप धारण करेगी। ऐसे माहौल में भला पाकिस्तान को यूएन में मुंह की खाने के सिवाय और क्या हाथ आ सकता है।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia