हमारा चौकीदार सोता रहा और नीरव मोदी जैसे लुटेरे सरकारी खजाने पर डाका डालकर भाग गए विदेश
देश पर नीरव मोदी का भूत सिर चढकर बोल रहा है। हीरों के ये व्यापारी, जो दावोस में मोदी के ठीक पीछे खड़े थे, बैंकों के 11,300 करोड़ रूपये लूटकर छूमंतर हो गए हैं। सरकार उन्हें ढूंढ़ नहीं पा रही है।
भारत सहित दुनिया के लगभग सभी देशों में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है। सन 2011 में भ्रष्टाचार के विरूद्ध एक बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ था, जिसके अंतर्गत जनलोकपाल की नियुक्ति की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर लंबे समय तक धरना भी दिया गया था। इस आंदोलन का मूल स्वर कांग्रेस-विरोधी था। हां, बीच-बीच में संतुलन बनाए रखने के लिए बीजेपी का नाम भी ले लिया जाता था। इस आंदोलन के नेता अन्ना हजारे को दूसरे गांधी की पदवी दी गई थी। उस आंदोलन के दौरान दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, अन्ना हजारे के प्रमुख सिपहसालारों में से एक थे। उस समय केजरीवाल के लिए जनलोकपाल की नियुक्ति सबसे बड़ा मुद्दा थी, मानो इस नियुक्ति के होते ही भ्रष्टाचार देश से इस तरह गायब हो जाएगा जैसे गधे के सिर से सींग। उस समय पुडुचेरी की वर्तमान उपराज्यपाल किरण बेदी भी मंच से हुंकार भर रहीं थीं। इस आंदोलन से जो दो अन्य प्रमुख व्यक्ति जुड़े हुए थे वे थे पतंजलि उत्पाद श्रृंखला के मालिक बाबा रामदेव एवं श्री श्री रविशंकर। यह अत्यंत आश्चर्य की बात है कि इन सब ने अब एकदम चुप्पी साध रखी है। ऐसा लग रहा है कि मानो देश से भ्रष्टाचार का खात्मा हो गया हो।
इस आंदोलन ने देश में इस हद तक जुनून पैदा कर दिया था कि लोग अपने हाथों पर ‘मेरा नेता चोर है‘ लिखवाने लगे थे। पीछे पलटकर देखने से अब ऐसा लगता है कि इस आंदोलन का प्राथमिक और एकमात्र लक्ष्य कांग्रेस को निशाना बनाना था। कांग्रेस के शासनकाल में सत्यम कम्प्यूटर्स के राजू की गिरफ्तारी हुई थी। 2जी घोटाले का खुलासा होने पर कई मंत्रियों को अपने पद गंवाने पड़े थे। हाल में एक अदालत में जो निर्णय दिया है, उससे यह स्पष्ट है कि 2जी घोटाला कभी हुआ ही नहीं था। जो लोग उस समय कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे थे, वे अब सत्ता के शीर्ष पर हैं और अदालत ने 2जी घोटाले की हवा निकाल दी है।
परंतु यह सब अब अतीत है। ऐसा कहा जाता है कि जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है। कांग्रेस को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जमकर बदनाम करने के अभियान के अगुआ अब अपनी राजनीति और अपने व्यवसाय को चमकाने में व्यस्त हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, जिन्होंने कांग्रेस-विरोधी लहर का पूरा लाभ उठाया, ने सन् 2014 के आमचुनाव के दौरान दो जुमले उछाले थे। पहला था ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा‘ और दूसरा ‘कि जनता उन्हें देश का चौकीदार बनने का मौका दे’। मोदी की प्रचार मशीनरी ने सफलतापूर्वक जनता को यह विश्वास दिला दिया कि मोदी जो कुछ कह रहे हैं, वे ठीक वैसा ही करेंगे।
अब देश पर नीरव मोदी का भूत सिर चढकर बोल रहा है। हीरों के ये व्यापारी, जो दावोस में मोदी के ठीक पीछे खड़े थे, बैंकों के 11,300 करोड़ रूपये लूटकर छूमंतर हो गए हैं। सरकार उन्हें ढूंढ़ नहीं पा रही है। नीरव मोदी ने यह लूट बहुत चतुराई से की। उन्होंने बिना किसी संपार्श्विक प्रतिभूति के पंजाब नेशनल बैंक के अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर बैंक से इस आशय का अधिकार पत्र हासिल कर लिया कि वे पंजाब नेशनल बैंक की गारंटी पर अन्य बैंकों से कर्ज ले सकते हैं। उनके मामा मेहुल चौकसी, जिन्हें नरेन्द्र मोदी प्रेमवश ‘मेहुल भाई‘ पुकारते हैं, भी देश से भाग निकले हैं। उन्होंने और नीरव मोदी दोनों ने अपने सभी कर्मचारियों की छुट्टी कर दी है और उन्हें भूख और बेरोजगारी के गर्त मे ढकेल दिया है। केवल ये दोनों ही ऐसे उद्योगपति नहीं हैं जो हमारे प्रधामनंत्री के प्रिय पात्र हैं। रोटोमेक पेन के मालिक श्री कोठारी ने भी बैंकों का खजाना खाली करने में अपना यथाशक्ति योगदान दिया है। यह बात अलग है कि अपवाद स्वरूप वे जेल के सींखचों के पीछे पहुंच गए हैं। इसके पहले भी कई उद्योगपति जनता का धन डकार कर देश से गायब हो चुके हैं। किंगफिशर के विजय माल्या, 9,000 करोड़ रूपये खाकर गायब हैं। सीबीआई ने देश के हवाईअड्डों को केवल यह नोटिस जारी किया कि अगर वे देश से बाहर जाने की कोशिश करें तो उसे सूचना दी जाए। देश की इस सबसे बड़ी जांच एजेंसी ने यह नहीं कहा कि उन्हें देश के बाहर न जाने दिया जाए। इसके पहले, ललित मोदी भी यही फार्मूला अपना चुके हैं। उनके सुषमा स्वराज और वसुंधराराजे सिंधिया से काफी मधुर संबंध बताए जाते हैं।
देश की संपत्ति की चौकीदारी करने का वायदा भी आखिरकार जुमला साबित हुआ। इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारी बैंकिग प्रणाली में कई खामियां हैं और इन्हीं खामियों का इस्तेमाल मोदी के खास लोग अपने खजाने भरने के लिए कर रहे हैं। सवाल यह है कि ऐसे लोगों पर नजर रखने वाली प्रणाली क्यों और कैसे असफल हो गई। यह कैसे हुआ कि जनता की गाढ़ी कमाई के अरबों रूपये खाकर घोटालेबाज विदेशों में चैन की बंसी बजा रहे हैं। क्या यह उनकी चतुराई है या फिर मोदी सरकार ने उन्हें देश का धन गठरी में बांधकर विदेश भाग जाने का मौका उपलब्ध करवाया है?
सन 2014 के आमचुनाव के दौरान, श्री मोदी ने जो भी वायदे किए थे, उनमें से अधिकांश खोखले साबित हुए हैं। न तो विदेशों में जमा काला धन वापस आया है और ना ही हर भारतीय के खाते में 15 लाख रूपये जमा हुए हैं। महंगाई घटने की बजाए सुरसा के मुख की तरह बढ़ती जा रही है। मोदी ने यह वायदा भी किया था कि वे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में रूपये की कीमत बढ़ाने के लिए कदम उठाएंगे। इस सिलसिले में भी कुछ नहीं किया गया। दे देश की संपत्ति की चौकीदारी करने का वायदा भी आखिरकार जुमला साबित हुआ। इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारी बैंकिग प्रणाली में कई खामियां हैं और इन्हीं खामियों का इस्तेमाल मोदी के खास लोग अपने खजाने भरने के लिए कर रहे हैं। सवाल यह है कि ऐसे लोगों पर नजर रखने वाली प्रणाली क्यों और कैसे असफल हो गई। यह कैसे हुआ कि जनता की गाढ़ी कमाई के अरबों रूपये खाकर घोटालेबाज विदेशों में चैन की बंसी बजा रहे हैं। क्या यह उनकी चतुराई है या फिर मोदी सरकार ने उन्हें देश का धन गठरी में बांधकर विदेश भाग जाने का मौका उपलब्ध करवाया है?
इसमें कोई संदेह नहीं कि मोदी इस देश के कारपोरेट घरानों के डार्लिंग हैं। गुजरात में 2002 के कत्लेआम के बाद उन्होंने विकास का शिगूफा छोड़ा और उसे ‘गुजरात माडल‘ का नाम दिया। इस माडल का मूलमंत्र था बड़े उद्योगपतियों को उनका मुनाफा और संपत्ति बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं उपलब्ध करवाना। यही कारण है कि रतन टाटा ने नैनो कार का कारखाना पश्चिम बंगाल से हटाकर गुजरात में स्थापित किया और उन्होंने अन्य उद्योगपतियों से भी कहा कि अगर वे गुजरात में अपना धंधा नहीं चला रहे हैं तो वे सही रास्ते पर नहीं हैं। इसी तरह, अंबानी और अडानी ने भी मोदी राज में दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति की। नीरव मोदी इन औद्योगिक घरानों के नजदीक हो सकते हैं। शायद मोदी के लिए इन धन कुबेरों की प्रगति ही विकास है।
इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अंतिम सांस तक लड़ने का प्रण करने वाले योद्धा गायब हैं। अन्ना हजारे, केजरीवाल, किरण बेदी और बाबा रामदेव को मानो सांप सूंघ गया है। यहां यह बताना अप्रासंगिक नहीं होगा कि अन्ना हजारे के आंदोलन की पूरी रणनीति विवेकानंद इंटरनेशनल सेंटर ने बनाई थी जो कि आरएसएस का थिंक टैंक है। और इस आंदोलन ने निश्चित तौर पर संघ की संतान भाजपा को दिल्ली में सत्ता में आने में मदद की।
कुल मिलाकर हमारा चौकीदार सोता रहा और नीरव मोदी और उनके जैसे अन्य लुटेरे सरकारी खजाने पर डाका डालकर विदेशों में जा छिपे। अब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की बात कही जा रही है। क्या निजीकरण के बाद जो लोग इन बैंकों का संचालन करेंगे, उन पर हम यह भरोसा कर सकते हैं कि वे उस धन की रक्षा करेंगे, जो जनता उन्हें सौंपेगी? इस समय ज़रूरत इस बात कि है कि जनता के धन के उपयोग का सामाजिक आडिट हो और उस पर जनता का नियंत्रण हो। अब इसमें कोई संदेह नहीं रह गया है कि मोदी, कारपोरेट जगत के प्रति काफी प्रेम भाव रखते हैं। अगर हम अब भी नहीं जागे तो बहुत देर हो जाएगी।
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